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अग्निवास का मुहूर्त जानना – होम,यज्ञ या हवन आदि में dainik ganpati yagya vidhi hahuti vigyan part2

अग्निवास का मुहूर्त जानना – होम,यज्ञ या हवन आदि में dainik ganpati yagya vidhi hahuti vigyan part2

अग्निवास का मुहूर्त जानना – होम,यज्ञ या हवन आदि में


कोई भी अनुष्ठान के पश्चात हवन करने का शास्त्रीय विधान है और हवन करने हेतु भी कुछ नियम बताये गए हैं जिसका अनुसरण करना अति – आवश्यक है , अन्यथा अनुष्ठान का दुष्परिणाम भी आपको झेलना पड़ सकता है । इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है हवन के दिन अग्नि के वास ‘ का पता करना ताकि हवन का शुभ फल आपको प्राप्त हो सके ।
1- जिस दिन आपको होम करना हो उस दिन की तिथि और वार की संख्या को जोड़कर जमा (1 जोड़ ) करें फिर कुल जोड़ को से भाग देवें- अर्थात् शुक्ल प्रतिपदा से वर्तमान तिथि तक गिनें तथा एक जोड़े रविवारसे दिन गिने पुनः दोनों को जोड़कर  चार का भाग दें।
-यदि शेष शुन्य (0) अथवा बचेतो अग्नि का वास पृथ्वी पर होगा और इस दिन होम करना कल्याणकारक होता है ।
-यदि शेष बचे तो अग्नि का वास पाताल में होता है और इस दिन होम करने से धन का नुक्सान होता है ।
-यदि शेष 1बचे तो आकाश में अग्नि का वास होगाइसमें होम करने से आयु का क्षय होता है ।
अतः यह आवश्यक है की होम में अग्नि के वास का पता करने के बाद ही हवन करें ।
शास्त्रीय विधान के अनुसार वार की गणना रविवार से तथा तिथि की गणना शुक्ल-पक्ष की प्रतिपदा से करनी चाहिए तदुपरांत गृह के मुख-आहुति-चक्र ‘ का विचार करना चाहिए ।

मान लो आज हम कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि मे चल रहे है तो ।
शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक 15 तिथि तो कुल योग
आया 15 + 4 + 1 = 20
आज कौन सा दिन हैं और इस दिन को रविवार से
गिने । मानलो आज बुधवार हैं तो रविवार से गिनने पर बुधवार 3
आया । कुल योग 20 + 3 = 23/4 कर दे तो शेष कितना बचा । 4 - 23 / 5
- 20  को शेष कहा जायेगा । परिणाम इस प्रकार से होंगे ।
· शेष तो अग्नि का निवास पृथ्वी पर ।
· शेष तो अग्नि का निवास आकाश मे ।
· शेष तो अग्नि का निवास पाताल मे ।
· शेष बचे तो पृथ्वी पर माने ।
पृथ्वी पर अग्नि वास सुख कारी होता हैं । आकाश मे प्राणनाश और पाताल मे धन नाश होता हैं । मतलब हमें वह तिथि चुनना हैं जिस तिथि मे शेष बचे । वह तिथि ही लाभकारी होगी । प्रज्वलित अग्नि के आकार को देख कर कई नाम रखे गए हैं । पर अभी उनसे हमें सरोकार नही हैं । इस तरह से अग्नि वास का पता हमें लगाना हैं ।
भू रुदन :-                                                                        हर महीने की अंतिम घडी,वर्ष का अंतिम् दिनअमावस्या, हर मंगल वार को भू रुदन होता हैं । अतः इस काल को शुभ कार्य भी नही लिया जाना चाहिए । यहाँ महीने का मतलब हिंदी मास से हैं और एक घडी मतलब 24 मिनिट हैं । अगर ज्यादा गुणा न किया जाए तो मास का अंतिम दिन को इस आहुति कार्य के लिए न ले।
भू रजस्वला :-
इस का बहुत ध्यान रखना चाहिए ।यह तो हर व्यक्ति जानता हैं की मकरसंक्रांति लगभग कब पड़ती हैं । अगर इसका लेना देना मकर राशि से हैं तो इसका सीधा सा तात्पर्य यह हैं की हर महीने एक सूर्य संक्रांति पड़ती ही हैं और यह एक हर महीने पड़ने वाला विशिष्ट साधनात्मक महूर्त होता हैं । तो जिस भारतीय महीने आपने आहुति का मन बनाया हैं ठीक उसी महीने पड़ने वाली सूर्य संक्रांति से (हर  लोकलपंचांग मे यह दिया होता हैं । लगभग 15 तारीख के आस पास यह दिन होता हैं । मतलब सूर्य संक्रांति को एक मान कर गिना जाए तो 1, 5, 10, 11, 16, 18, 19 दिन भू रजस्वला होती हैं ।
भू शयन :- आपको सूर्य संक्रांति समझ मे आ
गयी हैं तो किसी भी महीने
की सूर्य संक्रांती से 5, 7, 9, 15, 21 या 24
वे दिन को भू शयन माना
जाया हैं । सूर्य जिस नक्षत्र पर हो उस नक्षत्र
से आगे गिनने पर 5, 7,
9, 12, 19, 26 वे नक्षत्र मे पृथ्वी शयन
होता हैं । इस तरह से यह भी
काल सही नही हैं ।
अब समय हैं यह जानने का कि भू हास्य क्या है ?
भू हास्य :– तिथि मे पंचमी ,दशमी ,पूर्णिमा ।
वार मे - गुरु वार ।
नक्षत्र मे – पुष्यश्रवण मे पृथ्वी हसती हैं ।
अतः इन दिनों का प्रयोगकिया जाना चाहिए ।
 
गुरु और शुक्र अस्त :- यह दोनों ग्रह कब अस्त होते हैं और कब उदित ।
आप लोकल पंचांग मे बहुत ही आसानी से देख सकते हैं और इसका निर्धारण कर सकते हैं । अस्त होने का सीधा सा मतलब हैं की ये ग्रह सूर्य के कुछ ज्यादा समीप हो गए और अब अपना असर नही दे पा रहे हैं । क्यूंकी इन दोनों ग्रहो का प्रत्येक शुभ कार्य से सीधा लेना देना हैं । अतः इनके अस्त होने पर शुभ कार्य नही किये जाते हैं और इन दोनों के उदय रहने की अवस्था मे शुभ कार्य किये
जाना चाहिये ।
आहुति कैसे दी जाए :-
· आहुति देते समय अपने सीधे हाँथ के मध्यमा और अनामिका उँगलियों पर सामग्री ली जाए और अंगूठे का सहारा ले कर उसे प्रज्ज्वलित अग्नि मे ही छोड़ा जाए ।
· आहुति हमेशा झुक कर डालना चाहिए वह भी इसतरह से की पूरी आहुति अग्नि मे ही गिरे ।
· जब आहुति डाली जा रही हो तभी सभी एक साथ स्वाहा शब्द बोले ।
(यह एक शब्द नही बल्कि एक देवी का नाम है )
· जिन मंत्रो के अंतमे स्वाहा शब्द पहले से हैं उसमे फिर से पुनःस्वाहा शब्द न बोले यह ध्यान रहे।
वार :- रविवार और गुरुवार सामन्यतः सभी यज्ञों के लिए श्रेष्ठ दिवस हैं । शुकल पक्ष मे यज्ञ आदि कार्य कहीं ज्यादा उचित हैं ।
किस पक्ष मे शुभ कार्य न करे :- 
ग्रंथ कार कहते हैं की जिस पक्ष मे दो क्षय तिथि हो मतलब वह पक्षः 15 दिन का न हो कर 13 दिन का ही हो जायेगा उस पक्ष मे समस्त शुभ कार्य वर्जित हैं । ठीक इसी तरह अधि़क मास या मल मास मे भी यज्ञ कार्य वर्जित हैं ।
किस समय हवन आदि कार्य करें :- सामान्यतः आपको इसके लिए पंचांग देखना होगा । उसमे वह दिन कितने समय का हैं । उस दिन मान के नाम से बताया जाता हैं । उस समय के तीन भाग कर दे और प्रथम भाग का उपयोग यज्ञ अदि कार्यों के लिएकिया जाना चाहिए । साधारण तौर से यही अर्थ हुआ की की दोपहर से पहले यज्ञ आदि कार्य प्रारंभ हो जाना चहिये । हाँ आप राहु काल आदि का ध्यान रख सकते हैं और रखना ही चहिये क्योंकि यह समय बेहद अशुभ माना जाता हैं ।
यज्ञ कुंड के प्रकार :-
यज्ञ कुंड मुख्यत: आठ प्रकार के होते हैं और सभी  का प्रयोजन अलग अलग होताहैं ।
1. योनी कुंड – योग्य पुत्र प्राप्ति हेतु ।
2. अर्ध चंद्राकार कुंड – परिवार मे सुख शांति हेतु । पर पतिपत्नी दोनों को एक साथ आहुति देना पड़ती हैं ।
3. त्रिकोण कुंड – शत्रुओं पर पूर्ण विजय हेतु ।
4. वृत्त कुंड - जन कल्याण और देश मे शांति हेतु ।
5. सम अष्टास्त्र कुंड – रोग निवारण हेतु ।
6. सम षडास्त्र कुंड – शत्रुओ मे लड़ाई झगडे करवाने हेतु ।
7. चतुष् कोणा स्त्र कुंड – सर्व कार्य की सिद्धि हेतु ।
8. पदम कुंड – तीव्रतम प्रयोग और मारण प्रयोगों से बचने हेतु ।
तो आप समझ ही गए होंगे की सामान्यतः हमें
चतुर्वर्ग के आकार के
इस कुंड का ही प्रयोग करना हैं । ध्यान रखने योग्य बाते :- अबतक आपने शास्त्रीय बाते समझने का
प्रयास किया यह बहुत जरुरी हैं । क्योंकि इसके बिना सरल बाते पर आप गंभीरता से विचार नही कर सकते । सरल विधान का यह मतलब कदापि नही की आप गंभीर बातों को ह्र्द्यगम ना करें ।
पर जप के बाद कितना और कैसे हवन किया जाता हैं कितने लोग और किस प्रकार के लोग की
आप सहायता ले सकते हैं कितना हवन किया जाना हैं हवन करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना हैं क्या कोई और सरल उपाय भी जिसमे हवन ही न करना पड़े किस दिशा की ओर मुंह करके बैठना हैं किस प्रकार की अग्नि का आह्वान करना हैं किस प्रकार की हवन
सामग्री का उपयोग करना हैं दीपक कैसे और किस चीज का लगाना हैं कुछ ओर आवश्यक सावधानी आदि बातों के साथ अब कुछ बेहद सरल बाते को अब हम देखेगे । जब शाष्त्रीय
गूढता युक्त तथ्य हमने समंझ लिए हैं तो अब सरल बातों और किस तरह से करना हैं पर भी
कुछ विषद चर्चा की आवश्यकता हैं ।
1. कितना हवन किया जाए ?
शास्त्रीय नियम
तो दसवे हिस्सा का हैं ।
इसका सीधा मतलब की एक अनुष्ठान मे
1,25,000 जप या 1250 माला मंत्र जप अनिवार्य हैं और इसका दशवा हिस्सा होगा 1250/10 =
125 माला हवन मतलब लगभग 12,500 आहुति । (यदि एक माला मे 108 की जगह सिर्फ100  गिनती ही माने तो) और एक आहुति मे मानलो 15 second लगे तब कुल 12,500 *
15 = 187500 second मतलब 3125 minute मतलब 52 घंटे लगभग। तो किसी एक व्यक्ति
के लिए इतनी देर आहुति दे पाना क्या संभव हैं ?
2. तो क्या अन्य
व्यक्ति की सहायता ली जा सकती हैं? तो इसका
उतर
हैं हाँ । पर वह सभी शक्ति मंत्रो से दीक्षित हो या अपने ही गुरु भाई बहिन हो तो अति उत्तम हैं । जब यह भी न संभव हो तो गुरुदेव के श्री चरणों मे अपनी असमर्थता व्यक्त कर मन ही मन
उनसे आशीर्वाद लेकर घर के सदस्यों की सहायता ले सकते हैं ।
3. तो क्या कोई और उपाय नही हैं ? यदि दसवां हिस्सा संभव न हो तो शतांश हिस्सा भी हवन
किया जा सकता हैं । मतलब 1250/100 = 12.5 माला मतलब लगभग 1250 आहुति = लगने वाला समय = 5/6 घंटे ।यह एक साधक के लिए
संभव हैं ।
4. पर यह भी हवन भी यदि संभव ना हो तो ? कतिपय साधक किराए के मकान मे या फ्लेट मे रहते हैं वहां आहुति देना भी संभव नही हैं तब क्या गुरुदेव जी ने यह भी विधान सामने रखा की साधक यदि कुल जप संख्या का एक चौथाई हिस्सा जप और कर देता हैं संकल्प ले कर की मैं दसवा हिस्सा हवन नही कर पा रहा हूँ । इसलिए यह मंत्र जप कर रहा हूँ तो यह भी संभव हैं । पर इस केस मे शतांश जप नही चलेगा इस बात का ध्यान रखे ।
5. श्त्रुक स्त्रुव :- ये आहुति डालने के काम मे आते हैं । स्त्रुक 36 अंगुल लंबा और स्त्रुव 24 अंगुल लंबा होना चाहिए । इसका मुंह आठ अंगुल और कंठ एक अंगुल का होना चाहिए । ये दोनों स्वर्ण रजत पीपल आमपलाश की लकड़ी के बनाये जा सकते हैं ।
6। हवन किस चीज का किया जाना चाहिये ?
· शांति कर्म मे पीपल के पत्तेगिलोयघी का ।
· पुष्टि क्रम मे बेलपत्र चमेली के पुष्प घी ।
· स्त्री प्राप्ति के लिए कमल ।
· दरिद्र्यता दूर करने के लिये दही और घी का ।
· आकर्षण कार्यों मे पलाश के पुष्प या सेंधा नमक से ।
· वशीकरण मे चमेली के फूल से ।
· उच्चाटन मे कपास के बीज से ।
· मारण कार्य मे धतूरे के बीज से हवन किया जा ना चाहिए ।
7. दिशा क्या होना चाहिए साधरण रूप से
जो हवन कर रहे हैं वह कुंड के पश्चिम मे बैठे और उनका मुंह पूर्व
दिशा की ओर होना चाहिये । यह भी विशद व्याख्या चाहता हैं । यदि षट्कर्म किये
जा रहे हो तो ;
· शांती और पुष्टि कर्म मे पूर्व दिशा की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे ।
· आकर्षण मे उत्तर की ओर हवन कर्ता मुंह रहे और यज्ञ कुंड वायु कोण मे हो ।
· विद्वेषण मे नैरत्य दिशा की ओर मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण मे रहे ।
· उच्चाटन मे अग्नि कोण मे मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण मे रहे ।
· मारण कार्यों मे - दक्षिण दिशा मे मुंह और दक्षिण दिशा मे हवन हुंड हो ।
8. किस प्रकार के हवन कुंड का उपयोग किया जाना चाहिए ?
· शांति कार्यों मे स्वर्णरजत या ताबे का हवन कुंड होना चाहिए ।
· अभिचार कार्यों मे लोहे का हवन कुंड होना चाहिए।
· उच्चाटन मे मिटटी का हवन कुंड ।
· मोहन् कार्यों मे पीतल का हवन कुंड ।
· और ताबे का हवन कुंड मे प्रत्येक कार्य मे उपयोग की या जा सकता हैं ।
9. किस नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चाहिए ?
· शांति कार्यों मे वरदा नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चहिये ।
· पुर्णाहुति मे मृडा ना म् की ।
· पुष्टि कार्योंमे बल द नाम की अग्नि का ।
· अभिचार कार्योंमे क्रोध नाम की अग्नि का ।
· वशीकरण मे कामद नाम की अग्नि का आहवान किया जाना चहिये ।
10. कुछ ध्यान योग बाते :-
· नीम या बबुल की लकड़ी का प्रयोग ना करें ।
· यदि शमशान मे हवन कर रहे हैं तो उसकी कोई भी चीजे अपने घर मे न लाये ।
· दीपक को बाजोट पर पहले से बनाये हुए चन्दन के त्रिकोण पर ही रखे ।
· दीपक मे या तो गाय के घी का या तिल का तेल का प्रयोग करें ।
· घी का दीपक देवता के दक्षिण भाग मे और तिल का तेल का दीपक देवता के बाए ओर लगाया जाना चाहिए ।
· शुद्ध भारतीय वस्त्र पहिन कर हवन करें ।
· यज्ञ कुंड के ईशान कोण मे कलश की स्थापना करें ।
· कलश के चारो ओर स्वास्तिक का चित्र अंकित करें ।
· हवन कुंड को सजाया हुआ होना चाहिए ।
अभी उच्चस्तरीय इस विज्ञानं के
अनेको तथ्यों को आपके सामने आना
बाकी हैं । जैसे की "यज्ञ कल्प सूत्र विधान"
क्या हैं । जिसके माध्यम से
आपकी हर प्रकार की इच्छा की पूर्ति केबल मात्र यज्ञ के
माध्यम से हो जाति हैं । पर यह यज्ञ कल्प
विधान हैं क्या यह और
भी अनेको उच्चस्तरीय तथ्य जो आपको विश्वास
ही नही होने देंगे की
यह भी संभव हैं । इस आहुति विज्ञानं के माध्यम
से आपके सामने
भविष्य मे आयंगे । अभी तो मेरा उदेश्य यह हैं
की इस विज्ञानं की
प्रारंभिक रूप रेखा से आप परिचित हो ।
तभी तो उच्चस्तर के ज्ञान की
आधार शिला रखी जा सकती हीं ।
क्योंकि कोई
भी विज्ञानं क्या मात्र चार
भाव मे सम्पूर्णता से
लिया जा सकता हैं कभी नही । यह 108
विज्ञान
मे से एक हैं ।


मेरी जिज्ञासा-   ०१.- अग्निवास किन-किन कामों में देखना चाहिए और किन किन कार्यों में नहीं..????
०२.- गृह प्रवेश के समय किन बैटन का ध्यान रखें..??? पहले कोई धार्मिक अनुष्ठान करवाना चाहिए या हवन और बाद सभी को भोजन करवाना चाहिए..???आपके यहाँ ki क्या विधि/ तरीका हे???
०३.- पित्रदोश/ योग की शांति हेतु क्या करना चाहिए घर पर..??? अमावस्या या पूर्णिमा पर धुप/ भोजन/ रतिजगा/ जलवा पूजन या फिर कोई और परंपरा / तरीका होता हे आपके यहाँ पर..???
०४.- शिशु का नामकरण करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए..????
०५.-क्या देवशयन के समय विवाह संभव हे..???
०६.-क्या एक राशी हमेशा एक माह तक रहती हे..???
०७.-राशी गणना का सही आधार क्या हे..???
०८.-आगामी सूर्य ग्रहण सम्बंधित आपके विचार/ सुझाव / उपाय..???
०९.- छाया गृह राहू-केतु का फलकथन--कब और केसे करना चाहिए..???
१०.- गोचर का विश्लेषण करते समय किन नियमों/ बातों का ध्यान रखना चाहिए..???
११.-योग करक वक्री गृह का फल केसे करना चाहिए..??
१२.-पुष्य नक्षत्र को इतना महत्त्व क्यों दिया जाता हे..???............................

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