महाकाल साधना दीक्षा प्रोयोग
गोपनीय साधना (सावन के महीने में की जाने वाली साधना )
भगवान शंकर काल के भी काल है उन्ही महाकाल को मेरा प्रणाम व नमन है | महाकाल तो वह धुरी है , जिस पर समस्त ब्रम्हांड गति शील है | महा काल में ही या समस्त चराचर जीव जगत विश्व ब्य्याप्त है , महाकाल ही शिव का ही एक रूप है , जो की खुद शिव से सह्त्र गुना जादा तेजेस्विता युक्त है
ब्र्म्हामल में एक जगह कहा गया है यदि साधक गुरु ने दिव्या शक्ति पात दीक्षा ( राज्याभिषेक दीक्षा , शिस्याभिशेक दीक्षा , शाम्भवी दीक्षा आदि दीक्षा को अक्षुण बनाये रखना चाहता है तो उस के लिए महाकाल साधना करना बहुत जरुरी है | एस साधना को करने से पहले गुरु की आज्ञा मानसिक रूप से या सामने जा कर लेना चहिये तभी साधना करना चहिये क्योंकि महाकाल उग्र देव है और साक्षत महाकाल है को उपथित करना एक प्रकार से काल का आलिंगन करना है तभी तो दया से अभुभुत महाकाल कभी भी साधना के दोरान साधक के सामने नहीं आते है | फिर भी साधक को ये अनुभाव् हो जाता है की कोई आया है | उसे आवाज सुनई दे जाता है | तब महाकाल उसे आशीवार्द के सरूप म्रत्यु देते है | साधक की दरिद्रता को , उसकी वासना को उस के रोगों को उस के अष्टपाशो को और उस की जीवन में मिल रही असफलता को
चुकी महाकाल खुद काल सरूप है एवं उस पर अरूंढ है अत : इसे साधक खुद ही त्रिकाल दर्शी बन जाते है कई कई जन्मो की को देख सकने में वो शक्ति अर्जित कर पते है वो जिस को भी देखता है उस का भुत भविष्य वर्तमान साफ़ साफ़ दिखाई देने लगता है इसे साधक शतायु प्राप्त कर पाते है उस के जन्म कालीन गृह दोस खुद समाप्त हो जाता है शत्रु उसके समक्ष आते ही विर्यहीन हो जाता है | एवं अधिकारी गन , मंत्री गन आदि उस की आज्ञा मानते है |
दीशा दक्षिण हो ..11 माला 11 दिन रात 9 बजे के बाद नाहा कर साफ़ धोती धरण कर गुरु पूजन करे और पूजा कक्ष मे बाजोट बिछा कर उस पर एक थाली में महा काल यन्त्र स्थापित करे और महाकाल गुटिका को रखे और फिर धुप दीप पुष्प सिंदूर और नैवैद्य से पंचौपचार से पूजा करे |
उस के बाद महाकाल का ध्यान करे
स्रष्टारोऽपी प्रजानां प्रबलभवभयाद यं नमस्यन्ति देवा:| |
यावत ते सम्पृष्टोऽप्यवहितमनसां ध्यान मुक्तात्मनां चेव नूनं ||
लोकानामादिदेव: स जयतु भगवाञछी महाकालनामा |
विभ्राण: सोमलेखा महिवलययुतं व्यक्तलिंगं कपालम ||
मंत्र :
२१ दिन में 1 लाख जाप करे और उस का दसवा भाग हवंन करे घी से तो आती ऊतम लाभ प्राप्त होता है | एस साधना को सावन के दुसरे सोमवार को सुरु करे |