किसी भी महाविद्या की पूर्ण सिद्धि तभी संभव है जब आपको उसके समस्त रहस्यों का पता हो और पूर्ण वीर भाव से उसे करने के लिए आप संकल्पबद्ध हों . अन्य साधनाएं तो आप फिर भी कर सकते हैं पर महाविद्या साधनाओं के लिए अलग जीवन चर्या का ही पालन किया जाता है .संयमित और मर्यादित जीवन जीते हुए आप इन साधनाओं को निश्चित रूप से सिद्ध कर सकते हैं. जरा सा भी भय आपके मन में हो तो इन साधनाओं को नहीं करना चाहिए . इन साधनाओं की सफलता के लिए यदि स्थापन दीक्षा या पूर्णरूपेण सफलता प्राप्ति दीक्षा ले ली जाये तो सफलता असंदिग्ध रहती है.धूमावती साधना साधक के जीवन को अद्भुत अभय से आप्लावित कर देती हैं , हाँ ये सत्य है की संहार की चरम सीमा यदि कोई है तो वो यही हैं . साधक के जीवन को अभाव और शत्रु से पूर्ण रूपेण मुक्त कर देती हैं साथ ही देती हैं शमशान साधनाओं में सफलता , प्रेत और तंत्र बाधा निवारण और आत्म आवाहन साधनाओं में सफलता का वरदान भी .इनकी साधना सहज भी नहीं है साधक के पूर्ण आत्म,मानसिक और शारीरिक बल का परिक्षण इस साधना से ही ही जाता है . दया तो संभव ही नहीं है और जरा सी चूक घातक भी हो जाती खुद के लिए. दो तरीके से आप इन साधनाओं को कर सकते हैं . यदि मात्र आपको अपना कार्य सिद्धि का मनोरथ पूरा करना हो तो आप गुरु निर्देशित संख्या में मूल मन्त्र का जप कर ये सहज रूप से कर सकते हैं. पर जब आपका लक्ष्य पूर्ण सिद्धि हो तो महाविद्या साधनाओं के तीन चरण तो करने ही पड़ेंगे . तभी आपको सफलता मिलती है और पूर्ण वरदायक जीवन पर्यंत प्रभाव भी .
ये चरण निनानुसार होते हैं.
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बीजमंत्र सिद्धि (जिससे उस महाविद्या का आपकी आत्मा और सप्त शरीरों में स्थापन हो सके)
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सपर्या विधि (जिससे उस महाविद्या की समस्त शक्तियों का स्थापन आपमें हो सके)
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मूल मंत्र और प्रत्यक्षीकरण विधान( निश्चित सफलता और पूर्णरूपेण प्रत्यक्षीकरण के लिए)
ये चरण आप सद्गुरु से प्राप्त करे | यहाँ कुच्छ बताने योग्य सूत्र है वो यहाँ दिया जा रहा है |
हम हमेशा कई प्रकार की साधनाए करते रहते है। परन्तु सफलता न मिल पाने के कारण हम निराश हो जाते है।और हो भी क्यों न,परिश्रम में सफलता न मिलने से निराशा तो स्वभाविक है। सफलता न मिलने के दो कारण होते है।
प्रथम : साधना में उर्जा की कमी होना तथा समर्पण न होना।
द्वितीय : साधना के गुप्त सूत्रों का ज्ञान न होना जिससे की सफलता की सम&##2381;भावना बढ जाती जाती है।
उर्जा पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे।आज हम माँ धूमावती की साधना में प्रयोग होने वाले कुछ गोपनीय सूत्रों पर चर्चा करेंगे।
कई साधक माँ धूमावती की साधनाए करते है,लाखो की संख्या में जाप करते है। किन्तु मंत्र की उर्जा का उन्हें अनुभव नहीं होता है। कार्य सिद्धि के लिये भी कई साधक धूमावती की साधना करते है लेकिन कार्य सिद्ध नहीं हो पाता है। किन्तु कुछ गुप्त प्रयोग है जिन्हें आप संपन्न करके सफलता के निकट पहुच सकते है।
१- साधना के पहले किसी भी दिन शमशान की मिट्टी में शमशान की भस्म मिलायी जाये,ये संभव न हो तो कोई भी भस्म ले और शिव मंदिर की मिट्टी ले।उसमे गुलाब जल और सामान्य जल मिलाकर एक लड्डू की तरह या अंडाकार पिंड का निर्माण कर ले।और उस पर काजल से बीज मंत्र " धूं " लिखे ये सारी क्रिया आपको रात्रि में करनी है।और एकांत कक्ष में करनी है।हा भस्म और मिट्टी आप दिन में ला सकते है।परन्तु उसे बाहर ही रखे,प्रयोग के समय कक्ष में लाये।अब दक्षिण मुख होकर बैठ जाये आसन वस्त्र सफ़ेद हो।सामने बजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाकर पिंड स्थापित करदे।अब पिंड पर अक्षत अर्पण करे निम्न मंत्र बोलते हुए।
ॐ धूम्र शिवाय नमः
अब कोई भी भस्म अर्पण करे निम्न मंत्र बोलते हुए
ॐ धूं धूं ॐ
अक्षत तथा भस्म २१ बार अर्पण करने है मंत्र बोलते हुए।
अब तील के तेल का दीपक प्रज्वलित करे,और किसी भी धुप बत्ती के द्वारा धुआ करे।अब आप धूमावती की जिस साधना में सफलता के लिये ये प्रयोग कर रहे है उसका संकल्प ले।और पिंड की और देखते हुए ३० मिनट तक निम्न मंत्र का जाप करे
ॐ धूं धूं धूमावती फट
इसके बाद उसी कपडे में पिंड को बांधकर शमशान में फेक आये या किसी निर्जन स्थान में रख दे पीछे मुड़कर न देखे।साधना के मध्य कोई अनुभव हो तो डरे नहीं।फिर आप जब चाहे कोई भी धूमावती साधना करे सफलता आपके समक्ष होगी।
२- शमशान से कोई सफ़ेद वस्त्र ले ले,जिसे शव पर ओढाया जाता है।उस पर वही की भस्म या कोयले के द्वारा निम्न मंत्र लिख कर उस कपडे को बहते जल में बहा दे या पीपल वृक्ष के निचे रख दे।
धूं धूं धूमावती ठः ठः
यदि आपको शमशान का कपडा न मिले तो कोई भी नया सफ़ेद वस्त्र लेकर शमशान भूमि से स्पर्श करा ले और उस पर काजल से मंत्र लिखकर ये क्रिया कर ले।
३- यदि आसन के निचे कोए का पंख रख लिया जाये,या सामने रख लिया जाये तो सफलता की सम्भावना बढ जाती है।
यु तो और भी कई गोपनीय सूत्र है परन्तु ये मेरे स्व अनुभूत है।किसी और के अनुभव मुझसे अलग हो सकते है।द्वितीय प्रयोग आप तब भी कर सकते है जब कोई शत्रु तंग कर रहा हो,या कोई ऐसी इच्छा जो प्रयत्न करने पर भी पूर्ण न हो रही हो तब भी आप वस्त्र को कामना बोलते हुए बहा सकते है।इन तीन गुप्त प्रयोगों को करने के बाद आप धूमावती साधना करे।माँ की कृपा से सफलता आपको अवश्य मिले