आदित्य प्रयोग
मित्रो सुर्य देव तेज तथा बल के दाता है।जीवन
नवीन उत्साह का संचार सुर्य कृपा से ही होता है।जिस प्रकार सुर्य उदित होते
समय प्रकाश तथा नविन दिन का संदेश लाता है,उसी प्रकार सुर्य कृपा से साधक
मे नविन उत्साह का संचार होता।सुर्य देव जहाँ समस्त ग्रहो के स्वामी है वही
देवताओ मे भी ईन्हे उच्च स्थान प्राप्त है।
प्रस्तुत साधना से साधक के
रूके कार्यो को गती मिलती है।तथा समस्त नकारात्मरक विचारो से साधक मुक्त
होता है।घर मे निरंतर यदि रोग बड़ रहे हो तो साधक को उनसे भी मुक्ति मिलती
है।साधक यह यह प्रयोग किसी भी रविवार अथवा मकर संक्राति पर करे।समय प्रातः
सुर्योदय का हि रखे।आसन वस्त्र का कोई बंधन नही है।दिशा पुर्व हो।साधक
सर्व प्रथम सुर्य को अर्ध्य प्रदान करे।ईसके बाद सुर्य के सामने ही आसन
बिछाकर बैठ जाये।और अपने सामने भुमि पर ही मिट्टी का नविन दिपक प्रज्वलित
करे।ईसमे आपको तिल का तेल भरना है।अब दिपक के सामने एक पात्र स्थापित कर
ईसमे हल्दि के घोल से सुर्य कि आकृति बनाए।ओर निम्न मंत्र का ३ माला जाप
रूद्राक्ष अथवा स्फटिक माला से करे।
ओम नमो आदेश गुरू को आदित्य देव प्रकाश पसारे,कष्ट हरो हनुमान पियारे,मुट्ठि भर अन्न गृहण करो,अन्न धन भंडार भरो,नारायण किरपा करे,भगत अरज पे कारज करे,ओम नमो नारायण
प्रत्येक माला कि समाप्ति पर एक मुट्ठि गेहुँ पात्र मे डाले।ईस प्रकार यह प्रयोग पुर्ण हो जाएगा।बाद मे सुर्यास्त के पहले ही,समस्त गेहुँ को शिव मंदिर मे ढ़ेरी बनाकर रख दे तथा जो दिपक प्रयोग किया था उसमे तेल भरकर,दिपक को को ढेरी पर रखकर प्रज्वलित कर दें।