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तुम्हारे लिए तो मैं हर क्षण उपस्थित हूँ.I am present for you every moment.

MTYV Sadhana Kendra -
Tuesday 9th of June 2015 08:05:14 AM


गुरु सेवा
गुरु सेवा से बड़ी संसार में कोई साधना नहीं. इसके आगे तो सभी मंत्र, सब साधनाये, सब भक्ति, सब क्रियाये व्यर्थ हैं. गुरु सेवा के द्वारा शिष्य क्षण मात्र में वह सब प्राप्त कर लेता हैं जो की हजारों वर्ष क्या कई जन्मों की तपस्या के बाद भी संभव नहीं.

Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji

तुम्हारे लिए तो मैं हर क्षण उपस्थित हूँ.

मेरे जीवन का सृजन एक विशेष उद्देश्य, एक विशेष लक्ष्य, एक विशेष चिन्तन के लिए हुआ हैं, और मेरा जन्म कोई आकस्मिक घटना नहीं हैं, उसकी एक सार्थक उपस्थिति हैं, काल खण्ड की एक विशेष और विशिष्ट उपलब्धि हैं, जिसके सामने एक महत्वपूर्ण लक्ष्य, एक महत्वपूर्ण चिन्तन और एक महत्वपूर्ण धारणा हैं.

तुम मुझे मिलते हो, उन विशेष क्षणों में अपना सारा दुःख, अपना सारा दैन्य और अपनी सारी परेशानियां, और अपनी चिंताएं मुझे दे डालते हो, और मैं बदले में तुम्हें लौटा देता हूँ आनंद के क्षण, मस्ती के क्षण, नृत्य के क्षण!

इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि मैं हर क्षण तुम्हारे बीच उपस्थित हु, चाहे आप कही पर भी हो, अगर तुम अपने घर पर भी हो, और आँखें बंद करके मुझे अपने अन्दर उतारने का प्रयास करो, तो मैं तुम्हारे सामने जिवंत व्यक्तित्व बनकर उभर आता हूँ, बैठ जाता हूँ तुम्हारे पास, मुस्कराहट भर देता हूँ तुम्हारे जीवन में, और रोम रोम पुलकित हो उठता हैं तुम्हारा, सारा जीवन स्वतः ही थिरकने लग जाता हैं, मन आनंद के झूले पर झूलने लग जाता हैं, और तुम एक अजीब से खुमारी में भर जाते हो.

इसीलिए तो मैं कहता हूँ कि तुम्हारे मेरे शारीरिक सम्बन्ध भले ही न हो, पर तुम्हारे और मेरे प्राणों के सम्बन्ध अवश्य हैं, और उन संबंधों को यह क्रूर दुनिया काट नहीं सकती, तुम्हारे मेरे आत्मा के संबंधों के बीच में तुम्हारे माँ बाप, भाई बहिन, पति पत्नी और समाज बाधक बनकर खड़ा नहीं रह सकता, क्योंकि तुम्हारे हृदय के तार मेरे हृदय के तारों से जुड़े हुए हैं, तुम्हारे प्राणों की झंकार मेरे हृदय की सितार से तरंगित होती हैं, तुम्हारे हृदय का कमल मेरे सुवास से महकता हैं, इसलिए कि तुम मेरे हो, और केवल मेरे हो!

प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती, प्रेम को शब्दों के माध्यम से बांधा भी नहीं जा सकता, प्रेम होंठों से कहने की बात ही नहीं हैं, यह तो एक थिरकन हैं, आनंद की अनुभूति हैं, जीवन की सितार के स्वर हैं, उसकी अपनी एक मिठास हैं, उसका अपना एक आनंद हैं, और यह आनंद तुम्हारे और मेरे बीच प्रगाढ़ता के साथ विद्यमान हैं, यह प्रेम की डोर हैं, जिसे तुम चाहकर के भी तोड़ नहीं सकते, जिसकी वजह से तुम चाह कर भी मुझ से अलग नहीं हो सकते, जिसकी वजह से तुम हर क्षण हर पल मुझ में खोये रहते हो, जब तुम कोई पुस्तक पढ़ रहे होते हो, तो मैं उस पुस्तक की पंक्तियों और अक्षरों के आगे आकर खड़ा हो जाता हूँ, जब तुम अकेले होते हो, तो मैं मुस्कुराता हुआ, तुम्हारे सामने बैठा हुआ मिलता हूँ, जब तुम एकांत में होते हो, तो मैं साकार सशरीर तुम्हारे सामने विद्यमान हो जाता हूँ!

मैंने अभी अभी बताया, कि मेरा जन्म मात्र घटना नहीं हैं, एक जीवंत सजग उपस्थिति हैं, मेरा शरीर शिष्यों के सन्देश का माध्यम हैं, मेरा जीवन शिष्यों को पूर्णता की और पहुँचाने की पगडण्डी हैं, आवश्यकता इस बात की हैं कि तुम अपने आप में चैतन्य हो सको, तुम अपने आप में प्राणश्चेतनायुक्त हो सको.


तुम्हारे और मेरे जीवन का यह पहला ही परिचय नहीं हैं, मैंने तुम्हें पहली बार ही नहीं पहिचाना हैं, तुम्हारे पिछले पच्चीस जन्मों का लेखा जोखा मेरे पास हैं, तुम्हारी पिछली पच्चीस जिंदगियों का हिसाब किताब मेरे खाते में लिखा हुआ हैं, इसीलिए मैं तुमसे बहुत अच्छी तरह से परिचित हूँ और हर बार मैं तुम्हें आवाज देता हूँ.

इसीलिए तो मैं कहता हूँ, कि मैं तुमसे अलग नहीं हूँ, इसलिए तो मैं कहता हूँ, कि तुम अपनी सारी चिंताएं मुझ पर छोड़ दो, तुम तो केवल नाचो, गाओ और मस्ती में झूमते रहो, जब भी जो कुछ हो रहा हैं, उसे होने दो, मैं अपने आप ठीक समय पर तुम्हारा हाथ थाम लूँगा, मैं सही क्षण पर तुम्हारी उंगली पकड़ कर पगडण्डी पर आगे बढ़ जाऊंगा, आवश्यकता इस बात की हैं, कि तुम समाज से बगावत कर सको, जरुरत इस बात की हैं, कि तुम अपनी जिंदगी के गन्दगी भरे क्षणों के विरुद्ध विद्रोह कर सको, जरुरत इस बात की हैं, कि तुम मेरे मन की भाषा पढ़ सको, मेरी आँखों के संगीत को सुन सको, मेरे हृदय की चैतन्यता में उत्सवमय हो सको, रसमय हो सको, प्रीतिमय हो सको, और छोड़ सको, अपने जीवन के दुःख, विषाद, कष्ट, आभाव और पीडाओं को.

और मुझे विश्वास हैं, कि जिस प्रकार से सुगंध हवा में लीन हो जाती हैं, जिस प्रकार से संगीत हवा में रसमय हो जाता हैं, उसी प्रकार से तुम मेरे प्राणों में, मेरे जिंदगी की धडकनों में समां सकोगे, क्योंकि मैं एक जीवंत गुरु हूँ, एक सप्राण व्यक्तित्व हूँ, मैं तुम्हारा हूँ, और तुम्हें अपने आप में आत्मसात करने के लिए आतुर हूँ, मैं हर क्षण हर पल तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारे सामने उपस्थित हूँ

(जनवरी 1990 से उद्धृत)

सस्नेह तुम्हारा

नारायण दत्त श्रीमाली

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