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ब्रह्मकृत सरस्वती स्तोत्र प्रयोग
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प्रिय बंधुओं,
जीवन में लक्ष्मी जितनी अधिक महत्वपूर्ण है, उतनी ही महत्वपूर्ण सरस्वती भी है। दूसरे शब्दों में जीवन में धन जितना अधिक महत्वपूर्ण है, उतने ही महत्वपूर्ण बुद्धि और विवेक भी हैं। राजाओं के दरबार में धनवान की पूजा नहीं होती थी, परंतु विद्वान की तो वहां भी पूजा होती थी। बुद्धि और विवेक के अभाव में व्यक्ति प्राप्त धन को भी गंवा देता है। धन तो जेबकतरे, स्मगलर, लुटेरे और डाकू भी प्राप्त कर लेते हैं, परंतु उनका कोई सम्मान नहीं होता। सम्मान के लिए भगवती सरस्वती की कृपा प्राप्त करना महत्वपूर्ण और आवश्यक है।
संस्कृत का एक प्रसिद्ध श्लोक है ::
अधमा धनमिच्छन्ति, धनं मानं च मध्यमाः।
उत्तमा मानमिच्छन्ति, मानो हि महतां धनम्।।
अर्थात् निम्न स्तर के लोग येन केन प्रकारेण धन की कामना करते हैं। मध्यम स्तर के लोग धन और सम्मान, दोनों की इच्छा रखते हैं। परंतु उत्तम स्तर के लोग केवल सम्मान को ही महत्त्व देते हैं, धन को नहीं। वस्तुत: मान-सम्मान और प्रतिष्ठा का महत्त्व धन की तुलना में बहुत अधिक है।
सच्ची बात तो यह है कि योग्यता के पीछे धन स्वयं खिंचा चला आता है। ....और योग्यता के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है, परिश्रम के द्वारा ज्ञान अर्जित करने की आवश्यकता होती है, सरस्वती साधना की आवश्यकता होती है, सरस्वती की कृपा की आवश्यकता होती है।
वसंत पंचमी का महापर्व सरस्वती की आराधना के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना दीपावली महापर्व लक्ष्मी की आराधना के लिए है। इसी आसन्न सरस्वती सिद्धि दिवस अर्थात वसंत पंचमी को दृष्टिगोचर रखते हुए आज ग्रुप में स्वयं पारमेष्ठि गुरु भगवान ब्रह्मा द्वारा विरचित और सदगुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा प्रदत्त दुर्लभ सरस्वती स्तोत्र प्रेषित किया जा रहा है, जिसके माध्यम से भगवती सरस्वती की महान कृपा को प्राप्त किया जा सकता है, सरस्वती पुत्र (अर्थात विद्वान) बना जा सकता है और जब व्यक्ति विशुद्ध चक्र की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की कृपा को प्राप्त कर लेता है, तो धन उसके आगे-पीछे परिक्रमा करता हुआ दृष्टिगोचर होता है।
आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि प्रत्येक साधक और प्रत्येक साधिका, प्रत्येक गुरु भाई और प्रत़्येक गुरु बहिन इस महानतम स्तोत्र का अपनी दैनिक साधना में अवश्य ही समावेश करेंगे और नवार्ण मंत्र में वर्णित त्रिशक्ति में से प्रथम महाशक्ति भगवती महासरस्वती की पूर्ण कृपा प्राप्त करने में सफल होंगे।
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।। सद्गुरु कृपा हि केवलम् ।।