Join Free | Sign In | Blog

Maha Viparita Pratyangira Mantra and Stotra | महा विपरीत प्रत्यंगिरा मंत्र व स्त Maha Viparita Pratyangira Mantra and Stotra, महा विपरीत प्रत्यंगिरा मंत्र व स्तोत्र

MTYV Sadhana Kendra -
Tuesday 18th of June 2024 09:40:16 AM


#महाविपरीत_प्रत्यंगिरा मंत्र व स्तोत्र●

शत्रु की की प्रबलतम क्रियाओं को निष्फल करने के साथ ही ग्रह,
नक्षत्र, देवता, यक्ष, गंधर्व एवं राक्षसी वृत्ति से भी मुकाबले के लिए विपरीत प्रत्यंगिरा और महाविपरीत प्रत्यंगिरा अत्यंत सफल और कारगर होता है।
इसका प्रयोग निष्फल नहीं जाता। इसकी साधना करने वालों को दुनिया में किसी का डर नहीं रह जाता है।
बेहतर होगा कि योग्य गुरु की देखरेख में ही इस साधना को पूरा किया जाए। अन्यथा कई बार अपना साधक का आसन मजबूत न होने से विभिन्न तरह की समस्याएं आने लगती हैं।
ऊँ अपराजितायै विदमहे,प्रत्यंगिरायै धीमहि तन्नो उग्रा प्रचोदयात्।
स्तोत्र के प्रतिदिन पाठ से सभी प्रकार के दोष शांत हो जाते हैं। जैसे नवग्रहदोष भूतप्रेतदोष किसी ने अगर कुछ किया हो तो वो भी दोष दूर हो जाता है-सभी प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती हैं।
इस स्तोत्र का विशेष और शीघ्र फल प्राप्त करने के लिए इसका रात्रि काल में 10 दिनों तक 100 पाठ करें पश्चात नित्य 5 पाठ करने से सभी कामना पूर्ण हो जाती हैं।
ॐ ह्रीं प्रत्यङ्गिरायै नमः।
प्रत्यङ्गिरे अग्निं स्तम्भय जलं स्तम्भय सर्वजीव स्तम्भय सर्वकृत्यां स्तम्भय सर्वरोग स्तम्भय सर्वजन स्तम्भय ऐं ह्रीं क्लीं प्रत्यङ्गिरे सकल मनोरथान साधय साधय देवी तुभ्यं नमः।

ॐ क्रीं ह्रीं महायोगिनी गौरी हुम् फट स्वाहा।

ॐ कृष्णवसन शतसहस्त्रकोटि वदन सिंहवाहिनी परमन्त्र परतन्त्र स्फोटनी सर्वदुष्टान् भक्षय भक्षय सर्वदेवानां बंध बंध विद्वेषय विद्वेषय ज्वालाजिह्वे महाबल पराक्रम प्रत्यङ्गिरे परविद्या छेदिनी परमन्त्र नाशिनी परयन्त्र भेदिनी ॐ छ्रों नमः।
प्रत्यङ्गिरे देवि परिपंथी विनाशिनी नमः।
सर्वगते सौम्ये रौद्रयै परचक्राऽपहारिणि नमस्ते चण्डिके चण्डी महामहिषमर्दिनी नमस्काली महाकाली शुम्भदैत्य विनाशिनी नमो ब्रह्मास्त्र देवेशि रक्ताजिन निवासिनी नमोऽमृते महालक्ष्मी संसारार्णवतारिणी निशुम्भदैत्य संहारी कात्यायनी कालान्तके नमोऽस्तुते।
ॐ नमः कृष्णवक्त्र शोभिते सर्वजन वशंकरि सर्वजन कोपोद्रवहारिणि दुष्टराजसंघातहारिणि अनेकसिंह कोटिवाहन सहस्त्रवदने अष्टभुजयुते महाबल पराक्रमे अत्यद्भुतपरे चितेदेवी सर्वार्थसारे परकर्म विध्वंसिनी परमन्त्र तन्त्र चूर्ण प्रयोगादि कृते मारण वशीकरणोच्चाटन स्तम्भिनी आकर्षणि
अधिकर्षणि सर्वदेवग्रह सवित्रिग्रह भोगिनीग्रह दानवग्रह दैत्यग्रह ब्रह्मराक्षसग्रह सिद्धिग्रह सिद्धग्रह विद्याग्रह विद्याधरग्रह यक्षग्रह इन्द्रग्रह गन्धर्वग्रह नरग्रह किन्नरग्रह किम्पुरुषग्रह अष्टौरोगग्रह भूतग्रह प्रेतग्रह पिशाचग्रह भक्षग्रह आधिग्रह व्याधिग्रह अपस्मारग्रह सर्पग्रह चौरग्रह पाषाणग्रह चाण्डालग्रह निषूदिनी सर्वदेशशासिनि खड्गिनी ज्वालिनिजिह्वा करालवक्त्रे प्रत्यङ्गिरे मम समस्तारोग्यं कुरु कुरु श्रियं देहि पुत्रान् देहि आयुर्देहि आरोग्यं देहि सर्वसिद्धिं देहि राजद्वारे मार्गे परिवार माश्रिते मां पूज्य रक्ष रक्ष जप ध्यान रोमार्चनं कुरु कुरु स्वाहा।।

।।प्रत्यङ्गिरा स्तोत्र सम्पूर्णं।।

ध्यानं----

टंकं कपालं डमरूं त्रिशूलं, संबिभ्रती चंद्रकलावतंसा।
पिंगोर्ध्वकेशाासित भीमदंष्ट्रा, भूयाद् विभूत्यै मम भद्रकाली।।
इस मंत्र से माता का भक्तिपूर्वक ध्यान करें। इसके बाद निम्न मंत्रों से आगे की प्रक्रिया का पालन करें।

विनियोग-–

ऊं अस्य श्रीविपरीत प्रत्यंगिरास्तोत्रमंत्रस्य भैरव ऋषि:, अनुष्टुप-छंद:, श्रीविपरीत प्रत्यंगिरा देवता, हं बीजं, ह्रीं शक्ति:, क्लीं क्लीकं, ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे पाठे च विनियोग:।
करंगन्यास--
ऊं ऐं अंगुष्ठाभ्यां नम:। ऊं ह्रीं तर्जनीभ्यां नम:। ऊं श्रीं मध्यमाभ्यां नम:। ऊं प्रत्यंगिरे अनामिकाभ्यां नम:। ऊं मां रक्ष रक्ष कनिष्ठिकाभ्यां नम:। ऊं मम शत्रून् भंजय भंजय करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।
हृदयादिन्यास:----
ऊं ऐं हृदयाय नम:। ऊं ह्रीं शिरसे स्वाहा। ऊं श्रीं शिखायै वषट्। ऊं प्रत्यंगिरे कवचाय हुम्। ऊं मां रक्ष रक्ष नेत्रत्रयाय वौषट्।। ऊं मम शत्रून भंजय भंजय अस्त्राय फट्।
दिग्बंध:---
ऊं भूर्भुव: स्व:। इति दिग्बंध:। (सभी दिशाओं में चुटकी बजाएं।)
लघु मंत्र----------
ऊं ऐं ह्रीं श्रीं प्रत्यंगिरे मां रक्ष रक्ष मम शत्रून् भंजय भंजय फे हूं फट स्वाहा। (108 बार प्रतिदिन जप करें। यदि शत्रु प्रबल हो तो एक बार में 16 हजार मंत्र के जप का संकल्प लेकर दसवें हिस्से का हवन करें। हवन में कालीमिर्च, लावा, सरसो, नमक और घी की समान मात्रा हो।)
ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं कुं कुं कुं मां सां खां चां लां क्षां ऊं ह्रीं ह्रीं ऊं ऊं ह्रीं वां धां मां सां रक्षां कुरू। ऊं ह्रीं ह्रीं ऊं स: हुं ऊं क्षौं वां लां धां मां सां रक्षां कुरू। ऊं ऊं हुं प्लुं रक्षां करू।
ऊं नमो विपरीतप्रत्यंगिरायै विद्याराज्ञि त्रैलोक्यवशंकरि तुष्टि पुष्टि करि सर्वपीडापहारिणि सर्वापन्नाशिनि सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिनि मोदिनि सर्वाशास्त्राणां भेदिनि क्षोभिणि तथा परमंत्र तंत्र यंत्र विषचूर्ण सर्व प्रयोगादीनन्येषां निर्वर्तयित्वा यत्कृतं तन्मेेस्तु कलिपातिनि सर्वहिंसा मा कारयति अनुमोदयति
मनसा वाचा कर्मणा ये देवाासुर राक्षसास्तिर्यग्योनिसर्वहिंसका विरूपकं कुर्वन्ति मम मंत्र तंत्र यंत्र विष चूर्ण सर्व प्रयोगादीनात्महस्तेन य: करोति करिष्यति कारिष्यति तान् सर्वानन्येषां निर्वर्तयित्वा पातय कारय मस्तके स्वाहा।
गुरु मंत्र-------
ऊं हुं स्फारय स्फारय मारय मारय शत्रुवर्गान् नाशय नाशय स्वाहा। (सौ बार जप करें। मारण के लिए सफेद सरसों का प्रयोग करें)
विनियोग-----
ऊं अस्य श्रीमहाविपरीत प्रत्यंगिरास्तोत्र मंत्रस्य महाकालभैरवऋषि: स्त्रिष्टुप् छन्द:, श्रीमहाविपरीत प्रत्यंगिरा देवता, हं बीजं, ह्रीं शक्ति:, क्लीं कीलकं, मम सर्वार्थसिद्ध्यर्थे जपे विनियोग:/परमंत्र, परयंत्र, परकृत्याछेदनार्थे, सर्वशत्रु क्षयार्थे विनियोग:।
माला मंत्र-------------
ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं नमो विपरीतप्रत्यंगिरायै सहस्रानेककार्यलोचनायै कोटि विद्युज्जिह्वायै महाव्यापिन्यै संहाररूपायै जन्मशांति कारिण्यै मम सपरिवारकस्य भावि भूत भवच्छत्रु दाराप्रत्यान् संहारय संहारय महाप्रभावं दर्शय दर्शय हिलि हिलि किलि किलि मिलि मिलि चिलि चिलि भूरि भूरि विद्युज्जिह्वे ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ध्वंसय ध्वंसय प्रध्वंसय प्रध्वंसय ग्रासय ग्रासय पिब पिब नाशय नाशय त्रासय त्रासय वित्रासय वित्रासय मारय मारय विमारय विमारय भ्रामय भ्रामय विभ्रामय विभ्रामय द्रावय द्रावय विद्रावय विद्रावय हूं हूं फट् स्वाहा। हूं हूं हूं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं विपरीतप्रत्यंगिरे हूं लं ह्रीं लं क्लीं लं ऊं लं फट फट स्वाहा।
हूं लं ह्रीं क्लीं ऊं विपरीतप्रत्यंगिरे मम सपिरवारकस्य यावच्छत्रून् देवता पितृ पिशाच नाग गरुड किन्नर विद्याधर गंधर्व यक्ष राक्षस लोकपालान् ग्रह भूत नर लोकान् समन्त्रान् सौषधान् सायुधान् स-सहायान् पाणौ धिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि निकृन्तय निकृन्तय छेदय छेदय उच्चाटय उच्चाटय मारय मारय तेषां साहंकारादि धर्मान् कीलय कीलय घातय घातय नाशय नाशय विपरीतप्रत्यंगिरे स्फ्रें स्फ्रेत्कारिणी ऊं ऊं जं ऊं ऊं जं ऊं ऊं जं ऊं ऊं जं ऊं ऊं जं ऊं ठ: ऊं ठ: ऊं ठ: ऊं ठ: ऊं ठ: मम सपरिवारकस्य शत्रूणां सर्वा: विद्या: स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय हस्तौ स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय मुखं स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय नेत्राणि स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय दंतान् स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय जिह्वां स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय पादौ स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय गुह्यं स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय सकुटुम्बानां स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय स्थानं स्तंभय स्तंभय नाशय नाशय सं प्राणान् कीलय कीलय नाशय नाशय हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं ह्रीं ह्री ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं फट् फट् स्वाहा।
मम सपरिवारकस्य सर्वतो रक्षां कुरु कुरु फट् फट् स्वाहा। ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ऐं ह्रूं ह्रीं क्लीं हूं सों विपरीतप्रत्यंगिरे! मम सपरिवारकस्य भूत भविष्य च्छत्रूणामुच्चाटनं कुरु कुरु हूं हूं फट् स्वाहा।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं वं वं वं वं वं लं लं लं लं लं रं रं रं रं रं यं यं यं यं यं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं नमो भगवति विपरीतप्रत्यंगिरे दुष्ट चांडालिनी त्रिशूल वज्रांकुश शक्ति शूल धनु: शर पाशधारिणी शत्रुरुधिर चर्म मेदो मांसाास्थि मज्जा शुक्र मेहन वसा वाक् प्राण मस्तक हेत्वादिभक्षिणी परब्रह्मशिवे ज्वालादायिनी मालिनी शत्रूच्चाटन मारण क्षोभन स्तंभन मोहन द्रावण जृम्भण भ्रामण रौद्रण संतापन यंत्र मंत्र तंत्रान्तर्याग पुरश्चरण भूतशुद्धि पूजाफल परमनिर्वाण हारण कारिणि कपालखट्वांग परशुधारिणि मम सपरिवारकस्य भूतभविष्यच्छत्रून् स-सहायान् सवाहनान् हन हन रण रण दह दह दम दम धम धम पच पच मथ मथ लंघय लंघय खादय खादय चर्वय चर्वय व्यथय व्यथय ज्वरय ज्वरय मूकान् कुरु कुरु ज्ञानं हर हर हूं हूं फट् फट् स्वाहा।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं विपरीतप्रत्यंगिरे ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं फट् स्वाहा।
मम सपिरवारकस्य कृतमंत्र यंत्र तंत्र हवन कृतौषध विषचूर्ण शस्त्राद्यभिचार सर्वोपद्रवादिकं येन कृतं कारितं कुरुते करिष्यति वा तान् सर्वान् हन हन स्फारय स्फारय सर्वतो रक्षां कुरु कुरु हूं हूं फट् फट् स्वाहा।
हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ओं ओं ओं ओं ओं ओं ओं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं फट् फट् स्वाहा।
ऊं हूं ह्रीं क्लीं ऊं अं विपरीतप्रत्यंगिरे मम सपरिवारकस्य शत्रव: कुर्वन्ति करिष्यन्ति शत्रुश्च कारयामास कारयन्ति कारयिष्यन्ति याान्यायं कृत्यान्तै: सार्धं तांस्तां विपरीतां कुरु कुरु नाशय नाशय मारय मारय श्मशानस्थानं कुरु कुरु कृत्यादिकां क्रियां भावि भूत भवच्छत्रूणां यावत्कृत्यादिकां क्रियां विपरीतां कुरु कुरु तान् डाकिनीमुखे हारय हारय भीषय भीषय त्रासय त्रासय परम शमनरूपेण हन हन धर्मावच्छिन्न निर्वाणं हर हर तेषाम् इष्टदेवानां शासय शासय क्षोभय क्षोभय प्राणादि मनोबुद्ध्य हंकार क्षुत्तृष्णा कर्षण लयन आवागमन मरणादिकं नाशय नाशय हूं हूं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं फट् फट् स्वाहा।
क्षं लं हं सं षं शं वं लं रं यं मं भं बं फं पं नं धं दं थं तं णं ढं डं ठं टं ञं झं जं छं चं ङं घं गं खं कं अ: अं औं ओं ऐं एं लृंृ लृं ऋृं ऋं ऊं उं ईं इं आं अं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं विपरीतप्रत्यंगिरे हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं फट् स्वाहा।
क्षं लं हं सं षं शं वं लं रं यं मं भं बं फं पं नं धं दं थं तं णं ढं डं ठं टं ञं झं जं छं चं ङं घं गं खं कं अ: अं औं ओं ऐं एं लृंृ लृं ऋृं ऋं ऊं उं ईं इं आं अं हूं हूं हूं हूं हूं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं फट् स्वाहा।
अ: अं औं ओं ऐं एं लृंृ लृं ऋृं ऋं ऊं उं ईं इं आं अं ङं घं गं खं कं ञं झं जं छं चं णं ढं डं ठं टं नं धं दं थं तं मं भं बं फं पं क्षं लं हं सं षं शं वं लं रं यं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं मम सपरिवारकस्य स्थाने शत्रूणां कृत्यान् सर्वान् विपरीतान् कुरु कुरु तेषां तंत्र मंत्र तंत्रार्चन शमशानरोहण भूमिस्थापन भस्म प्रक्षेपण पुरश्चरण होमाभिषेकादिकान् कृत्यान् दूरी कुरु कुरु हूं विपरीतप्रत्यंगिरे मां सपरिवारकं सर्वत: सर्वेभ्यो रक्ष रक्ष हूं ह्रीं फट् स्वाहा।
अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृंृ एं ऐं ओं औं अं अ: कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं हूं ह्रीं क्लीं ऊं विपरीतप्रत्यंगिरे हूं ह्रीं क्लीं ऊं फट् स्वाहा।
ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं ऊं क्लीं ह्रीं श्रीं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृंृ एं ऐं ओं औं अं अ: कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं विपरीतप्रत्यंगिरे मम सपरिवारकस्य शत्रूणां विपरीतक्रियां नाशय नाशय त्रुटिं कुरु कुरु तेषामिष्टदेवतादि विनाशं कुरु कुरु सिद्धम् अपनय अपनय विपरीतप्रत्यंगिरे शत्रुमर्दिनि भयंकरि नाना कृत्यामर्दिनि ज्वालिनि महाघोरतरे त्रिभुवन भयंकरि शत्रुभ्य: मम सपरिवारकस्य चक्षु: श्रोत्राणि पादौ सर्वत: सर्वेभ्य: सर्वदा रक्षां कुरु कुरु स्वाहा।
श्रीं ह्रीं ऐं ऊं वसुंधरे मम सपरिवारकस्य स्थानं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं महालक्ष्मि मम सपरिवारकस्य पादौ रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं चंडिके मम सपरिवारकस्य जंघे रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं चामुंडे मम सपरिवारकस्य गुह्यं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं इंद्राणी मम सपरिवारकस्य नाभिं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं नारसिंहि मम सपरिवारकस्य बाहूं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं वाराहि मम सपरिवारकस्य हृद्यं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं वैष्णवि मम सपरिवारकस्य कंठं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं कौमारि मम सपरिवारकस्य वक्त्रं रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं माहेश्वरि मम सपरिवारकस्य नेत्रे रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। श्रीं ह्रीं ऐं ऊं ब्रह्माणि मम सपरिवारकस्य शिरो रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा। हूं ह्रीं क्लीं ऊं विपरीतप्रत्यंगिरे मम सपरिवारकस्य छिद्रं सर्वगात्राणि रक्ष रक्ष हूं फट् स्वाहा।
ऊं संतापिनि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् संतापय संतापय हूं फट् स्वाहा। ऊं संहारिणि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् संहारय संहारय हूं फट् स्वाहा। ऊं रौद्रि
स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् रौद्रय रौद्रय हूं फट् स्वाहा। ऊं भ्रामिणि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् भ्रामय भ्रामय हूं फट् स्वाहा। ऊं जृम्भिणि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् जृम्भय जृम्भय हूं फट् स्वाहा। ऊं द्राविणि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् द्रावय द्रावय हूं फट् स्वाहा। ऊं क्षोभिणि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् क्षोभय क्षोभय हूं फट् स्वाहा। ऊं मोहिनि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् मोहय मोहय हूं फट् स्वाहा। ऊं स्तंभिनि स्फ्रें स्फ्रें मम सपरिवारकस्य शत्रून् स्तंभय स्तंभय हूं फट् स्वाहा।
ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृंृ एं ऐं ओं औं अं अ: कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं विपरीत परब्रह्म महाप्रत्यंगिरे ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृंृ एं ऐं ओं औं अं अ: कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं मम सपरिवारकस्य सर्वेभ्य: सर्वत: सर्वदा रक्षां कुरु कुरु मरण भयापन पापनय त्रिजगतां पररूपवित्तायुर्मे सपरिवारकाय देहि देहि दापय साधकत्वं प्रभुत्वं च सततं देहि देहि विश्वरूपे धनं पुत्रान् देहि देहि मां सपरिवारकस्य मां पश्येत्तु देहिन: सर्वे हिंसका: प्रलयं यान्तु मम सपरिवारकस्य शत्रूणां बलबुद्धिहानिं कुरु कुरु तान् स-सहायान स्वेष्टदेवतान् संहारय संहारय स्वाचारमपनयाापनय ब्रह्मास्त्रादीनि व्यर्थीकुरु हूं हूं स्फ्रें स्फ्रें ठ: ठ: फट् फट् ऊंll
आप सभी को मेरी शुभकामनाएं साधना करें साधनामय बनें......
साधको को सूचित किया जाता हैं की हर चीज की अपनी एक सीमा होती हैं , इसलिए किसी भी साधना का प्रयोग उसकी सीमा में ही रहकर करे , और मानव होकर मानवता की सेवा करे अपने जीवन को उच्च स्तर पर ले जाएँ ,.
#विपरीत प्रत्यंगिरा स्तोत्र:-
वर्तमान कलियुग में नानाप्रकार के तापों से जातकों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
जातकों के मन में हमेशा अशांति का वातावरण छाया रहता है आखिर वह क्या करे जिससे मन को शांति तो मिले ही साथ ही यश, वैभव, कीर्ति, शत्रुओं से छुटकारा, ऋण से मुक्ति और ऊपरी बांधाओं से मुक्ति।
प्राचीन ऋषि-मुनियों ने मां भद्रकाली, दक्षिणकाली या महाकाली की घनघोर तपस्या कर जातकों को इन सभी वस्तुओं से छुटाकर कीर्ति की पताका लहराई थी। बहुत कम जातक जानते होंगे मां प्रत्यंगिरा के बारे में, मां प्रत्यंगिरा का भद्रकाली या महाकाली का ही विराट रूप है।
मां प्रत्यंगिरा की गुप्तरूप से की गई आराधना, जप से अच्छों-अच्छों के झक्के छूट जाते हैं। कितना ही बड़ा काम क्यों न हो अथवा कितना बड़ा शत्रु ही क्यों न हो, सभी का मां चुटकियों में शमन कर देती हैं। आप भी मां प्रत्यंगिरा की सच्चे मन से साधना-आराधना-जप करके यश, वैभव, कीर्ति प्राप्त कर सकते हैं। स्तोत्रम प्रारंभ करने से पूर्व प्रथम पूज्य श्रीगणेश, भगवान शंकर-पार्वती, गुरुदेव, मां सरस्वती, गायत्रीदेवी, भगवान सूर्यदेव, इष्टदेव, कुलदेव तथा कुलदेवी का ध्यान अवश्य कर लें।
यह स्तोत्र रात्रि १० बजे से २ के मध्य किया जाए तो तत्काल फल देता है।
श्री प्रत्यंगिरायै नम:
अथ विनियोग
ऊँ ऐं अंगुष्ठाभ्यां नम:।
ऊँ हृी तर्जनीभ्यां नम:।
ऊँ श्री मध्यमाभ्यां नम:।
ऊँ प्रत्यंगिरे अनामिकाभ्यां नम:। ऊँ मां रक्ष कनिष्ठिकाभ्यां नम:।
ऊँ मम शत्रून्भञ्जय करतल कर पृष्ठाभ्यां नम: एवं हृदयादिन्यास:।
ऊँ भूर्भुव: स्व: इति दिग्बन्ध।
*मूल मन्त्र:-*
।।ऊँ ऐं हृीं श्रीं प्रत्यंगिरे मां रक्ष रक्ष मम।शत्रून्भञ्जय भन्ञ्जय फे हुँ फट् स्वाहा।।
*।।विपरीत प्रत्यंगिरा स्तोत्रम्।।*
अष्टोत्तरशतञ्चास्य जपं चैव प्रकीर्तितम्।
ऋषिस्तु भैरवो नाम छन्दोह्यनुष्टुप प्रकीर्तितम्।।
देवता दैशिका रक्ता वाम प्रत्यंगिरेति च।।
पूर्वबीजै: षडं्गानि कल्पयेत्साधकोत्तम:।
सर्वदृष्टोपचारैश्च ध्यायेत्प्रत्यंगिरां शुभां।।
टंकं कपालं डमरुं त्रिशूलं सम्भ्रिती चन्द्रकलावतंसा।
पिंगोध्र्वकेशाह्यसितभीमद्रंष्ट्रां भूयाद्विभूत्यै मम भद्रकाली।।
एवं ध्यात्वा जपेन्मंत्रमेकविंशतिवासरान्।
शत्रूणां नाशनं ह्येतत्प्रकाशोह्ययं सुनिश्चय:।।
अष्टम्यामर्धरात्रे तु शरदकाले महानिशि।
आधारिता चेच्छ्रीकाली तत्क्षणात् सिद्धिदानृणाम्।।
सर्वोपचारसम्पन्ना वस्त्ररत्नकलादिभि:।
पुष्पैश्च कृष्णवर्णैश्च साध्येत्कालिकां वराम्।।
वर्षादूध्र्वमजम्ममेषम्मृदं वाथ यथाविधि।
दद्यात् पूर्वं महेशानि ततश्च जपमाचरेत्।।
एकाहात् सिद्धिदा काली सत्यं सत्यं न संशय:।
मूलमन्त्रेण रात्रौ च होमं कुर्यात् समाहित:।।
मरीचलाजालवणैस्सार्षपैर्मरणं भवेत।
महाजनपदे चैव न भयं विद्यते क्वचित्।।
प्रेतपिण्डं समादाय गोलकं कारयेत्तत:।
मध्ये वामांकितं कृत्वा शत्रुरूपांश्च पुत्तलीन्।।
जीवं तत्र विधायैव चिताग्नौ जुहुयात्तत:।
तत्रायुतं जपं कुर्यात् त्रिराद्यं मारणं रिपो:।।
महाज्वाला भवेत्तस्य तद्वत्ताशलाकया।
गुदद्वारे प्रदद्यच्च सप्ताहान्मारणं रिपो:।।
प्रत्यंंगिरा मया प्रोक्ता पठिता पाठिता नरै:।
लिखित्वा च करे कण्ठे बाहौ शिरसि धारयेत्।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो नाल्पमृत्यु: कथंचन।
ग्रहा: ऋक्षास्तथा सिंहा भूता यक्षाश्च राक्षसा:।।
तस्या पीड़ां न कुर्वन्ति दिवि भुव्यन्तरिक्षगा:।
चतुष्पदेषु दुर्गेषु वनेषूपवनेषू च।।
श्मशाने दुर्गमे घोरे संग्रामे। शत्रुसंकटे।।
ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ ऊँ कुं कुं कुं मां सां खां पां लां क्षां ऊँ हृीं हृीं ऊँ ऊँ हृीं बां धां मां सां रक्षां कुरु। ऊँ हृीं हृीं ऊँ स: हुँ ऊँ ऊँ क्षौं वां लां धां मां सां रक्षां कुरु।
ऊँ ऊँ हुँ पुलं रक्षां कुरु।
ऊँ नमो विपरीतप्रत्यंगिरायै विद्यराज्ञि त्रैलोक्यवशंकरि तुष्टिपुष्टिकरि सर्वपीड़ापहारिणि सर्वापन्नाशिनि सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिनि मोदिनि सर्वशस्त्राणां भेदिनि क्षोभिणि तथा।
परमतन्त्रमन्त्रयन्त्रविषचूर्ण-सर्वप्रयोगादीन्येषां निवर्तयित्वा यत्कृतं तन्मेह्यतु कलिपातिनि सर्वहिंसा मा कारयति अनुमोदयति मनसा वाचा कर्मणा ये देवासुरराक्षसास्तियग्योनि-सर्वहिंसका विरूपकं कुर्वन्ति मम मन्त्रतन्त्रयन्त्रविषचूर्ण-सर्वप्रयोगादीनात्महस्तेन य: करोति करिष्यति कारयिष्यति तान् सर्वानन्येषां निवर्तयित्वा पातय कारय मस्तके स्वाहा।।।
इति श्री विपरीत प्रत्यिंगरा सम्पूर्णम्।।
*वगला प्रत्यंगिरा दिग्बन्धन:-*
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं श्यामा माम् पूर्वतः पातु,ॐ ऐं ह्लीं श्रीं आग्नेयां पातु तारिणी।।
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं महाविद्या दक्षिणे पातु,ॐ ऐं ह्लीं श्रीं नैऋत्यां षोडशी तथा।।
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं भुवनेशी पश्चिमायाम,ॐ ऐं ह्लीं श्रीं वायव्यां बगलामुखी।।
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं उत्तरे छिन्नमस्ता च,
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं ऐश्यान्याम धूमावती तथा।।
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं उर्ध्व तु, कमला पातुॐ ऐं ह्लीं श्रीं अन्तरिक्षं सर्वदेवताः।।
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं अधस्ताच्चैव मातंगी
ॐ ऐं ह्लीं श्रीं सर्वदिङ्गबगलामुखी।
।।इति दिग बंधन।।

Guru Sadhana News Update

Blogs Update

<