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पितृ -दोष शांति के सरल उपाय

पितृ -दोष शांति के सरल उपाय

पितृ -दोष शांति के सरल उपाय

पितर या पितृ गण कौन हैं ?

पितृ गण हमारे पूर्वज  हैंजिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि   उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए  किया है | मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है|  आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँहमारे पूर्वज  मिलते हैं |अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया |इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार  पर सूर्य लोक की तरफ बढती है |वहाँ से आगे  ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को बेध कर  स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित  होती है |जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता | मनुष्य लोक एवं पितृ लोक  में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश  ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं|

पितृ दोष क्या होता है?

हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म  व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं  तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं,जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है | 

पितृ दोष एक अदृश्य  बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है |पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण  हो सकते हैं ,आपके आचरण  से,किसी  परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है |

इसके अलावा मानसिक

अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना ,वैवाहिक जीवन में समस्याएं.,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है ,

पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ 

फल नहीं मिल पाते,

कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए ,

उसका शुभ फल नहीं मिल पाता|

पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है

 

 

:

१.अधोगति .

वाले पितरों के कारण

२. .उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण 

 

अधोगति वाले पितरों के दोषों 

का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण,

परिजनों की अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद 

के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग

होने पर,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसी 

प्रियजन को अकारण

कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं ,

परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से

नकारात्मक फल प्रदान करते हैं|

उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,

परन्तु उनका किसी भी

रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-

रिवाजों का निर्वहन नहीं

 करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं |

इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की

 भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है ,

फिर चाहे कितने भी

प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ,

उनका कोई भी कार्य

ये पितृदोष सफल नहीं होने देता | 

 

 

पितृ दोष निवारण के लिए  सबसे पहले ये जानना  ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ?

जन्म पत्रिका और  पितृ दोष

 

जन्म  पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम  और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है |पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य ,चन्द्रमा ,गुरु ,शनि ,और राहू -केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है |इनमें से भी गुरु ,

शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है |

इनमें सूर्य से पिता या पितामह , चन्द्रमा से माता या मातामह ,मंगल से भ्राता या भगिनी  और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है |अधिकाँश लोगों की  जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु ,शनि  और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है ,इसलिए विभिन्न उपायों को करने  के साथ साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी ,सातमुखी और आठ मुखी रुद्राक्ष भी धारण  कर ले , तो पितृ दोष का निवारण शीघ्र हो जाता है |पितृ दोष निवारण के लिए इन  रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र  जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है |

 

विभिन्न ऋण और पितृ दोष

:

हमारे ऊपर मुख्य रूप से ५ ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित  रूप से श्राप मिलता है ,ये ऋण हैं : मातृ ऋण ,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण |

 

 

मातृ ऋण : माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा ,मौसी और इनके तीन पीढ़ी 

के पूर्वज  होते हैं ,क्योंकि माँ का स्थान  परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा  माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है,तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं |इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है |

 


 पितृ ऋण: : पिता पक्ष के  लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी  और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है |पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया  देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है ,और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है |पर आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ?पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है ,इस धर्म का पालन न करने पर  उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विबिन्न प्रकार के कष्ट  आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि |

देव ऋण :माता -पिता प्रथम देवता हैं,जिसके कारण भगवान गणेश महान बने |इसके बाद  हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज  भी भीअपने अपने कुल देवताओं को मानते थे , लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है |इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं|

ऋषि ऋण : जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए ,वंश वृद्धि की ,उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है ,उनके ऋषि तर्पण आदि नहीं करती है | इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं,इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है |

मनुष्य  ऋण : माता -पिता  के अतिरिक्त जिन अन्य मनुष्यों ने हमें प्यार दिया ,दुलार दिया ,हमारा ख्याल रखा ,समय समय पर मदद की |गाय आदि पशुओं का दूध पिया |जिन अनेक मनुष्यों  ,पशुओं ,पक्षियों  ने हमारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद की ,उनका ऋण भी हमारे ऊपर हो गया |लेकिन लोग आजकल गरीब ,बेबस ,लाचार लोगों की धन संपत्ति हरण करके अपने को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते हैं|इसी कारण देखने में आया है कि ऐसे लोगों का पूरा परिवार जीवन भर नहीं बस पाता है,वंश हीनता ,संतानों का गलत संगति में पड़ जाना,परिवार के सदस्यों का आपस में सामंजस्य  न बन पाना ,परिवार कि सदस्यों का किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहना इत्यादि दोष उस परिवार में उत्पन्न हो जाते हैं |ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है| रामायण में  श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ के परिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है |इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है|  

पितृ-दोष कि शांति के उपाय : -

सामान्य उपायों में षोडश पिंड दान ,सर्प पूजा ,ब्राह्मण को गौ -दान ,कन्या -दान,कुआं ,बावड़ी ,तालाब आदि बनवाना ,मंदिर प्रांगण में पीपल ,बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना,प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए | 

वेदों  और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र ,स्तोत्र  एवं सूक्तों का वर्णन है ,

जिसके नित्य

पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों ना हो ,शांत हो जाती है |

अगर नित्य पठन संभव

 ना हो , तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या  और आश्विन कृष्ण  पक्ष 

अमावस्या अर्थात

पितृपक्ष  में अवश्य करना चाहिए |

 

 


वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृ दोष है उस पितृ दोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छाहोता है ,लेकिन कुछ ऐसे सरल सामान्य उपाय  भी हैं,

जिनको करने से

पितृदोष  शांत  हो जाता है ,ये उपाय निम्नलिखित हैं :----

सामान्य उपाय : 

१ .ब्रह्म पुराण (२२०/१४३ )में  पितृ गायत्री मंत्र दिया गया है ,इस मंत्र कि प्रतिदिन १ माला या अधिक जाप करने से पितृ दोष में अवश्य लाभ होता है| 

 

मंत्र :  देवताभ्यः पित्रभ्यश्च महा योगिभ्य एव  च

  |   नमः स्वाहायै   स्वधायै  नित्यमेव नमो नमः  || "

२. मार्कंडेय पुराण (९४/३ -१३ )में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ  प्रसन्नहोकर  स्तुतिकर्ता  मनोकामना कि पूर्ती करते हैं -----------

पुराणोक्त  पितृ -स्तोत्र : 

 

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।

 

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।

 

तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।

द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।

 

अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।

प्रजापतं कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।

 

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।

नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।

 

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।

 

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।

अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।

 

अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।

 

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।

तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।

नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।

 

 

अर्थ: 

 

रूचि बोले - जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।

जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।

जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।

नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।

जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।

प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।

सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।

चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।

अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।

जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों।

 

विशेष - मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति ‘पितृस्तोत्र’ कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है।

 

३.भगवान  भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर   में  ही  भगवान भोलेनाथ का  ध्यान  करनिम्न  मंत्र  की एक  माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट   बाधा  आदि  शांत  होकर शुभत्व  की  प्राप्ति  होती  है  |मंत्र  जाप प्रातः  या  सायंकाल  कभी  भी  कर  सकते  हैं : 

 

मंत्र : "ॐ   तत्पुरुषाय  विद्महे  महादेवाय  च  धीमहि   तन्नो  रुद्रः  प्रचोदयात  |  

४.अमावस्या को  पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल  बूरा ,घी  एवं  एक रोटी गाय  को  खिलाने  से पितृ दोष शांत   होता  है |

 

  ५  . अपने माता -पिता ,बुजुर्गों का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर /सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं |

६ . पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए  "हरिवंश  पुराण " का श्रवण करें  या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें  |

 

७ . प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती  या सुन्दर काण्ड  का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है  |

 

८.सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि  डाल  कर सूर्य देव को अर्घ्य  देकर ११ बार "ॐ घृणि सूर्याय नमः "      मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता  एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है  | 

 

९. अमावस्या  वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा  आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए |

 

१० .पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा  अवश्य  करें | अगर १०८ परिक्रमा  लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा |

विशिष्ट उपाय : 

१.किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं | 

 

२. यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी मजबूर व्यक्ति  की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें |

 

 

३.पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में एक शुद्ध घी का दीपक लगाना चाहिए,ये क्रम टूटना नहीं चाहिए |

एक माह बीतने पर जो अमावस्या आये उस दिन एक प्रयोग और करें :--

इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोडा सा गौ -मूत्र प्राप्त करें|उसे थोड़े एनी जल में मिलकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों  में डाल दें |इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे ५ अगरबत्ती ,एक नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक अपने कल्याण की कामना करें,और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें |ऐसा करने पर पितृ दोष शांत हो जायेगा|   

 

४ .घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है | इसके अलावा  पशुओं  के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ  लगवाने  अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है|

५ . अगर पितृ दोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो,संतान हानि  हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रण होने की प्रार्थना करें और अपने dwara जाने-अनजाने में किये गए अपराध / उपेक्षा के लिए क्षमा याचना करें ,फिर घर में श्रीमदभागवद का यथा विधि पाठ कराएं,इस संकल्प ले साथ की इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो |ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंके उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है| 

 

६. पितृ दोष की शांति हेतु ये उपाय बहुत ही अनुभूत और अचूक फल देने वाला देखा गया है,वोह ये कि- किसी गरीब की कन्या के विवाह में गुप्त रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहयोग करना |(लेकिन ये सहयोग पूरे दिल से होना चाहिए ,केवल दिखावे या अपनी बढ़ाई कराने के लिए नहीं )|इस से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंकि इसके परिणाम स्वरुप मिलने वाले पुण्य फल से  पितरों को बल और तेज़ मिलता है ,जिस से वह ऊर्ध्व लोकों की ओरगति करते हुए पुण्य लोकों को प्राप्त होते हैं.|

 

७. अगर किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृ दोष उत्पन्न करती है तो तो ऐसी स्थिति में मोह को त्याग कर उसकी सदगति के लिए "गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र " का पाठ करना चाहिए.|

 

८.पितृ  दोष दूर करने का अत्यंत सरल उपाय : इसके लिए सम्बंधित  व्यक्ति को अपने घर के वायव्य कोण (N -W )में  नित्य सरसों

 

का तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में नित्य

 

लगाना चाहिए+दिया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है ,दीपक कम से कम १०

 

मिनट नित्य जलना आवश्यक है लाभ प्राप्ति के लिए |

 

इन उपायों के अतिरिक्त वर्ष की प्रत्येक अमावस्या को दोपहर के समय गूगल की धूनी पूरे घर में सब जगह घुमाएं ,शाम को आंध्र होने के बाद पितरों के निमित्त शुद्ध भोजन बनाकर एक दोने में साड़ी सामग्री रख कर किसी बबूल के वृक्ष अथवा पीपल या बड़ किजद में रख कर आ जाएँ,पीछे मुड़कर न देखें.|नित्य प्रति घर में देसी कपूर जाया करें|ये कुछ ऐसे उपाय हैं,जो सरल भी हैं  और प्रभावी भी,और हर कोई सरलता से इन्हें कर पितृ दोषों से मुक्ति पा सकता है|लेकिन किसी भी प्रयोग की सफलता आपकी पितरों के प्रति श्रद्धा के ऊपर निर्बर करती है|आप सदा खुश रहे,सुख समृद्धि में वृद्धि हो,इस कामना के साथ ..........

||जय सदगुरुदेव ||  

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