Sabar Guru worship method!!
साबर गुरु पूजन पद्धति!!
गुरुपूजन की साबर पद्धति का विकास ही इसलिए हुआ था ताकि लोगों को संस्कृत जैसी कठिन भाषा का साधनात्मक क्षेत्र में प्रयोग न करना पड़े। गुरु गोरखनाथ के समय साबर पद्धति का विकास अपने चरम तक हुआ है । कारण भी था, क्योंकि साबर मंत्र बोलचाल की भाषा में ही लिखे गये हैं । भले ही इन शब्दों का तार्किक अर्थ न निकलता हो, लेकिन ये होते बहुत ही प्रभावशाली हैं ।
गुरुपूजन चाहे जिस भी विधि से किया जाए, सबका प्रभाव एक समान ही होता है । परंतु प्रत्येक साधक या साधिका की अपनी एक मनोभूमि होती है और उसी के अनुसार वह विधि का चयन करता है । इसी क्रम में इस पद्धति को भी सबके समक्ष रखा जा रहा है ताकि इस बात का अहसास किया जा सके कि सदगुरुदेव ने एक ही कार्य को कितने अलग अलग तरीके से करना सिखाया है ।
ये साबर गुरु पूजन है और ये विशिष्ट इसलिए भी है क्योकि इस साधना में हमारे सदगुरुदेव, दादागुरुदेव तथा सिद्धाश्रम, नवनाथों और, योगियों का पूजन हो जाता है जो कि सोने पर सुहागा है ।
मानसिक स्मरण
सर्व प्रथम सुबह (या जिस भी समय पूजन करना हो) अपने परम पूज्य सदगुरुदेव का मानसिक स्मरण करें-
।। आनंदमानंदकरं प्रसन्नं, ज्ञानस्वरूपं निजबोधरूपं योगीन्द्रमीड्यं भवरोगवैद्यं, श्री मद्गुरुं नित्यमहं भजामि ।।
पंच महाभूत पूजन
फिर मानसिक रूप से ही पंच महाभूतों का पूजन करना चाहिए –
लं पृथिव्यात्मकं गन्धं समर्पयामि
हं आकाशात्मकं पुष्पं समर्पयामि
यं वाय्वात्मकं धूपं आद्यापयामि
रं वह्यात्मकं दीपं दर्शयामि
वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि
सं सर्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचारान् समर्पयामि
अब अपने सामने सदगुरुदेव का चित्र रखकर उनके सामने हाथ जोड़ कर सम्पूर्ण गुरु मण्डल को नमस्कार करें यथा-
ॐ नवनाथ गुरुभ्यो नमः।
ॐ निखिलेश्वरानंदाय परम गुरवे नमः।
ॐ सच्चिदानंदाय पारमेष्ठि गुरुवे नमः।
ॐ दिव्यौघ गुरुं नमामि।
ॐ सिद्धौघ गुरुं नमामि।
ॐ मानवौघ गुरुं नमामि।
ध्यान
अब दोनो हाथ जोड़ कर गुरु ध्यान करें।
।। गुरुर्वै सतां देहि मदैव ध्यानं,
प्रज्ञाप्रदं सिद्धि मदं च ध्यानम,
देवत्व दर्शन मदे भव सिन्धुपारं,
गुरुर्वै कृपात्वं गुरुर्वै कृपात्वं ।।
दिशारक्षण
बायें हाथ मे थोड़ी सी पीली सरसों ले कर, उसे दाहिने हाथ से ढक कर निम्न मंत्र 3 बार पढ़ें, फिर चारों दिशाओं में थोड़ा-थोड़ा फेंक दें –
ॐ शत्रुनां ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ह्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं भंजय भंजय नाशय नाशय दिशां रक्ष रक्ष मां सिद्धिं देहि देहि फट्।।
देह रक्षा:-
इस मंत्र को 7 बार पढ़कर जल अभिमंत्रित करें और उस जल से अपने चारों ओर एक गोल घेरा खींच दें –
रक्षामंत्र: –
ॐ नमो आदेश गुरु को,
वज्र वज्री वज्र किवाड़,
वज्री में बाँधा दसों द्वार को घाले,
उलट वेद वाही को खात,
पहली चौकी गणपति की,
दूजी चौकी हनुमंत जी की,
तीजी चौकी भैरों की,
चौथी चौकी राय की,
रक्षा करने को श्रीनृसिंहदेव जी आवे,
शब्द साँचा पिण्ड काचा
फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा,
सत्य नाथ आदेश गुरु का।।
पंचोपचार पूजन
अब सदगुरुदेव का विधिवत पंचोपचार पूजन करें-
आसनः पर कुछ पुष्प चढ़ाते हुए श्री गुरु चरणेभ्यो नमः आसनं समर्पयामि।
स्नान-जल चढ़ाते हुए श्री गुरु चरणेभ्यो नमः स्नानं समर्पयामि।
गंध-चंदन चढ़ाएं श्री गुरु चरणेभ्यो नमः गंधं समर्पयामि।
अक्षत–श्री गुरु चरणेभ्यो नमः अक्षतान् समर्पयामि।
पुष्प–श्री गुरु चरणेभ्यो नमः पुष्प मालां समर्पयामि नमः।
पाद (चरण) पूजन-
निम्न मंत्रों से सद्गुरुदेव के चरणों मे चावल चढ़ाएं –
ॐ भवाय नमः पादौ पूजयामि नमः।
ॐ गुरुभ्यो नमः पादौ पूजयामि नमः।
ॐ परम गुरुभ्यो नमः पादौ पूजयामि। नमः।
ॐ परात्पर गुरुभ्यो नमः पादौ पूजयामि नमः।
ॐ पारमेष्ठि गुरुभ्यो नमः पादौ पूजयामि नमः।
ॐ रुद्राय नमः पादौ पूजयामि नमः।
ॐ मृडाय नमः पादौ पूजयामि नमः।
ॐ भवनाशाय नमः पादौ पूजयामि नमः।
ॐ सर्वज्ञान हराय नमः पादौ पूजयामि नमः।
धूप
श्री गुरु चरणेभ्यो नमः धूपमाद्यापयामि।
दीप
श्री गुरु चरणेभ्यो नमः दीपं दर्शयामि।
नैवेद्य
श्री गुरु चरणेभ्यो नमः नैवेद्यं निवेदयामि।
नीराजन (आरती)
श्री गुरु चरणेभ्यो नमः नीराजनं समर्पयामि।
मूल मंत्र
अब निम्न मूल मंत्र की 21 बार जप करें। ये मंत्र अत्यधिक चैतन्य और उष्ण (गर्म) है अतः इसे 21-बार पढ़ना ही बहुत है, अधिक पढ़ने की कोशिश न करें।
।। टारन भ्रम अघन की सेना, सतगुरु मुकुति पदारथ देना
ठाकत द्रुगदा निरमल करणम,डार सुधामुख आपदा हरणम
ढ़ावत द्वैव हन्हेरी मन की, णासत गुरु भ्रमता सब मन की
या कीरीया को सोऊ पिछाना, अद्वैत अखंड आपको माना
रम रहया सब मे पुरुष अलेखम, आद अपार अनाद अभेखम
डा डा मिति आतम दरसाना, प्रकट के ज्ञान जो तब माना
लवलीन भये आदम पद ऐसे, ज्यूं जल जले भेद कहूं कैसे
वासुदेव बिन और कोन, नानक ओम सोऽहं आतम सोऽहं ।।
पुष्पांजलि
अब निम्न मंत्रों से पुष्पांजलि दें –
ॐ परम हंसाय विद्महे महातत्त्वाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात।
ॐ महादेवाय विद्महे रुद्र मूर्तये धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।
ॐ गुरुदेवाय विद्महे परमब्रम्हाय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात।
अब नमस्कार करें और क्षमा प्रार्थना करें फिर जप समर्पण करें –
जप समर्पण
गुह्याति गुह्य गोप्ता त्वं गृहाण तवार्चनम।
सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत प्रसादान्महेश्वरः।।