मंत्र सिद्घ होते ही प्रकट होने लगते हैं यह लक्षण
जब मंत्र, साधक के भ्रूमध्य या आज्ञा-चक्र में अग्नि- अक्षरों में लिखा दिखाई दे, तो मंत्र-सिद्ध हुआ समझाना चाहिए।
मंत्र का सीधा सम्बन्ध ध्वनि से है। ध्वनि प्रकाश, ताप, अणु-शक्ति, विधुत -शक्ति की भांति एक प्रत्यक्ष शक्ति है। मन्त्रों में नियत अक्षरों का एक खास क्रम, लय और आवर्तिता से उपयोग होता है। इसमें प्रयुक्त शब्द का निश्चित भार, रूप, आकार, शक्ति, गुण और रंग होता हैं। एक निश्चित उर्जा, फ्रिक्वेन्सि और वेवलेंथ होती हैं।
इन बारीकियों का धयान रखा जाए तो मंत्रों की मिट्टी से बनायी गई आकृति से भी उसी तरह की ध्वनी आती है। उदाहरण के लिए गीली मिट्टी से ॐ की पोली आकृति बनाई जाए और उसके एक सिरे पर फूंक मारी जाए तो ॐ की ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है जैसे पास ही कोई ओम मन्त्र का उच्चारण कर रहा हो। जप के दौरान उत्पन्न होने वाली ध्वनि एक कम्पन लाती है।
उस से सूक्ष्म ऊर्जा-गुच्छ पैदा होते है और वे ही घनीभूत होकर मन्त्र को सफल बनाते हैं। सफलता की उस प्रक्रिया पर ज्यादा कुछ कहना जल्दबाजी होग। सिर्फ उन की सफलता के लक्षणों की बारे में बताया जा सकता है। सफलता के जो लक्षण हैं उनमें कुछ इस प्रकार है। जब बिना जाप किये साधक को लगे की मंत्र-जाप स्वतः चल रहा हैं तो मंत्र की सिद्धि होनी अभिष्ट हैं।
साधक सदैव अपने इष्ट -देव की उपस्थिति अनुभव करे और उनके दिव्य-गुणों से अपने को भरा समझे तो मंत्र-सिद्ध हुआ जाने। शुद्धता, पवित्रता और चेतना का उर्ध्गमन का अनुभव करे, तो मंत्र-सिद्ध हुआ जानें मंत्र सिद्धि के पश्चात साधक की शुभ और सात्विक इच्छाए पूरी होने लगती हैं।
हम साधकों को सदा यही समझना चाहिए कि हमसे जो अच्छा काम हो रहा है, वह गुरु एवं भगवान की कृपा से ही हो रहा है क्योंकि हम तो अनादिकाल से मायाबद्ध घोर संसारी, घोर निकृष्ट, गंदे आइडियास(ideas) वाले बिलकुल गंदगी से भरे पड़े हैं। हमसे कोई अच्छा काम हो जाये, भगवान के लिए एक आँसू निकल जाय, महापुरुष के लिए, एक नाम निकल जाये मुख से, अच्छी भावना पैदा हो जाये उसके प्रति हमारी यह सब उनकी ही कृपा से हुआ ऐसा ही मानना चाहिये। अगर वे सिद्धान्त न बताते , हमको अपना प्यार न देते तो हमारी प्रवर्ति ही क्यों होती, कभी यह न सोचो की हमारा कमाल है, अन्यथा अहंकार पैदा होगा , अहंकार आया की दीनता गयी, दीनता गयी तो भक्ति का महल ढह गया। सारे दोष भर जाएंगे एक सेकंड में इसलिए कोई भी भगवत संबंधी कार्य हो जाये तो उसको यही समझना चाहिये कि गुरु कृपा है, उसी से हो रहा है ताकि अहंकार न होने पाये। अगर गुरु हमको न मिला होता, उसने हमको न समझाया होता ,उसने अपना प्यार दुलार न दिया होता, आत्मीयता न दी होती तो हम ईश्वर कि और प्रव्रत्त ही न होतें। अत: उन्ही की कृपा से सब अच्छे कार्य हो रहें है ऐसा सदा मान के चलो।
Mantra Tantra Yantra Vigyan Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimaliji
MTYV Vishwa Vidyalaya Admin
मंत्र सिद्घ होते ही प्रकट होने लगते हैं यह लक्षण
MTYV Sadhana Kendra -Sunday 28th of June 2015 01:21:25 PM