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Tara Mahavidya

Tara Mahavidya

 महाविद्या | Tara Mahavidya

तारा महाविद्या साधना: भगवती तारा देवी की उपासना भारत के अनेक प्रदेशों में साधक गण करते है। बौद्ध सम्प्रदाय की मुख्य अधिष्ठात्री देवी तारा ही है। ज्ञान प्राप्ति एवं सर्व सुख सम्पदा के लिए यह साधना अति लाभप्रद मानी गयी है। तारा देवी के अन्य भेद एक जटा, नीलसरस्वती, उग्रतारा, तारिणी आदि नामों से प्रसिद्ध है

सयोनिं चन्दनेनाष्टदलं पदं लिखेत् तत: ।
म्रद्वासनं समासाध मायां पूर्वदले लिखेत् ।।
बीजं द्वितीयं याम्ये फट्-उत्तरे पश्चिय मेतुठम् ।
मध्ये बीजं लिखेत् तारं भूतशुद्धिमथाचरेत् ।।

तारापीठ:

तंत्र-साधना के बल पर व्यक्ति निश्चित ही अलौकिक और चमत्कारिक शक्तियों का स्वामी बन सकता है। आज भी तंत्र-साधना की शक्तिपीठों के प्रति लोगों में गहरी आस्था बनी हुई है। कोलकाता की कालीघाट, वीरभूम की तारापीठ, कामरूप की कामाख्या, रजरप्पा की छिन्नमस्ता जैसे तमाम सिद्धपीठों को तांत्रिकों की सिद्धभूमि माना जाता है। ये पीठ आम श्रद्धालुओं के आकर्षण केंद्र भी हैं।

कोलकाता से 180 किलोमीटर दूर स्थित तारापीठ धाम की खासियत यहाँ का महाश्मशान है। यह स्थान मंदिर से थोड़ा हटकर बिलकांदी गाँव में ब्रह्माक्षी नदी के किनारे पड़ता है। यहाँ के महाश्मशान में वामा खेपा और उनके शिष्य तारा खेपा नाम के दो कापालिकों की साधना भूमि होने के चलते तारापीठ को सिद्धपीठ के तौर पर प्रसिद्धि मिली। कहते हैं कि वामा खेपा यहाँ माँ तारा को अपने हाथों से भोग खिलाते थे। यह सिद्ध पीठ साधना के लिए उच्चकोटि का स्थान है।

51 शक्तिपीठों में माना जाता है कि यहाँ सती की दाहिनी आंख की पुतली गिरी थी इसलिए इस जगह का नाम तारापीठ पड़ा। पुराणों के अनुसार यह मुनि वशिष्ट की साधना-स्थली और कलयुग में तांत्रिक साधक वामाखेपा की साधना स्थली भी है। कहा जाता है कि यहाँ मुनि वशिष्ट ने देवी का मंदिर बनवाया था जो नष्ट हो गया। आधुनिक युग में जयव्रत नाम के एक सौदागर ने स्वप्नादेश के आधार पर मंदिर बनवाया था।

तारा महाविद्या:

यह महाविद्या दस महाविद्याओं में एक उच्चकोटि की महाविद्या साधना है। तारा के एक स्वरूप को धनवर्षिणी भी कहा जाता है, जो अतुल धनप्रदायक है। जिसके माध्यम से ऐश्वर्य की प्राप्ति सम्भव है। इस साधना को माघ मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन या नवरात्रि में प्रारम्भ करना शुभ माना जाता है। इस अवसर का उपयोग करना साधक की सजगता पर ही निर्भर करता है।

तारा महाविद्या साधना विधान:

तारा साधना करने के लिए नवरात्रि या किसी भी शुक्रवार को साधक रात्रि में सवा पहर अर्थात् करीब सवा दस बजे गुलाबी रंग के वस्त्र धारण कर पश्चिम दिशा की ओर गुलाबी ऊनी आसन पर बैठे और अपने सामने किसी बाजोट(चौकी) पर गुलाबी रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर किसी प्लेट में गुलाब के पुष्प को खोल कर मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित ‘तारा यंत्र’ स्थापित करें। यंत्र के चारों ओर चार चावल की ढेरियां बनाकर उस पर एक-एक लौंग स्थापित करें, तत्पश्चात यंत्र का पूजन करें, सामने शुद्ध घी का दीपक लगाएं और मन्त्र विधान अनुसार संकल्प आदि कर सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग करें-

ॐ अस्य श्री महोग्रतारा मन्त्रस्य अक्षोम्य ऋषि: बृहतीछन्द: श्री महोग्रतारा देवता हूं बीजं फट् शक्ति: ह्रीं कीलकम् ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोग: ।

ऋष्यादि न्यास: बाएँ (Left Hand) हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ (Right Hand) की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करें और ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र बन रहे है। ऐसा करने से अंग शक्तिशाली बनते है और चेतना प्राप्त होती है।

अक्षोभ्य ऋषये नम: शिरसि (सर को स्पर्श करें)
ब्रह्तोछन्दसे नम: मुखे (मुख को स्पर्श करें)
श्रीमहोग्रतारायै नम: ह्रदये (ह्रदय को स्पर्श करें)
हूं बीजाय नम: गुहे (गुप्तांग को स्पर्श करें)
फट् शक्तये नम: पादयोः (दोनों पैरों को स्पर्श करें)
ह्रीं कीलकाय नम: नाभौ (नाभि को स्पर्श करें)
विनियोगाय नम: सर्वांगे (पूरे शरीर को स्पर्श करें)

कर न्यास: अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न अंगुलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से अंगुलियों में चेतना प्राप्त होती है।

ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नम: ।
ह्रीं तर्जनीभ्यां नम: ।
ह्रूं मध्यमाभ्यां नम: ।
ह्रैं अनामिकाभ्यां नम: ।
ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: ।
ह्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ।

ह्र्दयादि न्यास: पुन: बाएँ (Left Hand) हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ (Right Hand) की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करें और ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र बन रहे है। ऐसा करने से अंग शक्तिशाली बनते है और चेतना प्राप्त होती है।

ह्राँ ह्रदयाय नम: (ह्रदय को स्पर्श करें)
ह्रीं शिरसे स्वाहा (सर को स्पर्श करें)
ह्रूं शिखायै वषट् (शिखा को स्पर्श करें)
ह्रैं कवचाय हुम् (कंधों को स्पर्श करें)
ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
ह्र: अस्त्राय फट  (अपने सिर पर सीधा हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं)

ध्यान: इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती तारा का ध्यान करके पूजन करें। धुप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर तारा महाविद्या मन्त्र का जाप करें।

प्रत्यालोढ़पदार्पितागी घशवहद घोराटटहासा परा,
खड्गेंदीवरकर्त्रिखपर्रभुजा हून्कारबीजोद्भवा ।
खर्वा नील विशालपिंगलजटाजूटैकनागैयता,
जाडयंन्यस्य कपालके त्रिजगतां ह्न्त्युग्रतारा स्वयम् ।।

पूजन सम्पन्न कर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित गुलाबी ‘हकीक माला’ से निम्न मंत्र की 23 माला 11 दिन तक मंत्र जप करें, मन्त्र जाप के पश्चात् तारा कवच का पाठ करें—

तारा महाविद्या मन्त्र:

॥ ॐ ह्रीं स्त्रीं हुँ फट् ॥ या ॥ ऐ ॐ ह्रीं क्रीं हुं फट् ॥

तारा महाविद्या कवच:
ॐ कारो मे शिर: पातु ब्रह्मारूपा महेश्वरी ।
ह्रींकार: पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी ।।
स्त्रीन्कार: पातु वदने लज्जारूपा महेश्वरी ।
हुन्कार: पातु ह्रदये भवानीशक्तिरूपधृक् ।
फट्कार: पातु सर्वांगे सर्वसिद्धिफलप्रदा ।
नीला मां पातु देवेशी गंडयुग्मे भयावहा ।
लम्बोदरी सदा पातु कर्णयुग्मं भयावहा ।।
व्याघ्रचर्मावृत्तकटि: पातु देवी शिवप्रिया ।
पीनोन्नतस्तनी पातु पाशर्वयुग्मे महेश्वरी ।।
रक्त  वर्तुलनेत्रा च कटिदेशे सदाऽवतु ।
ललज्जिहव सदा पातु नाभौ मां भुवनेश्वरी ।।
करालास्या सदा पातु लिंगे देवी हरप्रिया ।
पिंगोग्रैकजटा पातु जन्घायां विघ्ननाशिनी ।।
 खड्गहस्ता महादेवी जानुचक्रे महेश्वरी ।
नीलवर्णा सदा पातु जानुनी सर्वदा मम ।।
नागकुंडलधर्त्री च पातु पादयुगे तत: ।
नागहारधरा देवी सर्वांग पातु सर्वदा ।।

यह ग्यारह दिन की साधना है। साधना के बीच साधना के नियमों का अवश्य ही पालन करें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ ग्यारह दिन तक मंत्र जप करें। नित्य जाप करने से पहले संक्षिप्त पूजन अवश्य करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें। ग्यारह दिन तक मन्त्र का जाप करने के बाद जिस मन्त्र का आपने जाप किया है उसका दशांश (10%) या संक्षिप्त हवन कमल गट्टे, शुद्ध घी को हवन समग्री में मिलाकर हवन करें।

हवन के पश्चात् तारा यंत्र को अपने घर के मंदिर या तिजोरी में लाल वस्त्र से बांधकर एक वर्ष तक संभाल कर रख दें और बाकि बची पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जित कर दें। इस तरह करने से यह साधना पूर्ण मानी जाती है और माँ भगवती तारा साधक के संकल्प सहित कार्य भविष्य में शीघ्र पूरे करती है। इस साधना से साधक को ज्ञान की प्राप्ति होती है। धन प्राप्ति के नये-नये अवसर उसे प्राप्त होते है, माँ तारा उसके जीवन की समस्त प्रकार की दरिद्रता पूर्णत: समाप्त कर देती है।

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