तुम मुझसे न कभी अलग थे और ना ही हो सकते हो ! दीपक की लौ से प्रकाश को अलग नहीं किया जा सकता और ना ही किया जा सकता है पृथक सूर्य की किरणों को सूर्य से ही ! तुम तो मेरी किरणें हो, मेरा प्रकाश हो, मेरा सृजन हो, मेरी कृति हो, मेरी कल्पना हो, तुमसे भला मैं कैसे अलग हो सकता हूँ
वंदे बोधमयं नित्यम गुरुम शंकर रुपिनम
यमा श्रितो हि वक्रोपि चन्द्रः सर्वत्र वन्दते
गुरु ब्रह्म गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरः
गुरु साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः
अखंड मंडला कारम व्याप्तं ये चराचरम
तद पदम दर्शितम ये तस्मै श्री गुरुवे नमः
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञान्नंजन श्लाक्या
चक्षु उन्मिलितम ये तस्मै श्री गुरुवे नमः...