किसी भी साधना मे पूर्ण सफलता प्राप्ति के गोपनीय सूत्र
साधना मे सफलता :
आइये अब एक एक point को विस्तार से देखते हैं। निम्न जानकारी मेरे ज्ञान (जो की बहुत कम है) के अनुसार है, वरिष्ठ भाइयों से अनुरोध है की किसी भी प्रकार की गलती दिखने पर क्षमा करें और तत्काल मार्गदर्शन करें।
1. अपने सारे ज्ञात अज्ञात पाप, दोष, गलतियाँ, एक कागज पर लिख कर गुरु यंत्र के नीचे रख दें, गुरुदेव से प्रार्थना करें की उनके चरणों मे आप अपने जीवन के सारे पाप और दोष समर्पित कर रहे हैं और हमारे प्राणाधार इन सभी भूलों को क्षमा कर हमे दोषमुक्त कर साधना मे सफलता प्रदान करें। सर्व दोष निवारक मंत्र का जप 3 माला प्रति दिन के हिसाब से 11 दिन तक करना है, इसके साथ 16 माला गुरुमंत्र भी प्रतिदिन होना आवश्यक है। सर्व दोष निवारक मंत्र इस प्रकार है....
ॐ तत्सवितुर्वरेणियम सर्व दोष पापान निवृत्तय धियो योनः प्रचोदयात
2. किसी भी साधना से पूर्व सिद्धि फल को काले तिल की ढेरी पर स्थापित करके " वम् " मंत्र की 3 मालाएँ करें। फिर मूल साधना करें। और साधना समाप्ती पर सिद्धि फल को भी अन्य सामग्री के साथ विसर्जित कर दें। सिद्धि फल आसानी से प्राप्त हो जाता है। इस छोटे से फल के विषय मे क्या कहें, इसका तो नाम ही है "सिद्धि" फल। सिद्धि फल के 2 चित्र यहाँ दिये जा रहे हैं।
3. जैसा की लिखा है, निराशा को त्यागना ही सफलता की पहली सीढ़ी है। सफलता या असफलता का चिंतन छोड़ के मात्र साधानमय बने रहना ही आपको सफलता की ओर ले जाएगा। एक बार सफलता न मिले तो बार बार प्रयास करें, अपनी साधना, मंत्र और विधि पे पूर्ण विश्वास रखें।
4. साधना काल मे या उसके बाद भी अपनी की जा रही साधना की चर्चा करना उचित नहीं है। परवीन जी का एक शेर है की....
राह मे ही मंज़िलों का जिक्र मत छेड़ो परवीन
मंज़िलों ने सुन लिया तो और दूर हो जाएंगी
साधना मंत्र यदि गुरुमुख से प्राप्त हो तो सफलता का वरदान तो अपने आप प्राप्त हो जाता है, साथ ही साथ उसके उतार चढ़ाव (rythm) और लय का भी ज्ञान हो जाता है। आपने CDs मे देखा होगा सदगुरुदेव सदेव साधना मंत्र स्वयं 3 बार बोल कर देते थे। अब यदि ये किसी प्रकार संभव ना हो पाये तो गुरुदेव के प्राण प्रतिष्ठित चित्र के सामने मूल मंत्र को किसी कागज पर लिख के रख लें, सदगुरुदेव से प्रार्थना करें की वो आपको मंत्र एवं साधना मे सफलता प्रदान करें और फिर उस कागज को उठाकर उसी प्रकार मंत्र पढें जैसे की स्वयं सदगुरुदेव आपको ये मंत्र दे रहे हैं।
5. गुरु कवच का पाठ तो अति आवश्यक है किसी भी प्रकार की साधना मे। इस विषय मे विस्तार से एक article तंत्र कौमुदी के तीसरे अंक "गुह्य एवं अज्ञात तंत्र महाविशेषांक" मे दिया गया है। साधना से पूर्व और हो सके तो साधना के बाद भी इसका मात्र एक बार पाठ करने से सारी विपदाएँ दूर हो जाती हैं।
6. तंत्र साधना मे सफलता के लिए तंत्र साफल्य मंत्र का प्रयोग करें, यह मंत्र आपको "तंत्र रहस्य" नामक CD मे स्वयं सदगुरुदेव की ओजस्वी वाणी मे मिल जाएगा। मंत्र को यहाँ लिखा तो जा सकता है परंतु जैसा की सद्गुरुदेव ने CD मे कहा है, यदि तंत्र साफल्य मंत्र स्वयं सद्गुरुदेव की दिव्य वाणी मे बार बार सुना जाए तो इससे उत्तम और क्या हो सकता है, आप प्रयास कर इस अद्भुत CD को प्राप्त करें जो की जीवन की एक अमूल्य धरोहर है।
7. तंत्र साधना मे सफलता के लिए साधना से पूर्व और साधना के बाद मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए 5 साफल्य मुद्राएँ प्रदर्शित करनी चाहिए। एक एक मुद्रा को आप 10 सेकंड से लेकर 2 मिनट तक भी प्रदर्शित करें तो पर्याप्त हैं, जैसी आपकी अनुकूलता हो। ये 5 साफल्य मुद्राएँ हैं.... दंड, मत्स्य, शंख, अभय और हृदय। इन पांचों मुद्राओं के प्रदर्शन का विवरण भी उपरोक्त बताई गयी CD से ही मिल जाएगा। हमारे तीनों प्रिय भाई दिन रात की मेहनत से इस प्रयास मे हैं की जल्दी ही इस प्रकार की मुद्राओं एवं अन्य विधियों के photos/videos जल्द से जल्द website पर लगाए जाएँ जिससे की सभी गुरु भाई बहन लाभ ले सकें। इन पाँच साफल्य मुद्राओं के चित्र एवं जप समर्पण के लिए योनी मुद्रा का चित्र यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ। मुद्राओं का भला क्या महत्व है ये समझाने के लिए
8. साधना से पूर्व और बाद मे गुरुमंत्र की एक माला होना ही चाहिए, जो पूजन, विनियोग एवं ध्यान साधना से पहले किया जाता है वह मूल मंत्र के जाप के बाद भी करना चाहिए। यदि साधना से पूर्व एवं साधना के पश्चात गुरुमंत्र का कम से कम लघु अनुष्ठान सम्पन्न कर लिया जाये तो सफलता निश्चित हो जाती है।
9. न्यास का महत्व क्या है इस विषय मे एक blog post अलग से दी गयी है, यहाँ कुछ विशिष्ट प्रकार के न्यास का जिक्र किया गया है जो की सर्वथा गोपनीय ही रखा गया है। पत्रिका के पुराने अंक मे से मुझे ये प्रक्रिया मिली थी जो की आपके समक्ष जरा विस्तार से समझाने का प्रयास कर रहा हूँ।
अंगीभूत न्यास :
साधना मे केवल मंत्र जप से ही काम नहीं चलता, उसके लिए "अंगीभूत न्यास" आवश्यक है, यह गोपनीय रहस्य है, और गुरु भी आसानी से इन रहस्यों को शिष्य के सामने व्यक्त नहीं करते। प्रत्येक साधना मे मूल मंत्र होता है, और उस मूल मंत्र के माध्यम से अपने शरीर मे जिस भी देवी देवता की साधना की जाती है, उसके स्वरूप को समाहित किया जाता है, पूरे शरीर मे 24 केंद्र बिन्दु हैं, इनमे प्रत्येक केंद्र बिन्दु को स्पष्ट करते हुए मूल मंत्र का उच्चारण करने से वह साधनात्मक इष्ट साधक के शरीर मे समाहित होता है, और निश्चय ही सफलता प्रदान करता है, ये 24 केंद्र बिन्दु हैं ....
2 चरण (पैर के पंजे), 2 पैर, 2 घुटने, 2 जंघाएँ, 1 नाभी, 1 उदर, 1 हृदयस्थल, 2 वक्ष, 2 भुजाएँ, 1 ग्रीवा (गला, neck), 1 मुख, 2 नासिका पुट, 2 नेत्र, 2 कर्ण, 1 सिर
याद रखें की यह विलोम रुपेन क्रम है अर्थात नीचे से ऊपर की तरफ जाना है, मूल मंत्र का जाप करते हुए अपने हाथों की उँगलियों से शरीर मे ऊपर बताए गए 24 केन्द्रों को छूएँ। एक चरण को छू कर एक बार मंत्र पढ़ें, फिर दूसरे चरण को छू कर दूसरी बार मंत्र पढ़ें इस प्रकार शरीर के 24 केन्द्रों मे संबन्धित देवी/देवता को शरीर मे समाहित करें।
प्रायश्चित न्यास :
जैसा की नाम ही है, यह प्रायश्चित की क्रिया है, यह न्यास भी एक अति आवश्यक और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस न्यास द्वारा साधना संबंधी सारे दोषों एवं गलतियों का शमन होता है। इसके लिए मूल मंत्र के प्रत्येक अक्षर को बीज मानते हुए, एक एक अक्षर का 108 बार उच्चारण करना चाहिए, यह क्रिया साधना काल मे पहले दिन ही कर लेनी चाहिए। इससे प्रायश्चित न्यास सम्पन्न हो जाता है। इस प्रक्रिया द्वारा दोषों का शमन हो जाने से आगे के साधना के दिवसों मे जाप करते समय अशुद्धि या त्रुटि हो भी जाए तो न्यूनता नहीं रह पाती है।
अब यहाँ एक और बड़ा सवाल ये उत्पन्न होता है की मंत्र मे अक्षर कैसे गिने जाएँ, तो भाइयो और बहेनों इस विषय मे मेरी अभी कुछ शोध बाकी है। जितना मैं समझ पाया हूँ उतना यहाँ लिख देता हूँ, बाकी विस्तार मे इस विषय को किसी अन्य पोस्ट मे वरिष्ठ भाइयों के निर्देशन मे चर्चा करेंगे।
Edited : अभी हाल ही मे आरिफ भैया के कमेंट से कुछ और तथ्य साफ हुए हैं जिसकी वजह से इस लेख मे जरा सुधार कर रहा हूँ।
मंत्र : ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
यहाँ ॐ एक अक्षर हो गया, प एक और अक्षर हो गया, फिर र, म, त, त, वा, य, ना, रा, य, णा, य, इसी प्रकार आगे के अक्षरों का भी प्रत्येक अक्षर के हिसाब से 108 बार जप होना आवश्यक है।
कोई भी अक्षर यदि आधा हो तो उस अक्षर को पूरा मान कर उसकी भी एक माला करनी चाहिए । जैसे की गुरुभ्यो शब्द मे गु, रु, भ, यो इन सभी अक्षरों की एक एक माला जप होना चाहिए।
अक्षर मे लगी मात्रा को भी अक्षर के साथ जोड़ कर एक ही अक्षर माना जाता है, जैसे रा, गु, रू आदि।
यहाँ कुछ विशेष बात हैं जिनका ध्यान रखना है जैसे की .....
किसी भी प्रकार के बीज मंत्रों को एक ही अक्षर माना जाता है जैसे ह्रीं श्रीं आदि, एक उदाहरण लेते हैं....
मंत्र : ॐ ह्रीं मम प्राण देह रॉम प्रति रॉम .....
यहाँ ॐ, ह्रीं, म, म, प, रा, ण, दे, ह, रो, म, प, र, ति, रो, म इसी प्रकार आगे बढ़ते जाना है।
दीपनी क्रिया :
उपरोक्त दोनों क्रियाओं की भांति यह दीपनी क्रिया भी एक अति आवश्यक और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इससे शरीर मे दीपन हो जाता है, प्रकाश फैल जाता है, और प्राण अग्नि चैतन्य हो जाती है। फलस्वरूप उस चैतन्य प्राण अग्नि मे समस्त दोष और न्यूनताएँ जल कर राख़ हो जाती हैं, साथ ही साथ मंत्र खुद दीपित हो जाता है। मंत्र उत्कीलन एक पृथक और जटिल विषय है, उसका विधान भी आसानी से नहीं मिलता, उस जटिल प्रक्रिया की जगह यदि ये सरल सी प्रक्रिया कर ली जाये तो भी काफी अनुकूलता हो जाती है।
दीपनी क्रिया मे मूल मंत्र को माला के एक ही मनके पे सीधा और उल्टा अर्थात लोम विलोम गति से पढ़ते हुए एक माला मंत्र जप करना चाहिए। जैसे की...
ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः नमः गुरुभ्यो नारायणाय परमतत्वाय ॐ
इस प्रकार माला के एक ही मनके पे उपरोक्त (सीधा उल्टा) मंत्र पढ़ के अगले मनके पर जाएँ।
पत्रिका मे छपे "24 दिनो का चमत्कार" नामक लेख मे आगे सदगुरुदेव कहते हैं की "ये तीनों प्रक्रियाएँ किसी भी प्रकार की साधना मे आवश्यक होती हैं। यदि संभव हो तो इन तीनों प्रक्रियाओं को साधना काल मे प्रतिदिन करना चाहिए पर यदि ये संभव न हो तो कम से कम 1, 11 और 21वें दिन तो करना ही चाहिए। किसी भी प्रकार की साधना को मात्र 24 दिनो मे सिद्ध किया जा सकता है।"
इन तीनों विधानों को किसी भी प्रकार की साधना चाहे वह मंत्र/तंत्र साधना हो या साबर साधना आप कर सकते हैं, साबर मंत्र कीलित नहीं होते, और सामान्य भाषा मे होने के कारण अक्सर बड़े बड़े मंत्र होते हैं इसलिए इन क्रियाओं को करने मे लंबा समय लग सकता है इस बात का ध्यान रखें। ये तीनों क्रियाएँ मूल साधना से पूर्व ही करना है।
यह सब के सब गोपनीय सूत्र हैं और सहज ही प्राप्त नहीं होते आप भी इन सूत्रों को अपना कर देखें, सफलता दौड़ती हुई चली आएगी।
इतना बड़ा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद, मेरा यकीन मानिये इस लेख को इससे छोटा नहीं किया जा सकता था वरना हर एक प्रक्रिया पे बहोत से सवाल उत्पन्न हो जाते।