भगवान शिव से जुड़ी 11 अद्भुत बातें, और चंद्रशेखराष्टक,,
1. शिवलिंग निराकार रूप को दर्शाता है ।
भगवान शिव की मुख्य आराधना शिवलिंग के रूप में ही की जाती है । क्या आप जानते है की देवी देवताओ की खंडित मूर्ति की कभी पूजा नही की जाती, उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है, लेकिन शिवलिंग कितना भी टूटा हो, खंडित हो, फिर भी शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसलिए भोलेनाथ का हर शिवलिंग उनके निराकार रूप को दर्शाता है।
शिवलिंग पर बेलपत्र तो लगभग सभी चढ़ाते है। सभी जानते है बेलपत्र के बिना भगववान शिव की पूजा पूर्ण नहीं होती। लेकिन इसके लिए भी एक ख़ास सावधानी बरतनी पड़ती है, कि बिना जल के, बेलपत्र नही चढ़ाया जा सकता। बेलपत्र हमेशा जल के साथ चढ़ाते है।
3. शिवलिंग की पूजा में शंख निषेद
शिवलिंग की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं होता और न ही शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल चढ़ाया जाता है। क्योंकि भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से शंखचूड़ को भस्म कर दिया था और शंखचूड़ की हड्डियों से ही शंख बना था।
4. भगवान शिव की जटाओं में गंगा
हिन्दू धर्म में गंगा नदी को सबसे पवित्र माना गया है। गंगा नदी शिवजी की जटाओं से बहती है। परन्तु ऐसा क्यों है? देवी गंगा को जब धरती पर उतारने का विचार आया तो एक समस्या उत्पन हो गई। माँ गंगा का वेग इतना अधिक था जिसे भरी विनाश हो सकता था। तब सभी देवी देवताओं ने भगवान शिव को मनाया, की वे पहले गंगा को अपनी ज़टाओं में बाँध लें, फिर अलग-अलग दिशाओं से धीरें-धीरें उन्हें धरती पर उतारें। इसी कारण से माँ गंगा शिव की जटाओ मे रहती है। शिव जी का गंगा को धारण करना यह दर्शाता है कि शिव ना केवल सँहार करते है अपितु पृथ्वी का कल्याण भी करते है।
5. मस्तक पर चंद्रमा
भगवान शिव की जटाओं में रहने का वरदान चंद्रमा को मिला हुआ है। जिसके बारे मे कहा जाता है महाराजा दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया, और इस श्राप से बचने के लिए चंद्रमा ने भगवान शिव की अराधना की, जिसे भगवान शिव काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने चंद्रमा के प्राणों की रक्षा की। साथ ही चंद्रमा को अपने सिर पर धारण कर लिया। इसके अलावा सिर पर विराजित अर्धचंद्र भगवान शिव के मन को शांत रखते हैं।
6. महाकाल के कंठ में सर्प
भगवान शिव की प्रतिमा को गौर से देखे तो उनके गले में हर समय लिपटे रहने वाले सर्प पर ध्यान जाता है और अक्सर आपके दिमाग में सवाल उठते है की क्यों शिवजी के गले में हमेशा सर्प लिपटा रहता है ? बता दें कि शिव के गले में हर समय लिपटे रहने वाले नाग कोई और नहीं बल्कि नागराज वासुकी हैं। वासुकी नाग ऋषि कश्यप के दूसरे पुत्र है। यह शेषनाग के बाद नागों का दूसरा बड़ा राजा है। कहा जाता है कि नागलोक के राजा वासुकी शिव के परम भक्त थे। इसी कारण उन्हें भगवान शिव के गले मे सुशोभित होने का अवसर मिला है।
इसके अलावा इसका एक अर्थ भी है। सर्प एक ऐसा जीव है जो पूर्णतया संहारक प्रवृत्ति का है। यदि सर्प किसी मनुष्य को काट ले तो मनुष्य का अंत निश्चित है। ऐसे भयानक जीव को भगवान ने अपने कंठ में धारण किया हुआ हैं। इसका अर्थ है कि महादेव ने अज्ञान अथवा अंधकार को अपने नियंत्रण में किया हुआ है और सर्प जैसा हिंसक जीव भी उनके अधीन है।
7. शिव का त्रिशूल
भगवान शिव के दो मुख्य अस्त्र है, एक धनुष और दूसरा त्रिशूल। त्रिशूल के तीन शूल तीन गुणों का प्रतिनित्व करते हैं सत्व गुण, रज गुण और तम गुण। इन तीनो गुणों मे सामंजस्य रहे, इसी कारण इन्हे भगवान शिव ने त्रिशूल में धारण कर रखा है।
8. भगवान शिव का डमरू
शिव नृत्य के दौरान अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को प्रसारित करने के लिए डमरू का उपयोग करते हैं। ऐसे ही ब्रह्माण्ड में संगीत का प्रसार करने के लिए महादेव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाया था। जिससे माहेश्वर सूत्र यानि संस्कृत व्याकरण का आधार प्रकट हुआ था और इस ध्वनि से संगीत के छंद, ताल आदि का जन्म हुआ। भगवान शिव के डमरू से ही, ओम “OM” की आध्यात्मिक ध्वनि पैदा हुई, जो सभी जीवित वस्तुओं में मौजूद है और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का एक स्रोत है।
9.शिव का तांडव
महादेव के तांडव के बारे में तो सबने सुना है यह विश्वभर मे प्रसिद्ध है। तांडव शब्द सुनते ही भगवान शिव के रुद्र रूप का दृश्य सामने आ जाता है। परन्तु क्या आप जानते है की शिव के तांडव के दो रूप है। एक रौद्र तांडव जो शिव के प्रलयकारी क्रोध का प्रतिक है दूसरा आनंद प्रदान करने वाला आनंद तांडव है। रौद्र तांडव करने वाले शिव रूद्र कहे जाते हैं और आनंद तांडव करने वाले शिव नटराज शिव के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसलिए कथक, भरत नाट्यम आदि नृत्य करते वक्त भगवान शिव की नटराज मूर्ति रखी जाती है। शास्त्रों के अनुसार आनंद तांडव से सृष्टि अस्तित्व में आती है और रूद्र तांडव में सृष्टि का विलय हो जाता हैं।
10. शरीर पर भस्म
भगवान शिव से जुड़ी प्रत्येक बात संपूर्ण मानव जाति के लिए एक ज्ञान का संदेश है। उनके शरीर पर भस्म लगाना के पीछे भी एक गहरा अर्थ है जो हर एक मनुष्य को जानना चाहिए। इसका अर्थ है कि जब मानव जीवन समाप्त हो जाता है और देह नष्ट हो जाती है, तो अंत में केवल राख ही तो रह जाती है। यह भस्म ही जीवन का सत्य है।
सरल शब्दो मे कहे तो यह जीवन, यह संसार, यह मोह माया सब कुछ राख के समान है, सब कुछ एक दिन भस्म हो जाएगा और राख बन जाएगा। यही कारण है कि भगवान शिव ने भस्म से ही खुद का अभिषेक किया। माना जाता है कि भस्म के अभिषेक से वैराग्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
11. महाकाल का तीसरा नेत्र
भगवान शिव के ललाट पर उनका तीसरा नेत्र सुसज्जित है। ऐसा माना जाता है कि जब शिवजी बहुत क्रोधित होते हैं तब उनका तीसरा नेत्र खुल जाता है और इस क्रोध की अग्नि से सारी सृष्टि नष्ट हो सकती है।
परन्तु इसके अलावा इसका एक अर्थ और है। वह यह है की तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना गया है। जब यह नेत्र खुलता है तो संसार में अज्ञानता को समाप्त करता है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो शिवजी का तीसरा नेत्र भौतिक दृष्टि से परे संसार की ओर देखने का संदेश देता है। महादेव का यह नेत्र बोध कराता है कि व्यक्ति जीवन को वास्तविक दृष्टि से देखें। शिव जी का यह नेत्र पांचों इंद्रियों से परे तीनों गुणों (सत, रज और तम), तीनों कालों (भूत, वर्तमान, भविष्य) और तीनो लोकों (स्वर्ग, पाताल एवं पृथ्वी) का प्रतीक है। इसलिए शिवजी को त्र्यंबक भी कहा जाता है।
वास्तव में, तीसरा नेत्र खोलने का अर्थ है जीवन को अधिक गहराई से समझना और जीवन को एक नई नज़र से देखना। संसार में प्रत्येक व्यक्ति को तीसरी आंख खोलने की अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता है जिससे जीवन को सफल तथा सार्थक बनाया जा सके।
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..चंद्रशेखराष्टक..
चंद्रशेखर चंद्रशेखर चंद्रशेखर पाहिमाम । चंद्रशेखर चंद्रशेखर चंद्रशेखर रक्षमाम ।।
रत्नसानुशरासनं रजतादिशृंगनिकेतनं । सिंजनीकृत पन्नगेश्वरमच्युतानन सायकम ।।
क्षिप्रदग्धपुरत्रयम त्रिदिवालयैरपिविंदतं । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।1।।
चपादपुष्पगंधपदांबुजद्वय शोभितं । भाललोचन जातपावक द्ग्धमन्मथविग्रहम ।।
भस्मादग्धकलेवरं भवनाशनं भवमव्ययं । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।2।।
मत्त्वारण मुख्यचर्मकृतोत्तरीय मनोहरं । पंकजासन पद्मलोचनपुजिताघ्रिसरोरुहम ।।
देवसिंधु तरंग सीकर सिक्तशुभ्र जटाधरं । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।3।।
यक्षराजसंख भगाक्षहरं भुजंगविभूषणम । शैलराजसुतापरिष्कृत चारुवामकलेवरम ।।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।4।।
कुण्डलीकृत कुण्डलेश्वर कुंडलं वृषवाहनं । नारदादि मुनीश्वरस्तुत वैभवं भुवनेश्वरं ।।
अंधकांधकमाश्रितामर पादपं शमनांतकं । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।5।।
भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं । दक्ष यज्ञ विनाशनं त्रिगुणात्मकम त्रिविलोचनम ।।
भुक्तिमुक्ति फलप्रदं सकलाधसंघनिर्वहणम । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।6।।
भक्तवत्सलमर्चित निधिमक्षयं हरिदंबरम । सर्वभूतपति परात्परमप्रमेयमनुत्तम ।।
सोमवारिद भृहुताशन सोमपानिलखाकृति । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।7।।
विश्वसृष्टि विधायिनं पुनरेव पालन तत्परं । संहरंतमपि प्रपंचमशेषलोक निवासिनम ।।
क्रीड़यंतमहर्निशं गणनाथयूथसमन्वितम । चंद्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।8।।
मृतयुभीत मृकुण्ड सुन कृतस्तवं शिवसन्निधौ, यत्र कुत्र च य: पठेन्नहि तस्य मृत्युभयं भवेत, पूर्णमायुररोगितामखिलार्थसंपदमादरम, चंद्रशेखर एव तस्य ददाति मुक्ति प्रयत्नत: ।।
.. चंद्रशेखराष्टक का हिंदी अनुवाद..
हे चन्द्रशेखर ! हे चन्द्रशेखर ! हे चन्द्रशेखर मेरी रक्षा कीजिये हे चन्द्रशेखर ! हे चन्द्रशेखर ! हे चन्द्रशेखर मेरी रक्षा कीजिये।।१।।
कैलास के शिखर पर जिनका निवासस्थान है , जिन्होंने मेरुगिरि का धनुष , नागराज वासुकि की प्रत्यंच्चा और भगवान् विष्णु को अग्निमय बाण बना कर तत्काल ही दैत्यों के तीनों पूरों को दग्ध कर डाला था , सम्पूर्ण देवता जिनके चरणों की वंदना करते हैं , उन भगवान् चंद्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा ? २।.
पांच दिव्य वृक्षों ( मंदार , पारिजात , संतान , कल्पवृक्ष और हरिचंदन ) के पुष्पों से सुगंधित युगल चरणकमल जिनको शोभा बढ़ाते हैं, जिन्होंने अपने ललाटवर्ती नेत्र से प्रकट हुई आग की ज्वाला में कामदेव के शरीर को भस्म कर डाला था , जिनका श्री विग्रह सदा भस्म से विभूषित रहता है , भव — सबकी उत्पत्ति के कारण होते हुए भी भव ( संसार ) के नाशक हैं तथा जिनका कभी विनाश नहीं होता , उन भगवान् चंद्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा ? ३।.
जो मतवाले गजराज के चर्म की चादर ओढ़े परम् मनोहर जान पड़ते हैं , ब्रह्मा और विष्णु भी जिनके चरणकमलों की पूजा करते हैं तथा जो देवताओं और सिद्धों की नदी गंगा की तरंगों से भीगी हुई शीतल जटा धारण करते हैं , उन भगवान् चंदरशेखर की मैं शरण लेता हौं। यमराज मेरा क्या करेगा ? ४।.
गेंडुल मरे हुए सर्पराज जिनके कानों में कुण्डल का काम देते हैं , जो वृषभ की सवारी करते हैं , नारद आदि मुनीश्वर जिनके वैभव की स्तुति करते हैं , जो समस्त भुवनों के स्वामी , अंधकासुर का नाश करनेवाले , आश्रितजनों के लिए कल्पवृक्ष के समान और यमराज को भी शांत करनेवाले हैं , उन भगवान् चंदरशेखर की मैं शरण लेता हौं। यमराज मेरा क्या करेगा ? ५।.
जो यक्षराज कुबेर के सखा , भग देवता की आँख फ़ोड़नेवाले और सर्पों के आभूषण धारणकरनेवाले हैं , जिनके श्रीविग्रह के सुंदर वामभाग को गिरिराजकिशोरी उमा ने सुशोभित कर रखा है , कालकूट विष पीने के कारण जिनका कंठ भाग नीले रंग का दिखाई पड़ता है , जो एक हाथमे फरसा और दूसरे लिए रहते हैं , उन भगवान् चंदरशेखर की मैं शरण लेता हौं। यमराज मेरा क्या करेगा ? ६।.
जो जन्म मरण के रोग से ग्रस्त पुरुषों के लिए औषध रूप हैं , आपत्तियों का निवारण और दक्ष यज्ञ का विनाश करनेवाले हैं , सत्व आदि तीनों गुण जिनके स्वरूप हैं , जो तीन नेत्र धारण करते हैं ,भोग और मोक्ष रुपी फल देते तथा सम्पूर्ण पापराशि का संहार करते हैं , उन भगवान् चंदरशेखर की मैं शरण लेता हौं। यमराज मेरा क्या करेगा ? ७।.
जो भक्तों पर दया करनेवाले हैं , अपनी पूजा करने वाले मनुष्यों के लिए अक्षय निधि होते हुए भी जो स्वयं दिगम्बर रहते हैं , जो सब भूतों के स्वामी , परात्पर , अप्रमेय और उपमारहित हैं ; पृथ्वी , जल , आकाश ,अग्नि और चन्द्रमा के द्वारा जिनका श्रीविग्रह सुरक्षित है , उन भगवान् चंदरशेखर की मैं शरण लेता हौं। यमराज मेरा क्या करेगा ? ८।.
जो ब्रह्मरूप से सम्पूर्ण विश्व की सृष्टि करते , फिर विष्णुरूप से सबके पालन में सलंग्न रहते और अंत में सारे प्रपंच का संहार करते हैं , सम्पूर्ण लोकों में जिनका निवास है तथा जो गणेशजी के पार्षदों से घिरकर दिन रात भांति भांति के खेल किया करते हैं , उन भगवान् चंदरशेखर की मैं शरण लेता हौं। यमराज मेरा क्या करेगा ? ९।.
जो मनुष्य भय से पीड़ित हो कर मार्कण्डेय ऋषि के इस स्तोत्र का पाठ शिव के समीप अथवा कहीं पर भी करता है तो भगवान चंद्रशेखर उस मनुष्य को पूर्णायु, आरोग्य , प्रचूर धन और अंत प्रदान करते हैं।।१०।।
।।सम्पूर्ण।।