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महाकालीसाधना

महाकालीसाधना

#महाकाली_जयंती_ पर्व भाद्रपद कृष्णपक्ष अष्टमी को मनाया जाता हैं। इस अवसर पर महाकालीसाधना प्रस्तुत कर रहे है ..
सनातन धर्म में काली का विशेष महत्त्व है! इनके स्वरूप की कल्पना करने से ही शरीर में सिहरन सी होने लगती है. ये साधना तीक्ष्ण प्रभाव से युक्त होती है और साधक के मूलाधार चक्र से जुड़ी होती है। माना जाता है की इनकी साधना में कई कठिन नियम होते हैं। जिनका पालन करना जरुरी होता है और इसके अभाव में महाकाली साधना के दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते है. यही वजह है की इस साधना को पूरा करना हर किसी के बस की बात नहीं होती है।
महाकाली शमशानी साधना एक खास साधना में से एक है जिसमे साधना को शमसान में संपन्न किया जाता है. जो लोग गृहस्थ होते है उन्हें इस साधना के लिए मनाही की जाती है क्यों की इस साधना से जुड़े कई नियम ऐसे है जिन्हें गृहस्थ व्यक्ति नहीं कर सकता है।
दस महाविद्या में से एक महाकाली सिद्ध साधना तुरंत प्रभाव और फल देने वाली साधना में से एक है जिन्हें कर आप शत्रु दमन, धन वैभव प्राप्त कर सकते हैं।
महाकाली साधना सिद्धि
उनका प्रियवार शुक्रवार है और प्रिय तिथि अमावस्या है. मां काली का सरल मंत्र है-
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा।
महाकाली की प्रसन्नता के लिए उनकी फोटो या प्रतिमा के समक्ष मंत्र जाप करना चाहिए. पूर्ण श्रद्धा से मां काली की उपासना से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं. ऐसा माना जाता है की तंत्र लोग से जुड़े लोगो की गति मुश्किल होती है लेकिन इस साधना को सिद्ध करने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अगर आप शत्रु से परेशान है और धन वैभव की कमी से जूझ रहे है तो आपको महाकाली सिद्ध शाबर साधना को संपन्न करना चाहिए. देवी के 4 स्वरूप है 1 दक्षिण काली, 2 शमसान काली, 3 माँ काली और 4 महाकाली इनका प्रभाव साधना के अनुसार देखने को मिलता है।
महाकाली साधना सिद्धि
दस महाविद्याओं में सर्वश्रेष्ठ महाकाली कलियुग में कल्पवृक्ष के समान शीघ्र फलदायक एवं साधक की समस्त कामनाओं की पूर्ति में सहायक हैं. जब जीवन के पुण्य जाग्रत होते है. तभी साधक ऐसी प्रबल शत्रुहन्ता, महिषासुर मर्दिनी, वाक् सिद्धि प्रदायक महाकाली की साधना में रत होता है. जो साधक इस साधना में सिद्धि प्राप्त कर लेता है, उसके जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता और भोग तथा मोक्ष दोनों में समान रूप से सम्पन्नता प्राप्त कर वह जीवन में सभी दृष्टियों से पूर्णता प्राप्त कर लेता है।
संसार में सैकड़ों-हजारों साधनाएं हैं, परन्तु हमारे महर्षियों ने इन सभी साधनाओं में दस महाविद्याओं की साधना को प्रमुखता और महत्व दिया है. जो साधक अपने जीवन में जितनी ही महाविद्या साधनाएं सम्पन्न करता है, वह उतना ही श्रेष्ठ साधक बन सकता है, परन्तु बिना भाग्य के इस प्रकार की महत्वपूर्ण साधनाओं को सिद्ध करने का अवसर नहीं मिलता।
दस महाविद्याओं में भी काली महाविद्या सर्वप्रमुख, महत्वपूर्ण और अद्वितीय कही गई है, क्योंकि यह त्रिवर्गात्मक महादेवियों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती में प्रमुख है. शास्त्रों के अनुसार मात्र महाकाली साधना से ही जीवन की समस्त कामनाओं की पूर्ति और मनोवांछित फल प्राप्ति सम्भव होती है।
इस सम्बन्ध में हम साधनात्मक ग्रंथों को टटोल कर देखें तो लगभग सभी योगियों, संन्यासियों, विचारकों, साधकों और महर्षियों ने एक स्वर से महाकाली साधना को प्रमुखता और महत्व प्रदान किया है।
साधना का महत्व
दस महाविद्याओं में प्रमुख और शीघ्र फलदायक होने के कारण पिछले हजारों वर्षों में हजारों-हजारों साधक इस साधना को सम्पन्न करते आये हैं और उच्चकोटि के साधकों के मन में भी यह तीव्र लालसा रहती है, कि अवसर मिलने पर किसी प्रकार से महाकाली साधना सम्पन्न कर ली जाय. फिर भी जिन साधकों ने काली साधना को सिद्ध किया है, उनके अनुसार निम्न तथ्य तो साधना सम्पन्न करते ही प्राप्त हो जाते हैं।
अथ कालीमन्वक्ष्ये सद्योवाक्सिद्धिपायकान्।
आरावितैर्यः सर्वेष्टं प्राप्नुवन्ति जना भुवि।।
अर्थात् काली साधना से तुरन्त वाक् सिद्धि (जो भी कहा जाय, वह सत्य हो जाय) तथा इस लोक में समस्त मनोवांछित फल प्राप्त करने में सक्षम हो पाता है।
इस साधना को सिद्ध करने से व्यक्ति समस्त रोगों से मुक्त होकर पूर्ण स्वस्थ, सबल एवं सक्षम होता है।
यह साधना जीवन के समस्त भोगों को दिलाने में समर्थ है, साथ ही काली साधना से मृत्यु के उपरान्त मोक्ष प्राप्ति होती है।
शत्रुओं का मान मर्दन करने, उन पर विजय पाने, मुकदमे में सफलता और पूर्ण सुरक्षा के लिए इससे बढ़कर कोई साधना नहीं है.
इस साधना से दस महाविद्याओं में से एक महाविद्या सिद्ध हो जाती है, जिससे सिद्धाश्रम जाने का मार्ग प्रशस्त होता है.
इस साधना की सिद्धि से तुरन्त आर्थिक लाभ और प्रबल पुरुषार्थ प्राप्ति सम्भव होती है.
‘काली पुत्रे फलप्रदः’ के अनुसार काली साधना योग्य पुत्र की प्राप्ति व पुत्र की उन्नति, उसकी सुरक्षा और उसे पूर्ण आयु प्रदान करने के लिए श्रेष्ठ साधना कही गई है।
वस्तुतः काली साधना को संसार के श्रेष्ठ साधकों और विद्वानों ने अदभुत और शीघ्र सिद्धि देने वाली साधना कहा है, इस साधना से साधक अपने जीवन के सारे अभाव को दूर कर अपने भाग्य को बनाता हुआ पूर्ण सफलता प्राप्त करता है।
साधना के अनुकूल समय
महाविद्या साधनाओं में नवरात्रि का तो विशेष महत्व रहता है. क्योंकि ये दिन इस प्रकार की साधनाओं के लिए सर्वोपरि हैं। फिर आश्विन शुक्ल प्रतिप्रदा से जो नवरात्रि प्रारम्भ होती है, वह तो महत्वपूर्ण है ही, इसलिए साधक को चाहिए कि वे नवरात्रि का चयन इस प्रकार की साधना के लिए विशेष रूप से करें।
जो साधक अपने गृहस्थ जीवन में सभी प्रकार की उन्नति चाहते हैं, जो निष्काम भाव से काली की साधना सम्पन्न कर साक्षात् दर्शन करना चाहते हैं, जो अपने जीवन में भोग और मोक्ष दोनों फल समान रूप से प्राप्त करना चाहते है, उन्हें अवश्य ही महाकाली साधना सम्पन्न करनी चाहिए, जिससे कि वे अपने जीवन में सभी दृष्टियों से पूर्णता श्रेष्ठता और अपने भाग्य को मनोनुकूल बना सकें।
सरल साधना
यद्यपि महाकाली साधना महाविद्या साधना है और महाशक्ति की आधारभूत महाविद्या है, फिर भी अन्य साधनाओं की अपेक्षा सुगम और सरल है, साथ ही साथ यह सौम्य साधना है, इसका कोई विपरीत प्रभाव या परिणाम प्राप्त नहीं होता।
सही अर्थों में देखा जाय तो महाकाली साधना सरल और गृहस्थों के करने के लिए ही है. मंत्रात्मक साधना होने के कारण अनुकूल, शीघ्र प्रभावी और श्रेष्ठ साधना है. इस साधना को पुरुष या स्त्री कोई भी कर सकता है, योगी और संन्यासी कर सकता है, जो अपने जीवन के अभावों को दूर करना चाहता है, उसके लिए यह स्वर्णिम अवसर है कि वह इन अवसरों का लाभ उठाकर महाकाली साधना सम्पन्न करे।
प्रत्यक्ष दर्शन :
सबसे बड़ी बात यह है कि नवरात्रि में महाकाली साधना करने पर भगवती के प्रत्यक्ष दर्शन सम्भव होते हैं. यदि साधक पूर्ण श्रद्धा के साथ इस साधना को सम्पन्न करे. कई साधकों ने इस बात को अनुभव किया है, कि श्रद्धा और विश्वास के साथ यह साधना सम्पन्न होते ही भगवती महाकाली के दर्शन हो जाते हैं. मेरी राय में यह कलियुग में हम लोगों का सौभाग्य है कि इस प्रकार की साधना हमारे बीच में है, जिससे कि हम भगवती काली के प्रत्यक्ष दर्शन कर अपने जीवन को धन्य कर सके।
शीघ्र प्रभाव
साधनात्मक दृष्टि से यह साधना यदि पूर्ण मनोनुकूल अवस्था में सम्पन्न की जाय, तो इसके शुभ एवं शीघ्र प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं. इसके लिए मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त महाकाली यंत्र और पूर्ण चैतन्य महाकाली चित्र सामने रख कर साधना करनी चाहिए।
यदि साधना न की जाय और केवल मात्र घर में ही इस प्रकार का चैतन्य यंत्र और चित्र स्थापित हो जाता है, तो निश्चय ही उसी दिन से अनुकूल परिणाम प्राप्त होने लगते हैं, जिसका अनुभव साधक शीघ्र ही करने लगता है.
साधना विधि
साधक प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर अपने घर में किसी एकान्त स्थान अथवा पूजा कक्ष में चैतन्य मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त महाकाली यंत्र एवं महाकाली चित्र स्थापित करें. यदि वह चाहे तो अकेला या अपनी पत्नी के साथ बैठकर पूजन कार्य कर सकता है।
पूजन के लिए कोई जटिल विधि-विधान नहीं है। यंत्र व चित्र पर कुंकुंम, अक्षत, पुष्प व प्रसाद चढ़ाकर संकल्प करें, कि मैं समस्त कामनाओं की पूर्ति सिद्धि केलिए महाकाली साधना कर रहा हूँ।
सर्वप्रथम गणपति पूजन व गुरु ध्यान कर इस साधना में साधक को प्रवृत्त होना चाहिए. साधक को चाहिए कि वह नित्य लगभग पन्द्रह हजार मंत्र जप सम्पन्न करे अर्थात् 150 मालाएं यदि नित्य साधक सम्पन्न करता है,तो 8दिन में 1लाख मंत्र जप पूर्ण कर सकता है, जिससे कि उसे सिद्धि एवं अनुकूलता प्राप्त हो जाती है।
साधना काल में ध्यान रखने योग्य तथ्य
जो साधक या गृहस्थ महाकाली साधना सम्पन्न करना चाहे, उसे निम्न तथ्यों का पालन करना चाहिए, जिससे कि वह अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त कर सके
महाकाली साधना किसी भी समय से प्रारम्भ की जा सकती है, परन्तु नवरात्रि में इस साधना का विशेष महत्व है. नवरात्रि के प्रथम दिन से ही इस साधना को प्रारम्भ करना चाहिए और अष्टमी को इसका समापन किया जाना शास्त्र सम्मत है।
इस साधना में कुल एक लाख मंत्र जप किया जाता है. यह नियम नहीं है, कि नित्य निश्चित संख्या में ही मंत्र जप हो, परन्तु यदि नित्य 15000 मंत्र जप होता है, तो उचित है।
यह साधना पुरुष या स्त्री कोई भी कर सकता है, परन्तु यदि स्त्री साधना काल में रजस्वला हो जाय, तो उसी समय उसे साधना बंद कर देनी चाहिए. साधना काल में स्त्री संसर्ग वर्जित है, साधक शराब आदि न पिये और न जुआ खेले।
साधना प्रात या रात्रि दोनों समय में की जा सकती है, यदि साधक चाहे तो प्रातःकाल और रात्रि दोनों ही समय का उपयोग कर सकता है. साधना काल में रुद्राक्ष की माला का प्रयोग ज्यादा उचित माना गया है।
आसन सूती या ऊनी कोई भी हो सकता है, पर वह काले रंग का हो. यदि घर में साधना करे तो साधक पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके बैठे, सामने घी का दीपक लगा ले, अगरबत्ती लगाना अनिवार्य नहीं है।
साधक के सामने पूर्ण चैतन्य महाकाली यंत्र और महाकाली चित्र फ्रेम में मढ़ा हुआ स्थापित होना चाहिए, जो कि मंत्र सिद्ध व प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो .
प्रथम दिन महाकाली देवी का पूजन कर उसका ध्यान कर मंत्र जप प्रारम्भ कर देना चाहिए, पूजन में कोई जटिल विधि-विधान नहीं है, साधक मानसिक या पंचोपचार पूजन कर सकता है.
रात्रि में भूमि शयन करना चाहिए, खाट या पलंग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
भोजन एक समय एक स्थान पर बैठ कर जितना भी चाहे किया जा सकता है, पर शराब, मांस, लहसुन, प्याज आदि का निषेध है।
अनुभव
साधक जब साधना आरम्भ करता है, तो तीसरे दिन ही उसे घर के साधना कक्ष में सुगन्ध का एहसास होता है. यह सुगन्ध अपने आप में अवर्णनीय होती है, चौथे या पांचवें दिन उसे कमरे में किसी की उपस्थिति का एहसास होता है और आठवें दिन उस जगज्जननी महाकाली के प्रत्यक्ष या बिम्बात्मक रूप में दर्शन हो जाते हैं, इसके लिए अखण्ड श्रद्धा और विश्वास के साथ साधना आवश्यक है. साधना के मध्य कुछ अप्रिय स्थितिया आ सकती है, लेकिन डरने की आवश्यक्ता नहीं है।
महाकाली साधना प्रयोग
प्रथम दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर आसन पर पूर्व की ओर मुंह कर सामने शुद्ध घृत का दीपक लगाकर तथा महाकाली यंत्र व चित्र को स्थापित कर उसकी पूजा करें, इसके पूर्व गणपति और गुरु पूजन आवश्यक है।
इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर हिन्दी में ही संकल्प लिया जा सकता है, कि मैं अमुक तिथि तक 1लाख मंत्र जप अमुक कार्य के लिए कर रहा हूं, आप मुझे शक्ति दें, जिससे कि मैं अपनी साधना में सफलता प्राप्त कर सकूँ ऐसा कह कर हाथ में लिया हुआ जल जमीन पर छोड़ देना चाहिए. इसके बाद नित्य संकल्प करने की आवश्यकता नहीं है।
फिर निम्नलिखित महाकाली ध्यान करें
शवारूदाम्महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम् चतुर्भुजां खड्गमुण्डवराभयकरां शिवाम् ..
मुण्डमालाधरान्देवीं लोलजिह्वान्दिगम्बरां एवं संचिन्तयेत्कालीं श्मशानालयवासिनीम्।
ध्यान के बाद निम्नलिखित मंत्र का जप प्रारम्भ करें, जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, इस मंत्र की रुद्राक्ष माला से नित्य 150 मालाएं सम्पन्न होनी चाहिए।
मंत्र:- क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा॥
वस्तुत यह मंत्र अपने आप में अद्वितीय महत्वपूर्ण शीघ्र सिद्धिप्रद और साधक की समस्त मनोकामना की पूर्ति में सहायक है।
महाकाली साधना कलियुग में कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फल देने वाली है. इसकी साधना सरल होने के साथ ही साथ प्रभाव युक्त है, इससे भी बड़ी बात यह है कि इस प्रकार की साधना करने से साधक को किसी प्रकार की हानि नहीं होती अपितु उसे लाभ ही होता है।
जय सद् गुरुदेब।।
# भगवती माँ #महाकाली को अनंत वंदन। यूं तो महाकाली के अनेकों मन्त्र हैं। कई मन्त्र क्लिष्ट हैं तो कुछ सरल भी हैं इनको कोई भी कर सकता है।
।।महाकाली ध्यानमन्त्र।।
खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भूशुण्डीं शिरः
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम्॥
अर्थात् भगवान् विष्णु के सो जाने पर मधु-कैटभ को मारने के लिये कमल जन्मा ब्रह्माजी ने जिनका स्तवन किया था, उन महाकाली देवी का मैं सेवन करता हूँ। वे अपने दस हाथों में खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुण्डि, मस्तक और शंख धारण करती हैं। उनके तीन नेत्र हैं। वे समस्त अंगों में दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं। उनके शरीर की कान्ति नीलमणि के समान है और वे दस मुख एवं दस पैरों से युक्त हैं।
॥काली काली महाकाली कालिके परमेश्वरी सर्वानन्द करे देवि नारायणि नमोस्तुते॥
इसका भाव है- हे महाकाली! सभी को आनन्द देने वाली परमेश्वरी नारायणी, आपको नमस्कार है।
।।महाकाली सावरमंत्र।।
यह माँ काली का अचूक मंत्र है। इस मन्त्र से माँ काली जल्दी सुन लेती हैं। यदि आप माँ काली के भक्त हैं तो इस मंत्र का उच्चारण अवश्य करें। जिससे आपके सभी दुख दूर हो जायेंगे।
ॐ नमो काली, कंकाली महाकाली
मुख सुन्दर जिह्वा वाली।।
चार वीर भैरों चौरासी,
चार बत्ती पूजूं पान ए मिठाई
अब बोलो काली की दुहाई।।
इस काली मन्त्र का प्रतिदिन 108 बार जप करने से आर्थिक लाभ मिलता है, भक्त चिंता तथा भय मुक्त हो जाता है। इससे धन संबंधित परेशानी दूर हो जाती है।
।।काली गायत्रीमन्त्र।।
॥कालिकायै च विद्महे श्मशानवासिन्यै धीमहि तन्नो अघोरा प्रचोदयात्॥
इसका भाव है- मैं भगवती काली का स्मरण करता हूँ और उन श्मशानवासिनी का ही ध्यान करता हूँ। वे अघोरा हमारी चित्तवृत्ति को अपनी ही लीला में लगाये रखें।
तान्त्रिक-मार्ग में यद्यपि काली की उपासना दीक्षागम्य है, तथापि अनन्य शरणागति द्वारा इनकी कृपा किसी को भी प्राप्त हो सकती है। मूर्ति, मन्त्र, स्तोत्र अथवा गुरु द्वारा उपदिष्ट किसी भी आधार पर भक्तिभाव से, मन्त्र-जप, पूजा, होम और पुरश्चरण करने से भगवती काली प्रसन्न हो जाती हैं। माँ काली को फल में नारियल , मीठा पान , और फूल में जवा कुसुम (Hibiscus flower) या अढोल बहुत प्रिय है, माँ अगर प्रसन्न हो जाये तो हमारा किसी भी तरह का दुःख हर लेती है | जिनकी प्रसन्नता से साधक को सहज ही सम्पूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति हो जाती है।
यह महाविद्या काली का सरल बीज मन्त्र है।
॥ क्रीं ॥
इसका अधिकाधिक जप करना घोर संकटों से मुक्ति दिलाता है। महाकाली भूत-प्रेत, जादू-टोना, ग्रहों आदि के कारण उपजी हर प्रकार की बाधाएँ हर लेती हैं। अतः शिशु जैसा बनकर भक्ति भाव एवं सच्चे हृदय से काली माँ का ध्यान करते हुए इन मंत्रों का मानसिक जप करते रहना चाहिये।
।।काली अष्टोत्तरशतनाम (108नाम) स्तोत्रम।।
श्री भैरव उवाच:-
शतनाम प्रवक्ष्यामि कालिकाया वरानने।
यस्य प्रपठानाद्वाग्मी सर्वत्र विजयी भवेत्।।
काली कपालिनी कान्ता कामदा कामसुन्दरी।
कालरात्रिः कालिका च कालभैरव पूजिता।।
कुरुकुल्ला कामिनी च कमनीय स्वभाविनी।
कुलीना कुलकर्त्री च कुलवर्त्म प्रकाशिनी।।
कस्तूरिरसनीला च काम्या कामस्वरूपिणी।
ककारवर्ण निलया कामधेनुः करालिका।।
कुलकान्ता करालस्या कामार्त्ता च कलावती।
कृशोदरीच कामाख्या कौमारी कुलपालिनी।।
कुलजा कुलमन्या च कलहा कुलपूजिता।
कामेश्वरी कामकान्ता कुञ्जरेश्वरगामिनी।।
कामदात्री कामहर्त्री कृष्णा चैव कपर्दिनी।
कुमुदाकॄष्णदेहा च कालिन्दी कुलपूजिता।।
काश्यपी कृष्णमाता च कुलिशांगी कलातथा।
क्रींरूपा कुलगम्या च कमला कृष्णपूजिता।।
कृशाँगि किन्नरी कर्त्री कलकण्ठी च कार्तिकी।
कम्बुकण्ठी कौलिनी च कुमुदा कामजीविनी।।
कलस्त्री कीर्तिका कृत्या कीर्तिश्च कुलपालिका।
कामदेवकला कल्पलता कामाङ्गवर्द्धिनी।।
कुन्ता च कुमुदप्रीता कदम्बकुसुमोत्सुका।
कादम्बिनी कमलिनी कृष्णानन्दप्रदायिनी।।
कुमारीपूजनरता कुमारीगणशोभिता।
कुमारीरञ्जनरता कुमारीव्रतधारिणी।।
कंकाळी कमनीया च कामशास्त्रविशारदा।
कपालखट्वाङ्गधारा कालभैरवरूपिणी।।
कोटरी कोटराक्षी च काशीकैलासवासिनी।
कात्यायनी कार्य्यकरी काव्यशास्त्रप्रमोदिनी।।
कामाकर्षणरूपा च कामपीठनिवासिनी।
कङ्किनी काकिनी क्रीड़ा कुत्सिता कलहप्रिया।।
कुण्डगोलोद्भवप्राणा कौशिकी कीर्तिवर्द्धिनी।
कुम्भस्तनी कलाक्षा च काव्या कोकनदप्रिया।।
कान्तारवासि कान्तिः कठिना कृष्ण वल्लभा।।
काली अष्टोत्तरशतनाम या सहस्रनाम का सावधानी पूर्वक सच्चे हृदय से किया गया पाठ तुरन्त फल देने वाला होता है। इसके अलावा माँ काली के बहुत से स्तोत्र हैं जिनका महाकाली की प्रीति हेतु पाठ किया जाना उत्तम है।
क्रींकार रूपिणी काली की उपासना में सम्प्रदायगत भेद है। प्रायः दो रूपों में इनकी उपासना का प्रचलन है। भव-बन्धन-मोचन में काली की उपासना सर्वोत्कृष्ट कही जाती है। शक्ति-साधना के दो पीठों में काली की उपासना श्याम-पीठ पर करने योग्य है। भक्तिमार्ग में तो किसी भी रूप में उन महामाया की उपासना फलप्रदा है, पर सिद्धि के लिये उनकी उपासना वीर भाव से की जाती है। साधना के द्वारा जब अहंता, ममता और भेद-बुद्धि का नाश होकर साधक में पूर्ण शिशुत्व उदित हो जाता है तब माँ काली का श्रीविग्रह साधक के समक्ष प्रकट हो जाता है। उस समय भगवती काली की छबि अवर्णनीय होती है। कज्जल के पहाड़ के समान, दिग्वसना, मुक्तकुन्तला, शव पर आरूढ़, मुण्डमाला धारिणी भगवती काली का प्रत्यक्ष दर्शन साधक को कृतार्थ कर देता है।
रवि या गुरुपुष्य योग अथवा नवरात्रि के 3 दिन या पूरी नवरात्रि में 1000 पाठ करने से सिद्ध हो जाता है।
विनियोग:-ॐ अस्य श्रीकालिका कवचस्य भैरव ऋषिः अनुष्टुप छंदः श्री कालिका देवता शत्रुसंहारार्थ जपे विनियोगः।
*ध्यानम्*:-
ध्यायेत् कालीं महामायां त्रिनेत्रां बहुरूपिणीं।
चतुर्भुजां ललज्जिह्वां पूर्णचन्द्रनिभाननां।।
नीलोत्पलदलश्यामां शत्रुसंघविदारिणीं।
नरमुण्डं तथा खड्गं कमलं च वरं तथा।।
निर्भयां रक्तवदनां दंष्ट्रालीघोररूपिणीं।
साट्टहासाननां देवी सर्वदा च दिगम्बरीम्।।
शवासनस्थितां कालीं मुण्डमालाविभूषिताम्।
इति ध्यात्वा महाकालीं ततस्तु कवचं पठेत्।।
*कवच पाठ*:-
ॐ कालिका घोररूपा सर्वकाम प्रदा शुभा।
सर्वदेवस्तुता देवी शत्रुनाशं करोतु मे।।
ह्रीं ह्रीं रूपिणीं चैव ह्रां ह्रीं ह्रां रूपिणीं तथा।
ह्रां ह्रीं क्षों क्षौं स्वरूपा सा सदा शत्रून विदारयेत्।।
श्रीं ह्रीं ऐंरूपिणी देवी भवबन्धविमोचिनी।
हुँ रूपिणी महाकाली रक्षास्मान् देवि सर्वदा।।
यया शुम्भो हतो दैत्यो निशुम्भश्च महासुरः।
वैरिनाशाय वंदे तां कालिकां शंकरप्रियाम।।
ब्राह्मी शैवी वैष्णवी च वाराही नारसिंहिका।
कौमार्यैर्न्द्री च चामुण्डा खादन्तु मम विदिवषः।।
सुरेश्वरी घोररूपा चण्ड मुण्ड विनाशिनी।
मुण्डमालावृतांगी च सर्वतः पातु मां सदा।।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं कालिके घोरे दंष्ट्र व रुधिरप्रिये।
रुधिरापूर्ण वक्त्रे च रुधिरेणा वृतस्तनी।।
“मम शत्रून् खादय-खादय हिंसय हिंसय मारय मारय भिन्धि भिन्धि छिन्धि-छिन्धि उच्चाटय-उच्चाटय द्रावय-द्रावय शोषय-शोषय स्वाहा।
ह्रां ह्रीं कालिकायै मदीय शत्रून् समर्पयामि स्वाहा।
ऊँ जय-जय किरि-किरि किटि- किटि कट-कट मर्दय-मर्दय मोहय-मोहय हर-हर मम रिपून् ध्वंसय-ध्वंसय भक्षय- भक्षय त्रोटय-त्रोटय यातुधानान् चामुण्डे सर्वजनान् राज्ञो राजपुरुषान् स्त्रियो मम वश्यान् कुरु कुरु तनु तनु धान्यं धनं मेऽश्वान गजान् रत्नानि दिव्य कामिनी: पुत्रान् राजश्रियं देहि यच्छ क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः स्वाहा।”
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इत्येतत् कवचं दिव्यं कथितं शम्भुना पुरा।
ये पठन्ति सदा तेषां ध्रुवं नश्यन्ति शत्रव:।।
वैरणि: प्रलयं यान्ति व्याधिता वा भवन्ति हि।
बलहीना: पुत्रहीना: शत्रवस्तस्य सर्वदा।।
सह्रस्त्रपठनात् सिद्धि: कवचस्य भवेत्तदा।
तत् कार्याणि च सिद्धयन्ति यथा शंकरभाषितम्।।
श्मशानांग-र्-मादाय चूर्ण कृत्वा प्रयत्नत:।
पादोदकेन पिष्ट्वा तल्लिखेल्लोहशलाकया।।
भूमौ शत्रून् हीनरूपानुत्तराशिरसस्तथा।
हस्तं दत्तवा तु हृदये कवचं तुं स्वयं पठेत्।।
शत्रो: प्राणप्रतिष्ठां तु कुर्यान् मन्त्रेण मन्त्रवित्।
हन्यादस्त्रं प्रहारेण शत्रो ! गच्छ यमक्षयम्।।
ज्वलदंग-र्-तापेन भवन्ति ज्वरिता भृशम्।
प्रोञ्छनैर्वामपादेन दरिद्रो भवति ध्रुवम्।।
वैरिनाश करं प्रोक्तं कवचं वश्यकारकम्।
परमैश्वर्यदं चैव पुत्र-पुत्रादिवृद्धिदम्।।
प्रभातसमये चैव पूजाकाले च यत्नत:।
सायंकाले तथा पाठात् सर्वसिद्धिर्भवेद् ध्रुवम्।।
शत्रूरूच्चाटनं याति देशाद वा विच्यतो भवेत्।
प्रश्चात् किं-ग्-करतामेति सत्यं-सत्यं न संशय:।।
शत्रुनाशकरे देवि सर्वसम्पत्करे शुभे।
सर्वदेवस्तुते देवि कालिके त्वां नमाम्यहम्।।
।।रूद्रयामल तान्त्रोक्तं कालिका कवचं समाप्त:।।

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