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pratyek saadhana ka aadhaar hai yahee saadhana ! सोऽहं प्रत्येक साधना का आधार है यही साधना !

pratyek saadhana ka aadhaar hai yahee saadhana ! सोऽहं प्रत्येक साधना का आधार है यही साधना !

प्रत्येक साधना का आधार है यही साधना !
प्रत्येक साधना का एक मर्म होता है जिसको समझे बिना उसमे प्राप्ति की संभावना न्यून होती है और स्वयं साधना का भी मर्म होती है अत्मचेताना ,क्यों की आत्मचेतना के आभाव में उत्पत्ति संभव ही नहीं उस आत्मबल की,जो संपूर्ण साधना में एक़ प्रवाह एवं बल बन सके !जीवन तीव्रता से उन्नति करने के लिए यदि साधना का असरे लेने का मानस बन चूका हो,तो ऐसे योग्य साधक को प्रयास कर अवस्यमेव आत्मचेतना साधना संपन्न कर ही लेना चाहिए !प्रत्यक्षत :यह किसी भौतिक अथवा अध्यात्मिक उपलब्धि की साधना नहीं है,किंतु क्या संभव है ,की किसी नीव की अनुपस्तिति में कोई मकान बन सके ?और बना भी लिया तो कीतना टिक सकेगा वह?
यधपि प्रत्येक साधना किसी न किसी रूप में साधक की आत्मा-चेतना को स्पर्श करता ही है,किंतु यदि साधक ने आत्मचेतना की यह प्रस्तुत मूल साधना सम्पन्न कर राखी होती है,तो वह किसी भी अन्य साधना को प्रभावों को अधिक तीव्रता से ग्रहण कर पता है ,क्योकि तब उस साधना (भले ही वह किसी भी देवी-देवता,अप्सरा ,यक्षिणी ,आदि की क्यों न हो )की उर्जा साधक की आत्मा चेतन को स्पर्श करने का स्थान पर अपने विषय की ओर अधिक तिव्रता से केन्द्रित हो जाती है!
इस साधना को अपने जीवन की आधारभूत साधना बनाकर अन्यान्य क्षेत्रों मे तीव्रता से प्रगति करने के इच्छुक साधक को चाहिए ,कि वह ताम्र पत्र पर अंकित आत्मचेतना यन्त्र को प्राप्त कर उसे किसी भी रविवार की प्रातः किसी सफ़ेद वस्त्र पर ताम्बे के पात्र में स्तापित कर स्वयं पूर्व कीओर मुख करके भैट तदा आत्मचेतना माला के द्वारा निम्न मंत्र की 1 1 माला जप सम्पन्न करे !साधक स्वयं भी साफ़ सफ़ेद धोती पहन कर,सफ़ेद आसन पर भैट तथा संभव हो तो घी का दीपक भी लगा ले ,यधपि यह अनिवार्य नहीं है!

ॐ ह्रीं सोऽहं ह्रीं ॐ

यथासंभव साधक इस साधना को प्रत:पांच से छः बजे के मध्य ही सम्पन्न करे !इक्कीस दिन तक उपरोक्त क्रम बनाये रखने के पश्चात अंतिम दिन सभी सामग्री किसी देवालय में कुछ दक्षिण के साथ रख दे !यह चमत्कार प्रधान साधना नहीं है किन्तु इसे संपन्न करने के पश्चात साधक फिर अन्य किसी साधना में प्रव्रुत्त होते समय स्वयं अनुभव कर सकता है ,की पहले जहा उसे आधे या एक घंटे तक मंत्र जप मे भैट्ने पर कष्ट अनुभव होता ता ,वही दो -दो घंटे या इससे भी अधिक भैट्ने पर भी न तो थकान आती है न ही किसी अन्य प्रकार से कोई व्यवधान उपस्थित होता है !यही इस साधना का मुख्या उद्धेश्य भी है !!!

प्रत्येक साधना का आधार है यही साधना

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