साधनां पथ और काम बाधा-
जय निखिलं
मित्रों जीवन में बहुत बार ऐसा होता है कि व्यक्ति साधना तो करना चाहता है परंतु देश काल और परिस्थितियों द्वारा निर्मित माहौल के कारण व बार-बार काम भाव से ग्रस्त हो जाता है और ऐसी स्थिति में उसके द्वारा किसी भी प्रकार का मंत्र जाप करना साधना करना बिल्कुल भी संभव ही नहीं हो पाता है इस स्थिति में व्यक्ति या तो साधना करना छोड़ देता है या फिर उसे अपने जीवन में घुटन सी महसूस होने लगती है क्योंकि काम भाव का आकर्षण संसार का सबसे तीव्रतम आकर्षण होता है मित्रों पूज्य सदगुरुदेव जी ने इस समस्या का उपाय हमें पूर्व में ही काम उच्चाटन साधना के रूप में सुझाया हुआ है अतः यदि कोई इस प्रकार की समस्या से पीड़ित है तो वह इस साधना के माध्यम से अपना लक्ष्य आसानी से प्राप्त कर सकता है
नवविवाहितों को छोड़कर अगर कोई वास्तव में साधनां पथ पर आगे बढ़ना चाहे तो उसको काम उच्चाटन का आश्रय लेना चाहिए। सद्गुरुदेब ने प्रयोग दिया है इसका मैन अनुभूत भी किया है अद्भुत परिणाम प्राप्त होता है इस प्रयोग से
उस में जो लिखा है कि सन्यासी के लिए है वगैरा वो तो ठीक है लेकिन अगर काम वासना साधनां मार्ग में बाधक है तो उसको करना ही करना होगा कोई दूसरा रास्ता नहीं
उसके बाद भी व्यक्ति काम कला में पूर्ण समर्थ बना रहता है बल्कि पहले से भी अधिक समर्थ हो जाता है बस इतना फर्क पड़ता है कि जरा जरा सी चीज से वो टीन के डिब्बे के तरह गर्म और उतनी ही तीव्रता से ठंडा नहीं होता बल्कि तब वास्तव में पौरुष का अर्थ समझ आता है
काम उच्चाटन का तात्पर्य यह नहीं है की साधक नपुंसक बन जाए वरन उसका प्रभाव यह होता है कि आजकल के असभ्य एवं प्रदूषित सामाजिक वातावरण के कारण साधकों के मन-मस्तिष्क में जो कामवासना असंतुलित हो गई है वह पूर्ण रूप से संतुलित एवं नियंत्रित हो जाती है
ॐ नमो शिवाय पुष्टाय वरदाय अनंगाय उच्चाटनाय नमः ।
रुद्र सूक्त से या पंचाक्षरी मंत्र से शिवलिंग का अभिषेक करके रुद्राक्ष माला उत्तराभिमुख जप करें। सवालाख जप से 5 वर्ष इक्यावन हजार से 1 वर्ष तक निर्बाध "निष्काम" साधनां कर पाएंगे। पुस्तक में दिया विधान अलग है मैंने वो लिखा जो मैंने स्वयं किया ।
जिस किसी को धातु क्षय या किसी जाने अनजाने धातु रोग या / गुप्त रोग के कारण शरीर का क्षय हो गया हो। उन को एक शुक्र ग्रह के तांत्रोक्त मंत्र का 21 हजार या 51 हजार जप करना चाहिए।
ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः
इस से शरीर बलवान एवं वीर्यवान हो जाता है चेहरा चमकने लग जाता है। एवं चमत्कारी रूप में सारी समस्या छू मंतर हो जाती है।
जो व्यक्ति मंत्र जप भी करने में समर्थ नहीं हो उसको आयुर्वेद के शरण मैं जाना चाहिए हालांकि मंत्र का प्रभाव औषधि के प्रभाव से कहीं ज्यादा चमत्कारी और तीव्र होता है परंतु जब साधक मंत्र जप करने में समर्थ ही ना हो तब हमारे पास औषधि उपचार का मार्ग ही शेष बचता है इसके लिए हमें ऐसे व्यक्ति को स्वेत मूसली चूर्ण नित्य रात्रि दूध से एक चम्मच तथा चंद्र प्रभा वटी (रसायन योग) {किसी भी ब्रांड का} की 2-2 गोलियां सुबह शाम खाने के बाद लेना चाहिए इससे 3-4 दिन में ही उनका कायाकल्प आरम्भ हो जाता है।
व्यसन और विसंगतियों को अगर त्याग दें तो कोई भी साधनां पथ पर आगे बढ़ सकता है।