समझे बिना हम जो पूजा पाठ माला भोग सब करते है ।वो व्यर्थ है सब क्योकि
भक्ति का मूल अर्थ ही हम नही जानते।बस अंधाअनुकरण मात्र होता है।जैसे कोई
मिठाई नही खाता तो हम भी नही खाये।अरे भाई उनको मधप्रमेह है।आप क्यों नही
खाते?अनुकरण मात्र!!
लोग उस मन्दिर में जाते है हम भी जाये वहां भगवान साक्षात् है! अरे, भगवान हर कही है।
किसी माला में मूर्ति में नही।मन्दिर जा कर भी आप के मन से कपट छल लोभ तो गया नही!न आपमे दया भाव आया!बस अनुकरण मात्र!!!??
परमात्मा सब में है प्रत्येक घटक में है।
आप में औरो में बसे परमात्मा को जानो।द्वेष को दूर करो समभाव रखो ।ये समझ
एक पल में आ सकती है ।यदि सच्चा सद्गुरु मिले।और यह समज आ जाये तो आपका
बेडा पार हो जाये।अब भगवान और भक्ति को समझे लो।