सद्गुरुदेव के साथ जुड़ने के बाद से ही हमारी जीवन यात्रा बहुत ही रोमांचक हो जाती है ....जो कभी सोचा भी न होगा ...वो होने लगता है ..जो सुना भी न होगा वो दिखाई पड़ने लगता है .... पहले तो हम सोचते हैं की संयोग से हुआ ऐसा ......फिर लगता है कि हम भाग्यशाली हैं जो ऐसा हो रहा है ......धीरे धीरे पता चलता है कि ..हम तो संसार के कुछ चुनिंदे महा भाग्यशाली लोगो में हैं ..जिनके साथ ऐसा हो रहा है .. ..अंत में जब माया अपना प्रभाव हटाती है तो समझ आता है कि ये सब तो बस गुरूजी की कृपा बरस रही थी ....और कुछ नहीं ....
जब भी हम अपने को भाग्यशाली कहते हैं ...सबके मन में ये ख्याल आता है कि ..ये धन धान्य से सम्पूर्ण होंगे ..हर पारिवारिक सुख से लदे होंगे ....बिमारियों से दूर दूर तक नाता नहीं होगा ..इमोशनली कोई समस्या नहीं होगी ...आदि ...फिर इन सबके साथ अपनी तुलना कर और दुखी हो जाते हैं ..कि गुरूजी आपने तो हमें ऐसा तो कुछ दिया ही नहीं ..हम अपने को सोभाग्यशाली कैसे कहें ?
यहीं हम चुक जाते हैं समझने में ....... हम किस लायक थे और हमें क्या मिला है .....इस सच्चाई को जब हम स्वीकारते हैं ..तभी समझ पाते हैं कि हमें सद्गुरुदेव ने कैसे भाग्यशाली बना दिया ...जरूरी नहीं की ऊपर लिखी हुई हर चीज़ हमें मिली हुई हो ..गुरूजी से जुड़ने के बाद भी .. ...पर इनमें से किसी के नेगेटिव होने के कारण जो परेशानी हो सकती है ..वो या तो नहीं होती ..या उसका प्रभाव इतना कम होता है ..कि हम आसानी से उसे झेल लेते हैं .........कोई भी बिपत्ति ज्यादा देर टिक नहीं पाती ....यदि हमारे कर्म फल में है तो आती जरूर है पर गुरूजी की महिमा से वो ज्यादा हमारा नुक्सान नहीं कर पाती .... बस हमारा अपना नजरिया ही हमें तकलीफ देता है ...
एक साधक परिवार को मैं जानता हूँ ...पैसे की तंगी थी ....दोनों पति पत्नी मेहनत करते रहे बरसों से ..पर घर का किराया भी देना मुश्किल होता ...फिर गुरूजी के दर से ये जुड़े ...धीरे धीरे गुरूजी के प्यार ने इनके दिलों पे राज़ करना शुरू कर दिया ..और चमत्कार घटित होने लगा ...ऐसा नही था की उनके घर पर पैसों की बारिश होने लगी .....पर ऐसा कुछ होता गया ..कि किसी भी चीज़ की कमी न रही ...कमाई थी नहीं कुछ खास ..पर उनके घर में होने वाले पूजन में गुरूजी की फूलों से सजावट देखते ही बनती ...गुरूजी भी हमेशा विराजमान ही नज़र आते ...इतना दिया गुरूजी ने की लोगों की नज़र उठने लगी कि या तो कुछ गड़बड़ है ....या तो ये झूठ बोलते हैं ..की पैसे नहीं हैं
सारी परिस्तिथियाँ पहले जैसे ही थीं पर सारे संसाधन एक एक कर इनके घर आता चला गया किसी न किसी बहाने .. कमाई भी होने लगी ... .. पहले तो इन्हें हिचक होती ..फिर समझ आया की ये तो गुरूजी का एक तरीका है ...चीज़ें भेजने का .......कुछ समय तक इनके मैं से भी इनका मुकाबला हुआ ...अहम् घायल महसूस होता है ...यदि हमें लगता ही कि किसी चीज़ को हमने हासिल नहीं की ..वो दी गयी है .....पर जब हम गुरूजी से जुड़ने लगते हैं ..उनकी लीला समझने लगते हैं ..तो उनके तरीके भी थोड़े बहुत समझ आने लगता है कहीं से भी आये भेजने वाले तो गुरूजी ही हैं ..जो अपने भक्त की जरूरत को देख रहे हैं ........समझ आ जाता है की हम तो किसी लायक है ही नहीं कि बिना उनकी मेहर से एक निवाला भी खा सकें ..ये तो सब माया है .... .हमारे अहम् के साथ की यात्रा है जो हम अपने को बड़ा या छोटा आदमी समझा देता है ..ताकि हम उसी में फंसे रहें ...
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आमतौर पर जो भी साधक इस अध्यात्मिक रास्ते पर चल चूका है ...उनके साथ एक चीज़ बड़ी ही कॉमन रहती है ...वो कहीं न कहीं जिन्दगी के रास्ते पर दुखी रह चूका है ... कोई न कोई ऐसा सूत्र रहता है जहाँ भगवान के अलावा हमारी मदद कोई नहीं कर सकता ..और वो सूत्र ही हमें गुरूजी के पास ले जाता है ...बहुत कम साधक हैं जो सीधे अपने अध्यात्मिक विकास के लिए ही गुरूजी से जुड़े .. हमारी दुखती रग को ही हमें अपना बरदान समझना है ..क्योंकि वही तो हमें जोड़ कर रखेगा गुरूजी से ....नहीं तो हम तो तुरंत भूल जायेंगे गुरूजी को .....आज न कल गुरूजी हमें हर सांसारिक चीज़ या तो दे देते हैं या उसकी निर्थकता समझा देते हैं ..जैसे हम खुश होकर अपनी आगे की यात्रा पर ध्यान लगायें ...
गुरूजी हमें कभी न बिसरो .....न बिसरो न बिसारो दाता
गुरूजी अंतर्यामी हैं ..वो हम सभी के अंदर चलने वाले जंग को जानते हैं ..हम कहाँ खुद से लड़ रहे हैं ..और कहाँ बाहरी दुनिया से ...इसकी खबर है उनको ... हमारी अंदर छुपी कामना को भी गुरूजी जानते हैं ..हम जरूर नहीं जानते ..सोचते हैं की हम तो संतुष्ट हैं .. अचानक कुछ ऐसा हो जाता है ..की हम खुद की इच्छा जानकर हैरान हो जाते हैं ..खुद को नहीं पहचान पाते ...ये जन्मो से हमारी अतृप्त इच्छा को पूरी करने हतु गुरूजी की दया,आशीर्वाद है ..जो ऐसी परिस्तिथि बनाते हैं ..और उस परिस्तिथि में रखकर हमें अपने कर्म के हिसाब से मुक्ति देते हैं ...
हमारी अध्यात्मिक सफ़र में हमारा सबसे बड़ा दुश्मन हमारा अहंकार है ...ये तो हर किसी में है ..थोडा कम या थोडा ज्यादा ....इसकी पहचान हमें खास परिस्तिथियों में ही होती है ..वो स्तिथि गुरूजी द्वारा समय समय पर हमसे हमारी पहचान के लिए पैदा की जाती है ...
धीरे धीरे ही सही पर यदि हम गुरूजी को प्यार करते हैं तो हमारा अहंकार गलेगा ही ..अहंकार सिर्फ धन दौलत या रुतबा का ही नहीं होता ...हमारे समाज में पुरुष अपने पुरुष होने पर भी अहंकार पाल लेते हैं ..सुंदर नारी अपने सुंदर होने का अहंकार पाल लेती है .. तो कोई विशेष जात का जबकि ये सब में उनका कोई योगदान नहीं है .. भगवन ने ही देकर भेजा है ...पर ये सब इतना नेचुरल लगता है की हमें पता ही नहीं चलता की हम कुछ खास पाल रखे हैं ...
अहंकार कैसा भी हो .. नुकसान ही करता है ..थोडा सा सामने वाला का ज्यादा खुद का ....सामने वाला तो कभी कभी आपके ईगो की मार झेल रहा है ..पर हम जो खुद हर सेकण्ड इसको ढोते फिर रहे हैं ..अपने साथ ..वो हर पल जलाता है हमें ...
इससे कैसे छुटकारा मिले ..क्योंकि ये कोई वस्तु तो है नहीं की उठाकर दूर फ़ेंक दिया...इसे तो बड़े यत्न से हटाना पड़ेगा ..क्योंकि हमें इसके साथ ही रहने की आदत पड़ चुकी है ..घर वाले भी घर में शांति रहे इस कारण हमें हमारे अहंकार के साथ ही झेलते हैं .. ये कदम हमें और भी गलतफमी में रखता है . ..हमें लगता है की हम सही तो कर रहे हैं ... दुनिया ही गलत है ..
ये बिना सोचे की सामने वाल यदि झुक रहा है ..तो ये सिर्फ उसका प्यार है ..क्योंकि वो हमें खोना नहीं चाहता ..हम बार बार उसे अपने अहंकार का शिकार बनाते हैं ... इसका आभास तो तब लगता है ..जब इसके कारण हमारी कोई कीमती चीज़ खो जाती है ..चाहे वो कोई रिश्ता हो या वस्तु ..
गुरूजी ने हमें सिखाया है ..माफ़ करना ..... हम खुद को बदल सकते हैं यदि ...एक बार सोचें की हमें हमारे हर गलतियों के बाद भी गुरूजी माफ़ कर अपना प्यार देते हैं .. उसी तरह यदि किसी ने हमरे अहंकार को ललकारा और हमें गुस्सा आ भी गया ..पर थोड़ी देर बाद हम उसे यदि माफ़ कर दें ..तो सबसे ज्यादा सुकून हमें ही मिलेगा ..और बाद में जाकर प्रभावित बन्दे को . ..
यदि हम गुरूजी के सामने ये खुद से कह दें की जो भी हो हम किसी से बुरा बर्ताव नहीं करेंगे ..यकीन माने ये संभव है ...मैंने भी ऐसा कुछ कहा था खुद से ...बरसों पहले ...आज भी जंग जरी है ,..पर उस वक़्त और आजके वक़्त में मेरे ईगो लेवल में आकाश और जमीन का अंतर आ गया है ..
..गुरूजी ये सर सिर्फ आपके आगे झुके और किसी के आगे नहीं .. यानि गुरूजी एक और भष्मासुर का वरदान दें .... ये भी तो अहंकार ही मांग रहे हैं .. मैं एक अहंकारी व्यक्ति ..कि मैं दुनिया के पीछे नहीं ..दुनिया मेरे पीछे आएगी ... आज गुरूजी के दर ने ऐसा झुकाया ..कि हर किसी से सर झुका कर ही मिलना चाहती ..हर किसी से प्यार करना सिखाया गुरूजी ने झुककर ही गुरूजी को पा सकते हो ..बता दिया गया .... हर बाधा पार करने के बाद अवार्ड के रूप में अंदरूनी शांति ...
दरअसल इस कलयुग में हम अपना प्यार दिखाते भी डरते हैं ..हम अपने परिवार से इस डर से नहीं बताते की हम कितना प्यार करते हैं ..या कोई दोस्त अलग हो गया ..जिसे हर वक़्त मिस करते हैं पर उसे नहीं बताते ..हमें लगता है की इससे सामने वाला हमारी इज्ज़त कम कर देगा ...या फिर हमें कमजोर समझ इस्तेमाल करेगा ..
अब जब हम अपने अहम को अपने प्यार के बीच लायेंगे तो फिर प्यार कहाँ रहा ....वो तो दुनियादारी हो गया ..प्यार तो झुक कर ही लिया जा सकता है ..
हम इंसान हैं ..मान लिया की हमें गुस्सा आ जाता है ..पर थोड़ी देर के बाद हम शांत होकर चीजों को फिर से वैसे ही कर सकते हैं .. बस अपने अंदर सामने वाले के लिए प्यार लाना जरूरी है .... जिससे प्यार है उससे माफ़ी मांगने में कैसी हिचक ..आखिर वो तो हमारा ही है ..यदि हम बिना मतलब के किसी को प्यार नहीं कर सकते ..तो गुरूजी से कैसे उम्मीद करते हैं .. वो हमपर अपना प्यार लुटाते जाये .... हमारी हर सांसारिक जरूरतों को पूरी करके... जबकि उन्हें हम कुछ दे ही नहीं सकते
हमारे अहंम को कोई मिटा सकता है तो वो है प्यार .. बिना शर्त का प्यार गुरूजी हम सबके अंदर उस दिव्य अनुभूति यानि प्यार को प्रवाहित करें ..