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गुरु मंत्र पुरुषचरन कैसे सही तरीके से करे .... गुरु मंत्र पुरुषचरन कैसे सही तरीके से करे ....

MTYV Sadhana Kendra -
Tuesday 23rd of July 2019 02:25:02 PM


गुरु मंत्र पुरुषचरन कैसे सही तरीके से करे ....

*पूरूश्चरन*

तंत्र मै ना "पुरश्चरण" बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना गया है.........
मन्त्र जप की सामान्य विधि तो बहुत ही सरल है.......

किन्तु उसी मन्त्र का पुरश्चरण एक कठिन कार्य है.......दुर्गम भी कह सकते हो आप .....

कहते है ...अगर आप किसी मंत्र का पूरूश्चरन सही से कर लो ....तो वो मंत्र आपको सिद्ध हो गया है .....
तब उस अभीष्ट मंत्र जिस भी कार्य के लिये आप उस मंत्र के पढ़ने भर से कर सकते ho....

मुझे याद सद्गूरूदेव ने कहा था गायत्री मंत्र का पुरुष्चरन कर ले ......और फिर वो साधक किसी पे फूल भी फेक गुस्से मै तो वो फूल भी ब्रह्मास्त्र का रूप ले सामने वाले पे बरसेगा .....

तो आप सोच सकते हो पूरूशचरन की महिमा .......

अब देखो पूरूश्चरन को अपने ढंग से कहूँ ना तो .....

फूल किताबी भाषा मे बोलूँगा ....ताकि अच्छे बच्चे की तरह आप सब रट सको ....

*किसी विशिष्ट उद्देश्य की सिद्धि के लिए नियम और विधान पूर्वक कुछ निश्चित समय तक किया जानेवाला तांत्रिक पूजा-पाठ........*

बोले तो सॉलिड डिफिनेशन दिया रट लो .....

खैर आगे बढ़ते है ....

*इसके ना मूलतः पाँच चरण होते है*

नही समझे ....

किसी मंत्र का पुरुष्चरन करने के लिय पाँच चरण होते है .....

और वो है ...

*1.जप*
*2.हवन*
*3.अर्पण*
*4.तर्पण*
*5.मार्जन*
*6.ब्राह्मण भोज* ये ना ऑप्षनल है बिल्कुल आपके exam के ऑप्षनल सब्जेक्ट की तरह ....exam तो देना है लेकिन आपके रिजल्ट पे इसका कोई प्रभाव ना रहेगा ....

मतलब नंबर नही जूटेगा .....

मतलब इतना कर दिया तो मंत्र सिद्ध ...

अब इसपे कुछ विस्तार से चर्चा कर ले .....

*1.जप*- 

देखो बुरा मत मनना मेरी सँस्कृत बहुत कमजोर है .....इसलिये पुराणों मे सँस्कृत की एक श्लोक है जो मै भूल ज्ञा .....

वो कुछ ऐसा था *मन्त्रस्य: वर्ण संख्याम लक्षगुणित जपेत* .......आगे का याद नही .......?

तो सीधी और साफ शब्दो मै कहूँ ना तो .....

किसी भी मंत्र को जो गुरु द्वारा प्रदत्त हो .....उस मंत्र की सभी वर्ण सँख्या को गिन ले ......

और उसे एक लाख से गुना कर दे ...तब उतना जाप करे .....

और जब ऐसा होगा तो पहला चरण मंत्र का जाप पूरा होगा .....

यानी किसी मंत्र मै 16 वर्ण है ....तो उसको लक्ष यानी 1 लाख से गुना कर दो .....यानी हुआ 16 लाख ....

तो जब आप 16 लाख जाप कर लोगे तो उस मंत्र का पहला चरण यानी जाप पूर्ण हुआ आपका ....

अब कुछ स्पेशल बाते ....जैसे ....जप मानसिक करो वाचिक यानी बोल के या उपाँसु यानी धीरे धीररे फूस फूस कर बूँद बूदा कर .....किसी भी तरह कोई फर्क नही पड़ता ......मूलत आपकी भावना होनी चहिये .....

*2.हवन*-

मतलब जिस भी मंत्र का आप पूरूशच्रन कर रहे हो ....उसके वर्ण सँख्या मै लाख गुना कर जाप लिया .....

तो उसी अनुसार अब उसका 10% यानी ऊपर आपने जो मंत्र लिया है उसमे 16 वर्ण है तो जाप हुआ 16 लाख का .....

तो अब हवन कुंड बना कर .....उस मंत्र के अंत मै स्वाहा लगा के ......

उसका 10% यान
16 लाख का 10% हुआ ...160000 (एक लाख 60 हजार).......

यानी कुल माला हुआ ...1482 यानी 1500 माला का हवन ......

तो उस अभीष्ट मंत्र मै स्वाहा अपने मन से जोर लो .....

जैसे गणित मै अज़्यूम् करते है ...let x be a dhongi pandit .....

उसी तरह मान के मंत्र मै स्वाहा लगा के 1500 माला की आहुति दो ....

*3.अर्पण* - तो पहली बात अर्पण जो है ना हवन का 10% होगा .....

यहाँ ऐसा नही है की मूल मंत्र की सँख्या जितना जपे है उसका 10% जाप करना है .....

यहाँ जैसे जैसे नीचे जाते जायंगे ...उसका 10% होता जयेगा ......

मतलब जाप का 10% हवन ...हवन का 10% अर्पण ....अर्पण का 10% तर्पण .....

और अंत मै तर्पण का 10% मर्जण....

तो इसी थेयोरी पे चलते हुए ....हमे अर्पण हवन का 10% करना है .......

तो हमने हवन किया 1 लाख 60 हजार मँत्रों से तो .....

1 लाख 60 हज़ार का 10% हुआ 16 हजार ......

यानी अर्पण हमे 16000 बार करना है....

आप लोग बोल्गे कहा हमे पुरुष्चार्न समझा रहा था कहा गणित ले के बैठ गया ...

खैर मुद्दे पे आते है...

वैसे मै बता दूँ तर्पण जो है देवताओ के लिये करते है ........

और हवन की तरह इसके अंत मै भी हमे अर्पणमस्तू लगाना है .....

तो अब इसमे करना है ..

तो दोनो हाथो को जोर के अंजुली बना के उसमे जल भर के मंत्र के अंत मै अर्प्न्म्स्तु बोल के अँग्लियो के सहारे जल को जमीन पे छोड़ देना है .....

अंजुली ना समझे तो बता दूँ ...बच्चे मै जैसे प्यास लगने पे कल के पास दोनो हाथ जोर के कटोरा जैसा बना लेते थे ....ना उसी को अंजुली कहते है .....

देख लो इतना डीप मै कोई ना स्मझ्येगा ......खास कर मेरे जैसा सरकारी आदमी .....scl मै कम पढ़ाते है ताकि टूसन ले ह्म्से ......

खैर अब आगे ...

*4.तर्पण*- 


तो जैसा पहले बता दिया जैसे जैसे नीचे आय्ण्गे उसका 10% होता जायेगा ......

तो तर्पण भी यहाँ जितना अर्पण किये उसका 10% होगा.....

यानी अर्पण हमने ....16 हजार किया तो ....
16 हजार का 10% होगा 1600 यानी सोलह शो .....

यानी 1600 बार तर्पण होगा .....

तर्पण मूलतः पितरों के लिये किया जाता है ....

और इसमे भी मंत्र के अंत मै तर्पयामि लगाना है ....

अब इसमे आपको करना क्या है ....

दाँये हाथ को सिकोड़ ले वैसे जैसे हमे इसमे जल लेना है तो हाथ को सिकोड़ के कटोरा जैसे बना लेते है ....बिल्कुल वैसा .....

तो वैसे ही दाँये हाथ को सिकोड़ के उसमे जल ले के मंत्र के अंत मे तर्प्यामि बोल के उस जल को उसी बाये हाथ से दाँये और गिरा दे ......

बिल्कुल वैसा जैसे हम श्राद्ध करने वक्त करते है ....

अब आते है अँतिम लेकिन लास्ट नही .....

*5.मर्जन*- 

अब ये भी उसी तरह तर्पण का 10% होगा ....

अब इसका गणित खुद निकालो .....सब मास्टरजी कर देँगे ....तो तुम लोग क्या करोगे ......

अब इसमे करना क्या है ....

आम की पत्ते का एक आचमन जैसा बना ले.....ऐसा पते को नीचे मोड़ के नही बनाते है जिससे वो पानी उठा सके ......

बील्कुक आच्म्नी जैसा ...बिल्कुल वैसा बना ले .....

अब उसमे जल भर के मंत्र पढ़ कर अंत मै तर्प्यामि लगा के .....अब उस आम जैसे बने आच्म्नी से जल को पीछे फेक दे .....

इस तरह जितना तर्पण करना है करे .....

अब अँतिम है ब्राह्मण भोज .....तो जैसा कह चुका हूँ करना तो है ही आपको .....उनको भोजन या दान दक्षिणा देना .......

तो इस तरह आपका पूरूश्चन पूर्ण हुआ .....

जय सद्गूरूदेव जय माँ भगवती ।

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