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भय बाधा से मुक्त करें छिन्नमस्तिका प्रचण्ड चण्डिका साधना, Chhinnamastika Prachanda Chandika Sadhana

भय बाधा से मुक्त करें छिन्नमस्तिका प्रचण्ड चण्डिका साधना, Chhinnamastika Prachanda Chandika Sadhana

नवरात्रि शक्ति पर्व  शत्रुओं पर प्रचण्ड वार कर जीवन को भय बाधा से मुक्त करें छिन्नमस्तिका प्रचण्ड चण्डिका साधना


 आपके जीवन में शत्रु, बाधायें, हीनता, आनन्द, का अभाव, अज्ञानता, अशांति आदि हैं और इन दुष्क्रियाओं पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त की जा सकती है प्रचण्ड- चण्डिका साधना से जो भगवती छिन्नमस्ता का प्रचण्ड संहार स्वरूप है, नववर्ष की प्रथम नवरात्रि के प्रतिपदा दिवस पर ही सम्पन्न की जाने वाली यह साधना जीवन को निर्विघ्न व निर्भीक बनाती है।

मनुष्य के जीवन में यह इच्छा रहती है कि वह अपने जीवन को निश्चिन्त भाव से जियें और उसके जीवन में बाधायें नहीं आये और यदि बाधायें किसी न किसी रूप में आती हैं तो वह उन पर विजय प्राप्त करे। मनुष्य जीवन का लक्ष्य शिव भाव प्राप्त करना है, जो ऊपर से शांत दृश्यमान होते हैं, लेकिन भीतर ही भीतर रौद्र रूप अपनाये हुये हैं और जब अपना क्रोधमय रौद्र रूप दिखाते हैं, तो बड़े से बड़ा शत्रु भी समाप्त हो जाता है और बाधायें जीवन मार्ग में विकराल रूप धारण कर ही नहीं पाती हैं।

तंत्र महाविज्ञान के दो महान ग्रंथ विश्वसार और रूद्रायमल तंत्र है और इन दोनों ग्रंथों में प्रचण्ड-चण्डिका को छिन्नमस्ता का स्वरूप बताया गया है। जिसकी साधना करने से निर्धन को धन प्राप्त होता है, जिसके अनुग्रह से व्यक्ति में पूर्ण भाग्य का उदय होता है और वह अपने जीवन में सदा शिवत्व प्राप्त करता है। प्रचण्ड-चण्डिका साधना ऐसी साधना है जिसे प्रत्येक साधक संपन्न कर सकता है क्योंकि हर व्यक्ति के जीवन में बाधायें आती ही रहती हैं। कलियुग में मनुष्य किसी न किसी अभाव से ग्रस्त रहता है, ऐसे में छिन्नमस्ता प्रचण्ड-चण्डिका साधना सभी के लिये आवश्यक है।

प्रचण्ड-चण्डिका साधना के मंत्र में ‘श्रीं’ बीज से लक्ष्मी का, ‘क्लीं’ बीज से कामदेव का, ह्रीं बीज से महापातक नाशिनी देवी का, ‘ऐं’ बीज से त्रिगुणातीता भुक्ति-मुक्ति प्रदायिनी वाग्-देवी का, ‘व’ से वरूण का, ‘ज’ से सुरेन्द्र का, ‘रेफ’ से अग्नि का, ‘व’ से पृथ्वी-पति का, ‘ऐ’ से त्रिपुरा देवी का, ‘र’ से त्रिपुर-भैरवी का, ‘ओ’ से त्रैलोक्य-विजया का, ‘च’ से चन्द्रमा का, ‘न’ से गणेश का, ‘ई’ से कमला का, ‘ये’ से सरस्वती का, ह्रीं बीज द्वय से प्रकृति-सगंता देवी का ‘फट्’ से वैखरी शक्ति का, स्वाहा से पूर्णता का बोध होता है।

इस प्रकार एक ही साधना से लक्ष्मी, कामदेव, पापनाशिनी सरस्वती, वरूण, इंद्र, अग्नि, पृथ्वी, त्रिपुर भैरवी, चंद्र, गणेश, कमला, कामदेव आदि देव की आराधना होती है। ये साधना दक्षिण मार्गीय तांत्रिक साधना है, जिसे महाविद्या सिद्धि कहा गया है।

इस साधना को नवरात्रि के अलावा किसी भी कृष्ण पक्ष के रविवार की रात्रि को संपन्न की जा सकती है। तीन दिवसीय इस साधना में आवश्यक है कि साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करे और सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।

साधना प्रारंभ करने से पहले गुरु पूजन अवश्य ही सम्पन्न करे, साधना का संकल्प सात्विक और राजसिक ही होना चाहिये। इस साधना में प्रचण्ड-चण्डिका छिन्नमस्ता यंत्र जो महारूद्र मंत्रें से प्राण प्रतिष्ठित हो, डाकिनी व वर्णिनी गुटिका एवं पांच मधु रूपेण रूद्राक्ष आवश्यक है।

रात्रि को 09 बजे के पश्चात् अपने पूजा स्थान में एक लकड़ी के बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दें और मौली से बाजोट पर उस वस्त्र को चारों ओर से बांध दें। साधक का मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिये तथा सामने गुरु चित्र स्थापित कर उसके आगे एक ताम्रपात्र में पुष्प का आसन देकर उस पर यंत्र स्थापित करे, यंत्र के बायीं-दायीं ओर शाकिनी-डाकिनी गुटिका स्थापित करें तथा यंत्र के सामने पांच मधुरूपेण रूद्राक्ष स्थापित करें।

सर्वप्रथम पंचोपचार गुरु एवं गणपति पूजन संपन्न करें, इसके पश्चात न्यास इत्यादि की क्रिया संपन्न करें-

विनियोग-

अस्य मंत्रस्य भैरव ऋषिः, सम्राट् छन्दः,

छिन्नमस्ता देवता, हूं हूं बीजं, स्वाहा शक्तिः,

अभीष्टार्थ-सिद्धये विनियोगः।

ऋष्यादि-

शिरसि भैरवाय ऋषये नमः। मुखे सम्राट् छन्दसे नमः।

हृदि छिन्न-मस्तायै देवतायै नमः। गुह्ये हूं हूं – बीजाय

नमः। पादयोः स्वाहा शक्तये नमः।

कर न्यास-

ऊँ आं खड्गाय हृदयाय स्वाहा कनिष्ठयोः।

ऊँ ई सु-खड्गाय शिरसे स्वाहा अनामा-पवित्रांगुल्योः।

ऊँ ऊ सु-वज्राय शिखायै स्वाहा मध्यमयोः।

ऊँ ऐं पाशाय कवचाय स्वाहा तर्जन्योः।

ऊँ औं क्रों नेत्र-त्रयाय स्वाहा अंगुष्ठयोः।

इसके पश्चात् अपने सामने स्थापित यंत्र एवं तांत्रोक्त गुटिका पर सिन्दूर अर्पित कर अपने जीवन में स्थापित होने व बाधाओं के शमन की प्रार्थना करें-

सर्व-सिद्धि-वर्णिनीये, सर्व-सिद्धि-डाकिनीये,

वज्र-वेरोचनीये इहागच्छां सर्व-सिद्धि-वर्णिनीये,

सर्व-सिद्धि-डाकिनीये, वज्र-वैरोचनीये, इह तिष्ठ इह

तिष्ठ सन्निधेहि, इह सन्निरूद्धस्व।

इसके पश्चात् यंत्र के सामने लाल वस्त्र पर पाँच रेखायें कुंकुम से बनायें और उस पर पाँच मधुरूपेश रूद्राक्ष स्थापित करें तथा निम्न मंत्रों को बोलते हुये अक्षत अर्पण करें।

ऊँ शंख निधये नमः, ऊँ पप्र-निधये नमः, ऊँ लक्ष्म्यै

नमः, ऊँ लज्जायै नमः, ऊँ मायायै नमः, ऊँ वाण्यै

नमः। ऊँ ब्रह्मणे नमः, ऊँ विष्णवे नमः, ऊँ रूद्राय

नमः, ऊँ ईश्वराय नमः, ऊँ सदा-शिवाय नमः।

इसके पश्चात् एक फल जो भीतर से लाल हो अनार इत्यादि, उसे काट कर देवी को निम्न मंत्र से बलि प्रदान करें।

बलिदान मंत्र

देहि देहि शत्रून् मारय मारय करालिके हुं फट् स्वाहा ।

इस बलिदान मंत्र का 21 बार उच्चारण करना है और उच्चारण करते समय यंत्र की ओर तीव्र मुद्रा में देखते हुये अपनी जिस बाधा का भी निवारण करना चाहते हैं, उसका स्मरण करें।

इसके पश्चात् शांत भाव से बैठकर शत्रु मर्दन माला से मंत्र का जप करें, प्रथम दिवस पर 5 माला मंत्र जप करना है अन्य दो दिवस एक-एक ही माला जप करें, सम्पूर्ण पूजन केवल प्रथम दिवस ही करना है।

मंत्र ।। श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचनीये प्रचण्ड चण्डिकाये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा ।।

इस प्रकार 3 दिन तक जप करें, यदि नवरात्रि के नौ दिन तक नित्य 3 या 1 माला मंत्र जप करें, तो आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त होता है। यह साधना तीव्र साधना है इस साधना से साधक शिव स्वरूप की प्राप्ति करने की ओर अग्रसर होता है।

उसके दुख, दारिद्रय, शत्रु बाधायें समाप्त होने लगती हैं। वह जीवन में किसी भी स्थिति में भय से ग्रस्त नहीं होता है।

साधना पूर्णता पर पुष्प अर्पित कर समर्पण करें-

उत्तरे शिखरे देवि! भूम्यां पर्वत-वासिनि । ब्रह्म योनि-समुत्पन्ने! गच्छ देवि! ममान्तरम् ।।

इसके पश्चात् केवल यंत्र को अपने पूजा स्थान में स्थापित रहने दें तथा सामग्री को किसी सरोवर अथवा नदी में विसर्जित कर दें।

बाधा रहित जीवन उतना ही आवश्‍्यक है, जितना की जीवन में धन की अनिवार्यता है। क्योंकि यदि हमारे जीवन में बाधाये बनी हुयी हों और धन भी हो तो, हमारा अधिाकांश धन, समय, ऊर्जा बाधाओ से जूझने में ही समाप्त हो जाता है और अन्ततः हम बाधाओं पर विजय प्राप्त कर ही पायें, यह सुनिश्चत नहीं होता। ऐसे में हमारा सारा परिश्रम व्यर्थ चला जाता है। इसलिये जीवन को निर्विघ्नता प्रदान करने की प्राथमिकता हमारे जीवन में होनी ही चाहिये। छिन्नमस्तिका प्रचण्ड-चण्डिका “शक्तिपात दीक्षा से जीवन में आने वाली छोटी-बड़ी सभी बाधाओं का शमन होता है, शत्रु पक्ष निस्तेज, ऊर्जा हीन हो जाते हैं। किसी प्रकार का षडयंत्र हमारे विरूद्ध बनने से पहले ही निष्‍्फल हो जाता है और जिस भी रूप में हमारे विरोधी हो, चाहे वे पैशाचिक शक्ति, कर्म दोष, भाग्य दोष अथवा ग्रहो का प्रकोप इन सभी स्थितियों में अनुकूलता प्राप्त होती है और जीवन श्रेष्‍ठता के साथ सफ़लता, उच्चता, वृद्धि, कार्य सिद्धि की ओर अग्रसर होता है।

 

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