तंत्र साधना एक विशेष साधना है जो साधना को संपन्न कर लेता है वह जीवन में सफलता प्राप्त करता ही करता है क्योंकि तंत्र साधना में उच्छिस्ट गणपति साधना संपन्न करने से जीवन में जो भी कष्ट दुख तंत्र बाधा या हमारे दुर्भाग्य समाप्त करके नया अध्याय शुरू होता है सतगुरु अपने शिष्य को जीवन में विघ्न बाधा रहित बनाकर तंत्र साधना में अग्रसर करते हैं क्योंकि तांत्रिक साधना का मतलब यह है कि एक विशेष व्यवस्था के द्वारा पूजा करना तंत्र कोई अलग सी कोई चीज नहीं है यह पूजा पद्धति ही एक प्रकार की हमारी सनातन धर्म की एक प्राचीन और उत्कृष्ट प्रयोग है. साधना का रास्ता बहुत ही कठिन और दुष्कर है एक घंटा दो घंटा बैठना वह भी मन लगाकर यह तभी संभव है जब हम पूरी तरीके से अपने आप को साधना के लिए तैयार कर ले अपने शरीर को क्योंकि शरीर ही साधना के लिए जब तक सही नहीं होगा वह पूरी तरीके से साधना में अपने आप को समर्पित नहीं कर पता है और हमारा शरीर और मन दोनों अलग-अलग काम करते हैं
मंत्र तंत्र विश्वविद्यालय में आपका स्वागत है और अभी योगिनी साधना संपन्न करवाया जाएगा जिन साधकों को योगिनी साधना में भाग लेना है 2 जुलाई को भाग ले सकता है जिनका 64 कला युक्त महाविद्या शक्तिशाधना करना है वह भी भाग ले सकते हैं यह साधना 3 दिन 11 दिन और 21 दिन का है इसमें रुद्राक्ष माला काली हकीक माला स्फटिक माला प्रयोग में लाई जाएगी जो सामग्री मांगना चाहते हैं सामग्री से साधना करना चाहते हैं वह 64 कला आयुक्त महाविद्या में काली हकीक माला जो सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो वह प्रयोग में लाई जा सकती है और वह आप सामान खरीद कर प्रयोग में ले जा सकते हैं इस साधना में ₹2100 मार्गदर्शन फीस ली जा रही है जिनको पैसे की दिक्कत है वह भी यह साधना करके अपने जीवन को नया अध्याय आरंभ कर सकते हैं
उच्छिष्ट गणेश : जानिए कब और कैसे पूजे जाते हैं
[Image: उच्छिष्ट गणेश : जानिए कब और कैसे पूजे जाते हैं - ucchista ganapati sadhana]
दक्षिणाचार साधना में शुचिता का ध्यान रखना परम आवश्यक होता है, लेकिन श्रीगणेश के उच्छिष्ट गणपति स्वरूप की साधना में शुचि-अशुचि का बंधन नहीं है। यह शीघ्र फल प्रदान करते हैं। प्राचीन ग्रंथों में इस बात का उल्लेख आता है कि पुराने समय में गणपति के इस स्वरूप या उच्छिष्ट चाण्डालिनी की साधना करने वाले अल्प भोजन से हजारों लोगों का भंडारा कर देते थे। कृत्या प्रयोग में इससे रक्षा होती है। गणेशजी के इस स्वरूप की पूजा, अर्चना और साधना से उच्च पद और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
कैसे होती है उच्छिष्ट गणपति की साधना
उच्छिष्ट गणपति की साधना में साधक का मुंह जूंठा होना चाहिए। जैसे पान, इलायची, सुपारी आदि कोई चीज साधना के समय मुंह में होनी चाहिए। अलग-अलग कामना के लिए अलग-अलग वस्तु का प्रयोग करना चाहिए।
* वशीकरण के लौंग और इलायची का प्रयोग करना चाहिए।
* किसी भी फल की कामना के लिए सुपारी का प्रयोग करना चाहिए।
* अन्न या धन वृद्धि के लिए गुड़ का प्रयोग करना चाहिए।
* सर्वसिद्धि के लिए ताम्बुल का प्रयोग करना चाहिए।
मंत्र और विनियोग
।। हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।।
विनियोग
ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषि:,
विराट छन्द:, श्री उच्छि गणपति देवता,
मम अभीष्ट (जो भी कामना हो) या सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोग:।
न्यास
ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषि: नम: शिरीस।
विराट छन्दसे नम: मुखे।
उच्छिष्ट गणपति देवता नम: हृदये।
सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नम: सर्वांगे।
ऐसा कहकर निर्दिष्ट अंगों पर हाथ लगाएं...
ॐ हस्ति अंगुष्ठाभ्यां नम: हृदयाय नम:
ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नम: शिरसे स्वाहा
ॐ लिखे मध्यमाभ्यां नम: शिखाये वषट्
ॐ स्वाहा अनामिकाभ्यां नम: कवचाय हुँ
ॐ हस्ति पिशाचि लिखे कनिष्ठकाभ्यां नम: नैत्रत्रयाय वोषट्
ॐ हस्ति पिशाचि लिख स्वाहा करतल कर पृष्ठाभ्यां नम: अस्त्राय फट्
ध्यान
।। रक्त वर्ण त्रिनैत्र, चतुर्भुज, पाश, अंकुश, मोदक पात्र तथा हस्तिदंत धारण किए हुए। उन्मत्त गणेशजी का मैं ध्यान करता हूं।
कृष्ण चतुर्दशी से लेकर शुक्ल चतुर्दशी तक आठ हजार जप नित्य कर दशांश हवन करें। भोजन से पूर्व गणपति के निमित्त ग्रास निकालें। ऐसी मान्यता है कि उच्छिष्ट गणपति की आराधना से कुबेर को नौ निधियां प्राप्त हुई थीं और विभिषण लंकापति बने थे।
अंत में बलि प्रदान करें।
बलि मंत्र
गं हं क्लौं ग्लौं उच्छिष्ट गणेशाय महायक्षायायं बलि:।