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About Pujay SadGuruji

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About Pujay SadGuruji

यदायदा हि घर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मान स्रुजाम्यहम ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दूषक्रुताम । घर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव ।त्वमेव सर्वम् मम देव देव ॥

परमपूज्य डा.नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलश्वेरानंद जी )


सर्वश्रेष्ठ एवं ऋषियों में भी परम वन्दनीय ऋषिगण निम्नवत हैं, जिनका उल्लेख कूर्म पुराण, वायु पुराण तथा विष्णु पुराण में भी प्राप्त होता है! इन ऋषियों ने समय-समय पर शास्त्र तथा सनातन धर्म की मर्यादा बनाये रखने के लिए सतत प्रयास किया हैं! अतः ये आज भी हम लोगों के लिए वन्दनीय हैं -

  • स्वयंभू,
  • मनु,
  • भारद्वाज,
  • वशिष्ठ,
  • वाचश्रवस नारायण,
  • कृष्ण द्वैपायन,
  • पाराशर,
  • गौतम,
  • वाल्मीकि,
  • सारस्वत,
  • यम,
  • आन्तरिक्ष धर्म,
  • वपृवा,
  • ऋषभ,
  • सोममुख्यायन,
  • विश्वामित्र,
  • मुद्गल,
  • निखिल (डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली)

मैंने मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान पत्रिका क्यों प्रारम्भ की?

यह कदम हम नहीं उठाएंगे तो और कौन उठाएगा?

हम जिस युग में साँस ले रहे हैं, वह संघर्ष, स्वार्थ, छल, प्रतिस्पर्धा तथा येन-केन प्रकारेण अपने अस्तित्व को बचाए रखने का युग हैं, मानवीय भावनाओं को तक पर रख दिया गया हैं, और अपने आप भौतिकता के कीचड में इस प्रकार से लुंज-पुंज हो रहे हैं हैं कि आँख उठाकर देखने, सोचने और समझने का समय ही नहीं मिल पा रहा हैं, कुछ क्षणों के लिए हमारे मानस में यह चिंतन आता भी हैं कि यह क्या हो रहा हैं? हम किस तरफ बढ़ रहे हैं? क्या हमारे जीवन का यही श्रेय प्रेय हैं? क्या हमारे जीवन की पूर्णता इसी में हैं? पर काल संघर्षप्रवाह में दुसरे ही क्षण लिप्त होकर भूल जाते हैं और उसी संघर्ष, आपाधापी तथा स्वार्थ चक्र में घूमने के लिए विवश हो जाते हैं.


यह युग संक्रांति काल हैं, जिसमें पुरानी सभ्यता के प्रति मोह हैं, पर नई सभ्यता में लिप्त हैं, ईश्वर के अस्तित्व को मानते हैं, पर अनास्था की साँस लेकर दुविधाग्रस्त भी हैं, पूर्वजों के प्रति सम्मान हैं पर नई पीढी के आगे किंकर्तव्य विमूढ़ भी हैं, हमारे प्राचीन ज्ञान विज्ञान के प्रति ललक हैं, पर मार्ग दर्शन के बिना हताश निराश और उदास हैं, हम जानते हैं कि हम भारतीय हैं, उस भारत के निवासी हैं, जो विश्व का सिरमौर था, ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी था, चिंतन के क्षेत्र में जिसकी समता करने वाला और कोई नहीं था ...... और इसीलिए हम अपने आपको गौरवशाली समझते हैं.... हमारे पूर्वजों और ऋषि मुनियों की चर्चा होते ही हमारा सीना फूल जाता हैं, पूर्वजों द्वारा प्रणीत साहित्य, मंत्र तंत्र को लेकर आज भी विश्व के सामने गर्वोन्नत मस्तिष्क से खड़े हो पते हैं, क्योंकि यह साहित्य शाश्वत और अमर हैं, यह साहित्य अपने आप में दुर्लभ और अप्रतिम हैं, आज विश्व ने अन्य क्षेत्रों में भले ही आश्चर्यजनक प्रगति कर दी हो, पर जर्मनी, जापान प्रभति अन्य पाश्चात्य देश आज भी मंत्र तंत्र के क्षेत्र में भारत का लोहा मानने को बाध्य हैं. आज भी इस प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने के लिए वे हमारी तरफ़ ताकने को विवश हैं.


और इसका प्रमाण हैं विदेशियों के झुंड के झुंड का भारत की और आना, ध्यान, योग साधना के प्रति दीवानगी की हद तक जाना, हमारे मंत्र तंत्र गर्न्थों का आए दिन चोरी से विदेशों में ले जाना और मंत्र तंत्रों की खोज में सब कुछ भूल भुलाकर भटकना.....!
पर हम क्या कर रहे हैं कभी हमने दो क्षण रुक कर सोचा हैं? इस भाग दौड़ में दो क्षण साँस लेकर कभी यह विचार किया हैं कि हम अपने पूर्वजों की थाती को सुरक्षित रखने के लिए क्या कर रहे हैं? जब विदेशी प्रतिभाशाली लोग हजारों लाखों मील की यात्रा कर यहाँ इसके लिए भटक रहे हैं तब हम अपने घर में बैठे इसके लिए कुछ कर पा रहे हैं? नहीं.... कभी नहीं.... कभी नहीं
सोचा.... कभी सोचने का उपक्रम भी नहीं किया कभी विचार करने को समय ही नहीं मिला....!

और हमारी इस शिथिलता तथा उदासीनता से ही हमारी आगे की पीढी उच्छ्रन्खल होती जा रही हैं. ईश्वर और धर्म का जमकर मखौल उड़ाया जा रहा हैं, अनुशासन और नियमों को ताक पर रख दिया हैं और हमारी विचारधारा दर्शन, चिंतन, मनन मंत्र तंत्र आदि के प्रति घृणा के स्तर तक पहुँच गई हैं और यह सब कुछ हमारी आंखों के सामने हो रहा हैं, हम हाथ पर साथ धरे बैठे हैं, और वे हमारे पूरे इतिहास की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं. हम निष्क्रिय हैं और वे हमारे सुदीर्घ चिंतन, पूर्वजों की थाती तथा मानवीय मूल्यों का उपहास करने में गौरव अनुभव करने लगे हैं और यह सब कुछ हमारे सामने हमारी आंखों के सामने हो रहा हैं.....


क्या इस उदासीनता के लिए आने वाला इतिहास हमें क्षमा करेगा? आने वाला समय जब पुकार पुकार कर इन प्रश्नों के उत्तर पूछेगा, तब आपके पास क्या उत्तर होगा? आप क्या जवाब देंगे, आपके पास प्रत्युत्तर देने के लिए रह भी क्या

जाएगा?


आज चारों तरफ उच्छ्रंखलता और नग्नता का बोलबाला हैं, नई पीढी डिस्कों के प्रति आस्थावान होती जा रही हैं, घटिया साहित्य से पूरा बाजार भरा पड़ा हैं, लूटमार, बलात्कार, व्यभिचार और अश्लील साहित्य प्रत्येक के हाथो में हैं, फिल्मी पत्रिकाएँ उनके मानस में हैं, हमारे धर्म और साहित्य का जमकर मखौल इन पत्रिकाओं के मध्यम से उड़ाया जा रहा हैं, और इसी का परिणाम हैं की आने वाली पीढी की पकड़ हमारे हांथों से छूटती जा रही हैं, वह ईश्वर, धर्म और मंत्र तंत्र के प्रति अनास्थावान बनने से दिग्भ्रमित हैं, विचार शून्य हैं, परेशान और व्यथित हैं, पुराना उसके हाथ से छुट गया हैं, नया उसकी पकड़ में नहीं आ रहा हैं और इसीलिए वह त्रिशंकु की भांति दुविधा ग्रस्त हैं, अश्लील, अनास्थापूर्ण पत्र पत्रिकाओं ने उसके मानस को आंदोलित भ्रमित और उच्छ्रन्खल बना दिया हैं.
ऐसी स्थिति में अब आपको आवश्यकता हैं..... अब जरुरत हैं कि उन्हें मार्गदर्शन दिया जायें, उन्हें श्रेष्ठ साहित्य से परिचित कराया जाए, पूर्वजों के प्रति आस्था पैदा की जायें, मानवीय मूल्यों का ज्ञान दिया जायें और मंत्र तंत्र के प्रति ललक जाग्रत की जायें, उनके सामने जहर का प्याला भरा पड़ा हैं उसमें अमृत उंडेला जायें, इस घटाटोप अंधकार में दीपक जलाया जायें.
और इसी घटाटोप अंधकार में मैंने एक दीपक जलाने का प्रयत्न किया हैं, इस निविड़ कालरात्रि में रौशनी की किरण बिखरने का प्रयत्न किया हैं, जिसके सहारे लक्ष्य तक पहुँचा जा सकें, हम अपने पूर्वजों से, अपने साहित्य से और अपने आप से परिचित हो सकें, हमारे हृदय में प्रकाश फैल सकें, इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर इस पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया हैं.
इसके पीछे धन या यश प्राप्त करने की कोई लालसा नहीं हैं, चिंतन यही हैं कि इस उपापोह के युग में यदि कुछ भी नहीं किया गया तो क्या होगा? यदि हम ही कदम नहीं उठाएंगे तो कौन उठाएगा? यदि हम ही रौशनी की किरण नहीं
बिखेरेंगे तो कौन बिखेरेंगा?
मेरा लक्ष्य, मेरा उद्देश्य तो केवल मात्र इतना ही हैं कि हम अपनी लुप्त होती हुयी संस्कृति को जीवित रख सकें, जो मंत्र तंत्र समाप्त प्राय हो रहे हैं, उन्हें प्रकाश में ला सकें, सुरक्षित रख सकें, दीर्घजीवी बना सकें.
मैंने यह गुरुत्व भर इसीलिए उठाया हैं कि मेरे पास आप लोगों का सहयोग हैं, इस कार्य में मेरा हाथ बंटाने का जो संकल्प दोहराया हैं वह मेरे लिए आह्लाद कारक हैं. मुझे आप पर भरोसा हैं.
(जनवरी १९८१ से उद्धृत)
सस्नेह तुम्हारा
नारायण दत्त श्रीमाली.
मंत्र-तंत्र-यंत्र विज्ञान
जनवरी 2001.



मै एक स्वतंत्र साधक हू,मुझे किसी के नाम से ना जोडा जाये यही मै सही समझता हू.अन्य साधक शायद अपने गुरू के नाम का फायदा उठाते है जो सही नही है.मेरा एक ही उद्देश्य है मेरे विचार और मंत्र साधना का महत्व प्रत्येक व्यक्ती समझे,हमेशा आपको पाखन्ड से बचाना है धूर्त व्यक्ती से बचाना है अन्य फर्जी तांत्रिक से बचाना है.मै समझता हू मेरे चाहे सपने पूर्ण हो या ना हो परंतु सामान्य, पिडीत और परेशान व्यक्ती के सभी स्वप्न पूर्ण हो. यहा मै निशुल्क मे जन कल्याण कर रहा हू जो मेरे गुरू की आग्या से संभव है और गुरूमुख से प्राप्त यह आग्या पूर्ण करना ही मेरा एकमात्र ध्येय है. शाबर मंत्र आज के समय मे सबसे ज्यादा प्रभावशाली मंत्र है और जो मंत्र आपको प्रदान किये जायेगे वह भी प्रामानिक,अनुभुतित और शीघ्र फलदायी होगे क्युके आपको मंत्र साधना से जोडना है. यहा पर आपको शाबर, अघोर, तान्त्रोक्त, गोम्पा, वैदिक, सुलेमानी विद्द्या से संबंधित प्रकार के मंत्र प्राप्त होगे. भविष मे हमारा एक प्यारा सा स्वप्न है "एक अद्वितीय आश्रम का निर्माण हो सके और आश्रम के निर्माण हेतु आप सभी के हस्त पुण्यदायी हो". मेरा एक ही मानना है "सभी अपने होते है अगर हम कि सिमे फर्क ना करे तो.....",मुझे भी आप अपना समझकर आपकी समस्या बताये तो मै आपकी पूर्ण साहय्यता करुगा.

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