जीवन में कभी भी यह विचार न करो, कि आप अकेले हैं, आप को भले ही कोई साथ दिखे या न दिखे सद्गुरुदेव जी सदैव आपके साथ थे, आपके साथ हैं, और आपके साथ सदैव रहेंगे चाहें आप रहो या न रहो ।
बस यदि किसी बात की कमी है तो मात्र समर्पण की, बस एक बार ह्रदय से कहकर देखो......हे सद्गुरुदेव जी मैं आपका था आपका हूँ और आपका ही रहूँगा
आप देखिए कि कैसे सद्गुरुदेव जी आपको गोद में उठा लेंगे, कैसे आपको कभी भी अकेलापन नहीं महसूस होगा, आप अकेले भी रहना चाहोगे तब भी सभी आपके पास ही रहेंगे ।
जो भी बात, जो भी इच्छा हो, जो भी समस्या हो वह सद्गुरुदेव जी जी से कहो,
मैने कहा था कि कोई हम पर नजर रखे या न रखे किंतु सद्गुरुदेव जी की नजर सदैव हम पर रहती है, वैसे ही कोई साथ दे न दे सद्गुरुदेव जी सदैव आपका साथ देंगे ।
अब कुछ लोग कहेंगे कि फिर तो सद्गुरुदेव जी गलत कार्य में भी साथ देंगे, मैं यही कहूँगा कि गलत कार्य में साथ देंगे या नहीं देंगे मुझे नहीं पता किंतु इतना विशवास से कह सकता हूँ, आपको गलत मार्ग की ओर जाने ही नहीं देंगे ।
बस सद्गुरुदेव जी की ओर समर्पित होकर देखो
सद्गुरुदेव जी को याद रखेंगे..........
शरीर, मन और आत्मा तीनों पर नियंत्रण से ईश्वरीय शांति प्राप्त होती है। गोपियों ने कृष्ण की कृपा से तीनों पर नियंत्रण कर लिया था। शरीर उनका दैनंदिन सांसारिक कार्य करता था और आत्मा उनकी कृष्ण के प्रेम में लिप्त थी। मन को उन्होंने नियंत्रित कर लिया था, इसीलिए कर्म करते हुए भी आत्मा से कृष्ण की भक्ति में निरत रहती थीं। हमें भी गोपियों के समान ही कर्म करते हुए अपनी आत्मा को सद्गुरुदेव जी के प्रेम से जोड़ना है
सामान्यतः साधक तीन तरह के दिखाई देते हैं। पहले वे जो हमेशा दूसरों की शिकायत ही करते रहते हैं कि ऐसा नहीं हुआ, वैसा नहीं हुआ, यह होना चाहिए, वह होना चाहिए आदि-आदि। दूसरे वैसेसाधक होते हैं जो अनुकूल या प्रतिकूल हर स्थिति में प्रसन्न रहते हैं।
जो कुछ भी उन्हें उपलब्ध होता है, उसी में संतुष्ट रहते हैं। तीसरे प्रकार के साधक मानो हमेशा दु:खी रहने के लिए ही जीवित रहते हैं, उन्हें हर चीज से दु:ख पहुंचता है। कोई भी व्यक्ति, वस्तु या परस्थिति उन्हें सुखी कर पाने में सक्षम नहीं होते।
सच कहिए तो लगता है कि इस संसार को उक्त तीनों परिस्थितियों ने ही ढक रखा है और लोग उन्हीं परिस्थितियों के चश्मे से संसार और संसार के रचयिता को देखा करते हैं। वास्तव में यह संसार अरूप परमात्मा का ही साकार रूप है। यह दुनिया अदृश्य सत्ता की काया और अबोल का बोल है।
जैसे नदी को पार करने के लिए जल में उतरना पड़ता है। वैसे ही सांसारिक परिस्थितियों की सरिता को पार करने के लिए उसमें उतरना पड़ता है और पार उतरने की युक्ति जानने के लिए गुरु के पास जाना पड़ता है। गुरु से ही परिस्थितियों की ओट में छिपी वास्तविकता का बोध होता है। साकार समस्याओं के मूल में अवस्थित अरूप परमात्मा का साक्षात्कार होता है।
जो साधक गुरु कृपा से प्राप्त युक्ति का इस्तेमाल करता है, वह इस किनारे से उस किनारे तक की यात्रा को सुरक्षित रूप से पार करने में सफल होता है। भवजल से भरी नदी को पार करने का आनंद तैराक साधक को ही मिलता है और नाव में बैठे सामान्य साधक भी गुरु कृपा का सहारा ले सांसारिक समस्याओं के भोगी होते हुए भी उसे पार करने में सफल हो जाते हैं।
किंतु एक नदी का सहज साधक होता है और दूसरा उस नदी के मध्य से इसलिए गुजरता है कि वह तट पर ठहरे लोगों को बता सके कि उस पार जाने का सरल मार्ग जल तरंगों के बीच से होकर किस तरफ से गया है। जो नाव से नदी पार करते हैं, वे भक्त होते हैं और जो नदी के जल में उतरकर उसे पार कर पहुंचते हैं, वे कर्मयोगी होते हैं।
साधारण साधक जीवन में तीन चीजें ही करता है शिकायत, प्रसन्नता और शोक। वह जीवन में दुख आता है तब शिकायत करता है, विलाप करता है, शोक करता है। जब सुख आता है तो धन्यवाद नहीं करता, कहता है कि यह मेरी विजय है। सद्गुरु को इन्हीं चीजों ने ढांप दिया है, इसी वजह से आप सद्गुरु से दूर हो गये हैं।