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Dasha-Mahavidyas bhairav भैरव-विवेचन-bhairav-interpretation

MTYV Sadhana Kendra -
Saturday 9th of May 2015 06:12:52 AM


1. कालिका – महाकाल भैरव
2. त्रिपुर सुन्दरी – ललितेश्‍वर भैरव
3. तारा – अक्षभ्य भैरव
4. छिन्नमस्ता – विकराल भैरव
5. भुवनेश्‍वरी – महादेव भैरव
6. धूमावती – काल भैरव
7. कमला – नारायण भैरव
8. भैरवी – बटुक भैरव
9. मातंगी – मतंग भैरव

10. बगलामुखी – मृत्युंजय भैरव


श्री भैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं-

1. असितांग भैरव, 
2. चंड भैरव, 
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव, 
5. उन्मत्त भैरव, 
6. कपाल भैरव, 
7. भीषण भैरव 
8. संहार भैरव।

क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है। 
श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप 'काल भैरव' के नाम से विख्यात हैं।

दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें "आमर्दक" कहा गया है।

शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है।


ध्यान के बिना साधक मूक सदृश है, भैरव साधना में भी ध्यान की अपनी विशिष्ट महत्ता है। किसी भी देवता के ध्यान में केवल निर्विकल्प-भाव की उपासना को ही ध्यान नहीं कहा जा सकता। ध्यान का अर्थ है - उस देवी-देवता का संपूर्ण आकार एक क्षण में मानस-पटल पर प्रतिबिम्बित होना। श्री बटुक भैरव जी के ध्यान हेतु इनके सात्विक, राजस व तामस रूपों का वर्णन अनेक शास्त्रों में मिलता है। जहां सात्विक ध्यान - अपमृत्यु का निवारक, आयु-आरोग्य व मोक्षफल की प्राप्ति कराता है, वहीं धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि के लिए राजस ध्यान की उपादेयता है, इसी प्रकार कृत्या, भूत, ग्रहादि के द्वारा शत्रु का शमन करने वाला तामस ध्यान कहा गया है। ग्रंथों में लिखा है कि गृहस्थ को सदा भैरवजी के सात्विक ध्यान को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

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