ईश्वर ने तुम्हारा जन्म एक विशेष उद्देश्य के लिए किया है क्योंकि प्रभु की यह विशेष स्थिति है की वह एक घास का तिनका भी व्यर्थ पैदा नहीं करता ...और तुम्हे भी यदि ईश्वर ने जन्म दिया है तो जरूर इसके पीछे कोई हेतु है ,कोई कारण है ,कोई चिंतन है |
मैं तो तुम्हे आवाज दे रहा हूँ ,युगों -युगों से ,मैं तो तुम्हे बुला रहा हूँ जन्म -जन्म से ,मैं तो निमंत्रण दे रहा हूँ दोनों भुजाये फैला कर तुम्हे सीने से लगाने के लिए ,दिल में पूरी तरह उतार देने के लिए |क्योंकि मैं तुम्हारे जीवन का रखवाला हूँ ,इस जीवन से नहीं पिछले कई जीवन से |पिछले जीवन में भी तुम मेरे शिष्य थे ,उससे पिछले जीवन में भी तुम मेरे शिष्य थे ,अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे पिछले पच्चीस जन्मो के नाम बता सकता हूँ ,तुम्हारा नाम ,तुम्हारा स्थान ,तुम्हारे माता पिता |यह पहली बार नहीं है कि मैंने पहली बार तुम्हे आवाज दी है ,हर बार मैं तुम्हे आवाज देता हूँ ,हर बार तम्हे अपने पास बुलाता हूँ पर तुम हर बार मेरा हाथ छुडा के भाग जाते हो ,हर बार मुझे धोखा देते हो,हर बार माया मोह में फंस कर रह जाते हो |
और तुम्हे फिर से मल मूत्र भरी देह से जन्म लेना पड़ता है ,पर इस बार मैं ऐसा नहीं होने दूंगा ,इस बार अगर तुम हाथ छुड़ाना भी चाहोगे तो नहीं छोड़ने दूंगा ,मैं तुम्हे प्यार से ,डांट लगाता हुआ ,लात लगाता हुआ भी अपने साथ ले के जाउंगा ही |क्योंकि बार -बार का जन्म लेना और बार -बार का मरना तुम्हारे जीवन का उद्देश्य नहीं है |
जीवन में तुम्हे रुकना नहीं है ,निरंतर आगे बढना है और इस आगे बढ़ने में जो आनंद है ,जो तृप्ति है ,वह जीवन का सौभाग्य है |
समुद्र तो बाहे फैलाए खड़ा रहता है ,नदी वेग में आती है ...और बीच में रुकावट आती है पर वह नदी रूकती नहीं ,गाँव आते है तो गाँव को बहा देती है ...समाज .किनारों के अन्दर नदी को बाँधने की कोशिश करता है तो नदी उन किनारों को तोड़ देती है |नदी तो तेजी से भागती है अपने प्रियतम से मिलने ...और जिस क्षण समुद्र में लीन हो जाती है ,बिलकुल शांत हो जाती है तब उसकी लहरों से संगीत फूट पड़ता है ,जिसे साधना और शिष्यता की पूर्णता कहा गया है ,ब्रम्ह की उपलब्धि कहा गया है |
समर्पित शिष्य की पहिचान ही अलग हैं, अंहकार रहित, सर्वस्व समर्पण युक्त, जीवन को फ़ना करने का हौसला रखने वाला.
Ψ वह गुरु के व्यक्तित्व में पूरी तरह से ढल जाता हैं, वैसी ही चाल, वैसी ही बोलने की अदा, वैसा ही बैठने का ढंग, वैसा ही व्यवहार, चिंतन, विचार और लक्ष्य……….
Ψ ऐसा लगे कि गुरु की प्रतिकृति हो. Ψ और ऐसे ही बारह (Twelve) – पूरी पृथ्वी से मात्र बारह शिष्य मिल जायें, तो मैं पूरे ब्रह्माण्ड को बदल देने का हौसला रखता हूँ.
तुम्हारा सदगुरुदेव