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तारा साधना → दर्शन, सिद्धि और धनलाभ हेतु -- २६-९-१९८७ नवरात्र जोधपुर |

तारा साधना → दर्शन, सिद्धि और धनलाभ हेतु -- २६-९-१९८७ नवरात्र जोधपुर |

तारा साधना → दर्शन, सिद्धि और धनलाभ हेतु --------
२६-९-१९८७ नवरात्र जोधपुर |
धन के मामले मे नियम पालन जरूरी |
कब? → किसी भी शुक्ल पक्ष की तृतीया से
→ लाल आसन, पुष्प,लाल ही मिठाई (केवल दूध का बना)
→ लाल मूंगा माला|

→नियम ::--

(१) एक समय भोजन |
(२) जमीन पर सोना |
(३) केवल धोती,, (वनियान आदि नहीं ) |
(४) पूरे दिन तारा चिंतन |
(५) तृतीया के रात थाली मे खलिख से स्त्री का चित्र बना कर, उसे तारा मान कर पुजान करे |
(६) दश महाविध्या, गुरु, तारा यंत्र चित्र भी आगे रखे |
(७) लाल चावल की ढेरी पर अखण्ड दीपक रखे |
(८) दिशा → दक्षिण |
(९) दिन को दूसरे से नहीं बोले |

(१०) पूरे दिन जाप करे (बिना आसान के, बिना माला) →| ऐं ओं ह्रीं क्रीं हूं फट | (aing ong hring kring hoom phat)
(११) आसन पर ११ माला ११ दिन जाप करे रात को →| ॐ ह्रीं ह्लिं  ह्लिं ओं  ओं | (Om Hring Hling Hling Ong Ong)


#विशेष : →यदि इस विधि से पूर्ण "सहस्त्र देहन्वित तारा सिद्धि मंत्र" का जप करें तो तारा अपने हजारों स्वरूपो मे एक साथ प्रगट होती है | (यह भी गुरुदेव ने उसी शिविर मे बताय थे और गुरुजी ने इसे शत्रु स्तंभन मंत्र भी कहा था )

मंत्र : →|| ॐ ह्रीं ह्लीं ह्लीं ओं ओं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं फट ||

→||Om Hrring Hleem Hleem Ong Ong Hring Hring Kring Kring Kring Hum Hum Phat||

१२वें दिन ११ कुमारी को भोजन और ११०० आहुती इसी मंत्र की घी से दे तो इसमे फट की जगह स्वाह: बोले (फट मे ट पर हलंत लगाए )

नोट :→ शिविरो की साधानए पत्रिका मे नहीं दी जाती थी और इसका उच्चारण ओर नियम गुरुदेव ने जो बताय थे उसी अनुरूप |

माला - संबंधी सावधानी
माला फेरते समय निम्न सावधानियां बरतनी आवश्यक हैं -
माला सदा दाहिने हाथ में रखनी चाहिए ।
माला भूमि पर नहीं गिरनी चाहिए , उस पर धूल नहीं जमनी चाहिए ।
माला अंगूठे , मध्यमा व अनामिका से फेरना ठीक है । दूसरी उंगली तर्जनी से भूलकर भी माला नहीं फेरनी चाहिए ।
मनकों पर नाखून नहीं लगने चाहिए ।
माला में जो सुमेरु होता है , उसे लांघना नहीं चाहिए । यदि दुबारा माला फेरनी हो तो वापस माला बदलकर फेरें । मनके फिराते समय सुमेरु भूमि का कभी स्पर्श न करे । इस बात के प्रति सदा सावधान रहना चाहिए ।



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