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धूमावती महाविद्या | Dhumavati Mahavidya

धूमावती महाविद्या | Dhumavati Mahavidya

धूमावती महाविद्या | Dhumavati Mahavidya

धूमावती महाविद्या: दस महाविद्याओं में धूमावती साधना एक उच्चकोटि की महाविद्या साधना है, जिनके साहित्य प्राय: कम देखने को मिलते है और इस महाविद्या के साधक भी बहुत कम है। धूमावती महाविद्या शत्रुओं पर प्रचंड वज्र की तरह प्रहार करने वाली मानी जाती है। यह साधना मूल रूप से शत्रु के स्तम्भन और नाश के लिए की जाती है

अनुक्तकल्पे यन्त्रं तु लिखेत पद्दद्लाष्टकम्।
षट्कोण-कर्णिक तत्र वेदद्वारोपशोभितम् ।।

इस महाविद्या से संबंधित कई ऐसे प्रयोग है जिनके बारे में व्यक्ति कभी सोच भी नहीं सकता, चरपट भंजन साधक धूमावती के उच्चकोटि के साधकों के मध्य प्रचलित रहा है। चरपट भंजन को ही चरपटनाथ या चरपटीनाथ कहा गया है। चरपटनाथ ने अपने जीवन काल में धूमावती संबंधित साधनाओं का प्रचुर अभ्यास किया था। मांत्रिक धूमावती को सिद्ध करने वाले गिने चुने व्यक्ति में इनकी गणना होती है। वे कालजयी है और आज भी यह संदेह उनके बारे में प्रचलित है कि वह किसी भी तत्व में अपने आप को बदल सकते है चाहे वह स्थूल हो या सूक्ष्म, जैसे मनुष्य, पशु, पक्षी, पानी, अग्नि, कुछ भी।

750-800 साल पहले धूमावती साधना के संबंध में फैली भ्रान्ति को दूर करने के लिए इस महान धूमावती साधक ने कई ग्रंथो की रचना की जिसमें धूमावती रहस्य, धूमावतीसपर्या, धूमावती पूजा पद्धति जैसे ग्रंथ शामिल है। कई गुप्त तांत्रिक मठो में आज भी यह ग्रन्थ सुरक्षित है। लेकिन यह साधना पद्धतियां लुप्त सी हो गयी और जन सामान्य के मध्य देखने को नहीं मिलती।

चरपट भंजन ने कई गुप्त पद्धतियों का विकास किया था उनमें से एक साधना ऐसी भी थी जिसको करने से व्यक्ति अपने सामने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में कुछ भी जान लेता है। जैसे की चरित्र कैसा है? इस व्यक्ति की प्रकृति क्या है? इसके दिमाग में इस वक्त कौन से विचार चल रहे होंगे? इस प्रकार की साधना अत्यधिक दुष्कर साधना है, जीवन के नित्य कार्यो में ऐसी साधनाओं का कितना महत्व है, ये तो व्यक्ति खुद ही समझ सकता है। यह साधना हम आपको श्री चरपटनाथ द्वारा प्रणित पूर्ण धूमावती साधना  दे रहे है, जिसे कर शत्रु को जड़ से नष्ट कर सकते है और भय रहित होकर जीवन जी सकते है।

धूमावती साधना विधान:

धूमावती साधना  को करने के लिए प्राणश्चेतना युक्त “धूमावती यंत्र” और “धूमावती माला” की आवश्यकता होती है। यंत्र एवं माला प्राप्त कर साधक किसी शनिवार या रविवार को शाम 7 बजे से 12 बजे के बीच स्नान आदि से पवित्र होकर, काली धोती पहने और अपने पूजा कक्ष में पश्चिम दिशा की ओर काले ऊनी आसन पर बैठे, अपने सामने चौकी पर काला वस्त्र बिछाकर धूमावती महाविद्या का चित्र स्थापित रखे। चित्र के सामने किसी प्लेट में काजल से धूं लिखकर “धूमावती यंत्र’ स्थापित करें। यंत्र को जल से धोकर रोली से तीन बिन्दी लगा लें। जो सत्व, रज एवं तम गुणों के प्रतीक स्वरुप हैं। यंत्र के सामने तेल का दीपक जला दें और मन्त्र विधान के अनुसार संकल्प कर सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग करें–

अस्य श्री धूमावती महामन्त्रस्य पिप्पलाद ऋषि: त्रिव्रत् छन्द: श्री ज्येष्ठा धूमावती देवी धूं बीजं स्वाहा शक्ति: धँ कीलकं ममाभीष्ट सिध्यर्थे जपे विनियोग: ।

ऋष्यादि न्यास : बाएँ(Left Hand) हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ(Right Hand) की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करें और ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र बन रहे है। ऐसा करने से अंग शक्तिशाली बनते है और चेतना प्राप्त होती है।

पिप्पलाद ऋषये नम: शिरसि (सर को स्पर्श करें)
त्रिव्रत् छन्दसे नम: मुखे (मुख को स्पर्श करें)
श्री ज्येष्ठा धूमावती देवतायै नम: हृदय (हृदय को स्पर्श करें)
धूँ बीजाय नम: गुह्ये (गुप्तांग को स्पर्श करें)
स्वाहा शक्तये नम: पादयोः (दोनों पैर को स्पर्श करें)
विनियोगाय नम: सर्वांगे (पूरे शरीर को स्पर्श करें)

कर न्यास : अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है।

धां अंगुष्ठाभ्यां नम:।
धीं तर्जनीभ्यां नम:।
धूं मध्यमाभ्यां नम:।
धैं अनामिकाभ्यां नम:।
धौं कनिष्ठिकाभ्यां नम:।
ध: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।।

ह्र्दयादि न्यास : पुन: बाएँ(Left Hand) हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ(Right Hand) की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करें और ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र बन रहे है। ऐसा करने से अंग शक्तिशाली बनते है और चेतना प्राप्त होती है।

धां ह्रदयाय नम: (ह्रदय को स्पर्श करें)
धीं शिरसे स्वाहा (सिर को स्पर्श करें)
धूं शिखायै वष् (शिखा को स्पर्श करें)
धैं कवचाय हुम् (कंधे को स्पर्श करें)
धौं नेत्रत्रयाय वौषट् (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
ध: अस्त्राय फट् (सर पर हाथ घुमाकर चारों दिशाओं में चुटकी बजाएं)

धूमावती ध्यान : इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती धूमावती का ध्यान करके पूजन करें। धुप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर धूमावती महाविद्या मन्त्र का जाप करें।

विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च म्लिनाम्बरा ।
विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा ।।
काकध्वज रथारुढ़ा विलम्बित-पयोधरा ।
शूर्पहस्तातिरूक्षाक्षा धूमहस्ता वरान्विता ।।
प्रव्रद्धघोणा तु भ्रशं कुटिला  कुटिलेक्षणा ।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहास्पदा ।।

मन्त्र : पूजन सम्पन्न कर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित ‘धूमावती’ माला से निम्न मंत्र की 23 माला 11 दिन तक मंत्र जप करें, नित्य मन्त्र जाप के पश्चात् धूमावती कवच का पाठ करे—

।। धूं धूं धूमावती ठ: ठ: ।।

धूमावती महाविद्या कवच:

ॐ धूं बीजं मे शिर: पातु धूं ललाटं सदाऽवतु ।
धूमा  नेत्रयुगं पातु वती कणौं सदाऽवतु ।।
दीर्घा तूदरमध्ये तु नाभिं मे मलिनाम्बरा ।
शूर्प्पहस्ता पातुगुहा रूक्षा रक्षतु जानुनी ।।
मुखं मे पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम् ।
सर्वा विद्याऽवतु कण्ठं विवर्णा बाहुयुग्मकम् ।।
चंचला ह्रदयं पातु दुष्टा पाशर्व सदाऽवतु ।
धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा ।
प्रवृद्धरोमा तु भ्रशं कुटिला कुटिलेक्षणा ।।
क्षुत्पिपासार्दिता देवी भयदा कलहप्रिया ।
सर्वांगे पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी ।।

साधना के बीच साधना के नियमों का अवश्य ही पालन करें। साधना के बारे में जानकारी गुप्त रखें। भय रहित होकर पूर्ण आस्था के साथ 11 या 21 दिन तक मंत्र का जप करें। मंत्र जप सम्पन्न होने पर मन्त्र का दशांश हवन काली मिर्च, काले तिल, घी और हवन सामग्री से करें। हवन के पश्चात् यंत्र को पश्चिम दिशा की तरफ़ किसी काली मंदिर में दान कर दें और बाकि बची पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जित कर दें। इस तरह करने से यह साधना पूर्ण मानी जाती है। माँ धूमावती प्रसन्न होकर साधक के संकल्प सहित कार्य भविष्य में शीघ्र पुरे करती है। वैसे धूमावती साधना को करने से शत्रु जड़ से समाप्त हो जाते है, चाहे शत्रु कैसा भी हो उसका नष्ट होना निश्चित होता है।

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