गुरुदेव जी ने हमारे लिए बिलकुल खुला मार्ग रखा है ..यहाँ हम सांसारिक कार्यों में लिप्त रहते हुए यदि बस उनको याद रखते हैं ..तो भी हमारा कल्याण हो जाता है ...उन्हें हम उन गोपियों के जैसे प्यार कर सकते हैं ..जो अपने गृहस्थ धर्म को निभाते हुए भी हर पल कृष्णा के साथ ही होती थीं .. गुरूजी को हमारा प्यार चाहिए ...और कुछ नहीं ...
ऐसे तो हम सारे साधक जब से गुरूजी से जुड़ गए ..गुरूजी के हो गए ..फिर भी एक अंतर जो नए साधक और पुराने साधक में साफ़ झलकती है ...वो है उतावलापन नए साधक का ... नए.साधक के जुड़े कुछ ही समय होता है ..वो ऐसा दिखाने की कोशिश करते हैं ..कि उन्हें गुरूजी के बारे में सब मालूम हो गया है ...और दुसरे को अपने तरीके से मार्गदर्शन भी करना शुरू कर देती हैं...
गुरूजी तो अगम अगोचर हैं ...उन्हें कोई जान सकता है भला ...हम तो गुरूजी के बारे में वही कह सकते जो उन्होंने हम पर दया कर अपने बारे में जानने दिया ..हर साधक का उनके साथ अलग सा बंधन ..इस बात का प्रतिक है ..कि वो अनन्त हैं ...उनका कोई रूप नहीं ..कोई आकर नहीं ..
कभी पुरानी साधक को देखा है ..i love u गुरूजी .लिखते हुए ...वो ऐसा इसलिए नहीं लिख पाते क्योंकि उन्हें पता है इन शब्दों का मतलब कि गुरूजी को कैसे सच्चा प्यार करना है ... और जब तक हम उस मुकाम तक नहीं पहुँच जाते कि हम गुरूजी से कुछ उम्मीद न करें .....
गुरूजी से एक शब्द बोलने की किसी को हिम्मत नहीं होती थी ..आज साधक कहते हैं ..कि हम होते तो ये कह देते ..ये पूछ लेते .....कभी ये जानने की कोशिश नहीं करते की आखिर क्या था वहां जो सबकी बोलती बंद रहती थी
जिस साधक ने गुरूजी का शरीर रूप में दर्शन किया है ...वो कभी भी गुरूजी के फोटो से छेड़छाड़ नहीं करेंगे ...उन्हें पता है की गुरूजी का हर दर्शन किसी ख़ास प्रायोजन से है ..जो समय समय पर गुरूजी अपने साधक को दिखाते रहते हैं ...
हमें अपनी कलाकारी दिखानी होती है .. सृष्टी के सबसे बड़े कलाकार को हम अपने फोटोशॉप का कमाल दिखाते हैं ..हम ऐसा इस लिए कर पाते हैं क्योंकि हम गुरूजी को नहीं जानते हैं ...चमत्कार सुनते हैं ..पर अंदर कहीं से मान नहीं पा रहे हैं ..जानना है तो किसी भी दर्शन के सामने खड़े हो जाये कुछ देर के लिए ..पता चल जायेगा की ..क्या रिश्ता रखना चाहते हैं गुरूजी हमसे ..
हम कुछ लाइन गुरूजी के बारे में लिख देते हैं ..और बस likes गिनने में सारा समय निकाल देते है ...जो भी हम लिख रहे हैं ..यदि हम वो सच में कर भी रहे हैं ..तो हमारे और गुरूजी के बीच अब कोई दूरी नहीं रह सकती ...पर लिखने में क्या जाता है ...कहाँ गुरूजी देखने आते हैं ....ये सोच है हमारी ....गुरूजी की निगाह हर पल हम सब पर है ...ऐसे ही गुरूजी हर पल हम संगत का कल्याण नहीं करते ..यदि वो हमें नहीं देखते होते ...
गुरूजी से जुड़ कर एक नए धर्म बनाने की जरूरत नहीं है जिसमें ..पाबंदियां हो ..जैसे कोई कहेगा ...अगरबत्ती जलाओ ..कोई कहेगा नहीं जलाओ ......जो सही लगे करो .... अपनी भावना है .. ..जय गुरूजी ...small letter में नहीं capital letter में लिखना है ...क्यों पड़ना इन सबमें ..जो श्रधा से लिख सकते हैं क्यों न लिखें ..आखिर font ही तो है ..गुरूजी को पता है की हमारे अंदर उनके लिए कितना आदर है ... दुनिया को बताने की जरूरत क्यों है .......फेस बुक एक माध्यम भर है ..हमें msg देने का ..जिनसे हमारी आगे की यात्रा का निर्देश मिलता है ...
गुरूजी हमें आज़ाद करना चाहते हैं ..उन बेड़ियों से उन भावनाओ से जिनके हम गुलाम हो गए हैं .... उनको छोड़कर हम किस आनंद को प्राप्त कर सकते हैं ..जानना ही नहीं चाहते .. गुरूजी हमें पहले सांसारिक रूप से सक्षम बनाते हैं ..ताकि रोटी कपडा और मकान के चक्कर में हमारे आत्मा का उठान न रुक जाये ..पर हम फिर भी दिए हुए से चिपके रहते हैं ...आज छोड़ कर तो देखें . ..आज जो जायेगा दस गुना प्यार के साथ वापस आएगा ....जरूरत है आज गुरु पर भरोसा करने की