महाभारत हाभारत के युद्ध से पूर्व श्रीकृष्ण ने अर्जुनको यदि महाभारत में विजयी होना चाहता है, वह यतिकर पर सफलता पाना चाहता है, वह यदि मृत्युको यदि जीवन में पूर्ण सफलता के साथ भाग्योदय की 'पाशुपतासेष नाघना के अलावा और कोई ऐसी साधना नहीं, जा कि जीवन में पूर्णता दे सके।
पाशुपतास्त्रेय साधना को प्राप करने के लिए विश्वामित्र जैस दुर्घर्ष
ऋषि को भी पांच हजार वर्ष तक तपस्या करनी पड़ी थी। मार्कण्डेय जैसे वऋषि ने एक स्वर में स्थाए किया है, कि पाशुपतात्रेय साधना प्राम करना ही जीवन का सौभाग्य है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए, उनसे समस्त साधनाओं में सिद्धि और सफलता प्राप्त करने का वरदान प्राप्त करने के लिए ही प्रयोग और श्रेयस्कर है।
श्रावण मास में किए जाने वाले इस पाशुपत प्रयोग के शिव पुराण में कई लाभ बताए गए है
1. सह संयोगों एवं स्वयं के कर्म दोषों से साधनाओं में सिद्धि मिलते-मिलते रह जाती है, उन सभी के दुष्प्रभाव भगवान पशुपति की कृपा से समाम हो जाते है, और अगले वर्ष भर के लिए उसके कर्म दोषों व ग्रह नक्षत्रों का विपरीत प्रभाव लगभग नगण्य हो जाता है, जिससे किसी भी साधना में सफलता निश्चित हो जाती है।
2. भगवान शिव मोक्ष प्रदायक देवता है, इस साधना के प्रभाव से साधक का परलोक सुधर जाता है।
3. साधक को जीवन में कहीं पर भी असफलता, अपमान या पराजय नहीं देखनी पड़ती।
4 भगवान शिव भान्य के अधिपतिदेवता है। जिनका भाग्योदय नहीं हो रहा या जिनका भाग्य कमजोर हो अथवा जीवन में कार्य भनी प्रकार से सम्यन्त्र नहीं हो यो हो, तो उन्हें अवश्य ही भगवान शिव की साधना सम्पत्र करनी चाहिए।
इस साधना को यवि पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ सम्पत्त किया जाए, तो भगवान शिव के अत्यंत भव्य वर्शन भी साधक को प्राप्त हो जाते हैं, जिससे साधक के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।
इस साधना में पाशुपता यंत्र को बिल्वपत्र का आसन वेकर कसी पात्र में स्थापित करें और निम्न ध्यान मंत्र करें-
में
पद्यामीन समन्तात्रय कृति
अब अपने सिर पर एक पुष्प -सामने भी एक पुष्प रखकर अपने और शिव के परस्पर प्राण संबंध स्थापित करते हुए निम्न उच्चारण करें-
पिनाक-चूक इहावह इसलि पावत् पूजां करोम्यों। स्थानीयं पशुपतये नमः
इसके बाद 'रुयामल तंत्र के अनुसार स्वा माला' से निम्न मंत्र की 21 माला मंत्र जप करें-
।। ॐ हर, महेश्वर, शूलपाणि, पिनाक पुरु पशुपति, शिव, महादेव, ईशान नमः शिवाय।।
यह सम्पूर्ण प्रकार की सफलता देने वाला मंत्र है और इसके माध्यम से पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है। हैं, जो अपने आपमें अद्वितीय है। प्रयोग समाति बाय आरती करें। बाद में मालाको स्थान में स्थापित करें।
साधना सामग्री-458
पद्मासीन समन्नान म्य
अब अपने सिर पर एक पुष्प रखें तथा यंत्र सामने भी एक पुष्प रखकर अपने और शिव परस्पर प्राण संबंध स्थापित करते हुए निम्न उच्चारण करें-
पिनाक-चूक सावह इसा इसलिए हल इस सत्रिधेहि इस सत्रिधेगि, इह सधित यावत् पूजां करोम्यह। स्थानीयं पशुपतये नम
इसके बाद 'रुद्रयामल तंत्र के अनुसार माला से निम्न मंत्र की 21 माला मंत्र जप करें-
॥ ॐ हर, महेश्वर, शुलपाणि, पिनाक पूर्वी पशुपति, शिव, महादेव, ईशान नमः शिवाय।।
यह सम्पूर्ण प्रकार की सफलता देने वाला मंत्र और इसके माध्यम से पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है। हैं, जो अपने आपमें अद्वितीय है। प्रयोग समाति बाय आरती करें। बाद में रुद्राक्ष माला व पंच को पूर्ण स्थान में स्थापित करें।
कुंजिका उत्कीलन mantra- || OM AIM KREEM CHAMUNDE SARVA MANTRA PAATH UTKILAM KURU KURU KREEM FATT || मंत्र- ॥ॐ ऐं क्रीं चामुंडे सर्व मंत्र पाठ उत्कीलम कुरु कुरु क्रीं फट्ट॥
, यह भोजपत्र दिखायेंगे?"
शायद वे उस दिन अत्यन्त प्रसज थे, उन्होंने मुझे यह भोजपत्र दिखाया, भोजपत्र अत्यन्त जर्जर अवस्था में था और
उस पर लिखी भाषा भी मुझे समझ में नहीं जा रही थी। उन्होंने उसका सरलीकरण कर मुझे उसकी व्याख्या समझाई। उसे. जानकर मुझे एहसास हुआ कितनी सहजता से मुझे एक अद्वितीय ज्ञान की प्रासि हुई है।
उन्होंने स्पष्ट किया 'इस प्रयोग विधि को सम्पन्न करने बाला व्यक्ति पूर्ण सम्मोहनकर्ता बन जाता है तथा वह जिसे चाहे उसे अपने वश में कर सकता है। उसके अन्दर इतना अधिक आकर्षण उत्पन्न हो जाता है, कि उसके आकर्षण से पशु-पक्षी तक मोहित हो जाते हैं, जो इस साधना को पूर्णता के साथ सम्पन कर लेता है वह इस क्षेत्र का अद्वितीय साधक होता है।'
उन्होंने अपना मूल परिचय भी स्पष्ट किया, कि वे एक लामा हैं, लेकिन भारतीय तंत्र ने उनको ज्यादा आकर्षित किया और धीरे-धीरें वे इस ओर प्रवृत्त हो गये। उन्होंने स्प्ष्ट किया, कि भारतीय तंत्र में अनेक शोध कार्य सम्पन्न हुए हैं,'
जिसके कारण यह अति विकसित बिद्या है, लेकिन सामान्य
जन में प्रचलित न होने के कारण धीरे-धीरे यह अपना मूल स्वरूप खोती जा रही है। इस विद्या में विभिन्न विषयों पर किये गये विषेश्चन अत्येन्त महत्वपूर्ण हैं, जो अनेक रहस्यों को अपने में समाये हुए है।
मैंने या अनुभव भी किया, कि उनके हृदय में इस बात का दुःख है, कि समाज मूल में न जाकर ऊपरी तलछट को ही देखने का प्रयास करता है।
उनसे आता लेकर मैं उनके द्वारा बताई गयी विधि को सार्वजनिक कर रहा हूं, जिसको सम्यन्त्र कर आप भी इस क्षेत्र में अद्वितीय साधक बन सकते है।
साधना विधान
इस साधना में आवश्यक सामग्री सम्मोहन वशीकरण
यंत्र' तथा 'सम्मोहन-वशीकरण माला' है।
यह सात विक्सीय साधना है तथा रात्रि की 9 बने के
बाद किसी भी शुक्रवार या किसी भी माह में पूर्णिमा से प्रारम्भ कर सम्पन्न की जाती है।
साधक हल्के गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करें।
लकड़ी के बाजोट पर पीले रंग का वस्व बिछायें। उस
पर लाल रंग के रंगे अक्षत से विकोण बनायें, त्रिकोण के
मध्य में 'सम्मोहन-वशीकरण यंत्र' को स्थापित करें।
मंत्र का कुकुम, अवात तथा पुष्प से पूजन करें।
यंत्र की बाई ओर पीले चावल की देरी पर माला स्थापित कर उसका पूजन करें।
घी का दीपक तथा धूप लगायें तथा नैवेद्य चढ़ायें।
मानसिक रूप से वैश्याचार्य को प्रणाम करते हुए थोड़ा सा अक्षत यंत्र के बगान में रख दें।
सम्मोहन-वशीकरण माला से निम्न मंत्र की नित्य 21 माला जप करें-
मंत्र
॥ॐ क्लीं सम्मोहनाव-वसाय क्ली ॐ कद् ।।
मंत्र जप समाप्त होने पर जो भी नैवेद्य चढ़ाया हो, उसे स्वयं ग्रहण करें।
सात दिन तक नित्य पूजन कर मंत्र जप करें।
आठये दिन प्रातः ही यंत्र व माला को नदी में प्रवाहित कर दें।
'अप्रैल 2008 मंत्र-तंत्र-मंत्र विज्ञान '43'
साधना-सामग्री-300/-