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_गुरु सिद्धि दिवस_ गुरु सिद्धि दिवस का विशेष महत्व

_गुरु सिद्धि दिवस_ गुरु सिद्धि दिवस का विशेष महत्व

*श्री गुरुचरण कमलेभ्यो नमः*
_गुरु सिद्धि दिवस_
शुक्रवार दिनांक 27-10-2023
सभी शास्त्रों में गुरु सिद्धि दिवस का विशेष महत्व है, और प्रत्येक साधक महाकाल संहिता में वर्णित गुरु साधना सिद्धि को सम्पन्न करता है, जिससे उसके प्राण जाग्रत होने लगते है, और इसके बाद वर्ष में कभी भी जब उसे मिले तो वह सशरीर गुरु के सामने उपस्थित हो कर चैतन्य सिद्धि दीक्षा प्राप्त करने की इच्छा प्रगट करे, और तब गुरु उसे यह दुर्लभ दीक्षा प्रदान करते हैं।
ऐसी दीक्षा सामूहिक रूप से नहीं दी जा सकती चाहे शिष्य कितने ही वर्ष गुरु के साथ रहा हो, या कितना ही गुरु का प्रीय हो, परन्तु उसके अनुरोध पर ही गुरु यह चैतन्य दीक्षा प्रदान करते हैं।
चैतन्य साधना (सिद्धि महाकाल संहिताबद्ध)
मैंने जैसा ऊपर बताया कि साधना जीवन की महत्वपूर्ण दिव्य साधना है, इसके लिए गुरु सिद्धि दिवस को साधक सुबह स्नान कर अपने पूजा स्थान में बैठ जाय एवं सामने एक लकडी के बाजोट पर गणपति की स्थापना कर दे, और संक्षिप्त गणपति पूजन करे।
तत्पश्चात सामने एक दूसरा लकडी का बाजोट बिछाकर उस पर ताम्र पत्र पर अंकित *गुरु चैतन्य यंत्र* स्थापन करे यह यंत्र महाकाल संहिता के अनुसार  तीन प्रकार के गुणों से विभूषित हो।
_महाकाल संहिता के अनुसार संसार का सर्वश्रेष्ठ और अद्वितीय *गुरु चैतन्य यंत्र* होता है जो कि ताम्र पत्र पर ही अंकित हो।ताम्र पत्र अंकित होने का विधान इसलिए बताया है कि उसमें प्राण तत्व का आवाहन किया जाता है और जब साधक उस ताम्र पत्र में प्रगटीकरण की भावना दे, तो उसे स्नान करा सके, पोछ सके, और अन्य अपनी भावनाएं स्पष्ट कर सके, इस कारण से कागज का यंत्र या भोज पत्र पर अंकित यंत्र उपयोगी नही माना गया है।_
यह यंत्र योगिनी तंत्र के अनुसार मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो, क्योंकि इसकी प्राण प्रतिष्ठा सर्वथा दूसरे प्रकार  से की जाती है, अन्य यन्त्रों की प्राण प्रतिष्ठा का विधान वैदिक या मांत्रिक है तो इस यंत्र का विधान पूर्णतः योगिनी तंत्र  सिद्धान्तों के आधार पर हो।
_तीसरा इस तंत्र की विशेषता यह है, कि यह साधक के नाम से अभिषित और सिद्ध हो, जिससे कि उस यंत्र का साधक के प्राणों से सीधा संबंध स्थापित हो सके, इसीलिए इस यंत्र का महात्म्य शास्त्रों में विशेष रूप से बताया गया है और श्रेष्ठ स्तर के साधकों के पूजा स्थान में इस प्रकार के यंत्र को सर्वाधिक प्रमुखता दी जाती है।_

साधना में इस यंत्र को लकडी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर भव्यता के साथ स्थापित करे और फिर, _
*ॐ परमतत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः*_
मन्त्र का उच्चारण करता हुआ, उस यंत्र को जल, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर और पुनः जल से स्नान कराकर पोंछ कर उसी बाजोट पर स्थापित करे, और फिर उपरोक्त मंत्र से ही उस पर केसर का तिलक और पुष्प समर्पित करते हुए पुष्प हार पहनाए, तथा शुद्ध  घृत का दीपक और अगरबत्ती प्रज्वलित करे।
तत्पश्चात योगिनी तंत्र में दिये हुए निम्न गुरु महात्म्य का पांच बार पाठ करें।

*श्री गुरु महात्म्य*
_आदि नाथो महादेवि! महाकाली हि यः स्मृतः।_
_गुरूः स एव देवेशि! स्त्रव मंत्रे धुना परः।।_
_शैवे शाक्ते वैष्णवे च, गाणपत्यें तथैन्दवै।_
_महा-शैव चं सौरे च, स गुरू नात्र संशयः।।_
_मन्त्र देवता स एव स्याननापरः परमेश्वरि।_
_मन्त्र प्रदान काले हि, मानुषो नग-नन्दिनिः।।_
_अधिष्ठानं भवेत् तस्य, महा-कालस्य शांकरि।_
_देवि! ह्यमानुषी चेय, गुरूता नात्र संशयः।।_
_मन्त्र दाता शिरः पद्मेः यद् ध्यानं कुरूते गुरूः।_
_तद् ध्यान कुरूते देविः! शिष्योपि शीष पंकजे।।_
_अतएव महेशा नि! एक एव गुरूः स्मृतः।_
_अधिष्ठान भवेत् तस्यामानुषस्य महेश्वरी।_
_महात्म्यं कीर्तित येव सर्व शास्त्रेषु शांकरी।।_

इसके पश्चात साधक गुरू दिव्य माला से वही बैठे बैठे गुरू चैतन्य साधना मन्त्र जप करें, इस दिन इस मंत्र की 21 माला मंत्र जप करने का विधान है,
यह मंत्र अत्यंत गोपनीय और दुर्लभ कहा गया है, अतः साधक को चाहिए कि मन्त्र में पूर्ण भावना रखते हुए
यह मंत्र जप करे और मंत्र जप करते समय अपनी दृष्टि ताम्र पत्र पर अंकित कर गुरू चित्र पर ही स्थापित करें।

_*गोपनीय चैतन्य सिद्धि त्रैलोक्य विजय मन्त्र*_
*ॐ चित्मगल हन हन, दह दह, पच पच सर्वाज्ञा ज्ञापय स्वाहा।*

इसका 21 माला मंत्र जप करने के बाद साधक पुनः गुरू मंत्र की एक माला जप करें और फिर अपने प्राणों में चैतन्यता प्राप्त करने के लिए निम्न मंत्र का 108 बार उच्चारण  करें --

*आं ह्रीं क्रौं श्रीं स्वाहा मम गुरू दैवतायाः प्राणा इह प्राणाः, आं ह्रीं क्रौं श्रीं स्वाहा मम गुरु देवतायाः जीव इह स्थितः,
आं ह्रीं क्रौं श्रीं स्वाहा मम गुरु देवतायाः सर्वेन्द्रियाणि,
आं ह्रीं क्रौं श्रीं स्वाहा मम गुरु देवतायाः वाङ् मनो नयन घ्राण-श्रोत्तस्त्वक् प्राणा इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।*

इसके बाद साधक वह माला अपने गले में धारण कर ले और गुरू आरती करै, अद्वितीय चैतन्य यंत्र को पूजा स्थान में ही रहने दे, नित्य दीपक और अगरबत्ती उसके सामने प्रज्ज्वलित करे।
महाकाल संहिता के अनुसार इसके बाद किसी भी दिन व्यक्तिगत रूप से गुरू के सामने पहुँचकर उनसे प्रार्थना कर व्यक्तिगत रूप से चैतन्य सिद्धि दीक्षा प्राप्त कर ले और ऐसा करते ही, उसका सहस्त्रार जाग्रत होने लगता है और वह अपने इष्ट के और समस्त देवी देवताओं के साक्षात दर्शन करने में समर्थ सफल हो पाता है।

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