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Spiritual club by Dharana, Dhyana and Samadhi

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Dharana, Dhyana and Samadhi

ध्यान :- अक्सर लोग पूछते ही रहते हैं की ध्यान करना चाहते हैं केसे करें ? दुविधा हो जाती है की क्या बतायुं ..क्यूंकि जेसे हर व्यक्ति का स्वाभाव अलग अलग होता है इसी प्रकार ध्यान की विधियाँ भी , अनुभव भी , लक्ष्य भी अलग अलग होते हैं .
germen के मेरे एक मित्र हैं उनकी किताब' flirt with negativity' वहां की best seller है . एक बार उन्होंने ने कहा की ध्यान शिविर करना है जिसमे लगभग 25 -26 देशों से लोग आयेंगे और इसकी ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर डाली गयी . उस समय भी यहि दुविधा थी की ऐसी कौनसी विधि करवाई जाए जिससे सबको लाभ मिल सके . इसको तीन चरण में कहने का प्रयास करता हूँ आशा है आप भी लम्भावित होंगे .कुछ लोग अध्यातम के रास्ते में जाना चाहते है ,कुछ आत्मा की खोज में , कुछ विद्यार्थी हैं जिनको concentration बडानी है और कुछ साधक जो सिद्धि के मार्ग में आगे जाना चाहते है यह सबके लिए आवश्यक है .


step1:- सांसों का जीवन में बहुत महत्व है . सांस है तो जीवन है .. सांस गयी तो जीवन गया . अपनी रोजमर्या की जीवन में भी देखें थोडा सा भय आ जाए तो सांस अपने आप फूलने लगती है .आलस्य आ जाए तो सांस की गति अपने आप कम हो जाती है . सम्भोग के समय में सांस की गति अपने आप बड जाती है . अगर आप सांस पर कुछ छोटे से प्रयोग करके देखें तो आश्चर्यचकित हो जायेंगे जेसे ..सर्दियों का मोसम हो और आपको नहाते समय ठण्ड लग रही हो तो सांस को अंदर लें , कुछ पल के लिए अंदर ही रोके रखें और अपने ऊपर पानी डालें . आप यह देख कर हैरान हो जायेंगे की आपको पानी ठंडा नहीं लग रहा . किसी पहाड़ी पर चढ़ रहे है तो सांस को जितना संभव हो सके उतना अंदर रखने का प्रयास करें आपको थकावट भी नहीं होगी और चड़ने में आसानी भी हो जायेगी .


अक्सर अध्यातम में यह कहने सुनने में आता है की अपने अंदर उतरो .. केसे उतरें वह कौनसी सीडी है जो अंदर की और जाती है ? वह साँस है जिसको हम निरंतर अपने अंदर उतारते रहते है . इसका तात्पर्य यह हुआ की अगर हम सांस का सहारा लें तो उसके साथ हम भी अपने अंदर की यात्रा कर सकते है , जब अंदर की यात्रा शुरू होगी तो हमारे इस शरीर में ही सात और शरीर है जिसका उलेख गायत्री मंत्र में किया गया है हम उन तक पहुँच पाएंगे , शरीर के अंदर सात चक्र भी हैं मूलाधार से लेकर सहस्रार तक , उनको जाग्रत किया जा सकता है , कुण्डलिनी जाग्रत कर पाएंगे .,

मानव से महामानव बनने की क्रिया आरंभ हो जायेगी . मृत्यु से अमृत्यु की यात्रा आरंभ हो जायेगी . लेकिन इसके लिए ज़रूरी है की हम सांसों का महत्व समझें और इस क्रिया को करने का नाम है प्राणायाम , भस्रिका .. इसपर लिखने जायूंगा तो पूरा ग्रन्थ ही बन जाएगा चूंकि इसके ऊपर market में कई किताबें मिल जायेंगी ..कोई भी लेकर इसको शुरू कर सकता है ..फिर भी अगर किसी को मेरी तरफ से कोई मदद चाहिए तो मैं ज़रूर करूंगा . जल्दी ही step 2 पर आएंगे . आज के लिए इतना काफी है
प्राणायाम करने का सही समय सुबह 5-6 बजे होना चाहिए और और 20 से 25 मिनट तक करना चाहिए

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step 2: अब बात करते हैं दुसरे चरण की जेसे पहले चरण में हमने साँसों के महत्व को समझा दुसरे में हम मन को समझेंगे और इसपर कार्य किया जाएगा . स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है की जीवन में सफलता का रहस्य अगर किसी शब्द में छूपा है तो वह शब्द है मन की एकाग्रता . गुरु वाणी में भी कह गया है की मन जीते जगजीत तात्पर्य जिसने मन को काबू में कर लिए उसने पूरे विश्व में विजय प्राप्त कर ली . गीता में कृष्ण अर्जुन से कह रहे है की हे अर्जुन अगर मन को काबू में कर लिए जाए तो यह हमारा परम मित्र बन जाता है और अगर काबू में न रहे तो परम शत्रु बन जाता है .


अगर हम अपने जीवन को देखें और पूरी दिनचर्या को समझें तो ...पूरे का पूरा दिन हम मन के अधीन होकर कार्य करते है , मन चाय पीने का हो तो चाय पीते है , मन घूमने का हो तो घूमने निकल जाते हैं , मन किसी पर खुश होता है तो प्रशंसा कर लेते है दुखी होने पर गालिया भी निकाल लेते हैं . मन ही किसी को दानी बना देता है और किसी को बलात्कारी . इस प्रकार जीते जीते एक दिन मृत्यु आ जाती है .इसपर भी लिखना शुरू करूं तो पूरा ग्रन्थ बन जाएगा बेहतर है की मुद्दे की बात पर आया जाए की मन को केसे एकाग्र करें और इसका केसे जीवन को संवारने में उपयोग करें .


पहले मन की कार्यशेली को समझना होगा . हमारे अन्दर दो मन होते है . एक जब तक हम जागते रहते है तब तक हमारे साथ जागता है और हमारे सोते ही निष्क्रिय हो जाता है जबकि दूसरा मन निरंतर जाग्रत और गतिशील रहता है . सपने आना , आभास होना ..इत्यादि यह इसी मन के कमाल होते है . इसके लिए जो विधि बता रह हूँ वोह लगेगी कुछ अटपटी सी लेकिन मेरा अपना अनुभव है की इससे बढ़िया संसार में कोई भी विधि नहीं है .सीधे विधि पर आते हैं .
इसमें हम सहारा लेंगे अपनी आँखों का .. यह साधना सुबह बिस्तर से शुरू होती है जेसे ही हम जागें .जो कुछ कार्य भी करें उसपर पूरा धयान देते हुए करें , मसलन बिस्तर से उतर कर अगर हम चप्पल पहन रहे हों तो अपनी आँखें और चेतना को उसी में लगायें .. ब्रश करें तो पूरा धयान ब्रश पर लगायें , खाना खा रहे है तो रोटी को देखें , देखें की आप रोटी खा रहे हैं , ड्राइव कर रहे हैं तो पूरी आँखें और चेतना उसी में लगायें , सब्जी कट रहे हैं तो पूरी ऑंखें और चेतना उसी काटने में लगा दें .TV देख रहे हैं तो पूरी चेतना से देखने .कहने का तात्पर्य सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक जो जो भी करें पूरी चेतना से करें . अब सवाल है की इससे होगा क्या ?


जो मन आपको सारा दिन चलाता था अब आप उसके केन्द्रित कर रहे है वो भी अपने सारे काम करते हुए . जेसे जेसे आपका इसपर अभ्यास बढेगा आपकी एकाग्रता बढनी शुरू हो जायेगी . एकाग्रता बढेगी तो आपके सारे कार्य सफल होते जायेंगे . आप अनचाहे ही योगियों , चमत्कारी पुरुषों की श्रेणी में आते जायेंगे .


जो लोग सम्मोहन सीखने में त्राटक का अभ्यास करते हैं उनको पता होगा की एक 32 मिनट के त्राटक से जीवन में क्या क्या उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है लेकिन यहाँ तो पूरा दिन ही त्राटक चल रहा है और वह भी सारे काम करते हुए
साधकों को साधना में सफलता मिलनी शुरू हो जायेगी . व्यापारियों को व्यापर में .STUDENTS को अपनी स्टडी में ..


अब हमे केसे पता चलेगा की हम सही कर रहे हैं ? कितनी एकाग्रता से कर रहे है? और कितना आगे बड रहे है ?


कुछ दिन के अभ्यास के बाद अगर आप सड़क पर जा रहे है और आपके सामने कोई व्यक्ति जा रह है उसकी गर्दन के पीछे देखें और सोचें की यह व्यक्ति पीछे देखे ..अगर उसने मुड कर देख लिया तो समझें की आप सही दिशा में जा रहे है ..बता तो और भी सकता हूँ लेकिन विद्या का दुरूपयोग न हो इसलिए यहीं तक रहना ही सही होगा
आगे तीसरे चरण की चर्च करेंगे

 

प्राणायाम करने का सही समय सुबह 5-6 बजे होना चाहिए और और 20 से 25 मिनट तक करना चाहिए

 

step3- दुसरे चरण में हमने मन को एकाग्र करने का कार्य किया , तीसरे चरण में हम मन पर control करके इससे कार्य करवाएंगे . पहले इस क्रिया को समझा जाए फिर इसके लाभों की चर्चा करेंगे .
[यह रात को सोते समय की जा सकती है या दिन में भी किसी भी वक्त जब आपका मन शांत हो . शरीर में ढीले वस्त्र पहन कर , पीठ के बल बिस्तर पर लेट जाएँ , पहले हमको शव आसन में जाना है . मतलब शरीर के सभी अंगों को ढीला छोड़ देना है , किसी भी अंग में थोडा सा भी किसाव न हो ..बिलकुल मरे हुए जेसा कर देना है , इस अवस्था में 4,5 मिनट पड़े रहें . अब पूरा धयान अपने पांवो पर लगायें , महसूस करें की पाँव की पाँव कहाँ पर है , कुछ ही समय में आपको पांवो में सिहरन सी महसूस होगी इसका मतलब आपकी चेतना आपके पांवों तक पोहुंच गयी है इसके बाद टांगों की पिंडलियों पर ध्यान केन्द्रित करें ,जब वहां सिहरन महसूस होनी शुरू हो तो जांघों पर ध्यान लगा दें ,,इसी प्रकार करते हुए फिर पेट , छाती , दोनों हाथ , बाजू , कंधे , गला ,मूंह , कान ,आँखें आदि पर ध्यान केंद्रित करें . एक प्रकार से देखा जाए तो आपने पांवों से लाकर मूंह तक शरीर के सभी अंगों पर ध्यान केन्द्रित किया और उसमे चेतना का प्रवाह किया . 20-25 मिनट तक इस अवस्थ में रहें फिर धीरे धीरे सभी अंगों को हिलाते हुए उठ सकते है . ]
आपका पूरा शरीर चैतन्य हो जाएगा एक नवीन उर्जा का एहसास होगा , शरीर जब शव आसन में होता है तो ब्रह्माण्ड की उर्जायें अपने आप शरीर में बहने लगती है जिससे से रोगों का भी शमन होता है .
हालांकि यह पूर्ण अभ्यास नहीं है मेने केवल गृहस्थ लोगों के लिए जितना करना चाहिए वहीं तक कहा है इससे आगे के steps योगियों के लिए है. अपना आत्मा को शरीर से बहार निकालना , ब्रह्माण्ड के किसी भी कोने में क्या हो रह है वह पता करना आदि ...लेकिन वह आगे के बातें है .
इसको बालक से लेकर बूडा तक हर कोई अपना सकता है
धन्यवाद

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