मुझे शर्म आती है के मैं अपनी जबान से तुम्हे शिष्य कहु ?,या तुम मुझे गुरु कहो ?. तुम्हे तो गुरु नहीं चाहिए.? ..जो तुम्हारे मन के अंदर सके,जो तुम्हारे बंद दरवाजे को खोल सके,जो तुम्हारे प्राणो में हलचल पैदा कर सके...?
तुम्हे तो मदारी चाहिए जो डुगडुगी बजा कर लोगों की भीड़ एकत्र कर सके? ,तुम्हारा गुरु तो सपेरा होना चाहिए ? जो साप की पूछ पकड़ कर उसे उल्टा लटका कर तमाशा दिखा सके.?..तुम्हे चाहिए एक ढोंगी पाखंडी साधू,जो हवा में हाथ हिला कर भभूत निकल सके और तुम्हारे मुह में दे सके,और तुम्हे नकली चमत्कार दिखा सके......?
तुम गलत स्थान पर आ गए हो,यह मदारी का अड्डा नहीं है ! ,यह सपेरों का बाम्बीघर भी नहीं है ! ,यह तमाशे नहीं दिखाए जाते,तुम्हे तो चाहिए हाथ की सफाई दिखने वाले,तुम्हे चाहिए एक नाटकबाज जो तुम्हारे ललाट पर हाथ रख कर कुण्डिलिनी जागृत करने का ढोंग कर सके,कर सके,तुम्हे तो चाहिए चालाक,धूर्त और ठग गुरु....?.....
हकीकत में तुम सही स्थान पर नहीं हो,क्योकि मैं तो ऐसे लोगो,पाखंडियो,धूर्तो पर तो प्रहार करता हो,उनकी पोल खोलता हूँ,धर्म के नाम पर धंधा करने वालो
पोल खोलता हूँ...
तुम यदि सही अर्थो में साधक हो,तो शिष्य बन सकते हो,पर अपने आप को,अपने स्व को,अपने "मैं" को मिटाना पड़ेगा,तब सिद्धिया स्वत: तुम्हारे गले
जयमाला डालने के लिए आतुर रहेंगी....
Mantra Tantra Yantra Vigyan Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji