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गुरुदेव के श्रीचरणों में प्रार्थना है...

MTYV Sadhana Kendra -
Friday 15th of May 2015 12:28:40 PM


ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम :
हे समस्त जग के उपास्य देव,हे अंतर्यामी,हे असीम ज्ञान के प्रदाता गुरुदेव ! मुझे अपनी कृपा कटाक्ष प्रदान करे,मुझे नहीं मालूम के मैं आपकी वंदना, आपकी पूजा कैसे करू ? मेरे अंदर इतना भी सामर्थ नहीं है के मैं साधना संपन्न कर सकू ! मैं परम दोषयुक्त हूँ,मेरी समस्त इन्द्रिया अत्यधिक शक्तिशाली और मेरे ऊपर व्याप्त है,जिसके कारन मैं अत्यधिक अशांत हो गया हूँ,! हे गुरुवर! मुझे शांति प्रदान कर अपनी भक्ति दीजिये,जिस से की मैं अपने
मैं अपने तन को आपकी सेवा में लगा सकू,और अपने तन को आपकी प्रेमसुधा में निमग्न कर सकू...........
मेरी/हमारी इच्छा है के सदैव आपके "श्रीचरणों" को चकोर की भांति निहारता रहू,! हे प्रेम सिंधु! हमारी प्रार्थना को स्वीकार कर ले........
मैं जानता हूँ की मेरा समर्पण सच्चा नहीं है,मेरा ह्रदय अत्यधिक कठोर पाषाण वत है,मैं नहीं जानता के इसे कैसे कोमल बनाऊ ,जिस से यह आपकी प्रार्थना कर सके,और आप इसमें विराजमान हो सके!
मैं तो आपकी शरण में आ गया हूँ,अब आप ही जाने,के यह कैसे संभव हो सकेगा
के मेरी आँखों में व्यर्थ के आंसू न टपके,अपितु आँखों से आंसू आये भी,तो वह आंसू आपकी ही याद के प्रेम- आँशु हो,मैं मिथ्या रूदन नहीं करना चाहता...
और अब आपकी शरण में आ ही गया हूँ,अब आप ही जाने के मेरे द्वारा आपको क्या कार्य कराना है, और कैसे कराना है,.....
क्योंकि
हे स्नेह और करुणा के आधार गुरुदेव ! आप ही सच्चिदानंद स्वरुप है,आप ही सर्व व्यापक है,आप ही सर्वज्ञ है,! हे गुरुदेव!आप ही सबके आदि और अंत है,मैं आपकी शरण में हूँ,,हे गुरुदेव मुझे साहस ,शांति,करुणा,दया,व अपने प्रकाश से आलोकित करे,जिस से की मुझमे उदारता,श्रद्धा,प्रेम और भक्ति प्राप्त हो सके,
मैं अहंकार,द्वेष,काम,क्रोध,लोभ से रहित हो कर आपके दर्शन कर सकू,और अपने अधरों पर प्रतिपल,आपका नाम अंकित कर सकू,मैं तो आपका अकिंचन सेवक हूँ,याचक बन कर आपके द्वार पर आया हूँ,मुझे अपनी सबल भुजाओं का सहारा दे कर अपनी शरण में ले लें....
यदि आपकी कृपा हो जाये,तो आपका यह सेवक असंभव को भी संभव बना सकता है,मेरा अंत:करण,मेरा रोम रोम सिर्फ आपका नाम ही स्मरण करता रहे
और आपके श्रीचरणों में सेवारत रहे,-मेरी एक मात्र यही इच्छा है,यही प्रार्थना है,मेरी इन इच्छाओ को सबल बना दे,जिस से की मैं सांसारिक प्रलोभनों का संवरण कर सकु,और इन्द्रिय जनित इच्छाओ का दमन कर सकू,मेरी समस्त बुराइओं का नाश हो,जिस से आपके सम्मुख आत्मपर्ण को सत्य बना सकू,
! हे प्रभु! मेरे ह्रदय में आसीन हो जाये,और एक क्षण के लिए भी मुझसे दूर न जाये,मेरे रोम रोम को अपने कार्य में ले कर कृतार्थ करे....
(जो दिव्य साधक है, और जो मेरे जैसे अज्ञानी है उनकी तरफ से गुरुदेव के श्रीचरणों में प्रार्थना है...

इसे नोट कर के रखे हमेशा आप सुबह शाम गुरु पूजन या अन्य कोई भी साधना वो पूरा समर्पण युक्त होते हूए अंश्रु पूरित नेत्र युक्त होते होए इसे रीड करे और अनुभव करे की सद्गुरु सदा ही आप के पास है आप के सरे कर्मो को सही दिशा दे रहे है | आप में शिष्यता आये और पूण्य बन सके यही आशा है | एस भावना से की गई साधना उपासना में यदि कोई गलती भी हो गई हो तो उस का कोई दुस्प्रभाव आप के जीवन में नहीं आता है , गुरु देव हमेशा ही आप की सफ़लता के लिए प्रयत्न शील है आप की यही समर्पण आप को गुरुमे बना सकता है | आप के कर्म है उस की दुःख और सुख में खुद सहभागी गुरु को बनाये उन से हर गलती को छुपाये नहीं बल्कि उस का समन करने की कोसिस करेॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम :
हे समस्त जग के उपास्य देव,हे अंतर्यामी,हे असीम ज्ञान के प्रदाता गुरुदेव ! मुझे अपनी कृपा कटाक्ष प्रदान करे,मुझे नहीं मालूम के मैं आपकी वंदना, आपकी पूजा कैसे करू ? मेरे अंदर इतना भी सामर्थ नहीं है के मैं साधना संपन्न कर सकू ! मैं परम दोषयुक्त हूँ,मेरी समस्त इन्द्रिया अत्यधिक शक्तिशाली और मेरे ऊपर व्याप्त है,जिसके कारन मैं अत्यधिक अशांत हो गया हूँ,! हे गुरुवर! मुझे शांति प्रदान कर अपनी भक्ति दीजिये,जिस से की मैं अपने
मैं अपने तन को आपकी सेवा में लगा सकू,और अपने तन को आपकी प्रेमसुधा में निमग्न कर सकू...........
मेरी/हमारी इच्छा है के सदैव आपके "श्रीचरणों" को चकोर की भांति निहारता रहू,! हे प्रेम सिंधु! हमारी प्रार्थना को स्वीकार कर ले........
मैं जानता हूँ की मेरा समर्पण सच्चा नहीं है,मेरा ह्रदय अत्यधिक कठोर पाषाण वत है,मैं नहीं जानता के इसे कैसे कोमल बनाऊ ,जिस से यह आपकी प्रार्थना कर सके,और आप इसमें विराजमान हो सके!
मैं तो आपकी शरण में आ गया हूँ,अब आप ही जाने,के यह कैसे संभव हो सकेगा
के मेरी आँखों में व्यर्थ के आंसू न टपके,अपितु आँखों से आंसू आये भी,तो वह आंसू आपकी ही याद के प्रेम- आँशु हो,मैं मिथ्या रूदन नहीं करना चाहता...
और अब आपकी शरण में आ ही गया हूँ,अब आप ही जाने के मेरे द्वारा आपको क्या कार्य कराना है, और कैसे कराना है,.....
क्योंकि
हे स्नेह और करुणा के आधार गुरुदेव ! आप ही सच्चिदानंद स्वरुप है,आप ही सर्व व्यापक है,आप ही सर्वज्ञ है,! हे गुरुदेव!आप ही सबके आदि और अंत है,मैं आपकी शरण में हूँ,,हे गुरुदेव मुझे साहस ,शांति,करुणा,दया,व अपने प्रकाश से आलोकित करे,जिस से की मुझमे उदारता,श्रद्धा,प्रेम और भक्ति प्राप्त हो सके,
मैं अहंकार,द्वेष,काम,क्रोध,लोभ से रहित हो कर आपके दर्शन कर सकू,और अपने अधरों पर प्रतिपल,आपका नाम अंकित कर सकू,मैं तो आपका अकिंचन सेवक हूँ,याचक बन कर आपके द्वार पर आया हूँ,मुझे अपनी सबल भुजाओं का सहारा दे कर अपनी शरण में ले लें....
यदि आपकी कृपा हो जाये,तो आपका यह सेवक असंभव को भी संभव बना सकता है,मेरा अंत:करण,मेरा रोम रोम सिर्फ आपका नाम ही स्मरण करता रहे
और आपके श्रीचरणों में सेवारत रहे,-मेरी एक मात्र यही इच्छा है,यही प्रार्थना है,मेरी इन इच्छाओ को सबल बना दे,जिस से की मैं सांसारिक प्रलोभनों का संवरण कर सकु,और इन्द्रिय जनित इच्छाओ का दमन कर सकू,मेरी समस्त बुराइओं का नाश हो,जिस से आपके सम्मुख आत्मपर्ण को सत्य बना सकू,
! हे प्रभु! मेरे ह्रदय में आसीन हो जाये,और एक क्षण के लिए भी मुझसे दूर न जाये,मेरे रोम रोम को अपने कार्य में ले कर कृतार्थ करे....
(जो दिव्य साधक है, और जो मेरे जैसे अज्ञानी है उनकी तरफ से गुरुदेव के श्रीचरणों में प्रार्थना है...

इसे नोट कर के रखे हमेशा आप सुबह शाम गुरु पूजन या अन्य कोई भी साधना वो पूरा समर्पण युक्त होते हूए अंश्रु पूरित नेत्र युक्त होते होए इसे रीड करे और अनुभव करे की सद्गुरु सदा ही आप के पास है आप के सरे कर्मो को सही दिशा दे रहे है | आप में शिष्यता आये और पूण्य बन सके यही आशा है | एस भावना से की गई साधना उपासना में यदि कोई गलती भी हो गई हो तो उस का कोई दुस्प्रभाव आप के जीवन में नहीं आता है , गुरु देव हमेशा ही आप की सफ़लता के लिए प्रयत्न शील है आप की यही समर्पण आप को गुरुमे बना सकता है | आप के कर्म है उस की दुःख और सुख में खुद सहभागी गुरु को बनाये उन से हर गलती को छुपाये नहीं बल्कि उस का समन करने की कोसिस करे

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