Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali

BaglaMukhi Kavach

BaglaMukhi Kavach

BaglaMukhi Kavach

बगलामुखी कवच  -:  मां बगलामुखी के  साधक को प्रतिदिन जाप प्रारम्भ करने से पहले इस कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए । यदि हो सके तो सुबह दोपहर शाम तीनों समय इसका पाठ करें । यह कवच विश्वसारोद्धार तन्त्र से लिया गया है। पार्वती जी के द्वारा भगवान शिव से पूछे जाने पर भगवती बगला के कवच के विषय में प्रभु वर्णन करते हैं कि देवी बगला शत्रुओं के कुल के लिये जंगल में लगी अग्नि के समान हैं। वे साम्रज्य देने वाली और मुक्ति प्रदान करने वाली हैं।

बगलामुखी कवच पढ़ने के लाभ


भगवती बगलामुखी  कवच के पाठ से अपुत्र को धीर, वीर और शतायुष पुत्र की प्राप्ति होति है और निर्धन को धन प्राप्त होता है।
महानिशा में इस कवच का पाठ करने से सात दिन में ही असाध्य कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं। तीन रातों को पाठ करने से ही वशीकरण सिद्ध हो जाता है।

मक्खन को इस कवच से अभिमन्त्रित करके यदि बन्धया स्त्री को खिलाया जाये, तो वह पुत्रवती हो जाती है।
इसके पाठ व नित्य पूजन से मनुष्य बृहस्पति के समान हो जाता है, नारी समूह में साधक कामदेव के समान व शत्रओं के लिये यम के समान हो जाता है। मां बगला के प्रसाद से उसकी वाणी गद्य-पद्यमयी हो जाती है ।
उसके गले से कविता लहरी का प्रवाह होने लगता है। इस कवच का पुरश्चरण एक सौ ग्यारह पाठ करने से होता है, बिना पुरश्चरण के इसका उतना फल प्राप्त नहीं होता।
इस कवच को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर पुरुष को दाहिने हाथ में व स्त्री को बायें हाथ में धारण करना चाहिये भगवती बगलामुखी की उपासना कलियुग में सभी कष्टों एवं दुखों से मुक्ति प्रदान करने वाली है। संसार में कोई कष्ट अथवा दुख ऐसा नही है जो भगवती पीताम्बरा की सेवा एवं उपासना से दूर ना हो सकता हो, बस साधकों को चाहिए कि धैर्य पूर्वक प्रतिक्षण भगवती की सेवा करें.

माँ बगलामुखी ध्यान

ॐ सौवर्णासन-संस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीम्। हेमाभांगरुचिं शशांक-मुकुटां सच्चम्पक स्रग्युताम्।।
हस्तैर्मुद्गर पाश वज्ररसनाः संबिभ्रतीं भूषणैः। व्याप्तांगीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत्।।

विनियोग – ॐ अस्य श्री बगलामुखी ब्रह्मास्त्र मंत्र कवचस्य भैरव ऋषिः, विराट छ्ंदः, श्री बगलामुखी देव्य, क्लीं बीजम्, ऐं शक्तिः, श्रीं कीलकं, मम मनोभिलाषिते कार्य सिद्धयै विनियोगः।

बगलामुखी कवच शिरो मे पातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातु ललाटकम्। सम्बोधन-पदं पातु नेत्रे श्रीबगलानने।। (१)

श्रुतौ मम रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम्। पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम्।। (२)

देहि द्वन्द्वं सदा जिह्वां पातु शीघ्रं वचो मम। कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम्।। (३)

कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम। मायायुक्ता तथा स्वाहा हृदयं पातु सर्वदा।। (४)

अष्टाधिक चत्वारिंश दण्डाढया बगलामुखी। रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेऽरण्ये सदा मम।। (५)
ब्रह्मास्त्राख्यो मनुः पातु सर्वांगे सर्व सन्धिषु। मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा।। (६)
ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलाऽवतु। मुखिवर्णद्वयं पातु लिंग मे मुष्क-युग्मकम्।। (७)

जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम्। वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णाः परमेश्वरी।। (८)
जंघायुग्मे सदा पातु बगला रिपुमोहिनी। स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रयं मम।। (९)
जिह्वा वर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च। पादोर्ध्व सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम।। (१०)
विनाशय पदं पातु पादांगुल्योर्नखानि मे। ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे।। (११)
सर्वांगं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मेऽवतु। ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा।। (१२)
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेऽवतु। कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता।। (१३)

वाराही चोत्तरे पातु नारसिंही शिवेऽवतु। ऊर्ध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदाऽवतु।। (१४)
इत्यष्टौ शक्तयः पान्तु सायुधाश्च सवाहनाः। राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः।। (१५)
श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु। द्विभुजा रक्तवसनाः सर्वाभरणभूषिताः।। (१६)
योगिन्यः सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम। इति ते कथितं देवि कवचं परमाद् भुतम्।। (१७)

फल-श्रुति

(फल-श्रुति पढ़ना अनिवार्य नहीं है। ) श्रीविश्व विजयं नाम कीर्ति-श्रीविजय-प्रदम्। अपुत्रो लभते पुत्रं धीरं शूरं शतायुषम्।। (१८)

निर्धनो धनमाप्नोति कवचस्यास्य पाठतः। जपित्वा मन्त्रराजं तु ध्यात्वा श्रीबगलामुखीम्।। (१९)


पठेदिदं हि कवचं निशायां नियमात् तु यः। यद् यत् कामयते कामं साध्यासाध्ये महीतले।। (२०)

तत् यत् काममवाप्नोति सप्तरात्रेण शंकरि। गुरुं ध्यात्वा सुरां पीत्वा रात्रौ शक्ति-समन्वितः।। (२१)
कवचं यः पठेद् देवि तस्य आसाध्यं न किञ्चन। यं ध्यात्वा प्रजपेन् मंत्रं सहस्रं कवचं पठेत्।। (२२)
त्रिरात्रेण वशं याति मृत्योः तन्नात्र संशयः। लिखित्वा प्रतिमां शत्रोः सतालेन हरिद्रया।। (२३)
लिखित्वा हृदि तन्नाम तं ध्यात्वा प्रजपेन् मनुम्। एकविंशद् दिनं यावत् प्रत्यहं च सहस्रकम्।। (२४)

जपत्वा पठेत् तु कवचं चतुर् विं शतिवारकम्। संस्तम्भं जायते शत्रोर्नात्र कार्या विचारणा।। (२५)
विवादे विजयं तस्य संग्रामे जयमाप्नुयात्। श्मशाने च भयं नास्ति कवचस्य प्रभावतः।। (२६)

नवनीतं चाभिमन्त्र्य स्त्रीणां सद्यान् महेश्वरि। वन्ध्यायां जायते पुत्रो विद्याबल-समन्वितः।। (२७)
श्मशानांगार मादाय भौमे रात्रौ शनावथ। पादोद केन स्पृष्ट्वा च लिखेत् लोह शलाकया।। (२८)
भूमौ शत्रोः स्वरुपं च हृदि नाम समालिखेत्। हस्तं तद्धदये दत्वा कवचं तिथिवारकम्।। (२९)
ध्यात्वा जपेन् मन्त्रराजं नवरात्रं प्रयत्नतः। म्रियते ज्वरदाहेन दशमेऽह्नि न संशयः।। (३०) भूर्जपत्रेष्विदं स्तोत्रम् अष्टगन्धेन संलिखेत्। धारयेद् दक्षिणे बाहौ नारी वामभुजे तथा।। (३१)
संग्रामे जयमाप्नोति नारी पुत्रवती भवेत्। ब्रह्मास्त्रदीनि शस्त्राणि नैव कृन्तन्ति तं जनम्।। (३२)
सम्पूज्य कवचं नित्यं पूजायाः फलमालभेत्। वृहस्पतिसमो वापि विभवे धनदोपमः।। (३३)
काम तुल्यश्च नारीणां शत्रूणां च यमोपमः। कवितालहरी तस्य भवेद् गंगा-प्रवाहवत्।। (३४)
गद्य-पद्य-मयी वाणी भवेद् देवी-प्रसादतः। एकादशशतं यावत् पुरश्चरण मुच्यते।। (३५)
पुरश्चर्या-विहीनं तु न चेदं फलदायकम्। न देयं परशीष्येभ्यो दुष्टेभ्यश्च विशेषतः।। (३६)
देयं शिष्याय भक्ताय पञ्चत्वं चान्यथाऽऽप्नुयात्। इदं कवचमज्ञात्वा भजेद् यो बगलामुखीम्। (३७)

शतकोटिं जपित्वा तु तस्य सिद्धिर्न जायते। दाराढ्यो मनुजोऽस्य लक्षजपतः प्राप्नोति सिद्धिं परां ।। विद्यां श्रीविजयं तथा सुनियतं धीरं च वीरं वरम्। ब्रह्मास्त्राख्य मनुं विलिख्य नितरां भूर्जेष्टगन्धेन वै, धृत्वा राजपुरं ब्रजन्ति खलु ये दासोऽस्ति तेषां नृपः।। (३८)

श्री विश्वसारोद्धार तन्त्रे पार्वतीश्वर संवादे बगलामुखी कवचम्।। बगलामुखी कवच पाठ करने की विधि सर्व प्रथम गुरुदेव से बगलामुखी कवच  यंत्र के सामने जाप करें।
फिर उनकी आज्ञा अनुसार कवच का कम से कम 1100 पाठ करने का संकल्प करें।
1100 कवच का पाठ आप 11 दिन में कर सकते हैं। साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें। साधना रात्रि काल में करें।

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