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dainik yagya vidhi hahuti vigyan हवन और आहुति विज्ञानं के अज्ञात तथ्य - आहुति विज्ञानं पार्ट 1 से 4 ]

dainik yagya vidhi hahuti vigyan हवन और आहुति विज्ञानं के अज्ञात तथ्य - आहुति विज्ञानं पार्ट 1 से 4 ]

आहुति   यह शब्द   ही अपने  आप  मे  दिव्यता   का  परिचायक हैं ,और   क्यों   न हो ...सारी भारतीय  सभ्यता   का परिचायक  जो यह    हैं,  १०८ दिव्य  विज्ञानों  मे  से   यह एक  हैं  जो   हमारी   लिए  अनेकानेक तरीकों  से     गुण वर्धक हैं ....... ज्ञान वर्धक हैं......... पुष्टि  वर्धक   हैं  ..यह   इसलिए  की    यज्ञ   या होम या  हवन  मे  दी गयी आहुति के माध्यम  से  देव वर्ग पुष्ट  होते हैं  वातावरण  शुद्ध  होता   और आध्यात्मिक  स्तर  मे       अत्यंत   उच्चस्तरीय परावर्तन/परिवर्तन  लाये  जा  सकते हैं   , देव ता शब्द  का अर्थ  ही हैं  जो दे   ता  हो और  जब   देव वर्ग सबल    प्रबल  होगा  तो   साधक पर  इसका  सीधा  सा  प्रभाव होगा  ही . क्योंकि   अगर  हम बाह्य गत  देव वर्ग   देखते हैं  तो यथा पिंडे  तथा  ब्रम्हां ड   के अनुसार   से   अगर बाह्य गत  देव  वर्ग  प्रबल  होगा  तो अन्तः  ब्रम्हांड  स्थित  देव  वर्ग   जो उस बाह्य गत   ब्रह्माण्ड   की   सत्य  प्रतिकृति  हैं वह भी तो पुष्ट  होगी . और   इसका  सीधा  सा  लाभ हमें  भी   प्राप्त होगा .

तंत्र   रूपी दिव्य   ज्ञान  के सागर  को भला  नाप  भी कोई  कैसे  सकता  हैं , जिस  ज्ञान की   सीमा के  लिए भी वेद भी नेति नेति कहते हैं  .....  तो  भला  इस
दिव्य  ज्ञान की कोई  सीमा निर्धारण  कर सका हैं   इसका  उत्तर  तो किसी के पास  नही  हैं   पर    हम सबको जो परिचय हमें  सदगुरुदेव   द्वारा दिया  गया हैं की  की  १०८ प्रमुख  विज्ञानं हैं  और  उनमे से एक    यज्ञ   विज्ञानं  या  इससे सबंधित आहुति विज्ञानं  हैं , दोनों का सबंध ऐसा  की  जैसे  देह और आत्मा  का ..एक के  बिना   दूसरे का अर्थ हो  ही नही सकता हैं .

और मानव जीवन  खासकर  हमारी  सभ्यता   तो  यज्ञ  आधारित   ही  रही हीं  और   जीवन भी  तो  एक यज्ञ  पर  टिका हैं   यदि  हम  रोज  अपनी  जठराग्नि   मे   भोजन रूपी   आहुति रोज    अर्पित    न करे  तो .कैसे   जीवन  उर्जावान बनेगा ... जीवन  चलेगा  और यही  ही नही  बल्कि     जीवन के  अतिम   मे  भी तो शमशान मे  हम उस  अग्नि  मे अपने   इस भौतिक   देह   की  आहुति दे देते   है.

आखिर   यज्ञ ही क्यों ..मतलब  आहुतियाँ    ही क्यों ....तो उत्तर हैं  इसके  माध्यम से   यह वास्तव मे   देव  वर्ग का भोजन   और एक साधना  मे  अनिवार्य  अंग भी हैं . पर क्या   मात्र साधना   समाप्ति पर     किसी  भी तरह  बैठकर   आहुति दे कर  अपने  कर्तव्य  की इति  श्री  कर ले .???
नही बल्कि ..

अब समय हैं इस  विज्ञान की बारीकियों  और सरलता   दोनों कोआत्मसात करने  का ... पहले   हम  गूढता   पर ध्यान  देंगे  जिससे यह समझ सके  की  की क्या  अर्थ  हैं  इस महाविज्ञान का  और    तभी तो  इसकी सरलता  समझ सकते हैं ...बिना      इसकी गंभीरता  जाने   समझे ... कैसे   इस  की सरलता को आतमसात कर सकते हैं..क्योंकि सरलता   को आत्मसातकरना   सबसे कठिन हैं.  हम्  स्वाभाव  से ही  कठिन हैं तो कठिन  चीज  हमें  ज्यादा   नजदीक लगती हैं ..और  कठिन  चीज  को  हम टुकड़े टुकड़े करके सरल  करके  समझ सकते  हैं पर  जो  पहले  से ही सरल   हो उसमे  विभाजन कैसे करें ..उस   चीज के   टुकड़े कैसे  करे,  उसे   तो पूरा का पूरा  ही ग्रहण करना  पडता हैं .इसलिए  सदगुरुदेव  जी के  सरल  वाक्य  हम  सुनते  तो आये  पर  जीवन मे  उतार नही पाए ..क्योंकि उन्होंने  सीधी  दिल को छु लेने  वाली  बात कही  और   हम भावार्थ नही  ले पाए .

हमने  अपनी नासमझी मे  इस विज्ञानं  की  वह अवस्था कर दी  की  अब बिना  इसका  उद्धार  करे  ..हमारा  भी  उद्धार   नही हो सकता हैं .
·         क्या आप  अग्नि  को समझ पाए  हैं....??कितने प्रकार  की अग्नि होती हैं ..??  कहाँ अग्नि का  निवास   होता   हैं ???तो  फिर बिना    जाने ...तो फिर आहुति देने का क्या   अर्थ  यह तो मन माना  कार्य   हो गया ..साधक को  कैसे फल की प्राप्ति  होगी ....??? सारी साधना  का परिणाम ??...क्योंकि  हवन  भी  तो एक आवश्यक  अंग हैं ..
·         क्या  देव वर्ग के शयन का आपको कुछ पता हैं ???? इसके बिना  जाने  क्या  अर्थ  हैं???आपके  आहुति  देना  का समय और धन की बर्वादी   ही  होगी ..
·         क्या  आप जानते हैं की  कब भू  रुदन करती हैं .????  तो जब  वह खुद  रुदन  की अवस्था मे  हैं तो आपके  द्वारा किया गया  सारा कार्य  का परिणाम भी   रुदन ही होगा न ...
·         क्या  आप जानते हैं की कब  भू शयन करती हैं ,??? और जब  वह  शयन की अवस्था मे  होगी  तब आपके द्वरा   किया गया सारा  कार्य    तो  बेकार  ही  हुआ   न ...
·         क्या  आपको मालूम हैं   की  भू  कब रजस्वला    होती हैं ???शास्त्र   कहते  हैं की इस समय  नारी जाति  को शुभ  या पूजन साधना कार्यों  के  दूर रहना  चहिये ..पर हम  खुद क्या  कररहे हैं .जब  भू रजस्वला   हैं तो  क्या अर्थ हैं  हमारे द्वारा   दिए  जाने  वाले आहुति का.
·         क्या आप जानते   हैं की कब गुरु  या शुक्र   ग्रह   अस्त होते   हैं ..???क्योंकि  बिना यह जाने  किया  गया   कार्य    तो असफल ही  होगा   न ..
·         क्या  आप जानते  हैं किस  तरह का यज्ञ   हवनकुंड होगा  और  कौन कौन से लोग आपकी सहायतार्थ  बैठ  सकते हैं .
·         आहुति  देने  मे किन अंगुली  का प्रयोग   किया  जाना   हैं ???और कब स्वाहा  का उच्चरण करना हैं ...????
·         किस प्रकार  की आहुति    दी जा सकती हैं .????
·         क्या आप जानते हैं  की  किस वार   मे  ?????...किस  समय????  हवन /आहुति  आदि कर्म किया  जाने चाहिये ..???
तंत्र  को एक निश्चित वैज्ञानिक  प्रक्रिया हैं और जब सम्पूर्णता   से   प्रक्रिया   का पालन नही करेंगे   तब   परिणाम भी कैसे  प्राप्त होगा ????
इन सभी   प्रश्नों   पर   विचार  करना  जरुरी हैं ..अन्यथा हम सीधे  ही कह देते हैं की  हमें  क्रिया   की  पर  परिणाम प्राप्त  नही हुआ ....
सबसे पहले  देखें   अग्नि को ...

आहुति   तो अग्नि   मे  ही दी जा सकती हैं   ,अग्नि  जो की एक प्रत्यक्ष   देव हैं उनको आहुति देना ..मतलब  उसके माध्यम से   सबंधित देब  वर्ग तक अपनी बात रखना  अपनी मंत्रात्मक  या  तंत्रात्मक   उर्जा  पहुचना .क्योंकि हमारा   तो उस   देव वर्ग से   सीधा  परिचय नही हैं .तब या तो   जल देव  या  अग्नि  जो सदैव पवित्र हैं उनका  आश्रय  लेना  ही पड़ेगा .

आहुतियाँ   सदैव  प्रज्ज्वलित   अग्नि  मे  दी जा सकती हैं .धुयाँ  निकाल   रही    लकड़ी मे  आहुति  नही दी जाती उसका  कोई अर्थ  ही नही हैं . पर कैसे .
यदि इन सब बातों को गम्भीर ता से  न  ले रहे   हो तो .....या   से न लिया  जा  रहा हो तो   क्या  आप जानते हैं की   नदी भी  रजस्वला   होती  हैं क्योंकि नदी   को हमने  नारी या   माँ  भी   तो सबोधित किया   हैं .तब  इन  दिन मे  स्नान   करना   अपने  बल ,बुद्धि ,आयु तो स्वयं  क्षीण कर  लेना हैं .और  साधना  शक्ति  को   भी नष्ट  करना जैसा  हैं  ...खैर नदी से सबंधित  तथ्य  फिर कभी ..

क्या  साधक जानता  हैं की  अग्नि का वास  या निवास   कहाँ होता हैं ???? ..सीधा  सा उत्तर हैं जहाँ लगी होगी  या प्रज्ज्वलित   होगी ,पर  यह  सत्य नही हैं    अग्नि के  तीन स्थान बताये  गए   हैं आकाश , पृथ्वी और पाताल
अब एक साधक को  थोडा सा  ज्योतिष का  ज्ञान  होना   ही चाहिये, खासकर लोकल   पंचांग देखना  तो बनना  ही चाहिये.. क्योंकि आने वाले  अनेक  तथ्य  सिर्फ इस बात पर आधारित हैं की  आज  तिथि कौन सी   हैं ?? या  किसी विशेष तिथि से  अभी  तक  या आज तक  कितनी  तिथि   निकल गयी हैं  या   इनकी संख्या मे  किसी राशि  विशेष का भाग देना ...  यह बहुत सरल सा   हैं और मात्र कुछ मिनिट मे  सीखा जा सकता हैं .   पर इसकी उपयोगिता   सारे जीवन भर  की  रहेगी इस बात को विशेष ध्यान मे रखे ..क्योंकि  एक साधक  को  पूर्ण होना हैं तो  हर  दिशा   से  ही पूर्ण होना  होगा ..केबल   एक पक्ष   से  आगे  जाना  कुछ  उचित  सा नही  लगता ..जबकी  सदगुरुदेव जैसे   ब्रम्हांड  पुरुष का लहू  हममे  प्रवाहित  हो रहा हैं   वह   तो हमें  अब क्यों रुकना   और
यह  लोकल पंचांग  मे सिर्फ  तिथि   देखते बनना  तो  बहुत  ही  सरल   कार्य हैं .
एक महीने  मे  दो  पक्ष   होते हैं लगभग लगभग   १५  /  १५  दिन के .    और  एक का नाम शुक्ल  पक्ष हैं तो  दूसरे का नाम  कृष्ण  पक्ष .
दोनों पक्षों मे  पहली  तिथि  या  दिन तो प्रतिपदा   या प्रथम   तिथि कहते हैं .
·        शुक्ल पक्ष   के अंतिम तिथि को पूर्णिमा  कहते हैं .
·        तो कृष्ण पक्ष   की  अंतिम तिथि   को  अमावस्या   कहते हैं .
ये दोनों  पक्ष  लगातार  एक के बाद   एक  चलते रहते हैं .
तो  लोकल पंचांग  मे  देखें  की   जिस    भारतीय महीने  मे  हम  चल रहे हैं ...तो मानलो   आज हम कृष्ण  पक्ष की चौथी तिथि मे  चल रहे  है तो ..
1.  शुक्ल प्रतिपदा   से  पूर्णिमा   तक   = १५ तिथि
2.
3.
कुल योग आया   =  १५ +  ४+१ = २०
·        आज  कौन सा दिन  हैं और  इस  दिन को  रविवार  से  गिने
·        मानलो आज  बुध वार हैं तो  रविवार से  गिनने  पर  बुधवार = ३   आया
कुल   योग   २०  +  ३ = २३  / ४  कर दे  तो शेष कितना  बचा .
४)२३(५
२०
---------
३  को शेष  कहा जायेगा ..
परिणाम  इस प्रकार से  होंगे
·        शेष   ०  तो   अग्नि  का निवास पृथ्वी  पर
·        शेष  १   तो  अग्नि  का निवास  आकाश  मे
·        शेष २  तो अग्नि  का निवास पाताल मे
·        शेष ३ बचे  तो   पृथ्वी    पर माने
पृथ्वी पर अग्नि वास  सुख  कारी होता हैं  आकाश  मे    प्राणनाश   और  पाताल  मे  धन नाश होता हैं .
मतलब  हमें  वह तिथि चुनना हैं जिस  तिथि मे  शेष   ३  बचे .वह तिथि ही लाभकारी  होगी .
प्रज्वलित अग्नि  के  आकार   को देख कर  कई नाम रखे  गए हैं   पर अभी उनसे  हमें सरोकार नही  हैं
इस तरह से अग्नि वास   का पता हमें लगाना   हैं .
देव शयन ..
आशाढ   शुक्ल  ११ से लेकर  कार्तिक शुक्ल  ११ (दीपावली के बाद के  ११  ग्यारह दिन तक ) तक का समय  देव शयन  काल कहलाता  हैं . इस काल मे सभी शुभ कार्य   वर्जित हैं खासकर यज्ञ  और  आहुति  .

भू  रुदन :
हर  महीने की अंतिम  घडी  , वर्ष का अंतिम्   दिन  , अमावस्या ,  हर मंगल  वार    को भू रुदन होता हैं अतः इस काल  को शुभ  कार्य   भी नही  लिया जाना  चाहिए ..
यहाँ महीने का मतलब   हिंदी  मास से हैं .और एक घडी मतलब  २४ मिनिट   हैं . अगर   ज्यादा  गुणा  न  किया  जाए  तो    मास का  अंतिम  दिन को इस  आहुति कार्य  के लिए  न ले .
भू रजस्वला ::
इस का बहुत ध्यान  रखना  चाहिए . यह तो हर व्यक्ति  जा नता हैं की मकरसंक्रांति   लगभग कब पड़ती हैं   अगर इसका   लेना  देना   मकर राशि  से हैं तो    तो इसका  सीधा  सा  तात्पर्य यह हैं की हर महीने  एक सूर्य संक्रांति  पड़ती  ही  हैं और यह एक   हर महीने पड़ने वाला  विशिष्ट  साधनात्मक  महूर्त होता हैं , तो जिस भारतीय महीने   आपने  आहुति का मन बनाया हैं   ,  ठीक उसी  महीने  पड़ने  वाली सूर्य संक्रांति से ,(हर लोकल पंचांग   मे यह दिया   होता  हैं .लगभग   १५  तारीख के आस पास   यह दिन होता हैं ..).मतलब     सूर्य संक्रांति   को   एक मान  कर गिना जाए   तो   १,५,१०,११, १६ , १८ ,१९   दिन भू  रजस्वला होती हैं.
या
1.

2.

3.
भू शयन :;
आपको सूर्य संकृति समझ मे आ  गयी हैं तो  किसी भी  महीने की  सूर्य संक्रांती से   ५ ,  ७, ९ , १५  २१,२४ वे  दिन   को  भू शयन माना   जाया हैं .
सूर्य जिस  नक्षत्र   पर  हो , उस  नक्षत्र  से  आगे  गिनने  पर  ५ ,  ७ ,  ९  , १२ , १९   २६  बे  नक्षत्र    मे पृथ्वी  शयन होता  हैं ,  इस  तरह से  यहभी काल      सही नही हैं ........
अब समय हैं यह जान ने  का  की  भू  हास्य  कब होता हैं .साधारणतः  यह लग सकता हैं की इतने नियम ..तो थोडा सा आप याद करे  जब आप साधना  मे प्रथम  बार   आये थे  तब  आपकी  मंत्र, गुरु मंत्र, चेतना मंत्र , माला  को कैसे पकडना  हैं , कैसे  माला   से जप करना हैं       मुख शुद्धि ,  आसन  शुद्धि  ,गणपति पूजन , भैरव  पूजन, निखिल  कवच,  सदगुरुदेव पूजन , विभिन्न  न्यास , और कितनी न सारी चीजों ने आपको    हैरानी  मे  डाल  दिया  होगा की  कैसे करे ..
पर आज यह सब आपके  लिए  एक सामने सरल और सहज    क्रम हैं  जो अपने आप होता  चलता हैं आपको  कोई भी चिंता नही करना  पडता .. एक समय गुरु  आरती या  स्त्रोत  भी   आपको कठिन लग सकते  रहे  होंगे  पर आज... तो आपकी सांस सांस मे  हैं .ठीक इसी  तरह इस विज्ञानं  को ले .
मात्र  १५   / २० मिनिट  मे  आप   सही समय का    निर्धारण  कर सकते हैं .

भू हास्य –
तिथि मे ..पंचमी ,दशमी ,पूर्णिमा ,
वार   मे - गुरु वार,
नक्षत्र  मे – पुष्य  , श्रवण
मे पृथ्वी  हसती   हैं  अतः इन दिनों का प्रयोग किया जाना   चाहिए .

गुरु  और शुक्र   अस्त :
यह   दोनों  ग्रह  कब अस्त होते हैं  और कब उदित ........आप लोकल पंचांग मे  बहुत  ही आसानी से देख सकते हैं , और इसका  निर्धारण कर सकते हैं . अस्त होने का  सीधा  सा  मतलब हैं की ये ग्रह  सूर्य के कुछ ज्यादा समीप  हो गए . और अब अपना  असर नही दे पा रहे हैं .चूँकि  इन दोनों  ग्रहो का  प्रत्येक   शुभ कार्य से  सीधा   लेना  देना हैं अतः   इनके  अस्त  होने पर    शुभ कार्य नही किये जाते हैं  और इन दोनों के  उदय रहने की अवस्था  मे शुभ कार्य किये जाना  चा हिये .

आहुति  कैसे दी  जाए :::
·  आहुति देते  समय  अपने  सीधे हाँथ के   मध्यमा  और   अनामिका  उँगलियों पर   सामग्री ली जाए   और   अंगूठे  का सहारा ले कर   उसे  प्रज्ज्वलित अग्नि मे   ही छोड़ा जाए .
·  आहुति हमेशा झुक  कर डालना चाहिए  वह  भी इसतरह से की पूरी आहुति   अग्नि मे ही  गिरे .
·  जब आहुति डाली  जा रही   हो   तभी  सभी एक साथ स्वाहा   शब्द बोले .(यह एक शब्द  नही  बल्कि एक  देवी का नाम हैं और सदगुरुदेव  जी ने  बहुत पहले स्वाहा  साधना  नाम की एक साधना भी  हमें  प्रदान की थी  पत्रिका  के माध्यम से ..
·  जिन मंत्रो के अंतमे स्वाहा शब्द  पहले  से हैं  उसमे  फिर से पुनः स्वाहा   शब्द  न बोले ..यह ध्यान रहे .

वार ::
·  रविवार   और गुरु वार  सामन्यतः सभी यज्ञों के लिए  श्रेष्ठ   दिवस हैं .
·  शुकल पक्ष  मे यज्ञ  आदि कार्य  कहीं  ज्यादा  उचित  हैं .

किस  पक्ष  मे  शुभ कार्य न करे ..
·  सदगुरुदेव लिखते हैं   की  ज्योतिष स्कंध  ग्रथ  कार  कहते हैं की  जिस   पक्ष मे  दो क्षय  तिथि  हो मतलब वह   पक्षः   १५  दिन का  न हो कर  १३ दिन का  ही होजायेगा    उस पक्ष  मे   समस्त  शुभ कार्य वर्जित   हैं .
·  ठीक इसी  तरह   अधि़क मास   या  मल मास   मे भी  यज्ञ कार्य वर्जित हैं

किस समय    हवन आदि कार्य करें ::
·  सामान्यतः    आपको  इसके लिए  पंचांग  देखना  होगा  उसमे  वह दिन कितने समय का  हैं उस दिन मान  के नाम से  बताया  जाता  हैं उस समय के  तीन भाग कर दे   और प्रथम भाग का उपयोग    यज्ञ   अदि कार्यों के लिए  किया जाना  चाहिए .
·  साधारण  तौर से  यही अर्थ हुआ की   की  दोपहर से पहले  यज्ञ आदि कार्य  प्रारंभ हो जाना  चहिये .
·  हाँ आप राहु काल  आदि का  ध्यान  रख सकते  हैं और रखना ही चहिये,क्योंकि  यह समय   बेहद अशुभ माना   जाता  हैं .

यज्ञ कुंड  के प्रकार ....
सदगुरुदेव  ने यह  हम सबको    यह बताया   ही हैं  की  यज्ञ कुंड मुख्यत:   आठ प्रकार  के  होते हैं  और सभी  का प्रयोजन अलग अलग   होता  हैं
1.   योनी कुंड –योग्य पुत्र प्राप्ति हेतु
2.   अर्ध चंद्राकार   कुंड –परिवार मे  सुख शांति हेतु .पर पतिपत्नी  दोनों को एक साथ आहुति  देना पड़ती हैं .
3.   त्रिकोण कुंड –शत्रुओं पर पूर्ण  विजय  हेतु
4.   वृत्त कुंड ..जन कल्याण और देश मे शांति हेतु
5.   सम  अष्टास्त्र   कुंड –रोग निवारण हेतु
6.   सम षडास्त्र  कुंड –शत्रुओ मे  लड़ाई  झगडे  करवाने हेतु
7.   चतुष् कोणा स्त्र  कुंड –सर्व कार्य की सिद्धि हेतु
8.   पदम कुंड –तीव्रतम प्रयोग और  मारण प्रयोगों से   बचने  हेतु
तो आप समझ ही गए होंगे की सामान्यतः  हमें  चतुर्वर्ग  के आकार  के इस  कुंड का ही प्रयोग करना  हैं .

ध्यान  रखने  योग्य बाते :

अबतक आपने   शास्त्रीय बाते  समझने का प्रयास  किया . यह बहुत जरुरी हैं ...
क्योंकि इसके बिना   सरल बाते   पर  आप गंभीरता से  विचार नही कर सकते .सरल विधान का यह मतलब  कदापि  नही की आप    गंभीर बातों को ह्र्द्यगम   ना करें ..
·  .पर     जप के  बाद   कितना और कैसे   हवन किया  जाता हैं ?,
·  कितने लोग  और किस प्रकार के लोग की आप सहायता  ले सकते हैं ?.
·  कितना  हवन किया  जाना  हैं .?
·  हवन करते समय   किन किन बातों का   ध्यान   रखना   हैं .?
·  क्या  कोई और  सरल  उपाय   भी जिसमे  हवन  ही न करना  पड़े  ..???
·  किस दिशा  की ओर मुंह करके बैठना  हैं ?
·  किस प्रकार की  अग्नि  का आह्वान करना   हैं ??
·  किस  प्रकार की हवन सामग्री का  उपयोग करना   हैं ??
·  दीपक कैसे   और किस  चीज का  लगाना   हैं .??
·  कुछ ओर आवश्यक सावधानी ???
आदि बातों  के साथ  अब  कुछ बेहद सरल  बाते  .... को अब   हम देखेगे ...
जब  शाष्त्रीय  गूढता  युक्त  तथ्य  हमने समंझ  लिए हैं तो अब सरल बातों  और किस तरह  से करना हैं पर  भी कुछ विषद चर्चा  की आवश्यकता हैं

1.कितना हवन किया   जाए ??:
शास्त्रीय  नियम    तो  दसवे हिस्सा   का  हैं  इसका   सीधा  सा  मतलब की एक अनुष्ठान मे  १,२५,०००   जप  या  १२५० माला मंत्र   जप अनिवार्य हैं . और इसका  दशवा  हिस्सा  होगा   १२५० /१० = १२५ माला   हवन  मतलब लगभग  १२,५००  आहुति ...(यदि  एक माला  मे    १०८  की जगह  सिर्फ १००  गिनती ही माने   तो ..)
और एक आहुति मे  मानलो   १५ second   लगे  तब  कुल  १२,५०० * १५  =१८७५००  सेकेण्ड  मतलब  ३१२५  मिनिट  मतलब  ५२  घंटे   लगभग .. तो किसी एक व्यक्ति   के लिए इतनी देर आहुति  दे  पाना   क्या संभव हैं ??

2.तो क्या  अन्य व्यक्ति  की सहायता  ली जा सकती  हैं .??
तो इसका  उतरा  हैं हाँ   पर  वह सभी   शक्ति मंत्रो  से दीक्षित   हो या अपने  ही  गुरु भाई बहिन  हो  तो अति   उत्तम   हैं  जब यह  भी न संभव  हो तो  सदगुरुदेव जी के  श्री  चरणों  मे अपनी असमर्थता  व्यक्त  कर  मन ही मन उनसे आशीर्वाद   लेकर   घर के  सदस्यों   की सहायता  ले  सकते हैं .

3.तो क्या कोई और उपाय नही हैं .??
सदगुरुदेव जी ने  यह भी निर्देशित किया हैं  यदि दसवां   हिस्सा  संभव  न हो  तो शतांश   हिस्सा  भी  हवन किया  जा सकता  हैं
मतलब  १२५० /१०० = १२.५ माला मतलब  लगभग १२५०   आहुति =  लगने वाला  समय = ५ /६ घंटे   ...यह  एक साधक के लिए  संभव हैं .

4.पर यह भी हवन   भी  यदि संभव  ना  हो  तो ??कतिपय साधक   किराए के  मकान मे  या  फ्लेट   मे  रहते हैं  वहां आहुति  देना  भी संभव नही  हैं तब क्या ??
सदगुरुदेव जी ने   यह भी  विधान सामने  रखा की   साधक यदि  कुल  जप संख्या  का   एक चौथाई   हिस्सा   जप  और कर देता हैं संकल्प ले कर  की मैं   दसवा  हिस्सा  हवन नही कर प्  रहा    हूँ इसलिए  यह मंत्र जप  कर रहा हूँ   तो यह भी संभव हैं ......पर इस  केस  मे   शतांश    जप    नही चलेगा  इस  बात का   ध्यान    रखे ,

5.श्त्रुक  स्त्रुव ::
ये आहुति  डालने   के  काम मे आते हैं .
स्त्रुक   ३६    अंगुल लंबा  और स्त्रुव  २४ अंगुल लंबा होना   चाहिए .इसका मुंह आठ  अंगुल   और  कंठ  एक अंगुल का  होना चाहिए .
ये  दोनों स्वर्ण  रजत    पीपल आम  पलाश की लकड़ी के बनाये  जा सकते हैं .

6.हवन किस  चीज  का  किया जाना   चाहिये ??
·  शांति कर्म मे  पीपल के पत्ते ,  गिलोय  ,घी   का
·  पुष्टि क्रम मे  बेलपत्र चमेली के  पुष्प  घी
·  स्त्री  प्राप्ति के लिए  कमल
·  दरिद्र्यता  दूर करने के लिये .. दही और घी  कीआहुति
·  आकर्षण कार्यों मे   पलाश के  पुष्प या सेंधा  नमक से .
·  वशीकरण मे  चमेली के फूल से
·  उच्चाटन  मे कपास के बीज से
·  मारण  कार्य मे  धतूरे के बीज से    हवन किया   जा ना  चाहिए .

7.दिशा   क्या  होना चाहिए ??
साधरण रूप से जो हवन कर रहे हैं  वहकुंड के  पश्चिम मे  बैठे   और उनका मुंह  पूर्व दिशा की ओर होना  चाहिये
यह भी विशद व्याख्या चाहता  हैं .यदि  षट्कर्म   किये  जा  रहे  हो तो ..;
·  शांती  और   पुष्टि कर्म मे ....पूर्व दिशा   की  ओर हवन कर्ता   का  मुंह रहे
·  आकर्षण मे ---उत्तर   की ओर  हवन कर्ता  मुंह रहे और यज्ञ  कुंड  वायु कोण  मे  हो
·  विद्वेषण   मे –नैरत्य   दिशा   की ओर मुंह रहे   यज्ञ कुंड  वायु कोण मे रहे .
·  उच्चाटन  मे – अग्नि  कोण मे  मुंह रहे यज्ञ कुंड  वायु कोण मे  रहे .
·  मारण कार्यों मे --  दक्षिण  दिशा  मे   मुंह और  दक्षिण  दिशा   मे हवन  हुंड  हो .

8.किस  प्रकार  के हवन कुंड का  उपयोग किया  जाना   चाहिए ??
·  शांति कार्यों मे  स्वर्ण ,रजत   या  ताबे का  हवन कुंड  होना  चाहिए .
·  अभिचार कार्यों मे   लोहे  का  हवन कुंड  होना  चाहिए
·  उच्चाटन  मे मिटटी  का   हवन कुंड
·  मोहन् कार्यों मे  पीतल   का  हवन   कुंड
·  और  ताबे का हवन कुंड मे  प्रत्येक   कार्य मे उपयोग की या जा सकता   हैं .

9.किस  नाम की अग्नि का आवाहन किया   जाना चाहिए ??
·  शांति कार्यों मे  वरदा   नाम की अग्नि  का आवाहन किया जाना चहिये .
·  पुर्णाहुति  मे मृडा  ना म्  की
·  पुष्टि कार्योंमे  बल द  नाम की अग्नि का
·  अभिचार कार्योंमे   क्रोध नाम  की  अग्नि का
·  वशीकरण मे  कामद   नाम की  अग्नि का आहवान किया  जाना चहिये ..

10.सदगुरुदेव  द्वारा   निर्देशित  कुछ ध्यान   योग  बाते ::
·  नीम  या बबुल की लकड़ी  का प्रयोग  ना करें .
·  यदि शमशान मे  हवन कर  रहे हैं तो  उसकी कोई भी चीजे  अपने  घर मे   न  लाये .
·  दीपक  को बाजोट पर  पहले  से बनाये   हुए  चन्दन के  त्रिकोण पर  ही रखे .
·  दीपक मे  या तो   गाय के  घी   का  या   तिल का  तेल का प्रयोग करें.
·  घी का  दीपक    देवता के  दक्षिण   भाग मे   और तिल का  तेल   का दीपक   देवता के    बाए  ओर लगाया जाना   चाहिए .
·  शुद्ध   भारतीय वस्त्र पहिन कर हवन करें .
·  यज्ञ  कुंड के   ईशान कोण मे      कलश की स्थापना   करें .
·  कलश के  चारो ओर   स्वास्तिक   का  चित्र  अंकित करें .
·  हवन कुंड  को सजाया  हुआ  होना  चाहिए .


सद्ग्रुदेव द्वारा   रचित  पुस्तक  “  सर्व सिद्धि प्रदायक  यज्ञ विज्ञानं “का अध्ययन   करें  आवश्यक अन्य  सामान्य विधान   उसमे  पूर्णता   के साथ वर्णित हैं  की किस तरह से  प्रक्रिया    कीजाना   चाहिए ..

अभी  उच्चस्तरीय   इस विज्ञानं के  अनेको तथ्यों  को आपके सामने  आना बाकी  हैं .जैसे  की “ यज्ञ कल्प सूत्र विधान“क्या हैं  जिसके माध्यम से आपकी  हर  प्रकार की  इच्छा   की पूर्ति   केबल मात्र   २१ दिनमे  यज्ञ  के माध्यम से  हो  जाति  हैं .  पर
यह यज्ञ   कल्प  विधान   हैं क्या??? ...यह  और और भी अनेको  उच्चस्तरीय तथ्य  जो आपको    विश्वास  ही नही  होने  देंगे की  यह  भी संभव  हैं ..इस  आहुति विज्ञानं के माध्यम से ..आपके सामने  भविष्य   मे  आयंगे .अभी तो मेरा  उदेश्य  यह हैं की  इस  विज्ञानं की प्रारंभिक रूप रेखा से  आप परिचित हो .. तभी  तो उच्चस्तर के  ज्ञान की  आधार शिला   रखी जा  सकती हीं ...
क्योंकि  कोई भी  विज्ञानं क्या मात्र    चार  भाव मे सम्पूर्णता से लिया जा सकता   हैं .???
कभी  नही ..
यह १०८   विज्ञानं मे से  एक हैं अतः ....हम अपनी पात्रता  और ज्ञान  लाभ की योग्यता  बढ़ाते  जाए ..और सदगुरुदेव जी के  श्री चरणों  मे  नतमस्तक  रहे    तो  जो  ज्ञान  नम्रता  पूर्वक पाया  जा सकता हैं  वह व्यर्थ के अभिमान  से  नही  ......हठ  से  नही .....
अगर हम  दिखाने  के लिए   नही   बल्कि सच मे  सही अर्थो मे ..लगतार यदि  साधनारत   रहेंगे   तो  क्यों नही सदगुरुदेव  एक से एक अद्भुत रहस्यों को सामने लाते   जायंगे   और  अद्भुत  रहस्य   अनावृत   होते  जायेंगे.
यह  तो  अनेको भाई  बहिनों  की  हवन और आहुति  सबंधित  समस्या  देख कर   मात्र प्रारंभिक  परिचय  ही हैं  इस  विज्ञानं का   ......

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