सद्गुरुदेव जी से जुड़े साधक अक्सर हमें कहते हैं कि, हम सद्गुरुदेव जी को पूर्ण समर्पण कर दें ..हम आम लोग समझ नहीं पाते की क्या करना है ..जिसे हम समर्पण कह सकते हैं
जहाँ पूर्ण समर्पण की बात आती है .....एक उदहारण दिया जा सकता है ...
मानो कोई प्लेन क्रेश होकर गिर रहा है ...हम हवा में हैं .. उस वक़्त की गयी प्रार्थना ..जिस भाव से होगी ...यानि सब गुरूजी के ऊपर है वाला भाव ..हम अपना बुद्धि ..धन ..समय ..प्यार ..कुछ भी लगाने की कोशिश नहीं करते क्योंकि हम जान जाते हैं की ये सब करके हम परिस्तिथि को कण्ट्रोल नहीं कर सकते ..
बस अपने को सद्गुरुदेव जी के हवाले कर देते हैं कि अब जो भी आप करोगे हमें मंजूर होगा ... इस स्तिथि में हम ये नहीं सोचते की मर जायेंगे या बच जायेंगे बचेंगे तो कितनी चोट आएगी ..या जिन्दगी भर के लिए अपाहिज हो जायेंगे या कुत्ते बिल्ली हमें खायेंगे...आदि ..
बस बिना कुछ मांगे ..हम सौंप देते हैं खुद को ..अब तेरी रजा में राजी ...जो भी दोगे आपके हिसाब से वही हमारे लिए बढ़िया होगा ..
ये भाव यदि जिन्दगी में आ जाये ..तो पूर्ण समर्पण होता है ..
यदि दुःख मिला तो इसमें हमारा कोई कल्याण छुपा होगा क्योंकि सद्गुरुदेव जी तो हमसे प्यार करते हैं .... जब हम कभी भी अपने प्यारे को दुःख में नहीं देख सकते..., तो सद्गुरुदेव जी का प्यार हमारे लिए सबसे अनोखा है . .. हमें हर हाल में प्यार करते हैं .. वो कभी भी दुःख को हमारे तक पहुँचने ही नहीं देंगे ..यदि वो हमारे लिए आवश्यक नहीं है....... उस दुःख में हमारा कल्याण छुपा न हो तो सद्गुरुदेव जी अपने पर ले लेते हैं ,या उसकी प्रभाब कम कर देते हैं ..पर हमारी तकलीफ सद्गुरुदेव जी से देखा नहीं जाता है .....यदि ये विचार हमारे मन और आत्मा से आने लगे तो समझ लो हमने समर्पण कर दिया ..
सद्गुरुदेव जी जानते हैं कि हम साधारण इंसान है ..हमारी क्या क्या कमजोरियां हैं ..इस कारण ऐसा परीक्षा नहीं लेंगे ..
पर जो भी हो रहा है ..वो हमारे गुरूजी के मंजूरी से हो रहा है ..और इसमें ही हमारा भला है ..ये मान कर हर अवस्था में हम समता में रहने की कोशिश कर सकते हैं ..
समय लगता है ..पर सद्गुरुदेव जी मदद करते हैं
समर्पण करने में भी ..
यदि कोई कह रहा है ...कि वो पूर्ण समर्पण कर देगा तो वो खुद से झूठ बोल रहा है ..ये घोषणा करके होने वाली चीज़ नहीं है ...ये स्वत: होने वाली प्रक्रिया है ..
ये अचानक तभी हो पता है ..जब सद्गुरुदेव जी कोई चमत्कार कर रहे हों ..यानि हमारे वश में नहीं है ..
हम साधारण में ये समर्पण धीरे धीरे आता है ...हर भरोसे के साथ बढ़ता जाता है ....
पूर्ण समर्पण जब होगा तो हम सद्गुरुदेव जी में और सद्गुरुदेव जी हममें विराजमान होंगे
हमारा लक्ष्य तो पूर्ण समर्पण ही हो ..ताकि हम हर वक़्त सद्गुरुदेव जी की मस्ती में लीन रह पायें ..
बस एक बच्चे की तरह सोच कर लें हम ..अपनी ऊँगली पापा को पकडाने के बाद 2 साल का बच्चा और कुछ नहीं सोचता ..बस जिस स्तिथि में है उसको ही जीता है ..जहाँ मर्ज़ी उसे उसका पिता ले जाये
वही करना है हम सबको .....गुरूजी हमें समर्पण के लायक बनायें ..
सतगुरु मिलन की व्याकुलता इतनी तीव्र होनी चाहिए जैसे जल मे डूबता व्यक्ति सांस लेने के लिए व्याकुल होता है ।
जिसका ध्यान हमेशा सतगुरु के चरणों में लगा रहता है वह दूर रहता हुआ भी पास है और सतगुरु की शरण मे रहता हुआ भी जिसका मन संसारिक विषयो मे भटकता है , वह सतगुरु के श्रीचरणो से बहुत दूर है ।
जय सद्गुरुदेव .........