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Sadhana of Dhan Trayodashi

Sadhana of Dhan Trayodashi

#धन त्रयोदशी की साधना◆


दिनाँक 29।10।2024 को प्रातः 04:17 से 30।10।2024 को प्रातः 02:41 तक  धनतेरस, धन्वंतरि जयंती व यम दीप दान दिवस है।अतः धनतेरस 29।10।2024 शनिवार को मनाई जाएगी।

#धन्वंतरि_साधना◆

ॐ धन्वंतरये नमः॥

        आरोग्यप्राप्ति करने के लिए भगवान श्री धन्वंतरि जी का मंत्र – 
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये: अमृतकलश हस्ताय सर्व भय विनाशाय सर्व रोगनिवारणाय त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

अर्थात् परम भगवान को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं, सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि को सादर नमन है।

भगवान श्री धन्वंतरि साधना मंत्र — 
“ॐ धन्वंतरये नमः”॥

अन्य एक और धन्वंतरि मंत्र —
. ॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृत कलश हस्ताय सर्व आमय विनाशनाय त्रिलोक नाथाय श्री महाविष्णुवे नम:। 

भगवान श्री धन्वंतरि मंत्र बिमारियों को दूर करने का लिए  —
“ऊँ रं रूद्र रोगनाशाय धन्वन्तर्ये फट्।।”

हाथ में अक्षत लेकर कम से कम 5 माला का जप करें।

भगवान श्रीधन्वंतरि गायत्री मंत्र —
1..ॐ वासुदेवाय विद्‍महे वैधराजाय धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||

2..ॐ तत्पुरुषाय विद्‍महे अमृत कलश 
हस्ताय धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात्।
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●आज के भौतिकवादी युग मे लगभग हर घर मे कहीं न कहीं किसी न किसी प्रकार का दुख है और हर व्यक्ति उस दुख से बाहर आने को व्याकुल भी है।
  
●माँ अदिशक्ति की दस महाविध्याओं मे से एक धूमवाती हैं , 
हर प्रकार की द्ररिद्रता के नाश के लिए , तंत्र - मंत्र मे सिद्धि के लिए , जादू टोना , बुरी नजर और भूत प्रेत आदि समस्त भयों से मुक्ति के लिए , 
सभी रोगो के निवारण के लिए , 
अभय प्रप्ति के लिए , 
साधना मे रक्षा के लिए , तथा 
जीवन मे आने वाले हर प्रकार के दुखो के नाश हेतु धन त्रयोदशी की रात्रि मे धूमावती देवी की साधना करनी चाहिए।

●" ये मेरे जीवन की सबसे पहली साधना है जिसे मैंने सन 1985 मे किया था , और आज तक करता आ रहा हूँ। "
इस साधना के प्रभाव से पूरे वर्ष मैं और मेरा परिवार सुरक्षित रहता है। 

●दीपावली को हम लक्ष्मी के आगमन के त्योहार के रूप मे मनाते हैं, 
लक्ष्मी के आगमन से पूर्व , घर की अलक्ष्मी यानि कि दुख दारिद्र्य और संताप को जाने का निवेदन करना होता है,
तभी लक्ष्मी का आगमन होता है।

● इस साधना को धन त्रयोदशी की रात्रि को घर से दूर किसी सुनसान स्थान पर करना उचित होता है।
रात्रि के समय सुनसान व एकांत स्थान पर साधना करना  हर किसी के बस की बात नहीं ...
इसलिए इस घर से बाहर ... घर के आगे के आँगन मे किया जा सकता है।

● बहुमंज़िला इमारतों मे रहने वाले लोग इसे छत पर भी कर सकते हैं।
 
● ये साधना घर का कोई पुरुष ही करे तो अधिक प्रभावी होती है।

●रात्रि 10 बजे के बाद , जब भी शांति हो और लोगों का आवागमन बंद हो जाये ... तब आरंभ करें , क्योंकि किसी भी व्यक्ति द्वारा टोकने से साधना खंडित मानी जाती है।
 
● साधना के लिए विशेष सामाग्री की आवश्यकता नहीं है ...

श्वेत आसन , वस्त्र यानि कि धोती और अंगवस्त्र भी श्वेत ,
काले हकीक की माला या रुद्राक्ष की माला ,
एक मिट्टी का दिया तथा शुद्ध कपास की एक बत्ती ,
तिल या सरसों का तेल और 
जल से भरा ताँबे का लोटा । 
दिशा दक्षिण ... अर्थात दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके बैठना है। आग्नेय कोण को भी लिया जा सकता है।
बेजोट ( आम की लकड़ी का पटा ) या कोई भी पटा। 

● शांत वातावरण देख कर आप सर्वप्रथम सामग्री एकत्र कर लें , तत्पश्चात स्नान के बाद धोती पहन कर आसन लगाकर बैठ जाएँ।
सामने बेजोट पर श्वेत वस्त्र रखें , उसपर मिट्टी के दिये को बत्ती लगाकर तेल से भरें और प्रज्वलित करें।
आचमन करें , स्थान पर जल छिड़क कर शुद्ध करें।  
अपने गुरु की मानसिक पूजा करें तथा उनसे आज्ञा लें। 

● संकल्प मे कहें – 
“ मैं अपने व अपने परिवार के समस्त प्रकार के दुख दारिद्र्य और संतापों से मुक्ति पाने के लिए माँ धूमवाती की साधना करने जा रहा हूँ ...
हे अलक्ष्मी , कृपा कर आप मेरे घर और जीवन से प्रस्थान करें ...
जिससे कि माँ लक्ष्मी का आगमन सुनिश्चित हो “

- किसी भी साधना मे संकल्प का बहुत महत्व होता है ... इसलिए या तो इसे याद कर लें या फिर इसे पहले से ही लिख कर रखें। 

● तत्पश्चात माँ धूमावती का ध्यान करें व उनसे साधना सफलता और सिद्धि के लिए प्रार्थना करें। 

● अब निम्न मंत्र की 11 माला करें -

 ||ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा ||
या 
|| धूं धूं धूमावती ठ: ठ:|| 

●जप करते समय आपको कई प्रकार की भयभीत करने वाली अनुभूतियाँ होना निश्चित रूप से संभव है , किन्तु आप बिना विचलित हुये जप कीजिएगा।
ये संकेत है कि मंत्र सिद्धि हो रही है।

● जप पूर्ण होने के पश्चात क्षमा याचना कर संकल्प को पुनः दोहराएँ ... इस प्रकार ये साधना पूर्ण हो जाएगी। 

● दीपक को जल से ठंडा करें ( बुझाएँ नहीं ) , दक्षिण दिशा की तरफ कहीं भी रख दें और लोटे मे बचा हुआ जल भी वहीं बहा दें। 

#धनतेरस यम दीप दान विशेष◆

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धनवन्तरि अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।

दीपावली की रात भी लक्ष्मी माता के सामने साबुत धनिया रखकर पूजा करें। अगले दिन प्रातः साबुत धनिया को गमले में या बाग में बिखेर दें। माना जाता है कि साबुत धनिया से हरा भरा स्वस्थ पौधा निकल आता है तो आर्थिक स्थिति उत्तम होती है।

धनिया का पौधा हरा भरा लेकिन पतला है तो सामान्य आय का संकेत होता है। पीला और बीमार पौधा निकलता है या पौधा नहीं निकलता है तो आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव न हो तो कोइ बर्तन खरिदे। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें।

#धन तेरस की पौराणिक कथा
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कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ।।

धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में रंगोली बना कर दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।

विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।

#धन तेरस पूजा सामान्य विधि
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इस दिन लक्ष्मी-गणेश और धनवंतरी पूजन का भी विशेष महत्व है। धनतरेस पर धनवंतरी और लक्ष्मी गणेश की पूजा करने के लिए सबसे पहले एक लकड़ी का पट्टा लें और उस पर स्वास्तिक का निशान बना लें।इसके बाद इस पर एक तेल का दिया जला कर रख दें दिये को किसी चीज से ढक दें दिये के आस पास तीन बार गंगा जल छिड़कें इसके बाद दीपक पर रोली का तिलक लगाएं और साथ चावल का भी तिलक लगाएं इसके बाद दीपक में थोड़ी सी मिठाई डालकर मीठे का भोग लगाएं
फिर दीपक में 1 रुपया रखें। रुपए चढ़ाकर देवी लक्ष्मी और गणेश जी को अर्पण करें
इसके बाद दीपक को प्रणाम करें और आशीर्वाद लें और परिवार के लोगों से भी आशीर्वाद लेने को कहें। इसके बाद यह दिया अपने घर के मुख्य द्वार पर रख दें, ध्यान रखे कि दिया दक्षिण दिशा की ओर रखा हो।

#यमदीपदान विधि
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यमदीपदान विधिमें नित्य पूजाकी थालीमें घिसा हुआ चंदन, पुष्प, हलदी, कुमकुम, अक्षत अर्थात अखंड चावल इत्यादि पूजासामग्री होनी चाहिए । साथ ही आचमनके लिए ताम्रपात्र, पंच-पात्र, आचमनी ये वस्तुएं भी आवश्यक होती हैं । यमदीपदान करनेके लिए हलदी मिलाकर गुंथे हुए गेहूंके आटेसे बने विशेष दीपका उपयोग करते हैं ।

यमदीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए। इसके लिए मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे स्वच्छ जल से धो लें। तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियाँ बना लें। उन्हें दीपक में एक-दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियोँ के चार मुँह दिखाई दें। अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें।

प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पुजन करें। उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी-सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है। दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए चारमुँह के दीपक को खील (लाजा) आदि की ढेरी के ऊपर रख दें।

मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।।

अर्थात् त्रयोदशी को दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यम प्रसन्न हों।

उक्त मन्त्र के उच्चारण के पश्चात् हाथ में पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार करें।

#धनतेरस पूजा मुहूर्त
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धनत्रयोदशी या धनतेरस के दौरान लक्ष्मी पूजा को प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए जो कि सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 2 घण्टे 24 मिनट तक रहता है। प्रदोषकाल में दीपदान व लक्ष्मी पूजन करना शुभ रहता है।

#चौघड़िया अनुसार पूजन करने के लिए चौघाडिया मुहूर्त
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शुभघड़ी मुहूर्त 12:00 से 13:30 तक
चर घड़ी मुहूर्त 16:30 से 18:00 तक
लाभ घड़ी मुहूर्त 21:00 से 22:30 तक

उपरोक्त में लाभ समय में पूजन करना लाभों में वृद्धि करता है। शुभ काल मुहूर्त की शुभता से धन, स्वास्थय व आयु में शुभता आती है। सबसे अधिक शुभ अमृ्त काल में पूजा करने का होता है।

#प्रदोषकाल पूजन मुहूर्त
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प्रदोष काल का समय 17:38 से 20:13 तक रहेगा, स्थिर लग्न 18:49 से 20:45 तक रहेगा. धनतेरस की पूजा के लिए उपयुक्त समय 19:08 से 20:13 के मध्य तक रहेगा।

#धनतेरस पर खरीददारी के लिये शुभ मुहूर्त
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प्रातः 8:41 से लेकर सुबह 10:40 मिनट तक

दोपहर 12:07 से दोपहर 02:51 मिनट तक

सायं 04:15 मिनट से शाम 05:41 मिनट तक

रात्रि 9:11 बजे से रात 10:35 तक धनतेरस की खरीददारी कर सकते है।

ध्यान रहे सुबह 10:41 से दोपहर 12:05 तक राहुकाल रहेगा इस अवधि में खरीददारी ना करें।
            
#राशियों के अनुसार जाने धनतेरस पर क्या खरीदना शुभ होगा          
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मेष
इस राशि का स्वामी मंगल है। धनतरेस के शुभ मुहूर्त पर मेष राशि के जातकों के लिए ताबें की वस्तुएं खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन आप चाहें तो भूमि में भी निवेश कर सकते हैं। अगर आप इस दिन तांबे की कोई वस्तु नहीं खरीदना चाहते तो आप चांदी या इलेक्ट्रॉनिक का भी कोई समान खरीद सकते हैं। वहीं इस राशि के लोगों को शेयर, केमिकल, चमड़े, लोहे से संबंधित काम में निवेश करने से बचना चाहिए।  
 
वृष? 
वृषभ राशि का स्वामी शुक्र है। इन राशि के लोग धनतेरस के दिन चांदी का कोई सामान खरीद सकते हैं। इसके अलावा धनतेरस के दिन चावल अवश्य खरीदने चाहिए। इस खास मौके पर अनाज, कपड़ा, चांदी, चीनी, चावल, ब्यूटी प्रोडक्ट्स, परफ्यूम, दूध और उससे बने पदार्थ, प्लास्टिक, खाद्य तेल, कपड़े, और रत्नों में निवेश करने या खरीदने से लाभ होगा। इससे मां लक्ष्मी हमेशा कृपा बरसाती रहेंगी।  
 
मिथुन? 
मिथुन राशि के जातकों का स्वामी बुध है। बुध व्यापारियों को लाभ देने वाला ग्रह है। मिथुन राशि के जातक धनतेरस पर स्टील के बर्तन खरीद सकते हैं। धनतेरस के दिन आपका वाहन खरीदना या सोने में निवेश करना भी शुभ माना जाता है। इस दिन आप सफेद वस्त्र का दान करें, जिससे आपकी वित्तीय स्थिति बेहतर हो जाएगी। इसके अलावा धनतेरस के दिन कागज, लकड़ी, पीतल, गेहूं, दालें, कपड़ा, स्टील, प्लास्टिक, तेल, सौदर्य सामग्री, सीमेंट, खनिज पदार्थ आदि का व्यापार करने वाले और खरीदने वाले को लाभ मिलेगा।   
 
कर्क?
कर्क राशि का स्वामी चंद्र है। धनतेरस के दिन आपका कंपनियों के शेयर और फाइनेंस कंपनियों में निवेश करना लाभदायी होगा। कर्क राशि के लोग धनतेरस के दिन चांदी की वस्तुएं खरीद सकते हैं। इसके अलावा चाहें तो आप स्टील के बर्तन भी खरीद सकते हैं। इस दिन इलेक्ट्रॉनिक का आइटम खरीदना आपके लिए शुभ होगा, यदि आप ऐसा करते हैं तो आपके घर में मां लक्ष्मी का वास हमेशा बना रहेगा। 
 
सिंह?
सिंह राशि का स्वामी सूर्य है। इन राशि के जातकों को नौकरी पसंद नहीं होती है ये केवल व्यापार करने में विश्वास रखते हैं। धनतेरस के दिन आप शेयर या जमीन-जायदाद में निवेश कर सकते हैं। इस दिन सिंह राशि के जातक तांबे या कांसे की वस्तुओं को खरीद सकते हैं। आप चाहें तो इस खास मौके पर सोने मे निवेश कर सकते हैं या इलेक्ट्रॉनिक का कोई आइटम खरीद सकते हैं। इस दिन आप नए कपड़े भी खरीद सकते हैं ऐसा करने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद आप पर हमेशा बना रहेगा।
 
कन्या?
कन्या राशि का स्वामी बुध है, जिसे चंद्रमा का शत्रु माना जाता है। इन राशि के लोगों के लिए धनतेरस के दिन तांबे के गणेश जी खरीदना शुभ माना जाता है। वहीं इस खास मौके पर आप रसोई के लिए कोई आइटम भी खरीद सकते हैं। इस खास मौके पर अगर आप चाहें तो कांसे या हाथी के दांत से बनी चीजें भी खरीद सकते हैं। 
 
तुला⚖
तुला राशि का स्वामी शुक्र है। इस ऱाशि वालों को इलेक्ट्रॉनिक सामान और तेल में निवेश करना शुभ माना जाता है। तुला राशि के जातक धनतेरस के दिन चांदी या स्टील से बनी कोई भी चीजें खरीद सकते हैं। इसके अलावा आप कोई ब्यूटी प्रोडक्ट्स या घर को सजाने वाली किसी वस्तु को खरीद सकते हैं। ऐसा करने से आपको ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। 
 
वृश्चिक?
इस राशि के जातकों का स्वामी मंगल है। इस राशि वाले लोगों को धनतेरस के दिन जमीन, मकान, दुकान और वस्त्रों में निवेश करना चाहिए। इस खास मौके पर सोने की वस्तु को खरीदना काफी शुभ माना जाता है। यदि आप चाहें तो इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं भी खरीद सकते हैं। यदि आप इन वस्तुओं को खरीदते हैं तो आपको धनलाभ के कई योग बनेंगे। 
 
धनु?
इस राशि के लोगों का स्वामी गुरु है। गुरु व्यापारियों को लाभ प्रदान कराने वाला ग्रह है। धनतेरस के दिन सोने का आइटम और अनाज खरीदना शुभ माना जाता है। इसके अलावा आप इस दिन आभूषण, रत्न, अनाज, चांदी और ब्यूटी प्रोडक्टस भी खरीद सकते हैं। यदि आप इस दिन कोई पीली वस्तु खरीद लें तो आपके ऊपर लक्ष्मी के साथ-साथ बृहस्पति देव का भी आशीर्वाद बना रहेगा। 
 
मकर?
मकर राशि का स्वामी शनि है। धनतेरस के दिन इलेक्ट्रॉनिक सामान, वाहन, इत्र, स्टील और ब्यूटी प्रोडक्ट्स में निवेश से लाभ प्राप्त होता है। मकर राशि के लोग धनतेरस के दिन वाहन खरीद सकते हैं क्योंकि उनके लिए यह दिन काफी शुभ है। इसके अलावा आप मां लक्ष्मी के पूजन के लिए वस्त्र और चांदी का सिक्का भी खरीद सकते हैं। इस पावन अवसर पर यह सब चीजें खरीदने से आपके घर में समृद्धि का वास होगा। 
 
कुंभ?
इस राशि के जातकों का स्वामी शनि है। धनतेरस के दिन लोहे, इलेक्ट्रॉनिक सामान, वाहन, इत्र, स्टील आदि वस्तुएं खऱीद सकते हैं। इस दिन आप चाहें तो नीलम रत्न भी खरीद सकते हैं। यह काफी शुभ माना जाता है। यदि आप चाहें तो इस दिन भगवान गणेश और धन की देवी लक्ष्मी के चित्र वाला सोने का सिक्का भी खरीद सकते हैं। ऐसा करने से आपकी आर्थिक स्थिति बेहतर रहेगी।
 
मीन?
मीन राशि वालों का स्वामी गुरु है। चंद्रमा का घनिष्ठ मित्र माना जाता है। धनतेरस के दिन सोना, चांदी, रत्न, आभूषण आदि सामग्रियों को खरीदना शुभ माना जाता है। इसके अलावा आप इस दिन चांदी के बर्तन भी खरीद सकते हैं। अगर आप चाहें तो कोई इलेक्ट्रॉनिक आइटम भी खरीद सकते हैं। ये सब खरीदते हैं तो आप पर मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। 

#कुछ अन्य उपाय टोटके
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धन तेरस पर धन प्राप्ति के अनेक उपाय बताए जाते हैं लेकिन सभी उपायों से बढ़कर है धन और आरोग्य के देवता धन्वं‍तरि का पावन स्तोत्र। 

 #धन्वं‍तरि स्तो‍त्र●
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ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय सर्व रोगनिवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप
श्री धन्वं‍तरि स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥ 

इस स्तो‍त्र को कम से कम 11 बार पढ़ें।

? पूर्ण भाव से भगवान धन्वंतरि जी का पूजन करें।

? घर में नयी झाडू और सूपड़ा खरीद कर लाये और विधि से पूजन करें।

? सायंकाल दीपक प्रज्वलित कर अपने मकान , दुकान आदि को सुन्दर सजाये।

? माँ लक्ष्मी को गुलाब के पुष्पों की माला पहनाये और उन्हें सफेद मिठाई का भोग लगाये।

? अपनी सामर्थ्य अनुसार तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करते हैं।

? हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें।

? धनतेरस के दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखने से परिवार की धन संपदा में वृ्द्धि होती है।

? कुबेर देवता का पूजन करें। शुभ मुहूर्त में अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में नई गड़ी बिछाएं।

? सायंकाल पश्चात 13  दीपक जलाकर  तिजोरी में भगवान कुबेर धन के देवता  का पूजन करें।

? मृत्यु के देवता यमराज  के निमित्त दीपदान करें।

? तेरस के सायंकाल किसी पात्र में तिल के तेल से युक्त दीपक प्रज्वलित करें। पश्चात गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके यम से निम्न प्रार्थना करें-

‘मृत्युना दंडपाशाभ्याम्‌ कालेन श्यामया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्‌ सूर्यजः प्रयतां मम।
अब उन दीपकों से यम की प्रसन्नता के लिए सार्वजनिक स्थलों को प्रकाशित करें।

#कनकधारास्तोत्र!!
         धनप्राप्ति के लिए हरसंभव श्रेष्ठ उपाय करना ही चाहिए। धन प्राप्ति और धन संचय के लिए पुराणों में वर्णित कनकधारा यंत्र एवं स्तोत्र चमत्कारिक रूप से लाभ प्रदान करते हैं।

यह श्री शंकराचार्यचार्य द्वारा लिखा गया माँ लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त करने का एक शक्तिशाली स्तोत्र है। इसका नियमित पाठ करने से तथा यन्त्र को धारण करने से धन सम्बंधित परेशानियां शीघ्र ही दूर हो जाती हैं। 

              ।।कनकधारा स्तोत्र।। 

अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष –
मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध –
मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –
मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥

इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै –
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥

कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्‌गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥
--------++++++-----------++++bdv+--------     ।।हिंदी अनुवाद।। 
अर्थ – जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल के पेड़ का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ती रहती है तथा जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की कटाक्षलीला मेरे लिए मंगलदायिनी हो।1

अर्थ – जैसे भ्रमरी महान कमलदल पर आती-जाती या मँडराती रहती है, उसी प्रकार जो मुरशत्रु श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बारंबार प्रेमपूर्वक जाती और लज्जा के कारण लौट आती है, वह समुद्रकन्या लक्ष्मी की मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन-सम्पत्ति प्रदान करे।2

अर्थ – जो सम्पूर्ण देवताओं के अधिपति इन्द्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मुरारि श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनन्द प्रदान करनेवाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, वह लक्ष्मीजी के अधखुले नयनों की दृष्टि क्षणभर के लिए मुझपर भी थोड़ी सी अवश्य पड़े।3

अर्थ – शेषशायी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्रीलक्ष्मीजी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करनेवाला हो, जिसकी पुतली तथा भौं प्रेमवश हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष नयनों से देखनेवाले आनन्दकन्द श्रीमुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।4

अर्थ – जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि मण्डित वक्षस्थल में इन्द्रनीलमयी हारावली सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करनेवाली है, वह कमलकुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।5

अर्थ – जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के समान श्यामसुन्दर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती हैं, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनन्दित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी हैं, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीया मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।6

अर्थ – समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझपर पड़े।7

अर्थ – भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी घाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद में पड़े हुए मुझ दीनरूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।8

अर्थ – विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।9

अर्थ – जो सृष्टि-लीला के समय ब्रह्मशक्ति के रूप में स्थित होती हैं, पालन-लीला करते समय वैष्णवी शक्ति के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय-लीला के काल में रुद्रशक्ति के रूप में अवस्थित होती हैं, उन त्रिभुवन के एक मात्र गुरु भगवान नारायण की नित्ययौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।10

अर्थ – हे माता ! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है।11

अर्थ – कमलवदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिन्धु सम्भूता श्रीदेवी को नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।12

अर्थ – कमलसदृश नेत्रोंवाली माननीया माँ ! आपके चरणों में की हुई वन्दना सम्पत्ति प्रदान करनेवाली, सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनन्द देनेवाली, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत है। मुझे आपकी चरणवन्दना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।13

अर्थ – जिनके कृपाकटाक्ष के लिए की हुई उपासना उपासक के लिए सम्पूर्ण मनोरथों और सम्पत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मीदेवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।14

अर्थ – भगवति हरिप्रिये ! तुम कमलवन में निवास करनेवाली हो, तुम्हारे हाथों में लीलाकमल सुशोभित है। तुम अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली देवि ! मुझपर प्रसन्न हो जाओ।15

अर्थ – दिग्गजों द्वारा सुवर्ण कलश के मुख से गिराये गये आकाशगंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्रीअंगों का अभिषेक किया जाता है, सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रातःकाल प्रणाम करता हूँ।16

अर्थ – कमलनयन केशव की कमनीय कामिनी कमले ! मैं अकिंचन (दीनहीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरल तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।17

अर्थ – जो लोग इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयीस्वरूपा त्रिभुवनजननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यन्त सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभाव को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।18

॥ इस प्रकार श्रीमत्शंकराचार्य रचित कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
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#श्रीकमला_खडगमालामंत्र_स्तोत्रम्। 
       अस्यश्री खङ्गमाला मन्त्रस्य उपस्थाधिष्ठायिने वरुणादित्य ऋषये नमः शिरसि। 
गायत्री छन्दसे नमः मुखे। 
महालक्ष्मयै नमः हृदये। 
क ए ई ल ह्रीं गुह्ये।  
ह स क ह ल ह्रीं शक्तये नमः पादयोः। 
स क ल ह्रीं कीलकाय नमः नाभौ। 
श्रीकमला प्रसाद सिद्धयर्थे पाठे विनि योगाय नमः सर्वांगे। 

कूटत्रयद्विरावृत्या करहृदयादिन्यासः

।।ध्यानम्।। 
वन्दे लक्ष्मीं परिशिवमयीं शुद्धजांबूनदाभां।
तेजोरूपां कनकवसनां सर्वभूषोज्ज्वलाङ्गीं॥ 

बीजापूरं कनककलशं हेमपदूमं दधाना
माद्याशक्तिं सकलजननीं आद्यविष्णु वामांगसंस्थाम्॥ 

श्रीमत्सौभाग्यजननीं स्तौमि लक्ष्मीं सनातनीं। 
सर्वकामफलावाप्ति साधनैकसुखावहां॥ 

स्मरामि नित्यं देवेशि त्वया प्रेरितमानसः। 
त्वदाज्ञां शिरसा धृत्वा भजामि परमेश्वरीं॥ 

इति ध्यात्वामानसैः सम्पूज्य |

ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमो विष्णुवल्लभायै महामायायै कं खं गं घं ऊं नमस्ते नमस्ते मां पाहि पाहि रक्ष रक्ष धनं धान्यं श्रियं समृद्धि देहि देहि श्रीं श्रियै नमः स्वाहा । 

ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमो जगज्जनन्यै वात्सल्यनिधये चं छं जं झं जं नमस्ते नमस्ते मां पाहि पाहि रक्ष रक्ष श्रियं प्रतिष्ठां वाक्सिद्धि मे देहि देहि श्रीं श्रियै नमः स्वाहा । 

ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमो सिद्धिसेवितायै सकलाभीष्ट दान दीक्षितायै टं ठं डं ढं णं नमस्ते नमस्ते मा पाहि पाहि रक्ष रक्ष सर्वतोऽभयं देहि देहि श्रीं श्रियै नमः स्वाहा। 

ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमो सिद्धिदात्र्यै महाअचिन्त्य शक्तिकायै तं थं दं धं नं नमस्ते नमस्ते मां पाहि रक्ष रक्ष मे सर्वाभीष्ट सिद्धिं देहि देहि श्रीं श्रियै नमः स्वाहा। 

ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमो वाञ्छितपूरिकायै सर्वसिद्धि मूलभूतायै पं फं बं भं मं नमस्ते नमस्ते मां पाहि पाहि रक्ष रक्ष मे मनोवांछितां सर्वार्थभूतां सिद्धि देहि देहि श्रीं श्रियै नमः स्वाहा। 

ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमो कमले कमलालयै प्रसीद प्रसीद मह्मम प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मी तुभ्यं नमो नमस्ते जगद्धितायै यं वं शं षं सं हं क्षं नमस्ते नमस्ते मां पाहि पाहि रक्ष रक्ष मे वश्याकर्षण मोहन स्तंभनोच्चाटन ताडनाचिन्त्य शक्तिवैभवं देहि देहि श्रीं श्रियै नमः स्वाहा। 

ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं धात्र्यै नमः स्वाहा । 
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं बीजरूपायै नमः स्वाहा। 
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं विष्णुवल्लभायै नमः स्वाहा। 
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं सिद्धयै नमः स्वाहा । 
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं बुद्धयै नमः स्वाहा । 
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं धृत्यै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं मत्यै नमः स्वाहा । 
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं कान्त्यै नमः स्वाहा । 
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं शांत्यै नमः स्वाहा । 
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं सर्वतोभद्राय रूपायै नमः स्वाहा। 
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं श्रियै नमः स्वाहा। 

ॐ नमोभगवति ब्रह्मादि वेदमातर्वेदोद्भवे वेदगर्भे सर्वशक्तिशिरोमणे श्रीं हरि वल्लभे ममाभीष्टं पूरय पूरय मां सिद्धि भाजनं कुरु कुरु अमृतं कुरु कुरु अभयं कुरु कुरु सर्व कार्येषु ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल मे सुत शक्तिं दीपयदीपय ममा हितान् नाशय नाशय असाध्य कार्यं साधय साधय ह्रीं ह्रीं ह्रीं ग्लौं ग्लौं श्रीं श्रिये नमः स्वाहा ।

llजय सद्गुरुदेव, जय महाकाली ll
 #धनतेरस (धनवंतरी) पूजन●

भगवान धन्वंतरि समुद्रमंथन के समय अवतरित हुए थे। 
ये देवताओं के वैद्य है। इनकी उपासना से रोग निवारण की 
शक्ति प्राप्त होती है। इसीलिए सभी डॉक्टर्स और अन्य 
चिकित्सकों के लिए इनकी साधना लाभदायक है। 
बाकी लोग भी आरोग्य प्राप्ति हेतु या रोग निवारण हेतु
साधना करे।

◆आप धनतेरस यानी धनत्रयोदशी के दिन इसे संपन्न करे

◆सामान्य पूजन सामग्री का उपयोग करे।

◆सबसे पहले आचमन आदि क्रिया करे

ॐ गुं गुरुभ्यो नमः 
ॐ श्री गणेशाय नमः 
ॐ श्री धन्वन्तरये नमः

अब आचमन करे

ॐ आत्मतत्वाय स्वाहा 
ॐ विद्यातत्वाय स्वाहा
ॐ शिवतत्वाय स्वाहा
ॐ सर्व तत्वाय स्वाहा

◆अब दाहिने हाथ में पानी लेकर संकल्प करे की 
आज धनतेरस के शुभ दिन पर मैं ( अपना नाम और गोत्र का स्मरण करे ) 
भगवान धन्वन्तरि की कृपा प्राप्त करने हेतु उनका यथाशक्ति पूजन संपन्न कर रहा हूँ

◆अब गणेश और गुरु का संक्षिप्त पूजन करे।

◆अब भगवान धन्वंतरि का ध्यान करे

llचतुर्भुजं पीतवस्त्रं सर्वालंकार शोभितम् 
ध्याने धन्वंतरि देवं सुरासुरा नमस्कृतम् 
युवानम् पुण्डरीकाक्षं सर्वाभरण भूषितम् 
दधानम् अमृतस्यैव कमंडलु श्रियायुतम् 
यज्ञ भोग भुजाम देवम सुरासुरा नमस्कृतम् 
ध्याये धन्वंतरि देवं श्वेताम्बरधरम शुभम् ll

◆अब उनका पंचोपचार पूजन संपन्न करे

ॐ धन्वन्तरये नमः गन्धाक्षत समर्पयामि 
ॐ धन्वन्तरये नमः पुष्पं समर्पयामि
ॐ धन्वन्तरये नमः धूपं समर्पयामि
ॐ धन्वन्तरये नमः दीपं समर्पयामि
ॐ धन्वन्तरये नमः नैवेद्यं समर्पयामि

अब भगवान धन्वंतरि को पुष्पांजलि प्रदान करे

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वन्तरये 
अमृतकलशहस्ताय सर्वभयविनाशाय सर्वरोगनिवारणाय 
त्रैलोक्यपतये त्रैलोक्यनिधये श्रीमहाविष्णुस्वरुप 
श्री धन्वन्तरिस्वरुप श्री श्री श्री औषध चक्र नारायणाय स्वाहा

◆अब भगवान धन्वन्तरि के अष्टोत्तर शत नाम (108 ) से उन्हें 
पुष्प अक्षत अर्पण करते जाए

१.ॐ अमृतवपुषे नमः 
२. ॐ धर्मध्वजाय नमः 
३. ॐ धरावल्लभाय नमः 
४. ॐ धीराय नमः 
५. ॐ धिषणवंद्याय नमः 
६. ॐ धार्मिकाय नमः 
७. ॐ धर्मनियामकाय नमः 
८. ॐ धर्मरुपाय नमः 
९. ॐ धीरोदात्त गुणोज्ज्वलाय नमः 
१०. ॐ धर्म विदे नमः 
११. ॐ धराधर धारिणे नमः 
१२. ॐ धात्रे नमः 
१३. ॐ धातृ गर्व भिदे नमः 
१४. ॐ पुण्यपुरुषाय नमः 
१५. ॐ धाराधर रुपाय नमः 
१६. ॐ धार्मिक प्रियाय नमः 
१७. ॐ धार्मिक वन्द्याय नमः 
१८. ॐ धार्मिक जन ध्याताय नमः 
१९. ॐ धनदादि समर्चिताय नमः 
२०. ॐ धन्वीने नमः 
२१. ॐ धर्मनारायणाय नमः 
२२. ॐ आदित्यरुपाय नमः 
२३. ॐ अमोघाय नमः 
२४. ॐ धीषण पूज्याय नमः 
२५. ॐ धीषणाग्रज सेव्याय नमः 
२६. ॐ धीषण वन्द्याय नमः 
२७. ॐ धीषणा दायकाय नमः 
२८. ॐ धार्मिक शिखामणये नमः 
२९. ॐ धी प्रदाय नमः 
३०. ॐ धी रुपाय नमः 
३१. ॐ ध्यान गम्याय नमः 
३२. ॐ ध्यान धात्रे नमः 
३३. ॐ ध्यातृ ध्येय पदाम्बुजाय नमः 
३४. ॐ धुप दीपादि पूजा प्रियाय नमः 
३५. ॐ धूमादि मार्गदर्शकाय नमः 
३६. ॐ तेजोकृत अग्निरूपाय नमः 
३७. ॐ प्रभंजन वायुरुपाय नमः 
३८. ॐ सौम्याय चन्द्रमसे नमः 
३९. ॐ बृहस्पति प्रसूता औषध द्रव्य पतये नमः 
४०. ॐ अमृतांशुदभवाय नमः 
४१. ॐ धर्म मार्गे विघ्न कृत् सूदनाय नमः 
४२. ॐ धनुर्वातादि रोगघ्नाय नमः 
४३. ॐ धारणा मार्गदर्शकाय नमः 
४४. ॐ ध्यातृ पाप हराय नमः 
४५. ॐ वरदाय धन धान्य प्रदाय नमः 
४६. ॐ धेनु रक्षा धुरिणाय नमः 
४७. ॐ धरणी रक्षण धुरिणाय नमः 
४८. ॐ ओजस्तेजो द्युतिधराय नमः 
४९. ॐ मोहिनिरूपाय नमः 
५०. ॐ समुद्रमंथनोद्भवाय नमः 
५१. ॐ धर्म धुरन्धराय नमः 
५२. ॐ तुष्टाय पुष्टाय नमः 
५३. ॐ वेद्याय वैद्याय नमः 
५४. ॐ सोमपो अमृतप: सोमाय नमः 
५५. ॐ पुरुष पुरुषोत्तमाय नमः 
५६. ॐ वाचस्पतये नमः 
५७. ॐ भेषजे भिषजे नमः 
५८. ॐ महा कृतवे नमः 
५९. ॐ महा यज्ञाय नमः 
६०. ॐ हविषे महा हविषे नमः 
६१. ॐ लोक बन्धवे माधवाय नमः 
६२. ॐ धनगुप्त वरदाय भक्त वत्सलाय नमः 
६३. ॐ इंद्र कर्मणे नमः 
६४. ॐ पावनाय नमः 
६५. ॐ अमृताशाय नमः 
६६. ॐ अमृत वपुषे नमः 
६७. ॐ सर्वतो सुखाय नमः 
६८. ॐ न्यग्रोधौदुम्बराय नमः 
६९. ॐ अश्वत्थाय नमः 
७०. ॐ अणवे नमः 
७१. ॐ बृहते नमः 
७२. ॐ धनुर्धराय नमः 
७३. ॐ धनुर्वेदाय नमः 
७४. ॐ प्रियकृते प्रीति वर्धनाय नमः 
७५. ॐ ज्योतिषे नमः 
७६. ॐ सुखदाय नमः 
७७. ॐ स्वस्तिने स्वस्ति कृते नमः 
७८. ॐ कुण्डलिने नमः 
७९. ॐ चक्रिणे विक्रमिणे नमः 
८०. ॐ शब्द सहाय नमः 
८१. ॐ दु:स्वप्न नाशनाय नमः 
८२. ॐ आधार निलयाय नमः 
८३. ॐ प्राणाय प्राणदाय नमः 
८४. ॐ प्राण निलयाय नमः 
८५. ॐ प्राण धृते नमः 
८६. ॐ प्राण जीवनाय नमः 
८७. ॐ तत्वाय तत्व विदे नमः 
८८. ॐ जन्ममृत्यु जरागाय नमः 
८९. ॐ यज्ञाय महेज्याय नमः 
९०. ॐ क्रतवे यज्ञ वाहनाय नमः 
९१. ॐ यज्ञ भृते नमः 
९२. ॐ यज्ञाय यज्ञांगाय नमः 
९३. ॐ इज्याय यज्ञिने नमः 
९४. ॐ यज्ञ भुजे नमः 
९५. ॐ यज्ञ साधनाय नमः 
९६. ॐ यज्ञान्न कृते नमः 
९७. ॐ यज्ञ गुह्याय नमः 
९८. ॐ साम गानाय नमः 
९९. ॐ पाप नाशनाय नमः 
१००. ॐ भरद्वाज प्रियाय नमः 
१०१. ॐ महोत्साहाय नमः 
१०२. ॐ वर्धमानाय नमः 
१०३. ॐ काशिराज धन्वन्तरये नमः 
१०४. ॐ दिवोदास धन्वन्तरये नमः 
१०५. ॐ श्री धारामृत हस्ताय नमः 
१०६. ॐ धृतामृत कलश कराय नमः 
१०७. ॐ लक्ष्मी सहोदराय नमः 
१०८ . ॐ आधी व्याधि विनाशिने नमः

◆एक आचमनी जल लेकर निम्न मन्त्र पढ़कर छोड़े

अनेन अष्टोत्तर शत नामावली द्वारा पूजनेन श्री धन्वंतरि देवता प्रीयतां न मम

◆अब आप धन्वन्तरि गायत्री से उन्हें अर्घ्य प्रदान करे 
एक आचमनी जल में कुंकुम अष्टगंध मिलाकर अर्पण करे

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे अमृतकलश हस्ताय धीमहि तन्नो धन्वंतरि प्रचोदयात

ॐ आदिवैद्याय विद्महे आरोग्य अनुग्रहाय धीमहि तन्नो धन्वंतरि प्रचोदयात

◆अब कलश का जल लेकर विशेष अर्घ्य अर्पण करे

जातो लोक हितार्थाय आयुर्वेद अभिवृद्धये 
ज़रा मरण नाशाय मानवानां हिताय च 
दुष्टानां निधनायाथ जात्त धन्वन्तरे प्रभो 
गृहाण अर्घ्यं मया दत्तं देव देव कृपा कर

◆अब उन्हें प्रणाम करे_

धन्वन्तरे नमस्तुभ्यं नमो ब्रम्हांड नायक 
सुरासुराराधितांघ्रे नमो वेदैक गोचर 
आयुर्वेद स्वरूपाय नमस्ते जगदात्मने 
प्रपन्न पाहि देवेश जगदानन्द दायक 
दया निधे महादेव त्राहि मां अपराधीनम 
जन्म मृत्यु ज़रा रोगै: पीड़ितं स कुटुम्बिनम् !!१ !!

ॐ शंख चक्र जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्भि:
सूक्ष्म स्वच्छाति हृदयांशुक परिविल सन्मौलिमंभोजनेत्रम् 
कालाम्भोदोज्वलांगं कटितटविलसच्चारु पीताम्बराढ्यम् 
वन्दे धन्वंतरि तं निखिल गदवन प्रौढ़ दावाग्निलीलम !!२!!

◆अब आप चाहे तो निम्न किसी मन्त्र का जाप कर सकते है

मन्त्र :- 
१. ॐ धन्वन्तरये नमः 
२. ॐ श्री धन्वन्तरे नमः

इस पूजन साधना से रोग निवारण ,आरोग्य प्राप्ति का लाभ होता है।

 #दीपावली पर्व का संक्षिप्त  महालक्ष्मी पूजन●
 
जो लोग विस्तृत  पुजन नहि कर सकते वे इस संक्षिप्त पुजन को जरुर करे .. दीपावली  का दिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि इसी दिन महालक्ष्मी की साधना करके उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है .. गृहस्थ जीवन में बिना लक्ष्मी की कृपा के कुछ नहीं हो सकता ..इसीलिए साधक पूरी गंभीरता से महालक्ष्मी की साधना करे 
 .
■यह पूजन आप श्रीयंत्र,दस महाविद्या यन्त्र ,या कोइ भी रत्न या 
रुद्राक्ष पर या कुछ नही तो सुपारी पर कर सकते है .. उस सुपारी को  अपनी तिजोरी मे रखे .. अगले साल उसे विसर्जित कर नइ सुपारी पर पुजन करे ..

महालक्ष्मी पूजन के साथ कुबेर का पूजन भी करे जिसे दुसरी पोस्ट मे प्रस्तुत किया है .. 

पूजन सामुग्री सामान्य यानी हल्दी,कुमकुम ,चन्दन ,अष्टगंध ,
अक्षत ,इत्र ,कपूर,फुल,फल,मिठाई ,पान,अगरबत्ती,दीपक आदि 
रखे ..महालक्ष्मी पूजन में कभी भी कोई कंजूसी न करे ..यथाशक्ति अच्छी से अच्छी सामुग्री रखे ..जैसे मिठाई ,अगरबत्ती ,फुल अच्छी क्वालिटी के रखे ..वातावरण प्रसन्न रखे .घर को सजाये .महालक्ष्मी जी को सजावट और प्रसन्न वातावरण और सफाई पसंद है ..
 
■सबसे पहले आपके सामने गुरुचित्र,लक्ष्मी का चित्र या महाविद्या यन्त्र या फोटो जो भी साधन सामुग्री हो उसे रखे ..दीपक और अगरबत्ती जलाए ..
 
पहले गुरु स्मरण ,गणेश स्मरण करे ..
 
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः 
ॐ श्री गणेशाय नमः 
ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः 
 
■अब आप 4 बार आचमन करे ( दाए हाथ में पानी लेकर पिए )
 
श्रीं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा 
श्रीं विद्या तत्त्वं  शोधयामि नमः स्वाहा 
श्रीं शिव  तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा 
श्रीं सर्व   तत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा 
 
■अब आप घंटा नाद करे और उसे पुष्प अक्षत अर्पण करे 

घंटा देवताभ्यो नमः 

अब आप जिस आसन पर बैठे है उस पर पुष्प अक्षत अर्पण करे 

आसन देवताभ्यो नमः 

अब आप दीपपूजन करे उन्हें प्रणाम करे और पुष्प अक्षत अर्पण करे 

दीप देवताभ्यो नमः 

■अब आप कलश का पूजन करे ..उसमेगंध ,अक्षत ,पुष्प ,तुलसी,इत्र ,कपूर डाले ..उसे तिलक करे .
 
कलश देवताभ्यो नमः 

■अब आप अपने आप को तिलक करे 
और दाहिने हाथ में जल,पुष्प,अक्षत 
लेकर संकल्प करे की आप अपना नाम गोत्र बोलकर आज दीपावली ( या धनत्रयोदशी )  के शुभ मुहूर्त पर यथा शक्ति महालक्ष्मी पूजन कर रहे है और वे आपका पूजन ग्रहण करे और आप पर हमेश कृपा दृष्टी रखे या आपकी जो मनोकामना है उसे पुरी करे और जल को पुजन स्थान पर छोडे ..

■अब आप गणेशजी का स्मरण करे ..गणेशजी महालक्ष्मी के मानस पुत्र है ..इसीलिए उनका पूजन इस महालक्ष्मी पूजन में महत्त्व पूर्ण है ....
 
llवक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ 
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येशु सर्वदा ll
 
श्री महागणपति आवाहयामि 
मम पूजन स्थाने ऋद्धि सिद्धि सहित शुभ लाभ सहित स्थापयामि नमः 
त्वां चरणे गन्धाक्षत पुष्पं समर्पयामि 

ॐ श्री गणेशाय  नमः गंधाक्षत  समर्पयामि 
ॐ श्री गणेशाय  नमः  पुष्पं  समर्पयामि 
ॐ श्री गणेशाय  नमः  धूपं   समर्पयामि 
ॐ श्री गणेशाय  नमः  दीपं   समर्पयामि
ॐ श्री गणेशाय  नमः  नैवेद्यं   समर्पयामि 

■अब नीचे दिये हुये नामों से गणेश जी को दुर्वा या पुष्प अक्षत अर्पण करे 

गं सुमुखाय नम: 
गं एकदंताय नम: 
गं कपिलाय नम: 
गं गजकर्णकाय नम: 
गं लंबोदराय नम: 
गं विकटाय नम: 
गं विघ्नराजाय नम: 
गं गणाधिपाय नम: 
गं धूम्रकेतवे नम: 
गं गणाध्यक्षाय नम: 
गं भालचंद्राय नम: 
गं गजाननाय नम: 
गं वक्रतुंडाय नम: 
गं शूर्पकर्णाय नम: 
गं हेरंबाय नम: 
गं स्कंदपूर्वजाय नम: 

अब गणेशजी को अर्घ्य प्रदान करे 

एकदंताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात 

आप चाहे तो यहाँ गणपती अथर्वशीर्ष का अन्य किसी गणेश स्तोत्र का पाठ कर सकते है .. 

अनेन पूजनेन श्री महागणपति देवता प्रीयन्तां न मम 

■अब भगवान विष्णु का पूजन करे। महालक्ष्मी विष्णु पत्नी है। 

जहां विष्णु का पूजन होता है वहाँ लक्ष्मी अपने आप आती है 

विष्णु ध्यान :- 

शान्ताकारं भुजंग शयनं पद्मनाभं सुरेशं 
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभांगम 
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगीर्भि ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैक नाथम् 

ॐ श्री विष्णवे नमः 
श्री महाविष्णु आवाहयामि मम पूजा स्थाने स्थापयामि पूजयामि नमः 

ॐ श्री विष्णवे नमः गंधाक्षत  समर्पयामि 
ॐ श्री विष्णवे नमः  पुष्पं  समर्पयामि 
ॐ श्री विष्णवे नमः  धूपं   समर्पयामि 
ॐ श्री विष्णवे नमः  दीपं   समर्पयामि
ॐ श्री विष्णवे नमः  नैवेद्यं   समर्पयामि 

आप चाहे तो यहाँ पुरुषसूक्त , विष्णुसूक्त का पाठ कर सकते है .. 

■अब भगवान विष्णु के 24 नामोंसे तुलसी या पुष्प अर्पण करे 

१. ॐ केशवाय नमः 
२. ॐ नारायणाय  नमः 
३. ॐ माधवाय  नमः 
४. ॐ गोविन्दाय  नमः 
५. ॐ विष्णवे  नमः 
६. ॐ मधुसूदनाय  नमः 
७. ॐ त्रिविक्रमाय  नमः 
८. ॐ वामनाय  नमः 
९. ॐ श्रीधराय  नमः 
१०. ॐ ऋषिकेशाय  नमः 
११. ॐ पद्मनाभाय  नमः 
१२. ॐ दामोदराय  नमः 
१३. ॐ संकर्षणाय  नमः 
१४. ॐ वासुदेवाय  नमः 
१५. ॐ प्रद्युम्नाय  नमः 
१६. ॐ अनिरुद्धाय  नमः 
१७. ॐ पुरुषोत्तमाय  नमः 
१८. ॐ अधोक्षजाय  नमः 
१९. ॐ नारसिंहाय  नमः 
२०. ॐ अच्युताय  नमः 
२१. ॐ जनार्दनाय  नमः 
२२. ॐ उपेन्द्राय  नमः 
२३. ॐ हरये  नमः 
२४. ॐ श्रीकृष्णाय  नमः 

■अब भगवान विष्णु को अर्घ्य प्रदान करे 

ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात 

अनेन पूजनेन श्री महाविष्णु देवता प्रियन्ताम्  न मम 

अब आप महालक्ष्मी का ध्यान करे ..
 
■फिर चाहे तो महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र से आवाहन करे ..वैसे तो यह स्तोत्र बहुत बडा है लेकिन इसका संक्षिप्त रुप  दुसरी पोस्ट मे प्रस्तुत करुंगा ..
 
महालक्ष्मी का आवाहन करे ..आवाहन के लिये संक्षिप्त हृदय स्तोत्र का 
या ध्यान मंत्र का  पाठ करे ..

ध्यान मंत्र 
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या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी 
गंभीरावर्तनाभिस्तनभारनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया 
या लक्ष्मी दिव्यरुपै मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः 
सानित्यं पद्महस्ता मम वसतु गॄहे सर्वमांगल्ययुक्ता 
 
श्री महालक्ष्मी आवाहयामि मम गृहे मम कुले मम पूजा स्थाने आवाहयामि स्थापयामि नमः 

(अगर आपको मुद्रा का ज्ञान हो तो भगवती महालक्ष्मी के लिए पद्ममुद्रा दिखाए )
 
फिर पुष्प अक्षत अर्पण करे ..और उनका पंचोपचार या षोडश उपचार पूजन करे 
 
( निचे का  मन्त्र बोलकर पुष्प अक्षत अर्पण करे )

ॐ श्री महालक्ष्म्यै  नमः आवाहनं समर्पयामि 

( निचे का  मन्त्र बोलकर पुष्प अक्षत अर्पण करे )

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आसनं समर्पयामि 

( निचे का  मन्त्र बोलकर दो आचमनी  जल अर्पण करे )

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पाद्यो पाद्यं समर्पयामि 

( निचे का  मन्त्र बोलकर जल में चन्दन अष्ट गंध मिलाकर अर्पण करे )

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः अर्घ्यम   समर्पयामि 

( निचे का  मन्त्र बोलकर एक  आचमनी  जल अर्पण करे )

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि 

( निचे का  मन्त्र बोलकर स्नान के लिए  जल अर्पण करे यहाँ आप चाहे तो श्रीसूक्त या अन्य किसी महालक्ष्मी स्तोत्र से अभिषेक कर सकते है ..  )

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः स्नानं समर्पयामि 

( निचे का  मन्त्र बोलकर मौली लाल धागा  या अक्षत  अर्पण करे )

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः वस्त्रं  समर्पयामि 

( निचे का  मन्त्र बोलकर मौली या अक्षत  अर्पण करे )

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः उप वस्त्रं  समर्पयामि 

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः हरिद्रा कुमकुम  समर्पयामि 

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः चन्दन अष्ट गंधं   समर्पयामि 

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः सुगन्धित द्रव्यम   समर्पयामि 

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः अलंकारार्थे अक्षतान  समर्पयामि 

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पं समर्पयामि 

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पमालाम समर्पयामि 

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः धूपं  समर्पयामि 

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः दीपं समर्पयामि 

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यं   समर्पयामि 

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः फलं  समर्पयामि 

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः आचमनीयं समर्पयामि

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः ताम्बूलं  समर्पयामि'

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः द्रव्य दक्षिणा समर्पयामि

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः कर्पुर आरती  समर्पयामि
 
अब आप अष्ट सिद्धियों  का पूजन करे 
एकेक मन्त्र से गंध अक्षत पुष्पं  अर्पण करे 
 
ॐ अणिम्ने  नमः 
ॐ महिम्ने नमः 
ॐ गरिम्ने नमः 
ॐ लघिम्ने नमः 
ॐ प्राप्त्यै नमः 
ॐ प्राकाम्यै  नमः 
ॐ इशितायै  नमः 
ॐ वशितायै  नमः 
 
■अब आप अष्टलक्ष्मी का पूजन करे 
एकेक मन्त्र से गंध अक्षत पुष्पं  अर्पण करे 
 
ॐ आद्य लक्ष्म्यै नमः 
ॐ धन  लक्ष्म्यै नमः 
ॐ धान्य   लक्ष्म्यै नमः 
ॐ धैर्य  लक्ष्म्यै नमः 
ॐ गज  लक्ष्म्यै नमः 
ॐ संतान  लक्ष्म्यै नमः 
ॐ विद्या   लक्ष्म्यै नमः 
ॐ विजय   लक्ष्म्यै नमः 
 
(यहाँ पर भगवती महालक्ष्मी की 32 नामावली अलग दी है उससे पूजन करे .अगर समय नहि है तो इसको छोडकर आगे का पुजन कर सकते है )

 साधक एकेक नाम पढ़कर पुष्प अक्षत चढ़ाते जाए। 

1. ॐ श्रियै नमः। 

2. ॐ लक्ष्म्यै  नमः।   

3. ॐ वरदायै  नमः। 

4. ॐ विष्णुपत्न्यै नमः। 

5. ॐ वसुप्रदायै नमः। 

6. ॐ हिरण्यरूपिण्यै नमः।  

7. ॐ स्वर्णमालिन्यै नमः। 

8. ॐ रजतस्त्रजायै नमः। 

9. ॐ स्वर्णगृहायै नमः। 

10. ॐ स्वर्णप्राकारायै नमः।  

11. ॐ पद्मवासिन्यै नमः। 

12. ॐ पद्महस्तायै नमः। 

13. ॐ पद्मप्रियायै  नमः।  

14. ॐ मुक्तालंकारायै नमः। 

15. ॐ सूर्यायै नमः। 

16. ॐ चंद्रायै  नमः।  

17. ॐ बिल्वप्रियायै  नमः। 

18. ॐ ईश्वर्यै  नमः।  

19. ॐ भुक्त्यै  नमः।  

20. ॐ प्रभुक्त्यै नमः।  

21. ॐ विभूत्यै नमः। 

22. ॐ ऋद्धयै नमः। 

23. ॐ समृद्ध्यै  नमः। 

24. ॐ तुष्टयै  नमः।  

25. ॐ पुष्टयै  नमः।  

26. ॐ धनदायै नमः। 

27. ॐ धनैश्वर्यै  नमः।

28. ॐ श्रद्धायै  नमः। 

29. ॐ भोगिन्यै  नमः। 

30. ॐ भोगदायै  नमः।  

31. ॐ धात्र्यै  नमः। 

32. ॐ विधात्र्यै  नमः।  

■अब एक आचमनी जल लेकर पूजा स्थान पर छोड़े 
अनेन महालक्ष्मी द्वात्रिंश नाम पूजनेन श्री भगवती महालक्ष्मी देवता प्रीयन्तां  मम  . 

■अब महालक्ष्मी के पुत्रों का पूजन करे
(अगर समय है तो करे ) 
१. ॐ देवसखाय नमः 
२. ॐ चिक्लीताय नमः 
३. ॐ आनंदाय  नमः
४. ॐ कर्दमाय  नमः
५. ॐ श्रीप्रदाय   नमः
६. ॐ जातवेदाय   नमः
७. ॐ अनुरागाय   नमः
८. ॐ संवादाय   नमः
९. ॐ विजयाय  नमः
१०. ॐ वल्लभाय  नमः
११. ॐ मदाय नमः
१२. ॐ हर्षाय नमः
१३. ॐ बलाय नमः
१४. ॐ तेजसे  नमः
१५. ॐ दमकाय नमः
१६. ॐ सलिलाय  नमः
१७. ॐ गुग्गुलाय  नमः
१८ . ॐ कुरूण्टकाय  नमः

अनेन पूजनेन श्री महालक्ष्मी पुत्र सहित श्री महालक्ष्मी प्रियन्ताम् न मम 

■हाथ जोड़ कर क्षमा प्रार्थना करे 
 
त्रैलोक्य पूजिते देवी कमले विष्णु वल्लभे यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा इश्वरी कमला लक्ष्मीश्चचला भूतिर हरिप्रिया पद्मा पद्मालया संपदुच्चे: श्री: पद्माधारिणी 
 
द्वादशैतानी नामानि लक्ष्मी संपूज्य य: पठेत स्थिरा लक्ष्मी भवेत् तस्य पुत्र दारादीभि : सह 
 
अब आचमनी मे जल और कुंकुम लेकर महालक्ष्मी गायत्री से अर्घ्य दे सकते है ..
 
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात 

हाथ जोड़ कर माँ महालक्ष्मी से प्रार्थना करे _

त्राहि त्राहि महालक्ष्मी त्राहि त्राहि सुरेश्वरी त्राहि त्राहि जगन्माता दरिद्रात त्राही वेगत :
 त्वमेव जननी लक्ष्मी त्वमेव पिता लक्ष्मी भ्राता त्वं च सखा लक्ष्मी विद्या लक्ष्मी त्वमेव च 
 रक्ष त्वं देव देवेशी देव देवस्य वल्लभे 
दरिद्रात त्राही मां लक्ष्मी कृपां कुरु ममोपरी 
 
माँ महालक्ष्मी मम गृहे मम कुले मम परिवारे मम गोत्रे मम हृदये 
सदा स्थिरो  भव प्रसन्नो भव वरदो भव 
 
■अब आप  प्रार्थना करे की आपका महालक्ष्मी पूजन पूर्ण रूप से फले ..

#दीपावली का  कुबेर पूजन ★

भगवान कुबेर देवोंके कोषाध्यक्ष है। इनकी साधना से धन ,धान्य ,ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति हो जाती है। इनकी पूजा सामान्यत: दीपावली पर्व में धन तेरस और लक्ष्मीपूजन के पर्व पर भगवती महालक्ष्मी के साथ की जाती है.
आप इन्हे स्वतंत्र रूप से भी पूज सकते है।

★यहां पर मैं सिर्फ उनका ध्यान और उनका पूजन दे रहा हूँ आप इस पूजन को दीपावली के महालक्ष्मी पूजन में महालक्ष्मी जी के पूजन से पहले या महालक्ष्मी जी के पूजन के अंत में जोड़कर करे  

★पहले महालक्ष्मी पूजन करे और फिर 
कुबेर जी का ध्यान मन्त्र पढ़कर उनका आवाहन करे और पूजन स्थान में पुष्प अक्षत अर्पण करे

★कुबेर ध्यान :-
----------------

llमनुज बाह्य विधान वरस्थितं गरुड़ रत्ननिभं निधिनायकं 
शिवसखं मुकुटादि विभूषितं वरगदे दधतं भज तुन्दिलंll

ॐ श्री कुबेराय नमः ध्यायामि

कुबेर आवाहन मंत्र :-
--------------------------

आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु 
कोशं वर्द्धय नित्यं , त्वं परिरक्ष सुरेश्वर

ॐ श्री कुबेराय नमः आवाहयामि

आवाहनार्थे पुष्प अक्षत समर्पयामि

अब भगवान कुबेर का पंचोपचार पूजन करे

ॐ श्री कुबेराय नमः गंधाक्षत समर्पयामि 
ॐ श्री कुबेराय नमः पुष्पं समर्पयामि 
ॐ श्री कुबेराय नमः धूपं समर्पयामि 
ॐ श्री कुबेराय नमः दीपं समर्पयामि 
ॐ श्री कुबेराय नमः नैवेद्यं समर्पयामि

★अब भगवान कुबेर का आवरण पूजन करे।

(जिन्हे संक्षिप्त पूजन करना है वे कुबेर का आवरण पूजन ना करे और कुबेर के ध्यान आवाहन और पंचोपचार पूजन के बाद सीधे 108 नामावली से पूजन करे 
वैसे आवरण पूजन छोटा है तो आप चाहे तो कर सकते है जिससे भगवान कुबेर अपने पुरे परिवार सहित आप पर कृपा कर सकते है )

सर्व प्रथम आवरण पूजन हेतु पुष्प अक्षत अर्पण करे

ॐ संविन्मय: परो देव: परामृत रसप्रिय: 
अनुज्ञां देहि धनद परिवाराय अर्चनाय मे

★अब आवरण पूजन में पूजन हेतु पुष्प अक्षत और तर्पण हेतु एक आचमनी जल छोड़े

★प्रथम आवरण :-
-----------------

ॐ यक्षाय हृदयाय नम: हृदय शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ कुबेराय शिरसे स्वाहा शिर शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ वैश्रवणाय शिखायै वषट शिखा शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ धनधान्याधिपतये कवचाय हुं कवच शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ धन धान्य समृद्धिं मे नेत्र त्रयाय वौषट् नेत्र शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ देहि दापय स्वाहा अस्त्राय फट अस्त्र शक्ति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

अब पुष्प अक्षत अर्पण करे

अभीष्ट सिद्धिं में देहि शरणागत वत्सल 
भक्त्या समर्पयेत तुभ्यं प्रथम आवरण अर्चनम

अब 3  आचमनी जल छोड़े 
अनेन प्रथम आवरण देवता पूजनेन श्री कुबेर देवता प्रीयतां न मम

★द्वितीय आवरण :-
-----------------

ॐ यक्षाय नम: यक्ष श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ वैश्रवणाय नमः वैश्रवण श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ धनदाय नमः धनद श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ वित्तेश्वराय नमः वित्तेश्वर श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ धनाध्यक्षाय नमः धनाध्यक्ष श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ निधिनायकाय नमः निधिनायक श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ धान्याधिपतये नमः धान्याधिपति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ शिवसखाय नमः शिवसखा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

अब पुष्प अक्षत अर्पण करे

अभीष्ट सिद्धिं में देहि शरणागत वत्सल 
भक्त्या समर्पयेत तुभ्यं द्वितीय आवरण अर्चनम

और 3 आचमनी जल छोड़े 
अनेन द्वितीय आवरण देवता पूजनेन श्री कुबेर देवता प्रीयतां न मम

★तृतीय आवरण :-
-----------------

ॐ इन्द्राय नम: इंद्र श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ अग्नये नमः अग्नि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ यमाय नमः यम श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ निऋतये नमः निऋति श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ वरुणाय नमः वरुण श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ वायवे नमः वायु श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ सोमाय नमः सोम श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ ईशानाय नमः ईशान श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ ब्रह्मणे नमः ब्रह्मा श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

ॐ अनंताय नमः अनंत श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः

अब पुष्प अक्षत अर्पण करे

अभीष्ट सिद्धिं में देहि शरणागत वत्सल 
भक्त्या समर्पयेत तुभ्यं तृतीय आवरण अर्चनम

और 3  आचमनी जल छोड़े 
अनेन तृतीय आवरण देवता पूजनेन श्री कुबेर देवता प्रीयतां न मम

★चतुर्थ आवरण :-
-----------------
कुछ पद्धतियों में अस्त्रों का तर्पण करते है और कुछ में नहीं करते 
इस पद्धति में अस्त्रोंका तर्पण नहीं दिया है तो सिर्फ पुष्प अक्षत अर्पण करे

ॐ वज्राय नम: वज्र श्री पादुकां पूजयामि नमः

ॐ शक्तये नमः शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः

ॐ दण्डाय नमः दण्ड श्री पादुकां पूजयामि नमः

ॐ खड्गाय नमः खड्ग श्री पादुकां पूजयामि नमः

ॐ पाशाय नमः पाश श्री पादुकां पूजयामि नमः

ॐ अंकुशाय नमः अंकुश श्री पादुकां पूजयामि नमः

ॐ गदायै नमः गदा श्री पादुकां पूजयामि नमः

ॐ त्रिशूलाय नमः त्रिशूल श्री पादुकां पूजयामि नमः

ॐ पद्माय नमः पद्म श्री पादुकां पूजयामि नमः

ॐ चक्राय नमः चक्र श्री पादुकां पूजयामि नमः

★अब पुष्प अक्षत अर्पण करे

अभीष्ट सिद्धिं में देहि शरणागत वत्सल 
भक्त्या समर्पयेत तुभ्यं चतुर्थ आवरण अर्चनम

और 3  आचमनी जल छोड़े 
अनेन चतुर्थ आवरण देवता पूजनेन श्री कुबेर देवता प्रीयतां न मम

फिर से गंध अक्षत पुष्प अर्पण करे_

सर्व आवरण देवता सहित श्री कुबेराय नमः पुनः गंध अक्षत पुष्पं समर्पयामि

★अब कुबेर जी के अष्टोत्तर शत नाम (108 ) से पुष्प अक्षत अर्पण करे

१. ॐ कुबेराय नमः 
२. ॐ धनदाय नमः 
३. ॐ श्रीदाय नमः 
४. ॐ यक्षेशाय नमः 
५. ॐ गुह्यकेश्वराय नमः 
६. ॐ निधिशाय नमः 
७. ॐ शंकरसखाय नमः 
८. ॐ महालक्ष्मीनिवासभुवे नमः 
९. ॐ महापद्मनिधिशाय नमः 
१०. ॐ पूर्णाय नमः 
११. ॐ पद्मनिधीश्वराय नमः 
१२. ॐ शख्यान्खनिधिनाथाय नमः 
१३. ॐ मकराख्य निधिप्रियाय नमः 
१४. ॐ कच्छपाख्य निधिशाय नमः 
१५. ॐ मुकुंद निधिनायकाय नमः 
१६. ॐ कुन्दाख्य निधिनाथाय नमः 
१७. ॐ नीलनिध्यधिपाय नमः 
१८. ॐ महते नमः 
१९. ॐ खर्वनिध्यधिपाय नमः 
२०. ॐ पूज्याय नमः 
२१. ॐ लक्ष्मी साम्राज्य दायकाय नमः 
२२. ॐ इलविलापत्याय नमः 
२३. ॐ कोषाधिशाय नमः 
२४. ॐ कलोचिताय नमः 
२५. ॐ अश्वारूढाय नमः 
२६. ॐ विश्ववन्द्याय नमः 
२७. ॐ विशेषज्ञाय नमः 
२८. ॐ विशारदाय नमः 
२९. ॐ नलकूबर ताताय नमः 
३०. ॐ मणिग्रीवपित्रे नमः 
३१. ॐ गूढ़मन्त्राय नमः 
३२. ॐ वैश्रवणाय नमः 
३३. ॐ चित्रलेखामन:प्रियाय नमः 
३४. ॐ एकपिंगाय नमः 
३५. ॐ अलकाधीशाय नमः 
३६. ॐ पौलस्त्याय नमः 
३७. ॐ नरवाहनाय नमः 
३८. ॐ कैलासशैलनिलयाय नमः 
३९. ॐ राज्यदाय नमः 
४०. ॐ रावणाग्रजाय नमः 
४१. ॐ चित्रचैत्ररथोदयानविहार सुकुतूहलाय नमः 
४२. ॐ महोत्साहाय नमः 
४३. ॐ महाप्राज्ञाय नमः 
४४. ॐ सदापुष्पकवाहनाय नमः 
४५. ॐ सार्वभौमाय नमः 
४६. ॐ अंगनाथाय नमः 
४७. ॐ सोमाय नमः 
४८. ॐ सौम्यदिगीश्वराय नमः 
४९. ॐ पुण्यात्मने नमः 
५०. ॐ पुरुहूतश्रिये नमः 
५१. ॐ पुण्यजनेश्वराय नमः 
५२. ॐ नित्यकीर्तये नमः 
५३. ॐ नीतिवेत्रे नमः 
५४. ॐ लंकाप्राक्तननायकाय नमः 
५५. ॐ यक्षाय नमः 
५६. ॐ परमशांतात्मने नमः 
५७. ॐ यक्षराजे नमः 
५८. ॐ यक्षिणीवृत्ताय नमः 
५९. ॐ किन्नरेशाय नमः 
६०. ॐ किम्पुरुषाय नमः 
६१. ॐ नाथाय नमः 
६२. ॐ खड्गयुधाय नमः 
६३. ॐ वशिने नमः 
६४. ॐ ईशानदक्षपार्शस्थाय नमः 
६५. ॐ वायुवामसमाश्रयाय नमः 
६६. ॐ धर्ममार्गैक निरताय नमः 
६७. ॐ धर्मसम्मुखसंस्थिताय नमः 
६८. ॐ नित्येश्वराय नमः 
६९. ॐ धनाध्यक्षाय नमः 
७०. ॐ अष्टलक्ष्म्याश्रितालयाय नमः 
७१. ॐ मनुष्यधर्मिणे नमः 
७२. ॐ सदवृताय नमः 
७३. ॐ कोषलक्ष्मी समाश्रिताय नमः 
७४. ॐ धनलक्ष्मी नित्यवासाय नमः 
७५. ॐ धान्यलक्ष्मी निवासभुवे नमः 
७६. ॐ अश्वलक्ष्मी सदावासाय नमः 
७७. ॐ गजलक्ष्मी स्थिरालयाय नमः 
७८. ॐ राज्यलक्ष्मी जन्मगेहाय नमः 
७९. ॐ धैर्यलक्ष्मी कृपाश्रयाय नमः 
८०. ॐ अखण्डैश्वर्य संयुक्ताय नमः 
८१. ॐ नित्यानंदाय नमः 
८२. ॐ सुखाश्रयाय नमः 
८३. ॐ नित्यतृप्ताय नमः 
८४. ॐ निधेरदात्रे नमः 
८५. ॐ निराशाय नमः 
८६. ॐ निरुपद्रवाय नमः 
८७. ॐ नित्यकामाय नमः 
८८. ॐ निराकान्क्षाय नमः 
८९. ॐ निरुपाधिकवासभुवे नमः 
९०. ॐ शान्ताय नमः 
९१. ॐ सर्वगुणोपेताय नमः 
९२. ॐ सर्वज्ञाय नमः 
९३. ॐ सर्वसम्मताय नमः 
९४. ॐ शर्वाणीकरुणापात्राय नमः 
९५. ॐ शतानन्दकृपालयाय नमः 
९६. ॐ गन्धर्वकुलसंसेव्याय नमः 
९७. ॐ सौगन्धिककुसुमप्रियाय नमः 
९८. ॐ सुवर्णनगरीवासाय नमः 
९९. ॐ निधिपीठसमाश्रयाय नमः 
१००. ॐ महामेरुत्तरस्थायिने नमः 
१०१. ॐ महर्षिगणसंस्तुताय नमः 
१०२. ॐ तुष्टाय नमः 
१०३. ॐ शूर्पणखाज्येष्ठाय नमः 
१०४. ॐ शिवपुजारताय नमः 
१०५. ॐ अनघाय नमः 
१०६. ॐ राजयोगिने नमः 
१०७. ॐ राजराजाय नमः 
१०८. ॐ राजशेखरपूजकाय नमः

★एक आचमनी लेकर छोड़े

अनेन अष्टोत्तर शत नामावली द्वारा धनधान्याधिपतये श्री कुबेर देवता प्रीयन्तां न मम

अब कुबेर गायत्री से अर्घ्य प्रदान करे 
अर्घ्य के लिए पानी में कुंकुम अष्टगंध ,फूल आदि मिलाकर अर्पण करे

ॐ यक्षराजाय विद्महे वैश्रवणाय च धीमहि तन्नो कुबेर: प्रचोदयात

यहां पर पूजन समाप्त होता है 

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 !!जय सद्गुरुदेव, जय महाँकाल !!

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