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जानिए नवरात्र से जुड़े तथ्य

जानिए नवरात्र से जुड़े तथ्य

" नवरात्र या नवरात्रि " 
जानिए नवरात्र से जुड़े तथ्य ...

संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। 
नौ रात्रियों समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने से यह शब्द पुलिंग रूप ' नवरात्र ' कहना उचित है।

पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल मे एक साल की चार संधियाँ हैं। 
उनमे मार्च व सितंबर माह मे पड़ने वाली संधियों मे साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। 
इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। 
दिन और रात के तापमान मे अंतर के कारण , ऋतु संधियों मे प्रायः शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, 
दरअसल, इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता है। 
आयुर्वेद के अनुसार इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ मे दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण मे रोगाणु ... जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं।

सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है। 
नवरात्र के विशेष काल मे देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण मे अपनाने गए संयम और अनुशासन, तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं।

नवरात्र का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक संबंध इन नौ से सीधा जुड़ा है ...

- हमारे शरीर म 9 इंद्रियाँ हैं -
आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा, वाक्, मन, बुद्धि, आत्मा।

- नौ ग्रह हैं जो हमारे सभी शुभ-अशुभ के कारक होते हैं -
बुध, शुक्र, चंद्र, बृहस्पति, सूर्य, मंगल, केतु, शनि, राहु।

- नौ उपनिषद हैं -
ईश, केन, कठ, प्रश्न, मूंडक, मांडूक्य, एतरेय, तैतिरीय, श्वेताश्वतर।

- नवदुर्गा यानी 9 देवियाँ हैं -
शैलपुत्री, ब्रम्हचारिणी, चंद्रघंटा, कुशमांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्री, महागौरी, सिद्धरात्री।

शरीर और आत्मा के सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। 
इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।

सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, 
साफ सुथरे शरीर मे शुध्द बुद्धि, 
उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, 
कर्मों से सच्चरित्रता और 
क्रमश: मन शुध्द होता है। 
स्वच्छ मन मंदिर मे ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।

नवरात्र मे निम्न आहार को अधिक महत्व दिया गया है , 
जिसका सीधा सीधा संबंध हमारे स्वास्थ और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बड़ाने के लिए ही है -

1. कुट्टू - शैल पुत्री 
2. दूध दही - ब्रह्म चारिणी 
3. चौलाई - चंद्रघंटा
4. पेठा - कूष्माण्डा
5. श्यामक चावल - स्कन्दमाता
6. हरी तरकारी - कात्यायनी
7. काली मिर्च व तुलसी - कालरात्रि
8. साबूदाना - महागौरी
9. आंवला - सिध्दीदात्री !

अब जानते हैं कि नवरात्र को ' नवरात्र ' ही क्यूँ कहते हैं ?

क्योंकि ' रात्रि ' शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। 
भारत के प्राचीन ऋषि मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है। 
यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात मे ही मनाने की परंपरा है।

यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता , जैसे नवदिन या शिवदिन :)

दिन मे आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी ... किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है।
इसके पीछे ध्वनि प्रदूषण के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन मे सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं। 
रेडियो इस बात का जीता जागता उदाहरण है। 
कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है , जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है।

मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य मे समझने और समझाने का प्रयत्न किया। 
रात्रि मे प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं। 
आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है। 
हमारे ऋषि मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।

इसी वैज्ञानिक सिद्धांत के आधार पर मंत्र जप की विचार तरंगों में भी दिन के समय अवरोध रहता है ,
इसीलिए ऋषि मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है।

इसी तथ्य को ध्यान मे रखते हुए , साधक गण रात्रि मे संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं , 
उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि , उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य पूर्ण होती है।

सामान्यजन , दिन मे ही पूजा पाठ निपटा लेते हैं , 
जबकि एक साधक , इस अवसर की महत्ता जानता है और ध्यान , मंत्र जप आदि के लिए रात्रि का समय ही चुनता है।

नवरात्र से नवग्रहों का संबंध भी है ...


नवग्रह मे कोई भी ग्रह अनिष्ट फल देने जा रहा हो जो शक्ति उपासना करने से विशेष लाभ मिलता है। 
- सूर्य ग्रह के कमजोर रहने पर स्वास्थ्य लाभ के लिए शैलपुत्री की उपासना से लाभ मिलती है। 
- चंद्रमा के दुष्प्रभाव को दूर करने के कुष्मांडा देवी की विधि विधान से नवरात्रि मे साधना करें। 
- मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए स्कंदमाता, 
- बुध ग्रह की शांति तथा अर्थव्यवस्था मे वृद्धि के लिए कात्यायनी देवी, 
- गुरु ग्रह के अनुकूलता के लिए महागौरी, 
- शुक्र के शुभत्व के लिए सिद्धिदात्रि तथा 
- शनि के दुष्प्रभाव को दूर कर शुभता पाने के लिए कालरात्रि के उपासना सार्थक रहती है।
- राहु की शुभता प्राप्त करने के लिए ब्रह्माचारिणी की उपासना करनी चाहिए। 
- केतु के विपरीत प्रभाव को दूर करने के लिए चंद्रघंटा की साधना अनुकूलता देती है।

नवरात्र वर्ष मे चार बार आते है , जिसमे चैत्र और आश्विन की नवरात्रियों का विशेष महत्व है।
चैत्र नवरात्र से ही विक्रम संवत का आरंभ होता है...
इन दिनों प्रकृति से एक विशेष तरह की शक्ति निकलती है।
इस शक्ति को ग्रहण करने के लिए इन दिनों में शक्ति पूजा या नवदुर्गा की पूजा का विधान है ,
इसमें माँ की नौ शक्तियों की पूजा अलग-अलग दिन की जाती है।

इस पर्व मे तीन प्रमुख हिंदू देवियों- पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों 
श्री शैलपुत्री, 
श्री ब्रह्मचारिणी, 
श्री चंद्रघंटा, 
श्री कुष्मांडा, 
श्री स्कंदमाता, 
श्री कात्यायनी, 
श्री कालरात्रि, 
श्री महागौरी, और 
श्री सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है।

" प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्माचारिणी !
तृतीय चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेति चतुर्थकम् !
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च !
सप्तमं कालरात्रि महागौरीति चाऽष्टम् !
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिताः ! "

इनकी आराधना करने से कई प्रकार की गुप्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं। 
इन दिनों किए जाने वाले टोने टोटके भी बहुत प्रभावशाली होते हैं, जिनके माध्यम से कोई भी मनोकामना पूर्ति कर सकता है। 
किन्तु राह पर पड़े टोने टोटकों से स्वयं को बचाना भी अति आवश्यक होता है।

!! ॐ नमः शिवाय !!

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