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Siddhashram सिद्धाश्रम

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Siddhashram सिद्धाश्रम

सिद्धाश्रम


संसार का सुविख्यात अद्वितीय साधना-तीर्थ तांत्रिकों, मांत्रिकों, योगियों, यतियों और सन्यासियों का दिव्यतम साकार स्वप्न “सिद्धाश्रम”, जिसमें प्रवेश पाने के लिए मनुष्य तो क्या देवता भी लालायित रहते हैं, हजारों वर्ष के आयु प्राप्त योगी जहाँ साधनारत हैं! सिद्धाश्रम एक दिव्या-भूखंड हैं, जो आध्यात्मिक पुनीत मनोरम स्थली हैं! मानसरोवर और हिमालय से उत्तर दिशा की और प्रकृति के गोद में स्थित वह दिव्य आश्रम – जिसकी ब्रह्मा जी के आदेश से विश्वकर्मा ने अपने हाथों से रचना की, विष्णु ने इसकी भूमि, प्रकृति और वायुमंडल को सजीव-सप्राण-सचेतना युक्त बनाया तथा भगवन शंकर की कृपा से यह अजर-अमर हैं! आज भी वहां महाभारत कालीन भगवान श्री कृष्ण, भीष्म, द्रौण आदि व्यक्तित्व विचरण करते हुए दिखाई दे जाते हैं!

सिद्धाश्रम अध्यात्म जीवन का वह अंतिम आश्रय स्थल हैं, जिसकी उपमा संसार में हो ही नहीं सकती! देवलोक और इन्द्रलोक बभी इसके सामने तुच्छ हैं! यहाँ भौतिकता का बिलकुल ही अस्तित्व नहीं हैं! सिद्धाश्रम पूर्णतः आध्यात्मिक एवं पारलौकिक भावनाओं और चिन्तनो से सम्बंधित हैं! यह जीवन का सौभाग्य होता हैं, यदि सशरीर ही व्यक्ति वहां पहुँच पाए!

सिद्धाश्रम शब्द ही अपने-आप में जीवन की श्रेष्ठता और दिव्यता हैं, वहां पहुचना ही मानव देह की सार्थकता हैं! जब व्यक्ति सामान्य मानव जीवन से उठकर साधक बनता हैं, साधक से योगी और योगी से परमहंस बनता हैं, उसके बाद ही सिद्धाश्रम प्रवेश की सम्भावना बनती हैं, जिसके कण-कण में अद्भुत दिव्यता का वास हैं, जिसके वातावरण में एक ओजस्वी प्रवाह हैं, जिसकी वायु में कस्तूरी से भी बढ़कर मदहोशी हैं, जिसके जल में अमृत जैसी शीतलता हैं तथा जिसके हिमखंडों में चांदी-सी आभा निखरती प्रतीत होती हैं!


आज भी जहाँ ब्रह्मा उपस्थित होकर चारों वेदों का उच्चारण करते हैं! जहाँ विष्णु सशरीर उपस्थित हैं! जहाँ भगवन शंकर भी विचरण करते दिखाई देते हैं! जहाँ उच्चकोटि के देवता भी आने के लिए तरसते हैं! जहाँ गन्धर्व अपनी उच्च कलाओं के साथ दिखाई देते हैं! जहाँ मुनि, साधू, सन्यासी एवं योगी अपने अत्यंत तेजस्वी रूप में विचरण करते हुए दिखाई देते हैं! जहाँ पशु-पक्षी भी हर क्षण अपनी विविध क्रीडाओं से उमंग एवं मस्ती का बोध कराते हैं!

सिद्धाश्रम में गंधर्वों के मधुरिम संगीत पर अप्सराओं के थिरकते कदम, सिद्धयोग झील में उठती-टूटती तरंगों की कलकल करती ध्वनि, पक्षियों का कलरव तथा भंवरों के गुंजन..... सभी में गुरु-वंदना का ही बोध होता रहता हैं!

“पूज्यपाद स्वामी सच्चिदानंद जी” सिद्धाश्रम के संस्थापक एवं संचालक हैं, जिनके दर्शन मात्र से ही देवता धन्य हो जाते हैं, जिनके चरणों में ब्रह्मा, विष्णु एवं रूद्र स्वयं उपस्थित होकर आराधना करते हैं, रम्भा, उर्वशी, और मेनका नृत्य करके अपने सौभाग्य की श्रेयता को प्राप्त करती हैं! जिनका रोम-रोम तपस्यामय हैं! जिनके दर्शन मात्र से ही पूर्णता प्राप्त होती हैं!


सिद्धाश्रम में मृत्यु का भय नहीं हैं, क्योंकि यमराज उस सिद्धाश्रम में प्रवेश नहीं कर पते! जहाँ वृद्धता व्याप्त नहीं हो सकती, जहाँ का कण-कण यौवनवान और स्फूर्तिवान बना रहता हैं! जहाँ के जीवन में हलचल हैं, आवेग हैं, मस्ती हैं, तरंग हैं! जहाँ उच्चकोटि क्र ऋषि अपने शिष्यों को ज्ञान के सूक्ष्म सूत्र समझा रहे होते हैं! कहीं पर साधना संपन्न हो रही हैं, कहीं पर मन्त्रों के मनन-चिंतन हो रहे हैं! कहीं पर यज्ञ का सुगन्धित धूम्र चारो और बिखरा हुआ हैं! जहाँ श्रेष्ठतम पर्णकुटीर बनी हुयी हैं, उनमें ऋषि, मुनि और तापस-गण निवास करते हैं!



Siddhashram Darshan Prayog



सिद्धाश्रम, वह मधुर शब्द जिसे सुनते ही मन मे पवित्रता और श्रद्धा का बोध होने लगता है. अत्यधिक पावन स्थली जहा से निरंतर आध्यात्म का संचालन होता है, सुदूर हिमालय का वह गुप्त और अद्रश्य स्थल जिसकी प्राप्ति साधको के लिए एक दिवास्वप्न के सामान होती है. यह विशेष चेतना युक्त स्थल मे प्रवेश के लिए जहा एक और साधक को निरंतर साधनारत हो कर कड़ी से कड़ी परीक्षाओ से गुजरना पड़ता है वही दूसरी तरफ सतत गुरुकृपा भी आवश्यक है. सिद्धाश्रम मे प्रवेश के नियमानुसार साधक के एक निश्चित साधना स्तर के बाद उसे गुरुकृपा से सिद्धाश्रम मे प्रवेश मिलता है. सदगुरुदेव ने अपने दीर्घ प्रयत्नों से इस अद्वित्य स्थल से सबंधित दुर्लभ जानकारी पर प्रकाश डाला था. साथ ही साथ उन्होंने समय समय पर प्रयोग कर इस पावन स्थल से सबंधित कई प्रयोग भी करवाए थे, जिससे की साधक को सिद्धाश्रम की प्राप्ति हो सके. लेकिन आज के युग मे हर कोई व्यक्ति के लिए यह सहज संभव नहीं है की वह महाविद्याओ जेसी उच्चकोटि की साधनाओ को सम्प्पन करे तथा कड़े नियमों का पालन कर इस देवभूमि मे प्रवेश करे. इस चिंतन के साथ करुणावश उन्होंने अपने शिष्यों के मध्य कई ऐसे प्रयोग रखे जिनके माध्यम से सामन्य गृहस्थ साधक भी उस देवभूमि का दर्शन कर अपने जीवन को धन्य कर सके. उन्होंने कई ऐसे प्रयोग अपने शिष्यों को व्यक्तिगत रूप से भी बताये, जिसके माध्यम से कुछ ही दिनों मे व्यक्ति भावावस्था मे सिद्धाश्रम के दर्शन करने मे समर्थ होता है. एसी हीरकखंड के समान साधना को हर साधक को सम्प्पन करना ही चाहिए. ये महत्वपूर्ण प्रयोग हैसिद्धाश्रम दर्शन प्रयोग. जिसके माध्यम से साधक सिद्धाश्रम के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य कर सकता है.
इस प्रयोग को कोई भी साधक ब्रम्हमुहूर्त या रात्रीकाल मे ९ बजे के बाद कर सकता है. नित्य समय एक ही रहे. इस प्रयोग को गुरुवार से शुरू करे. वस्त्र आसान सफ़ेद रहे, दिशा उत्तर. साधक इस प्रयोग मे स्फटिक या गुरु रहस्य माला का उपयोग करे. पूर्ण गुरु पूजन के बाद साधक को निम्न मंत्र की ५१ माला जाप करनी है
ॐ पूर्णत्व दर्शय पूर्ण गुरुवै नमः
साधक को यह क्रम अगले गुरुवार तक करना चाहिए. (कुल ८ दिन). साधक श्रद्धा और समर्पण से यह साधना करता है तो निश्चित रूप से साधना काल मे ही उसे सिद्धाश्रम के दर्शन हो जाते है.

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Siddhashrama, the word which fills divinity and devotion in the mind at the moment we hear. Extremely holy place, from where the spiritualism is generated. Far in Himalayas; secret and invisible place; discovery of same is always a dream for sadhak. To enter in this energetic place one one hand sadhak needs to do various sadhana by passing through very tough tests where as on other hand requirement of continuous blessings of guru is also essential. According to entry rule of siddhashram, sadhak receives permission to enter in the place after specific sadhana level with blessings of Guru. With wide efforts of him, sadgurudev thrown light by providing rare information related to this incomparable place. 


With that, time to time sadgurudev had also introduced prayoga related to this holy place, with which siddhashram entry could be made. But in today’s time, it is not easy for every person to accomplish higher sadhana like mahavidya and to follow the tough rules for to enter in this divine place. With such thoughts, being merciful to the disciples, he placed such prayog in front through the medium of which simple householders can even have glimpses of the divine place and can have bless for whole life.


 He had even told many such prayoga to disciples, personally with the medium of the same in few days person can have glimpses of siddhashram in Bhavavastha. Such sadhana are real gems and one should do it. This important prayog is “Siddhashram Darshan Prayog”. With which sadhak can have glimpses of siddhashram and can make the life blessed.


This prayog could be done either in bramh-muhurta or night time after 9PM. Daily time should remain same. This prayog should be started from Thursday. Cloth and aasan should be white in colour. Direction should be north. Sadhak should use Sfatik or Guru Rahasya rosary. After complete guru poojan sadhak should chant 51 round of following mantra.


Om Purnatv Darshay Purn Guruvai Namah


Sadhak should continue the process daily till next Thursday (total 8 days). If sadhak does this sadhana with faith and devotion then will definitely have glimpses of siddhashrama in sadhana duration.

गुरूत्व्ं प्रणंम्यं गुरूत्वं शरण्यं गुरूत्वं शरण्यं गुरूत्व्ं प्रणंम्यं
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