बगलामुखी प्रत्यंगिरा कवच
इस कवच के पाठ से वायु भी स्थिर हो जाती है। शत्रु का विलय हो जाता है।
विद्वेषण, आकर्षण, उच्चाटन, मारण तथा शत्रु का स्तम्भन भी इस कवच के पढ़ने से होता है।
बगला प्रत्यंगिरा सर्व दुष्टों का नाश करने वाली, सभी दुःखो को हरने वाली, पापों का नाश करने वाली, सभी शरणागतों का हित करने वाली, भोग, मोक्ष, राज्य और सौभाग्य प्रदायिनी तथा नवग्रहों के दोषों को दूर करने वाली हैं।
जो साधक इस कवच का पाठ तीनों समय अथवा एक समय भी स्थिर मन से करता है, उसके लिए यह कल्पवृक्ष के समान है और तीनों लोकों में उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। साधक जिसकी ओर भरपूर दृष्टि से देख ले, अथवा हाथ से किसी को छू भर दे, वही मनुष्य दासतुल्य हो जाता है।
इस कवच के पाठ से भयंकर से भयंकर तंत्र प्रयोग को भी नष्ट किया जा सकता है लेकिन इसका पाठ केवल बगलामुखी में दीक्षित साधक ही को करना चाहिए । बिना गुरू आज्ञा से इसका पाठ करना चाहिए।
अस्य श्री बगला प्रत्यंगिरा मंत्रस्य नारद ऋषि स्त्रिष्टुप छन्दः प्रत्यंगिरा ह्लीं बीजं हूं शक्तिः ह्रीं कीलकं ह्लीं ह्लीं ह्लीं ह्लीं प्रत्यंगिरा मम शत्रु विनाशे विनियोगः ।
मंत्र : ओम् प्रत्यंगिरायै नमः प्रत्यंगिरे सकल कामान् साधय: मम रक्षां कुरू कुरू सर्वान शत्रुन् खादय-खादय, मारय-मारय, घातय-घातय ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।
ॐ ह्रीं मोहिनी मम शत्रून् मोहय मोहय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं संहारिणी मम शत्रून् संहारय संहारय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं द्राविणी मम शत्रून् द्रावय द्रावय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं जृम्भणी मम शत्रून् जृम्भय जृम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा।
ॐ ह्रीं रौद्रि मम शत्रून् सन्तापय सन्तापय ॐ ह्रीं स्वाहा।asya śrī bagalā pratyaṃgirā maṃtrasya nārada ṛṣi striṣṭupa chandaḥ pratyaṃgirā hlīṃ bījaṃ hūṃ śaktiḥ hrīṃ kīlakaṃ hlīṃ hlīṃ hlīṃ hlīṃ pratyaṃgirā mama śatru vināśe viniyogaḥ । maṃtra : om pratyaṃgirāyai namaḥ pratyaṃgire sakala kāmān sādhaya: mama rakṣāṃ kurū kurū sarvāna śatrun khādaya-khādaya, māraya-māraya, ghātaya-ghātaya oṃ hrīṃ phaṭ svāhā। Baglamukhi Pratyangira Kavach in English (IAST) oṃ bhrāmarī stambhinī devī kṣobhiṇī mohanī tathā । saṃhāriṇī drāviṇī ca jṛmbhaṇī raudrarūpiṇī ।। ityaṣṭau śaktayo devi śatru pakṣe niyojatāḥ । dhārayeta kaṇṭhadeśe ca sarva śatru vināśinī ।। oṃ hrīṃ bhrāmarī sarva śatrūn bhrāmaya bhrāmaya oṃ hrīṃ svāhā । oṃ hrīṃ stambhinī mama śatrūn stambhaya stambhaya oṃ hrīṃ svāhā । oṃ hrīṃ kṣobhiṇī mama śatrūn kṣobhaya kṣobhaya oṃ hrīṃ svāhā । oṃ hrīṃ mohinī mama śatrūn mohaya mohaya oṃ hrīṃ svāhā । oṃ hrīṃ saṃhāriṇī mama śatrūn saṃhāraya saṃhāraya oṃ hrīṃ svāhā । oṃ hrīṃ drāviṇī mama śatrūn drāvaya drāvaya oṃ hrīṃ svāhā । oṃ hrīṃ jṛmbhaṇī mama śatrūn jṛmbhaya jṛmbhaya oṃ hrīṃ svāhā । oṃ hrīṃ raudri mama śatrūn santāpaya santāpaya oṃ hrīṃ svāhā ।
श्री बगला प्रत्यंगिरा कवचम् |
।। श्री शिव उवाच ।। |
अधुनाऽहं प्रवक्ष्यामि बगलायाः सुदुर्लभम् । |
यस्य पठन मात्रेण पवनोपि स्थिरायते ।। |
प्रत्यंगिरां तां देवेशि श्रृणुष्व कमलानने । |
यस्य स्मरण मात्रेण शत्रवो विलयं गताः ।। |
।। श्री देव्युवाच ।। |
स्नेहोऽस्ति यदि मे नाथ संसारार्णव तारक । |
तथा कथय मां शम्भो बगलाप्रत्यंगिरा मम ।। |
।। श्री भैरव उवाच ।। |
यं यं प्रार्थयते मन्त्री हठात्तंतमवाप्नुयात् । |
विद्वेषणाकर्षणे च स्तम्भनं वैरिणां विभो ।। |
उच्चाटनं मारणं च येन कर्तुं क्षमो भवेत् । |
तत्सर्वं ब्रूहि मे देव यदि मां दयसे हर ।। |
।। श्री सदाशिव उवाच ।। |
अधुना हि महादेवि परानिष्ठा मतिर्भवेत् । |
अतएव महेशानि किंचिन्न वक्तुतुमर्हसि ।। |
।। श्री पार्वत्युवाच ।। |
जिघान्सन्तं तेन ब्रह्महा भवेत् । |
श्रृतिरेषाहि गिरिश कथं मां त्वं निनिन्दसि ।। |
।। श्री शिव उवाच ।। |
साधु साधु प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्वावहितानघे । |
प्रत्यंगिरां बगलायाः सर्वशत्रुनिवारिणीम् ।। |
नाशिनीं सर्व-दुष्टानां सर्व-पापौघ-हारिणिम् । |
सर्व-प्राणि-हितां देवीं सर्व दुःख विनाशिनीम् ।। |
भोगदां मोक्षदां चैव राज्य सौभाग्य दायिनीम् । |
मन्त्र-दोष-प्रमोचनीं ग्रह-दोष निवारिणीम् ।। |
|
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबगला प्रत्यंगिरा मन्त्रस्य नारद ऋषिस्त्रिष्टुप् छन्दः, प्रत्यंगिरा देवता, ह्लीं बीजं, हुं शक्तिः, ह्रीं कीलकं, ह्लीं ह्लीं ह्लीं ह्लीं प्रत्यंगिरा मम शत्रु विनाशे विनियोगः । |
ॐ प्रत्यंगिरायै नमः । प्रत्यंगिरे सकल कामान् साधय मम रक्षां कुरु-कुरु सर्वान् शत्रून् खादय खादय मारय मारय घातय घातय ॐ ह्रीं फट् स्वाहा । |
ॐ भ्रामरी स्तम्भिनी देवी क्षोभिणी-मोहिनी तथा । |
संहारिणी द्राविणी च जृम्भिणी रौद्र-रुपिणी ।। |
इत्यष्टौ शक्तयो देवि शत्रु पक्षे नियोजिताः । |
धारयेत् कणऽठदेशे च सर्वशत्रु विनाशिनी ।। |
ॐ ह्रीं भ्रामरि सर्व-शत्रून् भ्रामय-भ्रामय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं स्तम्भिनी मम शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं क्षोभिणी मम शत्रून् क्षोभय-क्षोभय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं मोहिनी मम शत्रून्मोहय मोहय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं संहारिणि मम शत्रून् संहारय संहारय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं द्राविणि मम शत्रून् द्रावय द्रावय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं जृम्भिणि मम शत्रून् जृम्भय जृम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं रौद्रि मम शत्रून् सन्तापय सन्तापय ॐ ह्रीं स्वाहा । |
इयं विद्या महा-विद्या सर्व-शत्रु-निवारिणी । |
धारिता साधकेन्द्रेण सर्वान् दुष्टान् विनाशयेत् ।। |
त्रि-सन्ध्यमेक-सन्धऽयं वा यः पठेत्स्थिरमानसः । |
न तस्य दुर्लभं लोके कल्पवृक्ष इव स्थितः ।। |
यं य स्पृशति हस्तेन यं यं पश्यति चक्षुषा । |
स एव दासतां याति सारात्सारामिमं मनुम् ।। |
|
।। श्री रुद्रयामले शिव-पार्वति सम्वादे बगला प्रत्यंगिरा कवचम् ।। |
|
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीबगला प्रत्यंगिरा मन्त्रस्य नारद ऋषिस्त्रिष्टुप् छन्दः, प्रत्यंगिरा देवता, ह्लीं बीजं, हुं शक्तिः, ह्रीं कीलकं, ह्लीं ह्लीं ह्लीं ह्लीं प्रत्यंगिरा मम शत्रु विनाशे विनियोगः । |
|
Om Asya Shri Bagla pratyingra mantrasay narad rishi tri chutup chandah |
Prat yingra devta hrim beejam hoom shakti h rim kilkam Hrim,hrim,hrim |
hrim pratyingra mam shatru vinashaya viniyog. |
Take some water in right hand while reciting and release on viniyog. |
hrim to pronounced as H REEM |
ॐ प्रत्यंगिरायै नमः । प्रत्यंगिरे सकल कामान् साधय मम रक्षां कुरु-कुरु सर्वान् शत्रून् खादय खादय मारय मारय घातय घातय ॐ ह्रीं फट् स्वाहा । |
ॐ भ्रामरी स्तम्भिनी देवी क्षोभिणी-मोहिनी तथा । |
संहारिणी द्राविणी च जृम्भिणी रौद्र-रुपिणी ।। |
इत्यष्टौ शक्तयो देवि शत्रु पक्षे नियोजिताः । |
धारयेत् कणऽठदेशे च सर्वशत्रु विनाशिनी ।। |
|
Om pratyinagrai namah pratyingarey sakal kamaan sadhaya mam raksham |
kuru kuru sarvaan shatrunn khaadaya khaadaya maaraya maaraya |
ghaataya ghaataya Om Hrim phatt swaha. |
Om bhramaari stambini devi shobini mohini tathaa sanhaarini draavini ch |
jrambhini rou der roopini iti ashtoo devi shatru pakshay niyo jatah |
Dhaar yet kandh deshey ch sarv shatru vinashaani.. |
|
ॐ ह्रीं भ्रामरि सर्व-शत्रून् भ्रामय-भ्रामय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं स्तम्भिनी मम शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं क्षोभिणी मम शत्रून् क्षोभय-क्षोभय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं मोहिनी मम शत्रून्मोहय मोहय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं संहारिणि मम शत्रून् संहारय संहारय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं द्राविणि मम शत्रून् द्रावय द्रावय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं जृम्भिणि मम शत्रून् जृम्भय जृम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा । ॐ ह्रीं रौद्रि मम शत्रून् सन्तापय सन्तापय ॐ ह्रीं स्वाहा । |
|
Om hrim bhramari sarv shatrunn bhra maya ,bhra maya om hrim swaha. |
Om Hrim Stambhini mamm shatrunn stambhay stambhay om hrim swaha |
om Hrim Shobhini mamm shatrunn shobhaya shobhaya om hrim swaha |
om hrim mohini mamm shatrunn mohay mohay om hrim swaha |
om hrim sanhaarini mamm shtrunn sanhaaraya sanhaaraya om hrim swaha |
om hrim draavini mamm shtrunn draa vai draavai om hrim swaha |
om hrim jhrambhini mamm shatrunn jhrambh ai jhrambhai om hrim swaha |
om hrim roudri mamm shatrunn santaapaya santaapaya om hrim swaha |