#चंडिका_जयंती बैशाख शुक्ल 15(पुर्णिमा) को मनाई जाएगी जो कि दिनांक 23।05।2024 को हैं।
सभी गुरुभाई/बहनों को मां भगवती चंडिका महाविद्या अवतरण दिवस की शुभकामनाएं संप्रेषित हैं...
भगवती दुर्गाजी की कृपा हेतु सप्तशती हृदय स्तोत्र का पाठ बहुत लाभदायी है और जो लोग सप्तशती का पाठ करते है वे पाठ के पहले इसे पढेंगे!
मंत्र:- ॐ हां हीं हुं ऐं स्त्रीं श्रीं ॐ नमो भगवति ! जय जय ज्वालामालिनि ! चामुंडे चंडिके त्रिदश मणि मुकुटकोटि निघृष्ट चरणारविंदे ! गायत्रि सावित्रि सरस्वति महासंध्ये महाबाण कृताभरणे ! भैरवरुपधारिणि प्रकट सदंष्ट्रोग्रवदने ! घोरे घोरासने नयनोज्ज्वल ज्वाल सहस्र परिवृते ! महाट्टहासधवलीकृतदिगंतरे ! दिवाकर सहस्रपरिवृत्ते ! कामरुपधारिणि ! महामणि द्योतित शशिप्रभा भासित सकल दिगंतरे ! सर्वायुधपरिपूर्णे कपालहस्ते गजगामिन्यौत्तरिण्ये ! भूतवेतालपरिवृत्ते प्रकंपित चराचरे मधु कैटभ महिषासुर धूम्रलोचन चण्ड मुण्ड रक्तबीज निशुंभ शुंभादि दैत्य निष्कण्टिके ! कालरात्रि महामाये शिवे नित्ये त्रिभुवन धराधरे ! वामे ज्येष्ठे वरदे रौद्रि अंबिके कालि कलविकरिणि ! बल प्रमथनि सर्व भूत दमनि मनोन्मय्यधारिणि ! ब्राह्मि माहेश्वरि कौमारि वैष्णवी ! वाराहि नारसिंही इंद्राणि चामुंडे ! माहेंद्रि शिवदूति महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती च त्रिस्थिते !नाद मध्ये स्थिते महोग्र विषोरग फणा फणि मुकुट रत्न ज्वालावलि !महाहि हार भूषित पाद बाहु कण्ठोत्तमांगे मालाकुले ! नवरत्न निधिकोशे ! शब्द स्पर्श रुप रस गंध आकाश वाक पाणि पाद पायु उपस्थ श्रोत्र त्वक चक्षु जिव्हा घ्राण मध्यस्थिते ! चक्षुष्मति महाविषोपविघ्ने महाज्वालानले ! महाभैरव स्तुते सर्वसिद्धिप्रदे ! निर्मले निष्कले नाभ्याधारादि संस्थिते ! परं ज्योति: स्वरुपे सोम सूर्याग्नि मंडल परिवृत्ते ! उर्ध्व विशुद्धांतक प्रभे विनिर्गत ब्रह्म विष्णु रुद्र दैवते ! परे अपरे प्रभा भासित चराचरे पंचविशति तत्त्वावबोधिनि महाशून्यागमे ! पति बंधु संस्थिते भुक्ति मुक्तिप्रदे ! निर्गुणे ऋग्यजु: सामार्थर्वणि पठिते ! एह्येहि भगवति स्थूल सूक्ष्म परे हुंकार निरुपिते ! परमकारुणिके महाज्वालामणे महिषोपरि गंधर्व विद्याधरार्चिते ! भुजंगमहिमे जृंभिणि वशीकरिणि जृंभे मोहे क्षोभे बीजपंचक मध्यस्थिते ! महायोगिनि महाज्वर क्षेत्रनायिके यक्ष राक्षस महाज्वर क्षेत्रविषोपविघ्ने ! गंधर्व विद्याधराराधिते ॐकार श्रींकार हस्ते ! आं क्रीं अग्निपात्रे ! द्रां शोषय शोषय , प्लुं प्लावय प्लावय , क्लीं ब्रीं सुकुमारय सुकुमारय , प्लुं नाशय नाशय , सीं उन्मादय उन्मादय , ग्लौं मोहय मोहय , ह्रीं आं ह्रीं आवेशय आवेशय , श्रीं प्रवेशय प्रवेशय , स्त्रीं आकर्षय आकर्षय , हुं हुं फट अतीतानागत वर्तमानान दिशं विदिशं , ऐं ह्रीं श्रीं श्रावय श्रावय , सर्वं प्रवेशय प्रवेशय , त्रैलोक्यं वशवर्ति , ऐंकार वशी कुरुष्व , ऐं ह्रीं स्त्रीं द्रावय द्रावय , सर्वं प्रवेशय प्रवेशय , ऐंकारचितां वशं कुरु वशं कुरु , ऐं ह्रीं श्रीं हां हीं हुं है हौं ह: , ह्रीं श्रीं स्त्रां स्त्रीं स्त्रूं स्त्रैं स्त्रौं स्त्र: मम सर्वकार्याणि साधय साधय हुं फट स्वाहा !
!! इति श्रीरुद्रयामलतंत्रे चंडिका ( सप्तशति ) हृदयम !!
पराम्बा श्री मंगल चण्डिका -
रक्ष रक्ष महादेवी हे दुर्गा स्वरूपिणी मंगल चण्डिके!!!
(देवी रहस्य महाग्रंथ)
देवी श्री मंगल चण्डिका साक्षात् श्रीदुर्गा अम्बा का ही एक विग्रह है। इसी कारण हरेक शाक्त इनका स्मरण हर मंगलवार को करता ही है जिस प्रकार श्रीरामजी के उपासक श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण जी को राम जी का स्वरूप समझकर सेवा करते हैं वैसा ही यहाँ समझे।
एक ही ईश्वर समय समय पर भिन्न-भिन्न रूप धारण करके अपनी लीला करता है द्वैत नाम की सत्ता है ही नहीं मात्र अज्ञानी लोग ही भेद उत्पन्न करते हैं इसी कारण भेदज्ञ जनों को कुटिल स्वभाव वाले राक्षसों का अंश कहा जाता है। ह्रीं बीज की पराम्बिका ही मंगल करने वाली और मंगलवार के मान को बढ़ाने के लिए साक्षात् मंगलचण्डिका हुई हैं ये अपने स्मरण करने वाले भक्तों को उसके इष्ट से अतिशीघ्र मिलाती हैं भक्त चाहे किसी को भी ध्याये पर हर मंगलवार को इनका सुमिरन इष्ट का रूप समझकर निष्काम भाव से भी कर सकता है और एक महत्वपूर्ण बात मंगल ग्रह की कृपा से भूमि लाभ होता है ऋण रूपी संकट का नाश भी होता है पर मंगल देव ने एक महत्वपूर्ण बात भी कही है कि जो मेरी इष्ट इन मंगलेश्वरी या मंगल चण्डिका का हर मंगलवार को सुमिरन करेगा उसे मैं शीघ्र ही ऋण और शोक से मुक्त कर दूँगा मैं मंगल चण्डिका के स्तवन से जितना प्रसन्न होता हूँ उतना प्रसन्न मेरा भजन सहस्र बार भी किया जाए तो भी उतना नहीं होता अतः भक्त गण सकामी हों या निष्कामी पराशक्ति के इस सौम्य 16 वर्षीय किशोरी रूप से परिपूर्ण देवी का हर मंगलवार को स्तवन अवश्य करे।
देवी मंगल चण्डिका देवी का माहात्म्य श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में स्पष्ट है तथा अनेक शास्त्रों में इनकी अतुलनीय महिमा है। अतः इनकी सेवा करके हर शाक्त मंगल ही मंगल को पाता है उसका बाल भी बांका नहीं हो सकता। हर क्षण उसके जीवन में मंगल की शुभ बेला आती है आठों पहर मंगल के साम्राज्य को वह पाकर धन्य हो जाता है। यह अक्षयरुद्र भी देवी भुवनेश्वरी का किंकर है पर हर मंगलवार को भुवनेश्वरी के इस अवतार का ध्यान करके ही धन्य मानता है।
राधारानी , कालिका ,षष्ठी आदि के महान भक्त भी हर मंगलवार को अपनी इष्ट की प्रसन्नता के लिए निश्चित ही मंगल चण्डिका का ध्यान करते हैं।
श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के नवें स्कन्ध के अध्याय 47 में देवी का विशेष रूप से वर्णन है। देखिए पुराणों वचन -
श्रीनारायण बोले - हे ब्रह्मपुत्र !
भगवती मंगलचण्डी का आख्यान और उनका पूजा- विधान आदि सुनिये, जिसे मैंने धर्मदेवके मुखसे सुना था। यह उपाख्यान श्रुतिसम्मत है तथा सभी विद्वानोंको अभीष्ट है ॥ १-२ ॥
●कल्याण करने में सुदक्षा जो चण्डी अर्थात प्रतापवती हैं तथा मंगलोंके मध्यमें जो प्रचण्ड मंगला हैं, वे देवी 'मंगलचण्डिका' नामसे विख्यात हैं।
●अथवा भूमिपुत्र मंगल भी जिन चण्डीकी पूजा करते हैं तथा जो भगवती उन मंगलकी अभीष्ट देवी हैं, वे 'मंगलचण्डिका' नामसे प्रसिद्ध हैं ॥ ३-४ ॥
●मनुवंशमें उत्पन्न मंगल नामक एक राजा सात द्वीपोंवाली सम्पूर्ण पृथ्वीके स्वामी थे। ये भगवती उनकी पूज्य अभीष्ट देवी थीं, इससे भी वे 'मंगलचण्डिका' नामसे विख्यात हैं ॥ ५ ॥
● वे ही मूर्तिभेदसे मूलप्रकृति भगवती दुर्गा हैं। कृपारूपिणी होकर वे देवी साक्षात् प्रकट होनेवाली हैं और स्त्रियोंकी अभीष्ट देवता हैं ॥ ६ ॥
●सर्वप्रथम भगवान् रुद्र ने विष्णु की प्रेरणासे तथा ब्रह्माजीके उपदेशसे उन परात्परा भगवतीकी पूजा की थी।
हे ब्रह्मन् ! त्रिपुरासुरके घोर वधके समय जब कैलासपति संकटमें पड़ गये थे और उस दैत्यके द्वारा रोषपूर्वक उनका विमान आकाशसे नीचे गिरा दिया गया था, तब ब्रह्मा और विष्णुका उपदेश मानकर दुर्गतिको प्राप्त भगवान् शंकरने भगवती दुर्गा की ही स्तुति की थी इससे वे चण्डिका प्रकट हुई और शंकर जी का मंगल करके वे मंगलचण्डी ही कहलाई, जिन्होंने केवल रूप बदल लिया था ( सा च मंगलचण्डी। या बभूव रूपभेदतः )
वे शिवजीके सामने प्रकट होकर बोलीं- हे आशुतोष प्रभो ! अब आपको कोई भय नहीं है, भगवान् श्रीहरि वृषरूपमें आपका वाहन बनेंगे और मैं युद्धमें शक्तिस्वरूपा होकर आपकी सहायता करूँगी, इसमें सन्देह नहीं है। हे वृषध्वज ! तब मायास्वरूप भगवान् श्रीहरिकी सहायतासे आप देवताओंको पदच्युत कर देनेवाले अपने शत्रु उस त्रिपुरदैत्यका वध कर डालेंगे ॥ ७-११३ ॥
हे मुनिवर! ऐसा कहकर वे भगवती अन्तर्धान हो गयीं और उसी क्षण वे भगवान् शिवकी शक्ति बन गयीं। तत्पश्चात् उमापति शंकरने विष्णुजीके द्वारा दिये गये शस्त्रसे उस दैत्यको मार डाला। उस दैत्यके धराशायी हो जानेपर सभी देवता तथा महर्षिगण भक्तिपूर्वक अपना सिर झुकाकर भगवान् शिवकी स्तुति करने लगे ॥ ये स्तुति यथार्थ में मंगल चण्डिका की कृपा का परिणाम थी। १२-१३ ॥
उसी क्षण भगवान् शिवके सिरपर पुष्पोंकी वर्षा होने लगी। ब्रह्मा तथा विष्णुने परम प्रसन्न होकर उन्हें शुभाशीर्वाद दिया ॥ १४ ॥
तत्पश्चात् हे मुने ! भगवान् शंकरने विधिवत् स्नान करके पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, अनेक प्रकारके वस्त्र, पुष्प, चन्दन, भाँति-भाँतिके नैवेद्य, वस्त्रालंकार, माला, खीर, पिष्टक, मधु, सुधा, अनेक प्रकारके फल आदि उपचारों, संगीत, नृत्य, वाद्य, उत्सव तथा नामकीर्तन आदिके द्वारा भक्तिपूर्वक उन देवी मंगलचण्डिकाका पूजन किया ॥ १५-१८ ॥
हे नारद ! माध्यन्दिनशाखामें बताये गये ध्यानमन्त्रके द्वारा भगवती मंगलचण्डीका भक्तिपूर्वक ध्यान करके उन्होंने मूल मन्त्रसे ही सभी द्रव्य अर्पण किये।
'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवि मङ्गलचण्डिके हुं हुं फट् स्वाहा' यह इक्कीस अक्षरोंवाला मन्त्र पूजनीय तथा भक्तोंको समस्त अभीष्ट प्रदान करनेवाला कल्पवृक्ष ही है। दस लाख जप करनेसे इस मन्त्रकी सिद्धि निश्चितरूपसे हो जाती है ( मंत्र के सिद्ध होने पर देवी के साक्षात्कार भी होते हैं।) १९-२१॥
हे ब्रह्मन् ! अब वेदोक्त तथा सर्वसम्मत ध्यानका श्रवण कीजिये-
●'सोलह वर्षकी अवस्थावाली,
●सर्वदा सुस्थिर यौवनसे सम्पन्न,
●बिम्बाफलके समान होठोंवाली,
●सुन्दर दन्तपंक्तिवाली,
●शुद्धस्वरूपिणी,
●शरत्कालीन कमलके समान मुखवाली,
●श्वेत चम्पाके वर्णकी आभावाली,
●विकसित नीलकमलके सदृश नेत्रोंवाली,
●जगत्का पालन-पोषण करनेवाली,
●सभीको सम्पूर्ण सम्पदाएँ प्रदान करनेवाली और
●घोर संसारसागरमें पड़े हुए प्राणियोंके लिये ज्योतिस्वरूपिणी भगवतीकी मैं सदा आराधना करता हूँ।' हे मुने ! यह भगवती मंगलचण्डिकाका ध्यान है, अब उनका स्तवन सुनिये ॥ २२-२५ ॥
महादेवजी बोले - जगत् की माता, विपत्ति राशि का
नाश करनेवाली, हर्ष तथा मंगल उत्पन्न करनेवाली, हर्ष तथा मंगल देनेमें प्रवीण, हर्ष तथा मंगल प्रदान करनेवाली, कल्याणकारिणी, मंगल करनेमें दक्ष, शुभस्वरूपिणी, मंगलरूपिणी, मंगल करनेमें परम योग्यतासम्पन्न, समस्त मंगलोंकी भी मंगलरूपा, सज्जनोंको मंगल प्रदान करनेवाली, सभी मंगलोंकी आश्रय- स्वरूपिणी, मंगलवारके दिन पूजी जानेवाली, मंगलग्रहकी अभीष्ट देवी, मनुवंशमें उत्पन्न राजा मंगलके लिये सदा पूजनीया, मंगलकी अधिष्ठात्री देवी, मंगलोंके लिये भी मंगल, संसारके समस्त मंगलोंकी आधारस्वरूपा, मोक्षरूप मंगल प्रदान करनेवाली, साररूपिणी, मंगलाधार, सभी कर्मोंकी फलस्वरूपिणी तथा मंगलवारको पूजित होनेपर सबको महान् सुख प्रदान करनेवाली हे देवि मंगलचण्डिके ! रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये ॥ २६-३१ ॥
भगवान् शिव ने इस स्तोत्रसे देवी मंगलचण्डिकाकी स्तुति की तथा प्रत्येक मंगलवारको उनकी पूजा करने लगे ।। ३२ ॥
●इस प्रकार सर्वप्रथम भगवान् शिवके द्वारा वे सर्वमंगला देवी मंगलचण्डिका पूजित हुईं।
● दूसरी बार मंगलग्रहने उनकी पूजा की,
●तीसरी बार राजा मंगलने उन कल्याणमयी देवीकी पूजा की।
●चौथी बार मंगलवारके दिन भद्र महिलाओंने उनकी पूजा की।
●तत्पश्चात् पाँचवीं बार अपने कल्याणकी कामना रखनेवाले पुरुषोंने शिव तथा मंगल की आज्ञा से देवी मंगलचण्डिकाका पूजन किया। और यह पूजन संपूर्ण विश्व में प्रति मंगल वार को होने से इनके उपासक धन्य होने लगे।
इस तरह विश्वेश्वर शिवके द्वारा पूजित ये भगवती सभी लोकोंमें पूजी जाने लगीं। हे मुने ! तदनन्तर सभी देवताओं, मुनियों, मानवों तथा मनुओंके द्वारा भगवती मंगलचण्डिका सर्वत्र पूजित हो गयीं ॥ ३३-३६ ॥
जो व्यक्ति एकाग्रचित्त होकर भगवती मंगलचण्डिकाके इस मंगलमय स्तोत्रका श्रवण करता है, उसका सदा मंगल होता है और उसका अमंगल कभी नहीं होता, पुत्र-पौत्रोंसहित उसके मंगलकी
दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती रहती है।
( तन्मंगलम् भवेत्तस्य न भवेत्तदमंगलं)
विनियोगः-ॐ अस्य श्रीचण्डिका माला मंत्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः अनुष्टप् छंदः श्रीचण्डिका देवता ॐ ह्रः बीजम् ॐ सौं शक्तिः ॐ कीलकम् मम श्रीचण्डिका प्रसाद सिद्ध्यर्थं सकलजन वश्यार्थं श्रीचण्डिका मालामंत्र जपे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः-
ॐ मार्कण्डेय ऋषये नमः शिरसि ॥१॥
ॐ अनुष्टप्छंदसे नमः मुखे ॥ २ ॥
ॐ श्री चण्डिका देवतायै नमः हृदि॥३॥
ॐ ह्रः बीजाय नमः गुह्ये ॥ ४ ॥
ॐ सौं शक्तये नमः पादयोः ॥ ५ ॥
ॐ ह्रौं कीलकाय नम: नाभौ ॥ ६ ॥
ॐ विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ॥ ७ ॥ इति
ऋष्यादिन्यासः ।
करन्यासः-
ॐ ह्रां फां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं फीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ ह्रूं फूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रैं फैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रौं फौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रः फः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादिन्यासः-
ॐ ह्राँ फाँ ह्रदयाय नमः ॥ १ ॥
ॐ ह्रीं फीं शिरसे स्वाहा ॥ २ ॥
ॐ ह्रूं फूं शिखायै वषट ॥ ३ ॥
ॐ ह्रैं फैं कवचाय हुँ ॥ ४ ॥
ॐ ह्रौं फौं नेत्रत्रयाय वौषट् ॥ ५ ॥
ॐ ह्रः फः अस्त्राय फट् ॥ ६ ॥
इति हृदयादिषडंगन्यासः। एवं न्यासं कृत्वा ध्यायेत्।
॥ अथ ध्यानम् ॥
ॐ कल्याणी कमलासनस्थशुभदां गौरी घनश्याम लामाविर्भावित भूषणामभयदामार्द्रैकरक्षैः शुभैः ।
श्रीं ह्रीं क्लीं वरमंत्रराजसहितामानंद पूर्णात्मिकां श्रीशैले भ्रमराम्बिकां शिवयुतां चिन्मात्रमूर्तिं भजे ॥१॥ इति
ध्यात्वा मानसोपचारैः संपूज्य सुवासिन्याः कुमार्याः पूजां कृत्वा पश्चाज्जपं कुर्यात् । अस्य पुरश्चरणं नित्यमेकविंशत्यधिकशतम् ॥
जपेन स्त्री पुरुषो वा वश्यो भवति ।
तथा च एकविंशत्यधिकशतजाप्येन वशमानयेत् ।
स्त्री वापि पुरुषो वापि सत्यं सत्यं न संशयः ॥१॥
राजद्वारे श्मशाने च विवादे शत्रुसंकटे । शत्रोरुच्चाटने चैव सर्वकार्याणि साधयेत्।
इस प्रकार ध्यान करके मानसोपचारों से पूजन करे और सुवासिनी कुमारी की पूजा करने के बाद जप करे ।
इसका पुरश्चरण प्रतिदिन 121 होता है, इसके जप से स्त्री या पुरुष वश में होते है । यह सत्य है यह सत्य है, इसमें कोई संशय नहीं । राजद्वार में या श्मशान में, विवाद में शत्रुसंकट में तथा शत्रु के उच्चाटन में यह सब कार्यों को सिद्ध करता है ।
॥ श्री चण्डिका मालामन्त्र प्रयोगः ॥
“ॐ ह्रः ॐ सौं ॐ ह्रौं ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीर्जयजय चण्डिका चामुण्डे चण्डिके त्रिदश-मुकुट-कोटि-संघट्टित-चरणारविंदे गायत्रि सावित्रि सरस्वति अहिकृताभरणे भैरव-रूप-धारिणि प्रकटित-दंष्ट्रोग्र-वदने घोरानन-नयने ज्वलज्ज्वाला-सहस्र-परिवृते महाट्टहास-धवलीकृत-दिगन्तरे सर्वयुग-परिपूर्णे कपाल-हस्ते गजाजिनोत्तरीय भूतवेताल-परिवृते अकंपित-धराधरे मधुकैटभ महिषासुर-धूम्रलोचन चण्डमुण्ड रक्तबीज शुम्भनिशुम्भदैत्यनिकृन्ते कालरात्रि महामाये शिवे नित्ये ॐ ऐं ह्रीं ऐन्द्रि आग्नेयि याम्ये नैर्ऋति वारुणि वायवि कौबेरि ऐशानि ब्रह्मविष्णुशिव स्थिते त्रिभुवन-धराधरे वामे ज्येष्ठे रौद्रि अम्बिके ब्राह्मी-माहेश्वरी-कौमारी वैष्णवी-वाराहींद्राणी-ईशानी-महालक्ष्मीः इति स्थिते महोग्रविषमहाविषोरग फणामणि मुकुटरत्न महाज्वालामल मणिमहाहिहार बाहुकहोत्तमांग नवरत्न निधि कोटितत्व-बाहु-जिह्वा-वाणी शब्द स्पर्श रूप रस गंधात्मिके क्षितिसाहस मध्यस्थिते महोज्ज्वलमहाविषोपविष गंधर्व-विद्या-धराधिपते ॐ ऐंकारा ॐ ह्रींकारा ॐ क्लींकारा हस्ते ॐ आँ ह्रीं क्रौं अनग्नेनग्नेपाते प्रवेशय प्रवेशय ॐ द्राँ द्रीं शोषय शोषय ॐ द्राँ द्रीं मोहय मोहय ॐ क्लाँ क्लीं दीपय दीपय ॐ ब्लूं ब्लूं संतापय संतापय ॐ सौं सौं उन्मादय उन्मादय ॐ म्लैं म्लैं मोहय मोहय ॐ खाँ खाँ शोधय शोधय ॐ द्याँ द्याँ उन्मादय उन्मादय ॐ ह्रीं ह्रीं आवेशय आवेशय ॐ स्त्रीं स्त्रीं उच्छादय उच्छादय ॐ स्त्रीं स्त्रीं आकर्षय आकर्षय ॐ हुँ हुँ आस्फोटय आस्फोटय ॐ त्रूँ त्रूँ त्रोटय त्रोटय ॐ छाँ छाँ छेदय छेदय ॐ कूँ कूँ उच्चाटय उच्चाटय ॐ हूँ हूँ हन हन ॐ ह्राँ ह्राँ मारय मारय ॐ घ्रीं घ्रीं घर्षय घर्षय ॐ स्वीं स्वीं विध्वंसय विध्वंसय ॐ प्लूँ प्लूँ प्लावय प्लावय ॐ भ्रां भ्रां भ्रामय भ्रामय ॐ ॐ म्रां म्रां दर्शय दर्शय ॐ दां दां दिशां बंधय बंधय ॐ दीं दीं वर्तिनामेकाग्रचित्ता विशिकुरुतेंगये ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः ॐ फ्राँ फ्रीं फ्रूं फ्रैं फ्रौं फ्रः ॐ चामुण्डायै विच्चे स्वाहा मम सकल मनोरथं देहि सर्वोपद्रवं निवारय निवारय अमुकं वशे कुरु कुरु भूत-प्रेत पिशाच ब्रह्मपिशाच ब्रह्मराक्षस यक्ष यमदूत शाकिनी डाकिनी सर्वश्वापदतस्करादिकं नाशय नाशय मारय मारय भंजय भंजय ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वाहा”।।
॥ इत्यथर्वणागमसंहितोक्त श्री चंडिका मालामंत्रविधानम्।।
#श्रीमंगलचंडिका स्तोत्र।।
इस पाठ के प्रभाव से विवाह एवं कार्य बाधा दूर होती है। धन व्यापार की समस्या, गृह-कलेश, विद्या प्राप्ति आदि में चमत्कारिक रूप से लाभ के लिए कामना अनुसार संकल्प कर पाठ करना अत्यंत फलप्रद माना गया है।
स्वयं भगवान् शिव ने इस स्तोत्र को महिमामंडित किया है!
प्रायः मंगल दोष के कारण पुरुष एवं स्त्री दोनों के विवाह में भी अड़चन बनी रहती है । उनके लिये यह स्त्रोत अत्यंत लाभदायी है ।।
मंत्र:- ॐ ह्रीं श्रीं कलीं सर्वपूज्ये देवी मंगल चण्डिके ऐं क्रू फट् स्वाहा ।।
देवी भागवत् के अनुसार अन्य मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके हूँ हूँ फट् स्वाहा ।।
*।। श्री मंगलचंडिकास्तोत्रम् ।।*
!!ध्यान!!
"ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके I
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः II
पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः।
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् II
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः I
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् II
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिर यौवनाम्।
सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम् II
श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटि समप्रभाम्।
वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् II
बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्य भूषितम् I
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्म निभाननाम् II
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पल लोचनाम् I
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् II
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे II
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने I
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः II
शंकर उवाच:-
रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके I
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके II
हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके I
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके II
मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले I
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये II
पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते I
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम् II
मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले I
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि II
सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे II
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गल चण्डिकाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः।।
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः I
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम्।।
।।इतिश्री ब्रह्मवैवर्ते मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम्II
उक्त स्त्रोत को मंगलवार के दिन से शुरू करें एवं माँ मंगल चंडिका का ध्यान कर दीपक जलाकर नित्य कम से कम 5 पाठ करने से अत्यंत लाभ मिलता है।
1. उपरोक्त दोनों में से किसी एक मंत्र का मन ही मन 108 बार जप करें तथा स्त्रोत्र का 11 बार उच्च स्वर से श्रद्धा पूर्वक प्रेम सहित पाठ करें। ऐसा आठ मंगलवार को करे। आठवें मंगलवार को किसी भी सुहागिन स्त्री को लाल ब्लाउज, लाल रिब्बन, लाल चूड़ी, कुमकुम, लाल सिंदूर, पान-सुपारी, हल्दी, स्वादिष्ट फल, फूल आदि देकर संतुष्ट करें !
अगर कुंवारी कन्या या पुरुष इस प्रयोग को कर रहे हैं तो वो अंजुली भर कर चने भी सुहागिन स्त्री को दें , ऐसा करने से उनका मंगल दोष शांत हो जायेगा। इस प्रयोग में व्रत रहने की आवश्यकता नहीं है! आप पाठ सुवह या शाम कभी भी कर सकते है।
यह अनुभूत प्रयोग है और आठ सप्ताह में ही चमत्कारिक रूप से लाभ होता है।
2. *उक्त स्त्रोत को मंगलवार के दिन से शुरू करें एवं माँ मंगल चंडिका का ध्यान कर दीपक जलाकर नित्य कम से कम 5 पाठ करने से अत्यंत लाभ मिलता है ।
3. अगर इतना समय न निकल सकें, तो केवल किसी एक मंत्र का जप करें!
मंत्र:- ॐ ह्रीं श्रीं कलीं सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके ऐं क्रू फट् स्वाहा!
देवी भगवत के अनुसार अन्य मंत्र :-
ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके हूँ हूँ फट् स्वाहा।