ललिताम्बा साधना
विश्वामित्र ओज और साहस की प्रतिमूर्ति थे , भारतीय ऋषियों का दर्प वर्णित करता व्यक्तित्व जिनकी तो कोई मिसाल ही नहीं । जिनकी प्रत्येक साधना पद्वति धरा से हटकर नवीन और चुनौती भरी है । वे ही पहले ऋषि हुए है जिन्होंने लक्ष्मी के आगे हाथ नहीं जोड़े । सर्वथा नवीन पद्वति से लक्ष्मी को बाध्य कर दिया की वह उनके आश्रम में आकर स्थापित हो ।ब्रम्हऋषि विश्वामित्र ने जीवन की अक निराली साधना रच डाली जिसका नाम है "ललिताम्बा साधना" । जीवन में हमे किसी के आगे हाथ न जोड़ना पड़े , हमारे मनोवांछित कार्य सम्पन्न होते रहे ऐसी जीवन शैली संभव हो सकती है विश्वामित्र प्रणीत "ललिताम्बा साधना" से ।
आज के युग में यह साधना परम आवश्यक है । महर्षि विश्वामित्र की यह साधना अपने अन्दर तेज भरने की प्रक्रिया है की आपके सामने वाला व्यक्ति आपके प्रभाव से केवल सम्मोहित ही न हो , वरन भयभीत सा हो । पांच दिनों की इस तीव्र साधना में साधक तभी प्रवृत हो जब वह मानसिक और शारीरिक रूप से दृढ हो ।उसके शरीर के अणु -अणु चैतन्य हो ।
साधक प्रात: सात बजे के आस -पास अपने साधना कक्ष में बैठे , जो पहले से ही साफ़ ,सुथरा और धुला हुआ हो ।पीले रंग के स्वच्छ वस्त्र पहने और पीले रंग के आसन पर बैठ तेजस्वी देव भगवान् सूर्य का स्मरण कर उन्हें अर्घ्य दें जो आप अपने स्थान पर बैठे -बैठे भी दें सकते है ।भावना रखे कि भगवान् सूर्य अपनी पूर्ण तेजस्विता के साथ मेरे अन्दर समाहित हो रहे है और पूज्य गुरुदेव का स्मरण चिंतन कर मानसिक रूप से प्रार्थना करे कि वे सामर्थ्य दे कि मैं इस साधना के तेज पुंज को अपने अन्दर समाहित कर सकूं ।
आप अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर पुष्प के पंखुड़ियों से दो आसन बनाए ,जिसमे एक पर आप पूज्य गुरुदेव का आवाहन और स्थापन करे तथा दुसरे पर भावना रखे की महर्षि विश्वामित्र जी सूक्ष्म रूप में उपस्थित होकर आपको साधना की पूर्णता प्रदान कर रहे है ।
सामान्यत साधक का स्तर यह नहीं होता कि वह अपने प्राणों के स्वर का सीधे ही देव स्वरूप व्यक्तियों से स्पर्श करा सकें । इसके लिए उसे एक माध्यम की आवश्यकता होती है जिससे उसकी मानस तरंगे व मंत्र जप परावर्तित हो उन देव स्वरूप दिव्य आत्माओ के सामने स्पष्ट होती है ।इसलिए प्रत्येक साधना में अलग-अलग ढंग के उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है जिन्हें हम पारिभाषिक शब्दों में "यंत्र "की संज्ञा दे देते है ।
इस साधना में भी सर्वोच्च रूप से ताम्र पत्र पर अंकित " गुरु यंत्र " होना नितांत आवश्यक है जिस पर आप कुंकुम ,अक्षत ,पुष्प इत्यादि अर्पित कर अपनी भावनाओ और पूजन को प्रकट कर सकते है ।
दूसरी महत्वपूर्ण सामग्री आवश्यक है विश्वामित्र के प्राणश चेतना मंत्रो से आपूरित " सर्वजन वशीकरण यंत्र "।
इसके अतिरिक्त इस साधना में मूंगे के तीन टुकड़ो की भी आवशयकता पड़ती है जी की मंत्र सिद्ध , प्राण प्रतिष्ठित होने आवशयक है । इस साधना में केवल ललिताम्बा माला से ही मंत्र जप किया जा सकता है ।
पांच दिनों की साधना में प्रतिदिन 51 माला मंत्र जप जरूरी है , यदि साधक चाहे तो 21 माला के बाद अल्प विश्राम ले सकता है । इस मंत्र जप की अवधि में साधक को भीतर कुछ टूटता -फूटता सा लग सकता है , अकडन या ऐंठन सी संभव हो सकती है , किन्तु यह संकेत है की आप साधना में सही ढंग से आगे बढ़ रहे है , इससे घबराकर मंत्र छोड़ना उचित नहीं ।
इस साधना की समाप्ति पर गुरु आरती सम्पन्न करें और यदि संभव हो तो पूज्य गुरुदेव से व्यक्तिगत रूप से मिलकर आशीर्वाद युक्त " ललिताम्बा दीक्षा " प्राप्त करें क्योंकि गुरुदेव ही सभी साधनाओ में सफलता के मूल है ।
इस साधना के बाद व्यक्ति में एक तेज पुंज समाहित हो जाता है और वह उसकी वाणी के माध्यम से ,उसके चेहरे के माध्यम से और सम्पूर्ण शरीर से झलकने लगता है । सम्मोहन तो केवल एक विद्या है , सामने वाले को प्रभावित करने की , जबकि यह तो विशिष्ट रूप से रचा गया ऐसा प्रयोग है की साधक बिना कुछ कहे ही सामने वाले को वशीकरण में बाँध कर रख देता है ।
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प्राचीन मंत्र यंत्र विज्ञान ,दिसम्बर,2012 , पेज न.- 31-32
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