जीवन मेँ गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण
गतांक से आगे:-
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अंखियन की करि कोठरी पुतली पलंग बिछाय ,
पलकन की चिक डारि कै पिउ कौ लिया रिझाय ।
ना मैं देखूँ और को ना तौहे देखन देहूँ ।
-मेने तो आखों की कोठरी बना करके पुतली का पलंग बिछाया है, क्योकि मुझे तो उसे बैठाना हे, और फिर...