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mantra kese karta hai

mantra kese karta hai

?जानिए कैसे असर करते हैं मंत्र ?
मंत्र शब्दों का एक खास क्रम है जो उच्चारित होने पर एक खास किस्म का स्पंदन पैदा करते हैं, जो हमें हमारे द्वारा उन स्पंदनों को ग्रहण करने की विशिष्ट क्षमता के अनुरूप ही प्रभावित करते हैं। 
हमारे कान शब्दों के कुछ खास किस्म की तरंगों को ही सुन पाते हैं। उससे अधिक कम आवृत्ति वाली तरंगों को हम सुन नहीं पाते।
हमारे सुनने की क्षमता 20 से 20 हजार कंपन प्रति सेकेंड हैं, पर इसका यह अर्थ नहीं कि अन्य तरंगे प्रभावी नहीं है। उनका प्रभाव भी पड़ता है और कुछ प्राणी उन तरंगों को सुनने में सक्षम भी होते हैं।
जैसे- कुछ जानवरों और मछलियों को भूकंप की तरंगों की बहुत पहले ही जानकारी प्राप्त हो जाती है और इनके व्यवहार में भूकंप आने के पहले ही परिवर्तन दिखाई देने लगता है। इन्हीं सिद्वांतों पर आज की बेतार का तार प्रणाली भी कार्य करती है।
इसे इस उदाहरण के द्वारा आसानी से समझा जा सकता है कि रेडियो तरंगे हमारे चारों ओर रहती है पर हमें सुनाई नहीं पड़ती, क्योंकि वे इतनी सूक्ष्म होती हैं कि हमारे कानों की ध्वनि ग्राह्म क्षमता उन्हें पकड़ ही नहीं पाती।
मंत्रों की तरंगे इनसे भी अधिक सूक्ष्म होती हैं और हमारे चारों ओर फैल जाती हैं। अब यह हम पर निर्भर है कि हम खुद को उसे ग्रहण करने के कितने योग्य बना पाते हैं।
मंत्रों से निकलने वाली स्थूल ध्वनि तरंगों के अलावा उसके साथ श्रद्धाभाव व संकल्प की तरंगे भी मिली होती हैं। स्थूल ध्वनि तरंगों के अलावा जो तरंगे उठती हैं, उन्हें हमारे कान ग्रहण नहीं कर पाते। वे केश-लोमों के जरिए हमारे अंदर जाकर हमें प्रभावित करती हैं।
मंत्रों के सूक्ष्म तरंगों को ग्रहण करने में केश-लोम बेतार का तार की तरंगे ग्रहण करने वालों की भांति काम करते हैं और उनके माध्यम से ग्रहण किए गए मंत्रों की सूक्ष्म तरंगे हमारी समस्याओं के शमन में सहायक होती हैं।
शब्दों का खेल बहुत ही निराला है। मंत्र भी शब्दों का साम्यक संयोजन ही होता है। पर साथ ही इसमें सार्थकता भी जरूरी है। मंत्र के प्रभावी होने के लिए यह जरूरी है कि उच्चारण करने वाले को उसके भाव व उद्देश्य का पूरा ज्ञान हो। भाव तथा अर्थ के बगैर उसका पाठ निरर्थक सिद्ध होता है। इसी कारण कभी-कभी सही मंत्रों का भी सही प्रभाव नहीं पड़ता।
यह वह महत्वपूर्ण त्रुटि है जिसकी वजह से मंत्रों का भी सही प्रभाव नहीं पड़ता। फलस्वरूप अब अधिकांश लोगों का इस विद्या से विश्वास उठ गया है।
कुछ लोग तो मात्र लोभ के कारण इसके ज्ञाता बनने का ढोंग किए बैठे हैं। जबकि उन्हें वास्तविक अर्थ का तनिक भी ज्ञान नहीं है। अनेक लोग मंत्रों के लय और उच्चारण से भी अपरिचित होते हैं।
मंत्रों में अपार शक्ति होती है और उनकी संख्या भी महाप्रभु की अनंतता की तरह ही अंसख्य है। 
सभी मंत्रों की साधना के ढंग अलग-अलग हैं और उनसे मिलने वाले फल भी भांति-भांति के होते हैं। मंत्रों का एक सीधा प्रभाव उसके उच्चारण से स्वयं उच्चारणकर्ता पर पड़ता है और दूसरा उस पर जिसे निमित्त बनाकर जिसके नाम से संकल्प लिया जाता है।
मंत्र चैतन्य व दिव्य ऊर्जा से युक्त होते हैं परंतु गुरु परंपरा से प्राप्त मंत्र ही प्रभावी होते हैं। अतः मंत्रों में जो चमत्कारी शक्ति निहित होती है, उसका पूरा लाभ उठाने के लिए आवश्यक है कि उसे पूरी तरह व सही मायने में जाना जाए। उसके लिए जानने-समझने वाले समर्थ गुरु से दीक्षा सहित मंत्र की जानकारी हासिल करना आवश्यक है।
सच्चे गुरु के बिना मंत्रों का सही उच्चारण, लय व जप-विधि के बारे में कुछ भी जानना मुश्किल है। गुरु द्वारा बताए मंत्रों का सही तरीके से नियमपूर्वक व श्रद्धा से जप किया जाए तो उनसे अवश्य लाभ मिलता है।           
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There is no more a happy person than a Sadhak in this world. A common person is ignorant. Ignorance leads to egotism. Egotism generates fear. Fear leads to confusion. Confusion is there because man has many wishes. And most wishes are there because man desires pleasure. It is due to indulgence in pleasures that a person develops traits. It is due to these traits that a person has to take birth again and again and has to suffer sorrows and pain

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