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Diwali Complete Laxmi Puja दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी पूजन

Diwali Complete Laxmi Puja दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी पूजन

सोमवार, 29 अक्तूबर 2018


दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी पूजन

दीपावली, जिसे प्रकाश का त्योहार भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण उत्सव है जो समृद्धि, धन और अच्छे भाग्य के देवी माँ लक्ष्मी की पूजा से जुड़ा हुआ है। इस दिन, घरों को दीपों और रंगोली से सजाया जाता है, और लक्ष्मी पूजन के लिए विशेष तैयारियाँ की जाती हैं। सम्पूर्ण लक्ष्मी पूजन में षोडशोपचार पूजा विधि शामिल होती है, जिसमें सोलह चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में विशिष्ट मंत्रों का जाप और विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है। पूजा की शुरुआत में घर को शुद्ध करने, नवीन लक्ष्मी प्रतिमा की स्थापना, और रंगोली बनाने से होती है। इसके बाद, देवी लक्ष्मी के आह्वान, आसन समर्पण, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य समर्पण के चरण आते हैं। पूजा के अंत में तांबूल, नारियल, फल, दक्षिणा और आरती के साथ पूजा समाप्त होती है और प्रसाद वितरण किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को सही मुहूर्त के अनुसार करने का विशेष महत्व होता है, जिससे कि पूजा का उचित फल प्राप्त हो सके। दीपावली के इस पवित्र अवसर पर, लोग अपने घरों और दुकानों में लक्ष्मी पूजन करते हैं, जिससे वे धन, समृद्धि और सफलता की कामना करते हैं। यह पूजा न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि यह पारिवारिक एकता और सामाजिक सद्भाव को भी बढ़ावा देती है। दीपावली की रात को, आकाश में आतिशबाजी की चमक और घरों में दीपों की रोशनी से पूरा वातावरण जगमगा उठता है, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। इस त्योहार के माध्यम से, लोग नई शुरुआत की आशा करते हैं और अपने जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह का स्वागत करते हैं।

भगवती श्री-लक्ष्मी का विधिवत पूजन जिसमे ऋद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ का पूजन समाहित है |


श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यां बहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि
रूप मश्विनो! इष्णन्निषाणां मुम्म ईषाणा सर्वलोकम्म ईषाणा |

हे जगदीश्वर! ये समस्त ऐश्वर्य और समग्र शोभा अर्थात 'लक्ष्मी' और 'श्री' दोनों ही आपकी पत्नी तुल्य हैं, दिन और रात आपकी सृष्टि में विचरण करते रहते हैं, सूर्य चंद्र आपके मुख हैं | नक्षत्र आपके रूप है, मैं आपसे समस्त सुखों की कामना करता हूं |
यही प्रश्न हजारों वर्ष पहले हमारे ऋषि-मुनियों के मन में भी अवश्य आया होगा, तभी उन्होनें लक्ष्मी की पूर्ण व्याख्या की | प्रारम्भ के श्लोक में यही विवरण आया है कि लक्ष्मी, जो 'श्री' से भिन्न होते हुए भी "श्री" का ही स्वरुप हैं, जो पालनकर्ता विष्णु के साथ रहती हैं, जिनके चारों ओर सारे नक्षत्र, तारे, विचरण करते हैं, जो सारे लोकों में विद्यमान हैं, उस 'श्री'का मैं वन्दन करता हूं |
अर्थात 'श्री' ही मूल रूप से लक्ष्मी हैं और इसीलिए हमारी संस्कृति में 'मिस्टर' की जगह 'श्री' लिखा जाता है|  अर्थात वह व्यक्ति, जो श्री से युक्त है, उसी के नाम के आगे 'श्री' लगाकर सम्बोधित किया जाता है|
'श्री सूक्त' जिसे 'लक्ष्मी सूक्त' भी कहा जाता है, उसमें लक्ष्मी का श्री रूप से ही प्रार्थना की गई है, जो वात्सल्यमयी हैं,धन-धान्य, संतान देने वाली हैं, जो मन और वाणी को दीप्त करती हैं, जिनके आने से दानशीलता प्राप्त होती है, जो वनस्पति और वृक्षों में स्थित हैं, जो कुबेर और अग्नि अर्थात तेजस्विता प्रदान करने वाली हैं, जो जीवन में परिश्रम का ज्ञान कराती हैं, जिसकी कृपा से मन में शुद्ध संकल्प और वाणी में सत्यता आती है,जो शरीर में तरलता और पुष्टि प्रदान करने वाली हैं, उस श्री के सांसारिक जीवन में स्थायी स्थान के लिए बार-बार प्रार्थना और नमन किया गया है |
श्री सूक्त में एक विशेष बात यह कही गई है कि लक्ष्मी की जेष्ट भगिनी अर्थात अलक्ष्मी अर्थात अलक्ष्मी अर्थात दरिद्रता है जो भूख और प्यास के साथ दुर्गन्धयुक्त है, अर्थात यदि जीवन में धन तो है लेकिन तृष्णाएं यथावत हैं, मानसिक रूप से विकारों में मलिनता है तो वह लक्ष्मी 'श्री' रुपी लक्ष्मी नहीं है और वह लक्ष्मी स्थायी रह भी नहीं सकती है |
जो 'श्री' रुपी लक्ष्मी है, वही जीवन में स्थायी रह सकती है, और इस श्री रुपी लक्ष्मी की नौ कलाओं का जब जीवन में पदार्पण होता है तभी जीवन में पूर्णता आ पाती है |
लक्ष्मी की नौ कलाएं
जिस व्यक्ति में लक्ष्मी की इन नौ कलाओं का विकास होता है, वहीं लक्ष्मी चिरकाल के लिए विराजमान होती है|
१. विभूति - सांसारिक कर्तव्य करते हुए दान रुपी कर्तव्य जहां विद्यमान होता है, अर्थात शिक्षा दान, रोगी सेवा, जल दान इत्यादि कर्तव्य हैं, वहां लक्ष्मी की 'विभूति' नामक पीठिका है, यह लक्ष्मी की पहली शक्ति है |
२. नम्रता - दूसरी शक्ति है नम्रता | व्यक्ति जितना नम्र होता है, लक्ष्मी उसे उतना ही ऊंचा उठाती है |
३. कान्ति - जब विभूति और कान्ति दोनों कलाएं आ जाती हैं, तो वह लक्ष्मी की तीसरी कला 'कान्ति' का पात्र हो जाता है, चेहरे पर एक तेज आता है |
४. तुष्टि - इन तीनों कलाओं की प्राप्ति होने पर 'तुष्टि' नामक चतुर्थ कला का आगमन होता है, वाणी सिद्धि, व्यवहार, गति, नए-नए कार्य, पुत्र-प्राप्ति, दिव्यता-सभी उसमें एक रास होती हैं|
५. कीर्ति - यह लक्ष्मी की पांचवी कला है, इसकी उपासना करने से साधक अपने जीवन में धन्य हो जाता है, संसार के आधार का अधिकारी हो जाता है |
६. सन्नति - कीर्ति-साधना से लक्ष्मी की छटी कला सन्नति मुग्ध होकर विराजमान होती है|
७. पुष्टि - इस कला द्वारा साधक अपने जीवन में जो सन्तुष्टि अनुभव करता है| उसे अपने जीवन का सार मालूम पड़ता है |
८. उत्कृष्टि - इस कला से जीवन में क्षय-दोष होता है वह समाप्त हो जाता है | केवल वृद्धि ही वृद्धि होती है |
९. ऋद्धि - सबसे महत्वपूर्ण, सर्वोत्तम कला ऋद्धि पीठाधिष्ठात्री है, जो बाकी आठ कलाओं के होने पर स्वतः ही समाविष्ट हो जाती है |
दीपावली रात्रि को विधिवत पूजन से श्री-लक्ष्मी, नौ कलाओं सहित घर में स्थायी निवास करती है |
पूजन सामग्री
कुंकुम,मौली, अगरबत्ती, केशर, कपूर, सिन्दूर, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, फल, पुष्प माला, गंगाजल, पंचामृत (दूध,  दही, घी, शहद और चीनी), यज्ञोपवीत, वस्त्र, मिठाई एवं पंचपात्र|
पवित्रीकरण

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा |
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ||

संकल्प
दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न मन्त्र को पढ़े -
ॐ विष्णु विर्ष्णुः श्री मदभगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मनोहि द्वितीय परार्द्वे श्वेतवाराह्कल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे जम्बु द्वीपे भारतवर्षे अस्मिन पवित्र क्षेत्रे भौमवासरे अमुक गोत्रोत्पन्नहं (अपना गोत्र बोले), अमुक शर्माहं (अपना नाम बोले) यथा मिलितोपचारैः श्री महालक्ष्मी प्रीत्यर्थे तदंगत्वेन गणपति पूजनं च करिष्ये |
जल भूमि पर छोड़ दें |
गुरु पूजन
सामने गुरु यंत्र व् गुरु चित्र स्थापित कर लें तथा दोनों हाथ जोड़ कर निम्न मन्त्र का उच्चारण करें -
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर |
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ||
गुरुं आवाहयामि स्थापयामि नमः |
पाद्यं स्नानं तिलकं पुष्पं धूपं
दीपं नैवेद्यं च समर्पयामि नमः ||

ऐसा बोलकर पाद्य, जल स्नान, तिलक, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य आदि समर्पित करें, फिर दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें -
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया |
चक्षुरन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ||

गणपति-पूजन
इसके बाद दोनों हाथ जोड़ कर भगवान् गणपति का ध्यान करें -
गजाननं भूत गणाधिसेवितं,
कपित्थ जम्बूफल चरुभक्षणं|
उमासुतं शोक विनाश कारकं ;
नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ||
ॐ गणेशाय नमः ध्यानं समर्पयामि ||

भगवान् गणपति को आसन के लिए पुष्प समर्पित करें |  इसके बाद सामने स्थापित 'महागणपति-महालक्ष्मी' यंत्र अथवा विग्रह को जल से स्नान करावें, फिर पंचामृत स्नान करावें, स्नान के समय निम्न मन्त्र बोलें -
पञ्च नद्यः सरस्वती मपियन्ति सस्त्रोतसः |
सरस्वती तू पञ्चधा सोदेशेभवत सरित ||

इसके बाद चन्दन, अक्षत, पुष्पमाला, नैवेद्य आदि समर्पित करें तथा धुप-दीप दिखाएं -
चन्दनं अक्षतान पुष्प मालां
नैवेद्यं च समर्पयामि नमः |
धूपं दीपं दर्शयामि नमः ||

इसके बाद तीन बार मुख शुद्धि के लिए आचमन करायें, इलायची और लौंग आदि से युक्त पान चढ़ायें|  फिर दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें  -
नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः |
नमस्ते रुद्ररूपाय करिरूपाय ते नमः ||
विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे |
भक्तिप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक ||
ॐ गं गणपतये नमः |
निर्विघ्नमस्तु|  निर्विघ्नमस्तु | निर्विघ्नमस्तु |
अनेन कृतेन पूजनेन सिद्धि बुद्धि सहितः ||
श्री भगवान् गणाधिपतिः प्रीयन्ताम ||

इसके बाद दोनों हाथ जोड़ कर भगवती महालक्ष्मी का ध्यान करें -
ॐ अम्बेअम्बिके अम्बालिके न मा नयति कश्चन|
ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम ||
श्री महालक्ष्म्यै नमः आवाहनं समर्पयामि ||

महालक्ष्मी ध्यान
दोनों हाथ जोड़कर मन ही मन स्मरण करें कि भगवती महालक्ष्मी आकर विराजमान हो, प्रार्थना करे  -
पदमासना पदमकरां पदममाला विभूषिताम |
क्षीर सागर संभूतां हेमवर्ण समप्रभाम ||
क्षीर वर्ण समं वस्त्रं दधानं हरिवल्लभाम |
भावये भक्तियोगेन भार्गवीं कमलां शुभां ||
श्री महालक्ष्म्यै नमः ध्यानं समर्पयामि ||

आसन
आसन के लिए पुष्प अर्पित करें  -
श्री महालक्ष्म्यै नमः आसनं समर्पयामि नमः ||

पाद्य
पाद्य के लिए दो आचमनी जल चढ़ायें  -
श्री महालक्ष्म्यै नमः पाद्यं समर्पयामि |
अर्घ्यं आचमनीयं स्नानं च समर्पयामि ||

पंचामृत स्नान
पंचामृत से भगवती महालक्ष्मी को स्नान कराये -
मध्वाज्यशर्करायुक्तं दधिक्षीरसमन्वितम |
पंचामृतं गृहाणेदं पंचास्यप्राणवल्लभे |
श्री महालक्ष्म्यै नमः पंचामृत स्नानं समर्पयामि ||

शुद्धोदक स्नान
इसके बाद उन्हें शुद्ध जल से स्नान करायें -
परमानन्द बोधाब्धि निमग्न निजमूर्तये |
शुद्धोदकैस्तु स्नानं कल्पयाम्यम्ब शंकरि ||
श्री महालक्ष्म्यै नमः  शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ||

वस्त्र
वस्त्र समर्पित करे  -
श्री महालक्ष्म्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि ||

आभूषण
श्री महालक्ष्म्यै नमः आभूषणं समर्पयामि ||

गन्ध
इत्र चढ़ावें
श्री महालक्ष्म्यै नमः गन्धं समर्पयामि ||

अक्षत
श्री महालक्ष्म्यै नमः अक्षतान समर्पयामि ||

पुष्प
श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पाणि समर्पयामि ||

इसके बाद कुंकुम, चावल तथा पुष्प मिला कर निम्न मन्त्रों का उच्चारण करते हुए यंत्र पर चढ़ायें -
ॐ चपलायै नमः पादौ पूजयामि ||
ॐ चञ्चलायै नमः कटिं पूजयामि ||
ॐ कमलायै नमः कटिं पूजयामि ||
ॐ कात्यायन्यै नमः नाभिं पूजयामि ||
ॐ जगन्मात्रे नमः जठरं पूजयामि ||
ॐ विश्ववल्लभायै नमः वक्षःस्थलं पूजयामि ||
ॐ कमलवासिन्यै नमः हस्तौ पूजयामि ||
ॐ पाद्याननायै नमः मुखं पूजयामि ||
ॐ कमलपत्राख्यै नमः नेत्रत्रयं पूजयामि ||
ॐ श्रियै नमः शिरः पूजयामि ||
ॐ महालक्ष्म्यै नमः सर्वाङ्गं पूजयामि ||
धूप
श्री महालक्ष्म्यै नमः धूपं आघ्रापयामि ||

दीप
श्री महालक्ष्म्यै नमः दीपं दर्शचयामि ||

नैवेद्य
नाना विधानी  भक्ष्याणी
व्यञ्जनानी       हरिप्रिये |
यथेष्टं   भूङक्ष्व    नैवेद्यं |
षडरसं   च    चतुर्विधम ||
श्री महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि ||
नैवेद्य समर्पित कर तीन बार जल का आचमन कराएं |
ताम्बूल
लौंग इलायची युक्त पान समर्पित करें -
श्री महालक्ष्म्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि ||

दक्षिणा
दक्षिणा द्रव्य समर्पित करें  -
श्री महालक्ष्म्यै नमः दक्षिणां समर्पयामि ||

इसके बाद 'कमलगट्टे की माला' से निम्न मन्त्र का १ माला मन्त्र जप करें -
|| ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी आगच्छ आगच्छ धनं देहि देहि ॐ ||

आरती
इसके बाद घी की पांच बत्ती की आरती बना कर आरती करें  -
लक्ष्मी आरती के लिए यहां क्लीक करें  - लक्ष्मी आरती
जल आरती
तीन बार आचमनी से जल लेकर दीपक के चरों ओर घुमायें तथा निम्न मन्त्र का उच्चारण करें -
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष (गूं ) शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्ति
रोषधयः शान्तिः | वनस्पतयः शान्ति र्विश्वे देवाः शान्तिः ब्रह्म
शान्तिः सर्व (गूं ) शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ||

पुष्पाञ्जलि
दोनों हाथों में पुष्प लेकर निम्न मन्त्र का उच्चारण करें तथा यंत्र अथवा विग्रह पर चढ़ा दे -
नाना सुगंध पुष्पाणि यथा कालोदभवानि च |
पुष्पाञ्जलिर्मया दत्ता गृहाण जगदम्बिके ||
श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पांजलि समर्पयामि ||

समर्पण
इसके बाद निम्न समर्पण मन्त्र का उच्चारण करते हुए पूजन व् जप भगवती लक्ष्मी को समर्पित करें, जिससे कि इसका फल आपको प्राप्त हो सके -
ॐ     तत्सत         ब्रह्मार्पणमस्तु,
अनेन कृतेन पूजाराधन कर्मणा |
श्री  महालक्ष्मी  देवता  परासंवित
स्वरूपिणी                प्रियनताम ||

एक आचमनी जल लेकर, पूजन की पूर्णता हेतु भूमि पर छोड़ दें | इसके बाद वहा उपस्थित परिवार के सभी सदस्यों एवं स्वजनों को प्रसाद वितरित करें|

इस प्रकार यह सम्पूर्ण पूजन व् साधना संपन्न होती है| साधना समाप्ति के पश्चात सवा माह तक नित्य कमलगट्टे की माला से - || ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी आगच्छ आगच्छ धनं देहि देहि ॐ || मंत्र का १ माला जप करें | सवा माह पश्चात माला तथा यंत्र को जल में विसर्जित कर दें | Diwali Complete Laxmi Puja, दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी पूजन, Simple Lakshmi Pooja at home, Deepavali Lakshmi Pooja 2024, Lakshmi pooja at home on Fridays, Lakshmi Pooja Mantra, Diwali Puja Date 2024, How to do Lakshmi Pooja at home daily, Lakshmi Puja date and time, Laxmi Puja Diwali,


दीपावली, जिसे भारत में प्रकाश का त्योहार कहा जाता है, अपने साथ खुशियाँ, उत्साह और समृद्धि लेकर आती है। इस दिन, लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है, जो धन, समृद्धि और भाग्य की देवी, माँ लक्ष्मी को समर्पित होता है। लक्ष्मी पूजन की संपूर्ण विधि एक विस्तृत प्रक्रिया है जिसमें श्रद्धा और भक्ति के साथ कई चरण शामिल होते हैं।

पूजन की शुरुआत घर की सफाई से होती है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा को दूर किया जा सके और सकारात्मक ऊर्जा का आगमन हो। इसके बाद, पूजा स्थल को सजाया जाता है, जिसमें रंगोली बनाना, दीपक जलाना और लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों को स्थापित करना शामिल है। पूजा की सामग्री में कलावा, रोली, सिंदूर, नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र, फूल, सुपारी, लौंग, पान के पत्ते, घी, कलश, आम के पत्ते, चौकी, समिधा, हवन कुंड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत, फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने के लिए आसन, हल्दी, अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, रूई, आरती की थाली, कुशा, चंदन आदि शामिल होते हैं।

पूजन विधि में देवी लक्ष्मी का आह्वान, उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करना, उनके चरणों का प्रक्षालन, अर्घ्य देना, स्नान कराना, वस्त्र और आभूषण अर्पित करना, गंध और चंदन लगाना, षोडशोपचार पूजन, और अंत में आरती और प्रसाद वितरण शामिल हैं। पूजन के दौरान विभिन्न मंत्रों का जाप भी किया जाता है, जो देवी की उपस्थिति और आशीर्वाद को आकर्षित करते हैं।

दीपावली के इस पवित्र अवसर पर, लक्ष्मी पूजन की इस संपूर्ण विधि का पालन करने से न केवल घर में समृद्धि और सुख-शांति आती है, बल्कि यह परिवार के सदस्यों को एक साथ लाने का भी एक अवसर प्रदान करता है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि प्रकाश हमेशा अंधकार पर विजय प्राप्त करता है, और ज्ञान अज्ञानता को मिटा देता है। इसलिए, इस दीपावली पर, आइए हम सभी अपने दिलों में प्रकाश और ज्ञान का दीप जलाएँ और एक उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ें।


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