गुरूजी ने एक बार हम पर दया कर दी की हमारा अंदरूनी सफाई शुरू हो जाता है ...ये इतना धीमा है कि हमें खुद पर शक होता है कि इतने सालों से जुड़ने के बाद भी हममे कोई बदलाव आया कि नहीं ...लोग कहते हैं कि nature और signature कभी नहीं बदलता ..पर गुरूजी के पास आकर हमने बहुतों को पूरी तरह बदलते हुए देखा है ...हम कितना बदल गए इसकी पहचान तब होती है जब विपरीत परिस्तिथियों का सामना करना पड़ता है ..तब हमें अपनी असलियत की पहचान होती है ..,हम सब कंकड़ पत्थर ही होते हैं ... कंकड़ को हीरा कैसे बना दिया गुरूजी ने तब समझ आता है ..
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देने वाला हमारा बराबर हिसाब रखता है ..वो हमें हमारे किये से दुगुना देगा ..
कब कहाँ से आएगा ये गुरूजी पर छोड़ दें ...भरोसा रखना है ..कि हमें मिलेगा ही .....जो भी दरकार होगा ...समय पर
किसी पुरानी पोस्ट पर एक बहुत प्यारा cmts दिखा ...कि गुरूजी के पास आने के बाद अचानक से मैं अपने सारे दुश्मनों के लिए प्रार्थना करने लगा ...ये बदलाव अपने आप में बहुत ही बड़ा है ..पर ये लफ्ज़ दुश्मन हमे अपनी जेहन से निकाल फेकना है ... यदि गुरूजी हमारे हैं तो वो सब जो हमसे किसी न किसी रूप में जुड़े हैं ..वो सब हमारे अपने ही हैं ..क्योंकि इस बार हमारी यात्रा में सिर्फ वो लोग नहीं मिलेंगे जिनके आत्मा के साथ हमारी प्लानिंग हुई है .. इस जन्म लेने के पहले .बल्कि साथ में वो भी जुड़ेंगे जिनका लेना देना किसी भी जन्म का बाकि है ..हमारे साथ ..हमारा हर कर्म चुकता करवाकर ही हमें गुरूजी निर्वाण तक पहुंचाएंगे ..क्योंकि कर्मफल तो भोग कर ही मुक्ति मिल सकती है ..
हम अक्सर देखते हैं कि हम किसी को चाहे वो हमारे बच्चे हों,भाई बहन हो ,पति या पत्नी हो , प्रेमी या प्रेमिका या फिर कोई दोस्त..जान प्राण से प्यार करेंगे ..पर वो हमें ठोकर मारते ही रहेंगे.....यूनिवर्स के नियम के हिसाब से तो प्यार का बदला प्यार से ही मिलना चाहिए ....पर यदि ऐसा नहीं हो रहा है ..तो गुरूजी से शक्ति मांग लें इसे बर्दास्त करने के लिए ..क्योंकि हमारे पिछले जन्म का हिसाब किताब चल रहा है ..जिससे हमारी आत्मा तो वाकिफ है ..पर शारीरिक रूप से हम इसे नहीं पहचान पा रहे हैं ..यही कारण होता है ..कि हजारों बार चोट खाने के बाबजूद हमारी आत्मा में उसके लिए कोई दुर्भाव नहीं होता
..जबकि भावनात्मक स्तर पर हम हर चोट के साथ टूटते जाते हैं ...
गुरूजी का हाथ सर पर होने के कारण हमारी आत्मा हर ठोकर के साथ अध्यात्मिक एक कदम आगे बढ़ जाती है ...जैसे ही आत्मा का हिसाब किताब ख़तम होगा ..उस इंसान से हमारा सम्बेदना का क्या ?किसी भी तरह का कोई सम्बन्ध नहीं होगा ..जैसे उसका होना या न होना हमारे लिए कभी कोई मायने ही नहीं रखता हो ... इस जिन्दगी में ही ऐसा हम सब कितनी बार महसूस कर चुके हैं ..बस समझने की जरूरत है की वो आत्मा आपके लाइफ में दिए गए किरदार को निभा चुकी है ...और अपनी अगली यात्रा को चल पड़ी . वो न तो हमारी दुश्मन है न ही दोस्त ...पृथक अतित्व ...पृथक यात्रा ..
ऐसे तो हजारो क़र्ज़ होंगे हमारे ,अब हम इनसे कैसे निकलें ......गुरूजी हमारे ज्यादातर कर्म को माफ़ कर देते हैं ...पर कुछ जो हमें भुगतने ही हैं ..उनके लिए मुझे जो समझाया गया है ...कि हर उस बन्दे जिससे हम कभी भी कहीं भी जुड़े हैं ...के लिए गुरूजी से दया की प्रार्थना करें ...बेशक वो गुरूजी को नहीं मानता हो ..पर जब हम उनके लिए प्रार्थना करते हैं तो उनकी आत्मा को ....गुरूजी प्रार्थना करते हैं ...क्योंकि पूरी सृष्टि का हर सृजन उनका अपना ही अंश है ... गुरूजी के पास सब जीव एक से हैं .. और सबकी मुक्ति का दायित्व गुरूजी का ही है ...
गुरूजी सबका कल्याण करें
निखिल उपनिषद'