BaglaMukhi Seed Mantra
बगलामुखी बीज मंत्र साधना विधि
भगवती बगलामुखी ( पीताम्बरा ) के इस मंत्र को महामंत्र को भगवती बगलामुखी की उपासना करने वाले साधक के सभी कार्य बिना व्यक्त किये ही पूर्ण हो जाते हैं और जीवन की हर बाधा को वो हंसते हंसते पार कर जाते हैं।
भगवती पीताम्बरा अपने भक्तों के ऊपर ऐसे ही कृपा करती हैं।
कई लोग जो बगलामुखी साधना को प्रारंभ करने से पहले अपने जीवन की तकलीफों के कारण आत्महत्या का प्रयास कर चुके थे लेकिन इस साधना को प्रारंभ करने के बाद आज उन लोगो का जीवन पूर्ण रूप से बदल चुका है।
जब तक व्यक्ति इस संसार में रहता है कुछ न कुछ दुःख अथवा परेशानी जीवन में आती जाती रहती है लेकिन जब व्यक्ति माँ पीताम्बरा की शरण में होता है तो वो दुःख अथवा परेशानी उसके जीवन में कब आती है और कब चली जाती है इसका उसे एहसास भी नहीं होता।
माँ पीताम्बरा का बीज मंत्र ह्ल्रीं है।
बीज मंत्र को एकाक्षर मंत्र भी कहते हैं क्योंकि यह एक अक्षर का है। माँ पीताम्बरा की साधना इसी बीज मंत्र से प्रारम्भ होती है।
बीज मंत्र की दीक्षा गुरुदेव से लेकर इसका सवा लक्ष जप करना चहिये एवं उसके पश्चात बीज मंत्र का नियमित रूप से कम से कम 11 अथवा 21 माला का जप अवश्य करना चाहिए, क्योंकि बीज मंत्र में ही देवता के प्राण होते हैं।
जिस प्रकार बीज के बिना वृक्ष की कल्पना नही की जा सकती उसी तरह बीज मंत्र के जप के बिना साधना में सफलता के बारे में सोचना भी व्यर्थ है। इसके जप के बिना माँ पीताम्बरा की साधना पूर्ण नही होती।
भगवती की सेवा केवल मंत्र जप से ही नही होती है बल्कि उनके नाम का गुणगान करने से भी होती है । जिस प्रकार नारद ऋषि हर पल भगवान विष्णु जी का नाम जपते थे, उसी प्रकार सुधी साधको को माँ पीताम्बरा का नाम जप हर पल करना चाहिए .
आप सब भी यदि माँ की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो आज से ही भगवती के एकाक्षरी मंत्र को अपने जीवन में उतार लीजिए ।
(चेतावनी – मंत्र सिद्ध बगुलामुखी यंत्र व माला ले कर ही भगवती बगलामुखी के मंत्रों का जप करना चाहिए।)
बगलामुखी साधना सामग्री माला, बगलामुखी यंत्र, माँ बगलामुखी साधना विधि ( माँ बगलामुखी पूजा कैसे करें )
इसकी साधना रात्रि में 10 से 3 बजे के बीच करें। पीले रंग के कपड़े पहनकर पीले रंग का आसान बिछा उस पर बैठ जायें।
सबसे पहले आचमन करें। इसके पश्चात दीपक जलाएं।
दीपक आप गाय के घी का , सरसो के तेल का , अथवा तिल के तेल का जला सकते हैं।
फिर गुरु का ध्यान करके गुरु मंत्र का कम से कम एक माला जप करें। उसके पश्चात गणेश जी का ध्यान करके साधना में सफलता के लिए उनसे प्रार्थना करें ।
गणेश मंत्र –:
“ॐ गं गणपतये नमः ”
इस मंत्र का कम से कम 11 बार जप करें। इसके पश्चात भगवान भैरव का ध्यान करें एवं उनसे माँ बगलामुखी साधना की आज्ञा मांगे।
माँ बगलामुखी का ध्यान करें। उनको पीला प्रसाद जैसे बादाम , किशमिश , बेसन की बनी कोई मिठाई , कोई भी फल अर्पित करें ।
बगलामुखी कवच का पाठ करें।
बगलामुखी बीज मंत्र का हल्दी की माला पर कम से कम 1 माला का जप करें। इसके पश्चात बगलामुखी बीज मंत्र का पाठ करें।
इसके पश्चात १ माला मृत्युंजय मंत्र का जप करें
बगलामुखी ध्यान
वादी मूकति रंकति क्षितिपतिर्वैश्वानरः शीतति। क्रोधी शान्तति दुर्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खंजति।। गर्वी खवर्ति सर्व विच्च जडति त्वद् यन्त्राणा यंत्रितः। श्रीनित्ये बगलामुखि! प्रतिदिनं कल्याणि! तुभ्यं नमः।।
विनियोगः –
ॐ अस्य एकाक्षरी बगला मंत्रस्य ब्रह्म ऋषिः, गायत्री छन्दः, बगलामुखी देवताः, लं बीजं, ह्रीं शक्ति, ईं कीलकं, मम सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
बगलामुखी बीज मंत्र – ह्ल्रीं ऋष्यादिन्यासः- ॐ ओम् ब्रह्म ऋषये नमः षिरसि।
ॐ गायत्री छंदसे नमः मुखे।
ॐ श्री बगलामुखी देवतायै नमः हृदि।
ॐ लं बीजाय नमः गुहये ।
ॐ ह्रीं शक्तये नमः पादयोः।
ॐ ईं कीलकाय नमः सर्वांगे।
ॐ श्री बगलामुखी देवताम्बा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अंजलौ।
षडंगन्यासः –
ॐ ह्-ल्रां हृदयाय नमः।
ॐ ह्-ल्रीं शिरसे स्वाहा।
ॐ ह्-ल्रूं शिखायै वषट्।
ॐ ह्-ल्रैं कवचाय हूं।
ॐ ह्-ल्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट्।
ॐ ह्-ल्रः अस्त्राय फट्।
करन्यासः
ॐ ह्-ल्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ ह्-ल्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा।
ॐ ह्-ल्रूं मध्यमाभ्यां वषट्।
ॐ ह्-ल्रैं अनामिकाभ्यां हूं।
ॐ ह्-ल्रौं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् ।
ॐ ह्-ल्रः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।
अनुष्ठान करने से पूर्व अपने गुरुदेव से आज्ञा अवश्य लेनी चाहिए।
उसके पश्चात एक लाख पच्चीस हजार ( 1,25,000 मंत्रो अथवा 1250 माला )
की संख्या में हल्दी की माला पर जप करना चाहिए। हवन उसके पश्चात 12,500 मंत्रो अथवा 125 माला से हवन अवश्य करना चाहिए, क्योंकि हवन से देवता को शक्ति मिलती है और मैंने स्वयं इसका अनुभव किया है कि हवन से माँ की कृपा शीघ्र प्राप्त होती हैा
जो लोग हवन करने में समर्थ नही हैं उन्हे अपने गुरुदेव से मंत्र जप के पश्चात हवन करने का आग्रह करना चाहिए एवं उस हवन में सम्मिलित होना चाहिए।
तर्पण इसके पश्चात 1250 मंत्रो अथवा 13 माला से तर्पण करना चाहिए ।
तर्पण करने का मंत्र है – ” ह्ल्रीं तर्पयामि ”
तर्पण करने के लिए एक बड़ा पात्र ले, जिसमें 1 से 2 लीटर पानी आ जाये। इस पात्र में सब पहले थोड़ा गंगा जल डालें इसके पश्चात उसमें ऊपर तक पानी भर लें । इसमें थोड़ी हल्दी, शहद, शक्कर, केसर दूध मिला लेना चहिए ।
जिस प्रकार सुर्य देव को हाथों से अंजली बनाकर एवं उसमे जल भरकर अर्घ्य दिया जाता है उसी प्रकार सीधे हाथ से अंजली बनाकर पात्र से जल लेना चाहिए एवं ” ह्ल्रीं तर्पयामि ” बोलते हुए उसी पात्र में जल को छोड़ देना चाहिए ।
तर्पण करते हुए मंत्र जप बाएं हाथ से हल्दी की माला पर करना चाहिए एवं सीधे हाथ से तर्पण करना चाहिए ।
मार्जन तर्पण के पश्चात 125 मंत्रो अथवा 2 माला से मार्जन करना चाहिए ।
मार्जन करने का मंत्र है ” ह्ल्रीं मार्जयामि ” ।
इसके लिए थोड़ी सी कुशा लें।
एक छोटे से पात्र में गंगा जल लेकर उस कुशा से बगलामुखी यंत्र पर पर ” ह्ल्रीं मार्जयामि ” मंत्र जपते हुए गंगा जल की छींटे दें ।
मार्जन भी सीधे हाथ से करना चाहिए एवं बाएं हाथ से हल्दी की माला पर जप करना चाहिए। यदि कुशा उपलब्ध ना हो तो पीले पुष्प का भी उपयोग किया जा सकता है। ब्राह्मण भोज ( कन्या भोज ) मार्जन करने पश्चात 11 ब्राह्मणों अथवा 11 कन्याओं को भोजन करना चाहिए।
बगलामुखी साधना अनुभव सभी साधकों को साधना में अलग अलग अनुभव होते हैं। साधना को आरम्भ करने से पूर्व एक साधक को चाहिए कि वह मां भगवती की उपासना अथवा अन्य किसी भी देवी या देवता की उपासना निष्काम भाव से करे। उपासना का तात्पर्य सेवा से होता है। उपासना के तीन भेद कहे गये हैं:- कायिक अर्थात् शरीर से , वाचिक अर्थात् वाणी से और मानसिक- अर्थात् मन से। जब हम कायिक का अनुशरण करते हैं तो उसमें पाद्य, अर्घ्य, स्नान, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पंचोपचार पूजन अपने देवी देवता का किया जाता है। जब हम वाचिक का प्रयोग करते हैं तो अपने देवी देवता से सम्बन्धित स्तोत्र पाठ आदि किया जाता है अर्थात् अपने मुंह से उसकी कीर्ति का बखान करते हैं। और जब मानसिक क्रिया का अनुसरण करते हैं तो सम्बन्धित देवता का ध्यान और जप आदि किया जाता है। जो साधक अपने इष्ट देवता का निष्काम भाव से अर्चन करता है और लगातार उसके मंत्र का जप करता हुआ उसी का चिन्तन करता रहता है, तो उसके जितने भी सांसारिक कार्य हैं उन सबका भार मां स्वयं ही उठाती हैं और अन्ततः मोक्ष भी प्रदान करती हैं। यदि आप उनसे पुत्रवत् प्रेम करते हैं तो वे मां के रूप में वात्सल्यमयी होकर आपकी प्रत्येक कामना को उसी प्रकार पूर्ण करती हैं जिस प्रकार एक गाय अपने बछड़े के मोह में कुछ भी करने को तत्पर हो जाती है। अतः सभी साधकों को मेरा निर्देष भी है और उनको परामर्ष भी कि वे साधना चाहे जो भी करें, निष्काम भाव से करें। निष्काम भाव वाले साधक को कभी भी महाभय नहीं सताता। ऐसे साधक के समस्त सांसारिक और पारलौकिक समस्त कार्य स्वयं ही सिद्ध होने लगते हैं उसकी कोई भी किसी भी प्रकार की अभिलाषा अपूर्ण नहीं रहती । मेरे पास ऐसे बहुत से लोगों के फोन और मेल आते हैं जो एक क्षण में ही अपने दुखों, कष्टों का त्राण करने के लिए साधना सम्पन्न करना चाहते हैं। उनका उद्देष्य देवता या देवी की उपासना नहीं, उनकी प्रसन्नता नहीं बल्कि उनका एक मात्र उद्देष्य अपनी समस्या से विमुक्त होना होता है। वे लोग नहीं जानते कि जो कष्ट वे उठा रहे हैं, वे अपने पूर्व जन्मों में किये गये पापों के फलस्वरूप उठा रहे हैं। वे लोग अपनी कुण्डली में स्थित ग्रहों को देाष देते हैं, जो कि बिल्कुल गलत परम्परा है। भगवान शिव जी ने सभी नवग्रहों को यह अधिकार दिया है कि वे जातक को इस जीवन में ऐसा निखार दें कि उसके साथ पूर्वजन्मों का कोई भी दोष न रह जाए। इसका लाभ यह होगा कि यदि जातक के साथ कर्मबन्धन शेष नहीं है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। लेकिन हम इस दण्ड को दण्ड न मानकर ग्रहों का दोष मानते हैं।व्यहार में यह भी आया है कि जो जितनी अधिक साधना, पूजा-पाठ या उपासना करता है, वह व्यक्ति ज्यादा परेशान रहता है। उसका कारण यह है कि जब हम कोई भी उपासना या साधना करना आरम्भ करते हैं तो सम्बन्धित देवी – देवता यह चाहता है कि हम मंत्र जप के द्वारा या अन्य किसी भी मार्ग से बिल्कुल ऐसे साफ-सुुथरे हो जाएं कि हमारे साथ कर्मबन्धन का कोई भी भाग शेष न रह जाए।