हम गुरूजी के साधक हैं .. ..हम कह रहे हैं की गुरूजी भगवान हैं तो सामने वाले को गुरूजी को भगवान मानना ही चाहिए ....ये तो हम करते है ...यहाँ शुद्ध भावना कम .. एक तरह का अहंकार ही है हमारा ..
जब हम जान रहे हैं ..कि गुरूजी की साथ वाली यात्रा ..इतनी सीधी सरल नहीं है ..कि कोई भी शामिल हो जाये ..ये हमारे सारे जन्मो के कर्मों का लेखा .जोखा ..पूर्ण कर मुक्ति देने वाली यात्रा है ....जिसकी आत्मा इस यात्रा के लिए गुरूजी के शरण को पहुंची होगी ...वही गुरूजी के पास आ सकता है ..या गुरूजी को जान सकता है ...हम कैसे सोच भी सकते हैं ..कि किसी को हमने कह दिया कि गुरूजी शिव हैं ..वो सृष्टिकर्ता हैं ..आपको शरण में जाना चाहिए ...आपका कल्याण हो जायेगा ...और वो बंदा हमारी बात पर यकीन कर ही लेगा .... सुख की आश में एक बार चला भी गया तो ....गुरूजी के पास तो बहुतों चले जाते हैं ..पर गुरूजी से जुड़ना ..है या नहीं ..गुरूजी ही तय करते हैं ...
ऐसा ही कुछ हमें उन लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए ..जो गुरूजी की निंदा करते हैं ...उनकी परिस्तिथियाँ ऐसी उत्पन्न कराई गयी हैं ..कि वो ऐसा करें ..नहीं तो सोचने वाली बात है ..कि गुरूजी जो हजारों को एक नहीं कई कई जीवनदान दे देते हैं ...उनको अपना चमत्कार दिखा कर अपनी महिमा नहीं गवा सकते थे ..जिसके इशारे से सृष्टी अपना रुख बदल देती है ..क्या ऐसा कुछ उनके सामने नहीं हो सकता था ..कि वो अपना विचार परिवर्तित करें गुरूजी के सन्दर्भ में .. हमें समझना होगा की ये सब गुरूजी की लीला है
पर हम क्या सोचते हैं ...हमारे गुरूजी के बारे में ऐसा वैसा कहा .. उसे तो सबक सिखाना पड़ेगा ....हम होते कौन हैं ?..जो हम उनको सबक सिखाएं .. क्या हमारा समर्पण गुरूजी को इतना है ..की हमारी सारी परिस्तिथियाँ इतनी बिगड़ जाएँ ..की हम दाने दाने को तरस जाएँ ..पर गुरूजी का गुणगान करते रहें ..कभी भी गुरूजी से तनिक भी शिकायत न हो ....यदि ऐसा नहीं है तो हमें किसी को कुछ कहने का अधिकार नहीं है ..हम सब साधारण इंसान हैं ...किसी भी वज़ह से पीड़ा होगी तो चीख तो निकलेगी ही ...और उसपर यदि कर्म के मारे हों तो ये चीख दूर दूर तक पहुँच जाएगी ..
हम यदि गुरु के सच्चे साधक हैं तो ऐसों के लिए हमें गुरूजी से दया मांगनी चाहिए ... जब हम किसी और के लिए निस्वार्थ प्रार्थना करते हैं तो उसपर तुरंत सुनवाई होती है ...यदि एक बार गुरूजी ने अपना रहम कर दिया ..तो क्या नहीं हो सकता है .. ऊँगली मार डाकू से ऋषि बाल्मीकि बनने में कहाँ वक़्त लगता है...बस गुरूजी की कृपा होनी चाहिए
जैसे अन्धेरा और सूर्य एक साथ नही रह सकते वैसे ही विकारों वाले हदय में निविॅकार प्रभु कैसे आयेंगे । यदि हम चाहते है कि सतगुरु हमारे हदय मे निवास करें तो विकारो को हदय से बहिष्कृत कर दो ।
जिसका हदय शुद्ध है वहा गुरूजी स्वयं निवास करते है और उनके सभी कार्य स्वयं करते है ।