भगवती श्री-लक्ष्मी का विधिवत पूजन जिसमे ऋद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ का पूजन समाहित है |
श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यां बहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि
हे जगदीश्वर! ये समस्त ऐश्वर्य और समग्र शोभा अर्थात 'लक्ष्मी' और 'श्री' दोनों ही आपकी पत्नी तुल्य हैं, दिन और रात आपकी सृष्टि में विचरण करते रहते हैं, सूर्य चंद्र आपके मुख हैं | नक्षत्र आपके रूप है, मैं आपसे समस्त सुखों की कामना करता हूं |
यही प्रश्न हजारों वर्ष पहले हमारे ऋषि-मुनियों के मन में भी अवश्य आया होगा, तभी उन्होनें लक्ष्मी की पूर्ण व्याख्या की | प्रारम्भ के श्लोक में यही विवरण आया है कि लक्ष्मी, जो 'श्री' से भिन्न होते हुए भी "श्री" का ही स्वरुप हैं, जो पालनकर्ता विष्णु के साथ रहती हैं, जिनके चारों ओर सारे नक्षत्र, तारे, विचरण करते हैं, जो सारे लोकों में विद्यमान हैं, उस 'श्री'का मैं वन्दन करता हूं |
अर्थात 'श्री' ही मूल रूप से लक्ष्मी हैं और इसीलिए हमारी संस्कृति में 'मिस्टर' की जगह 'श्री' लिखा जाता है| अर्थात वह व्यक्ति, जो श्री से युक्त है, उसी के नाम के आगे 'श्री' लगाकर सम्बोधित किया जाता है|
'श्री सूक्त' जिसे 'लक्ष्मी सूक्त' भी कहा जाता है, उसमें लक्ष्मी का श्री रूप से ही प्रार्थना की गई है, जो वात्सल्यमयी हैं,धन-धान्य, संतान देने वाली हैं, जो मन और वाणी को दीप्त करती हैं, जिनके आने से दानशीलता प्राप्त होती है, जो वनस्पति और वृक्षों में स्थित हैं, जो कुबेर और अग्नि अर्थात तेजस्विता प्रदान करने वाली हैं, जो जीवन में परिश्रम का ज्ञान कराती हैं, जिसकी कृपा से मन में शुद्ध संकल्प और वाणी में सत्यता आती है,जो शरीर में तरलता और पुष्टि प्रदान करने वाली हैं, उस श्री के सांसारिक जीवन में स्थायी स्थान के लिए बार-बार प्रार्थना और नमन किया गया है |
श्री सूक्त में एक विशेष बात यह कही गई है कि लक्ष्मी की जेष्ट भगिनी अर्थात अलक्ष्मी अर्थात अलक्ष्मी अर्थात दरिद्रता है जो भूख और प्यास के साथ दुर्गन्धयुक्त है, अर्थात यदि जीवन में धन तो है लेकिन तृष्णाएं यथावत हैं, मानसिक रूप से विकारों में मलिनता है तो वह लक्ष्मी 'श्री' रुपी लक्ष्मी नहीं है और वह लक्ष्मी स्थायी रह भी नहीं सकती है |
जो 'श्री' रुपी लक्ष्मी है, वही जीवन में स्थायी रह सकती है, और इस श्री रुपी लक्ष्मी की नौ कलाओं का जब जीवन में पदार्पण होता है तभी जीवन में पूर्णता आ पाती है |
लक्ष्मी की नौ कलाएं
जिस व्यक्ति में लक्ष्मी की इन नौ कलाओं का विकास होता है, वहीं लक्ष्मी चिरकाल के लिए विराजमान होती है|
१. विभूति - सांसारिक कर्तव्य करते हुए दान रुपी कर्तव्य जहां विद्यमान होता है, अर्थात शिक्षा दान, रोगी सेवा, जल दान इत्यादि कर्तव्य हैं, वहां लक्ष्मी की 'विभूति' नामक पीठिका है, यह लक्ष्मी की पहली शक्ति है |
२. नम्रता - दूसरी शक्ति है नम्रता | व्यक्ति जितना नम्र होता है, लक्ष्मी उसे उतना ही ऊंचा उठाती है |
३. कान्ति - जब विभूति और कान्ति दोनों कलाएं आ जाती हैं, तो वह लक्ष्मी की तीसरी कला 'कान्ति' का पात्र हो जाता है, चेहरे पर एक तेज आता है |
४. तुष्टि - इन तीनों कलाओं की प्राप्ति होने पर 'तुष्टि' नामक चतुर्थ कला का आगमन होता है, वाणी सिद्धि, व्यवहार, गति, नए-नए कार्य, पुत्र-प्राप्ति, दिव्यता-सभी उसमें एक रास होती हैं|
५. कीर्ति - यह लक्ष्मी की पांचवी कला है, इसकी उपासना करने से साधक अपने जीवन में धन्य हो जाता है, संसार के आधार का अधिकारी हो जाता है |
६. सन्नति - कीर्ति-साधना से लक्ष्मी की छटी कला सन्नति मुग्ध होकर विराजमान होती है|
७. पुष्टि - इस कला द्वारा साधक अपने जीवन में जो सन्तुष्टि अनुभव करता है| उसे अपने जीवन का सार मालूम पड़ता है |
८. उत्कृष्टि - इस कला से जीवन में क्षय-दोष होता है वह समाप्त हो जाता है | केवल वृद्धि ही वृद्धि होती है |
९. ऋद्धि - सबसे महत्वपूर्ण, सर्वोत्तम कला ऋद्धि पीठाधिष्ठात्री है, जो बाकी आठ कलाओं के होने पर स्वतः ही समाविष्ट हो जाती है |
दीपावली रात्रि को विधिवत पूजन से श्री-लक्ष्मी, नौ कलाओं सहित घर में स्थायी निवास करती है |
पूजन सामग्री
कुंकुम,मौली, अगरबत्ती, केशर, कपूर, सिन्दूर, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, फल, पुष्प माला, गंगाजल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी), यज्ञोपवीत, वस्त्र, मिठाई एवं पंचपात्र|
पवित्रीकरण
संकल्प
दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न मन्त्र को पढ़े -
ॐ विष्णु विर्ष्णुः श्री मदभगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मनोहि द्वितीय परार्द्वे श्वेतवाराह्कल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे जम्बु द्वीपे भारतवर्षे अस्मिन पवित्र क्षेत्रे भौमवासरे अमुक गोत्रोत्पन्नहं (अपना गोत्र बोले), अमुक शर्माहं (अपना नाम बोले) यथा मिलितोपचारैः श्री महालक्ष्मी प्रीत्यर्थे तदंगत्वेन गणपति पूजनं च करिष्ये |
जल भूमि पर छोड़ दें |
गुरु पूजन
सामने गुरु यंत्र व् गुरु चित्र स्थापित कर लें तथा दोनों हाथ जोड़ कर निम्न मन्त्र का उच्चारण करें -
ऐसा बोलकर पाद्य, जल स्नान, तिलक, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य आदि समर्पित करें, फिर दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें -
गणपति-पूजन
इसके बाद दोनों हाथ जोड़ कर भगवान् गणपति का ध्यान करें -
भगवान् गणपति को आसन के लिए पुष्प समर्पित करें | इसके बाद सामने स्थापित 'महागणपति-महालक्ष्मी' यंत्र अथवा विग्रह को जल से स्नान करावें, फिर पंचामृत स्नान करावें, स्नान के समय निम्न मन्त्र बोलें -
इसके बाद दोनों हाथ जोड़ कर भगवती महालक्ष्मी का ध्यान करें -
महालक्ष्मी ध्यान
दोनों हाथ जोड़कर मन ही मन स्मरण करें कि भगवती महालक्ष्मी आकर विराजमान हो, प्रार्थना करे -
आसन
आसन के लिए पुष्प अर्पित करें -
पाद्य
पंचामृत स्नान
पंचामृत से भगवती महालक्ष्मी को स्नान कराये -
शुद्धोदक स्नान
इसके बाद उन्हें शुद्ध जल से स्नान करायें -
वस्त्र
वस्त्र समर्पित करे -
आभूषण
गन्ध
इत्र चढ़ावें
इसके बाद कुंकुम, चावल तथा पुष्प मिला कर निम्न मन्त्रों का उच्चारण करते हुए यंत्र पर चढ़ायें -
दीप
नैवेद्य
ताम्बूल
लौंग इलायची युक्त पान समर्पित करें -
दक्षिणा
दक्षिणा द्रव्य समर्पित करें -
इसके बाद 'कमलगट्टे की माला' से निम्न मन्त्र का १ माला मन्त्र जप करें -
आरती
इसके बाद घी की पांच बत्ती की आरती बना कर आरती करें -
लक्ष्मी आरती के लिए यहां क्लीक करें - लक्ष्मी आरती
जल आरती
तीन बार आचमनी से जल लेकर दीपक के चरों ओर घुमायें तथा निम्न मन्त्र का उच्चारण करें -
दोनों हाथों में पुष्प लेकर निम्न मन्त्र का उच्चारण करें तथा यंत्र अथवा विग्रह पर चढ़ा दे -
इसके बाद निम्न समर्पण मन्त्र का उच्चारण करते हुए पूजन व् जप भगवती लक्ष्मी को समर्पित करें, जिससे कि इसका फल आपको प्राप्त हो सके -
एक आचमनी जल लेकर, पूजन की पूर्णता हेतु भूमि पर छोड़ दें | इसके बाद वहा उपस्थित परिवार के सभी सदस्यों एवं स्वजनों को प्रसाद वितरित करें|
इस प्रकार यह सम्पूर्ण पूजन व् साधना संपन्न होती है| साधना समाप्ति के पश्चात सवा माह तक नित्य कमलगट्टे की माला से - || ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी आगच्छ आगच्छ धनं देहि देहि ॐ || मंत्र का १ माला जप करें | सवा माह पश्चात माला तथा यंत्र को जल में विसर्जित कर दें | Diwali Complete Laxmi Puja, दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी पूजन, Simple Lakshmi Pooja at home, Deepavali Lakshmi Pooja 2024, Lakshmi pooja at home on Fridays, Lakshmi Pooja Mantra, Diwali Puja Date 2024, How to do Lakshmi Pooja at home daily, Lakshmi Puja date and time, Laxmi Puja Diwali,
दीपावली, जिसे भारत में प्रकाश का त्योहार कहा जाता है, अपने साथ खुशियाँ, उत्साह और समृद्धि लेकर आती है। इस दिन, लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है, जो धन, समृद्धि और भाग्य की देवी, माँ लक्ष्मी को समर्पित होता है। लक्ष्मी पूजन की संपूर्ण विधि एक विस्तृत प्रक्रिया है जिसमें श्रद्धा और भक्ति के साथ कई चरण शामिल होते हैं।
पूजन की शुरुआत घर की सफाई से होती है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा को दूर किया जा सके और सकारात्मक ऊर्जा का आगमन हो। इसके बाद, पूजा स्थल को सजाया जाता है, जिसमें रंगोली बनाना, दीपक जलाना और लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों को स्थापित करना शामिल है। पूजा की सामग्री में कलावा, रोली, सिंदूर, नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र, फूल, सुपारी, लौंग, पान के पत्ते, घी, कलश, आम के पत्ते, चौकी, समिधा, हवन कुंड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत, फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने के लिए आसन, हल्दी, अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, रूई, आरती की थाली, कुशा, चंदन आदि शामिल होते हैं।
पूजन विधि में देवी लक्ष्मी का आह्वान, उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करना, उनके चरणों का प्रक्षालन, अर्घ्य देना, स्नान कराना, वस्त्र और आभूषण अर्पित करना, गंध और चंदन लगाना, षोडशोपचार पूजन, और अंत में आरती और प्रसाद वितरण शामिल हैं। पूजन के दौरान विभिन्न मंत्रों का जाप भी किया जाता है, जो देवी की उपस्थिति और आशीर्वाद को आकर्षित करते हैं।
दीपावली के इस पवित्र अवसर पर, लक्ष्मी पूजन की इस संपूर्ण विधि का पालन करने से न केवल घर में समृद्धि और सुख-शांति आती है, बल्कि यह परिवार के सदस्यों को एक साथ लाने का भी एक अवसर प्रदान करता है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि प्रकाश हमेशा अंधकार पर विजय प्राप्त करता है, और ज्ञान अज्ञानता को मिटा देता है। इसलिए, इस दीपावली पर, आइए हम सभी अपने दिलों में प्रकाश और ज्ञान का दीप जलाएँ और एक उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ें।