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कुंडलिनी जागरण मन्त्र प्रयोग भाग १

कुंडलिनी जागरण मन्त्र प्रयोग भाग १

कुंडलिनी जागरण मन्त्र प्रयोग भाग १

ऊं गं गणेशाय नमः:
ऊं ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः :
ऊं निखिलेश्वरायै नमः :

कुन्डलिनी [ Kundalini ] जागरण साधनात्मक जीवन का सौभाग्य है.

विशेष तथ्य :-

कुन्डलिनी जागरण साधनात्मक जीवन का सौभाग्य है.
कुन्डलिनी जागरण साधना गुरु के सानिध्य मे करनी चाहिये.
यह शक्ति अत्यन्त प्रचन्ड होती है.
इसका नियन्त्रण केवल गुरु ही कर सकते हैं.
यदि आपने गुरु दीक्षा नही ली है तो किसी योग्य गुरु से दीक्षा लेकर ही इस साधना में प्रवृत्त हों.
यदि गुरु प्राप्त ना हो पाये तो आप मेरे गुरु जी Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानद जी )को गुरु मानकर उनसे मानसिक अनुमति लेकर जाप कर सकते हैं .

साधना सामग्र्री

चेतना यन्त्र , चेतना माला , रुद्राक्ष माला , या गुरुमाला

आसन , पीला , सफ़ेद ऊनी कम्बल

पंचौपचार गुरु पूजन करे फिर गुरु मंत्र का ४ माला करे


हरी ॐ ..........................की ध्वनि करे
जब तक साँस साथ दे , 1 se 5min तक करे

तंत्र साफल्य मंत्र की ५ माला जाप करे
तंत्र साफल्य मंत्र है:::

ॐ ह्रीं ऐं क्रीं क्रीं हुं हुं क्रीं क्रीं फट
[om hreem aiem kreem kreem hum hum kreem kreem phat].

यह मंत्र आपको "तंत्र रहस्य" नामक CD मे स्वयं सदगुरुदेव की ओजस्वी वाणी मे मिल जाएगा।

फिर ये मंत्र जाप जाप करे
साधना मंत्र

|| ॐ ह्रीं मम प्राण देह रोम प्रतिरोम चैतन्य जाग्रय ह्रीं ॐ नम: ||

यह एक अद्भुत मंत्र है.
इससे धीरे धीरे शरीर की आतंरिक शक्तियों का जागरण होता है और कालांतर में कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होने लगती है.
प्रतिदिन इसका 11, 21 mala की संख्या में जाप करें.
जाप करते समय महसूस करें कि मंत्र आपके अन्दर गूंज रहा है.

मन्त्र जाप के अन्त में कहें :-
ना गुरोरधिकम,ना गुरोरधिकम,ना गुरोरधिकम
शिव शासनतः,शिव शासनतः,शिव शासनतः

निखिल पंचकम ka path kare 1, ya 5 baar...

आदोवदानं परमं सदेहं, प्राण प्रमेयं पर संप्रभूतम ।
पुरुषोत्तमां पूर्णमदैव रुपं, निखिलेश्वरोयं प्रणम्यं नमामि ॥ १॥

अहिर्गोत रूपं सिद्धाश्रमोयं, पूर्णस्वरूपं चैतन्य रूपं ।
दीर्घोवतां पूर्ण मदैव नित्यं, निखिलेश्वरोयं प्रणम्यं नमामि ॥ २॥

ब्रह्माण्ड्मेवं ज्ञानोर्णवापं,सिद्धाश्रमोयं सवितं सदेयं ।
अजन्मं प्रवां पूर्ण मदैव चित्यं, निखिलेश्वरोयं प्रणम्यं नमामि ॥ ३॥

गुरुर्वै त्वमेवं प्राण त्वमेवं, आत्म त्वमेवं श्रेष्ठ त्वमेवं ।
आविर्भ्य पूर्ण मदैव रूपं, निखिलेश्वरोयं प्रणम्यं नमामि ॥ ४॥

प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं परेशां,प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं विवेशां ।
प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं सुरेशां, निखिलेश्वरोयं प्रणम्यं नमामि ॥ ५॥
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